नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, October 6, 2022

बौखलाहट !


कल शिवाजी पार्क में उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना ने दशहरा मनाया। शिवाजी पार्क और दशहरा तो हर साल की तरह ही था ; लेकिन उद्धव ठाकरे की परिस्थतियाँ  बदली हुई थी।  उनका सारा भाषण केंद्रित था , एकनाथ शिंदे और उनके शिव सेना से निकले सभी बाग़ी विधायकों के विरुद्ध ! अगर एक शब्द में इस भाषण का कोई  शीर्षक देना हो तो मैं दूँगा बौखलाहट !

रावण की जगह उन्हें एकनाथ शिंदे नजर आ रहा था। रावण के दस सिरों की जगह शिंदे के ४० विधायकों के सर नजर आ रहे थे। उन्हें शिंदे का बागपन तो नजर आ रहा था , लेकिन उन्होंने जो चुनाव में जीतने के बाद बीजेपी के साथ किया , वो नजर नहीं आ रहा था। सारे हिंदुत्व को छोड़ वो जा मिले अवसरवादी शक्तियों ले साथ , जहाँ सेक्युलर के नाम पर पालघर में साधुओं की हत्या किये जाने पर भी मौन था। 

सबसे घटिया बात थी , बाला साहेब ठाकरे को अपनी बपौती बताना ! बाला साहेब बाप तो जरूर थे उद्धव के , लेकिन बपौती नहीं ! जिस व्यक्ति को हमेशा हिन्दू ह्रदय सम्राट कहा जाता हो , वो एक व्यक्ति की बपौती कैसे हो सकता है ? ये तो कुछ ऐसा हुआ जैसे की महात्मा  गांधी के बेटे पूरे देश द्वारा उन्हें बापू कहे जाने पर ऐतराज करें ! रही सही कसर निकल गयी जब आधा ठाकरे परिवार नजर आया कल ही शाम को एकनाथ शिंदे के मंच पर , जहाँ वो भी अपनी दशहरा रैली निकल रहे थे ; एक अभूतपूर्व समूह  के समक्ष !


न मेरा व्यक्तिगत विरोध है उद्धव से और न ही विशेष लगाव है एकनाथ से ; लेकिन राजनीति में बौखलाहट के लिए कोई जगह नहीं होती। 

बहुत से मित्रों के फ़ोन आते रहते हैं ; उन्हें शिकायत है की आजकल ब्लॉग पर कुछ लिख क्यों नहीं रहे ? शिकायत दुरुस्त है। जब मैं अपने मन में कारण ढूंढता हूँ , तो मुझे बस एक ही कारण नजर आता है। वो कारण  है देश का माहौल।

नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्ति हमें प्रधानमंत्री के रूप में मिला , देश की अपेक्षाएं बढ़ी। उन अपेक्षाओं को पूरा करने में मोदी ने अपना दिन रात एक कर दिया। दुनिया उनको एक विशेष सन्मान के साथ देख रही है। जितना काम उन्होंने अपने इस डेढ़ साल के कार्यकाल में किया है , मुझे नहीं लगता पिछली किसी प्रधानमंत्री ने इतना काम किया हो। एक ऐसा व्यक्ति जिसके भाषणों में हमेशा देश प्रेम की खुशबू आती है ; जो व्यक्ति हमेशा देश के १२२ करोड़ भारतीयों के लिए काम करता है , और जो व्यक्ति अमन के लिए बड़े से बड़ा जोखिम उठा कर एक फोन पर दिए गए निमंत्रण को स्वीकार कर दुश्मन देश पाकिस्तान चला जाता है - क्या बराबरी करेगा उसका कोई दूसरा प्रधामंत्री !

लेकिन वाह  रे भारत ! जिस व्यक्ति को देश ने पूर्ण बहुमत से अपना नेता चुना उन्हें ये स्वार्थ का चश्मा चढ़ाये हुए विरोधी दल चौबीस घंटे बदनाम करने पर तुले हैं। बेमतलब की बातों पर उन्हें प्रधानमंत्री का बयान  चाहिए।  राज्य स्तर पर हुए अपराधों पर उन्हें प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा चाहिए। इनका बस चलता तो वो मोदी की पाकिस्तानी दौरे को राष्ट्र विरोधी कार्यवाही घोषित कर देते ; लेकिन जिस ढंग से विश्व ने इस साहसिक कार्य को सराहा उसे देख कर दबी जुबान में बोलती रह गयी कांग्रेस।

देश की सबसे निकम्मी दिल्ली सरकार बात बात पर केंद्र सरकार को उल्टा सीधा कहती रहती है।  अपनी नाकामियों को छुपाने का के लिए केंद्र सरकार की आलोचना को अपना हथियार बनाया है आप ने।

बिहार के चुनाव को मापदंड बना लिया मोदी की सफलता और विफलता का। बिहार की हार मोदी की विफलता नहीं , बल्कि बिहार के मतदातों की विफलता है। उन्हें कोईबुराई नजर नहीं आती लालू जैसे अपराधियों  को अपना  सर्वेसर्वा बनाने में। उन्हें जरा भी विचित्र नहीं लगता जब लालूजी के दो अनुभवहीन बेटों को सरकार में उच्च पदों पर थोप दिया जाता है। नितीश की बोलती बंद है , क्योंकि अपने पुराने बड़बोलेपन के कारण उन्हें मोदी की जगह लालू को अपना भागिदार बनाना पड़ा।

ममता की तृणमूल कांग्रेस जूझ रही है अपने ही मंत्रियों के कारनामों से। दीदी ने अजीब लोगों का समूह पाल रखा है। एनसीपी किंकर्तव्यविमूढ़ है ; कहीं न कहीं उनके अंदर आशाएं है की शायद उन्हें बीजेपी अपने साथ ले ले।

देश में किसी मुस्लमान के साथ कुछ बुरा हो जाए तो सारे सेक्युलर वादी नाचने लगते हैं , और बिना किसी कारन के मोदी जी जिम्मेवार हो जाते हैं ; लेकिन हजारों हिन्दू लड़कियों का बलात्कार और हत्या हो जाए उनके लिए किसी का मुंह नहीं खुलता। एक दलित छात्र ने आत्महत्या कर ली तो सारी केंद्र सरकार जिम्मेवार हो गयी , लेकिन आई एस आई से जुड़े दर्जनों आतंकवादी पकडे गए तो सबकी बोलती बंद। कहाँ  चला जाता है ये सेक्युलर वाद का नाटक।

मिडिया भी चिताओं की अग्नि पर पूरियां सेक रही है। हत्या मार काट के वीडियो दिन भर में सैंकड़ों बार दिखाए जाते हैं ; फिर एक कहानी शुरू कर दी जाती है

Thursday, May 25, 2017

पीपल , गंगा और गाय


पीपल , गंगा और गाय

कई बार मन में आता है ; क्यों महत्व है इन सब का हिन्दुओं के जीवन में ! यूँ तो महत्व बहुत सारी  वस्तुओं का है , लेकिन क्यों कुछ वस्तुओं या जीवों का विशेष महत्व है ? इस चिंतन में मन में एक बात आयी। हम जीवन पर्यन्त संसार की जिस सामग्री का उपयोग करते हैं , उनका हम किसी न किसी रूप में मूल्य चुकाते हैं।  मसलन हमने एक ग्वाले से दूध खरीदा तो उसे दूध का मूल्य दिया , जिससे वो अपनी गायों के लिए चारे की व्यवस्था करता है।  यानी अपरोक्ष रूप से हमने गाय को उसके दूध का पूरा नहीं तो आंशिक मूल्य चुकाया। अगर हम अपने बाग़ से फल तोड़ कर कहते हैं , तो हम उस बाग़ की रख रखाव का दायित्व निभाते हैं।


लेकिन मृत्यु के बाद क्या ? विदेशों में आजकल एक नयी व्यवस्था निकली हुई है। ऐसी ऐसी कम्पनियाँ खुल गयी हैं , जो एक ऐसी सेवा बेचती है , जिसका उपयोग खरीदने वाला व्यक्ति मरणोपरांत ही कर पाता है। वह सेवा है मनचाहा अंतिम संस्कार ! ये कम्पनियाँ अपने ग्राहक से पूछती हैं - १. किस कब्रिस्तान में उसे दफनाया जाय। २. उसकी कब्र कैसी हो ? ३. क्या उस कब्र पर कोई मकबरा बनाया जाय ? ४. उसके शव को कैसा सूट और टाई पहनाई जाए। ५. उसका ताबूत कैसा बनाया जाय।६. उसकी शोक सभा के लिए किस किस को बुलाया जाय। इत्यादि।  हर वस्तु की फोटो दिखाकर उसका मॉडल नंबर लिख कर कॉन्ट्रैक्ट तैयार कर लिया जाता है। उन सेवाओं का जो भी मूल्य होता है वो उस व्यक्ति को कॉन्ट्रैक्ट बनने के समय चुकाना होता है।  सम्भवतः कोई व्यक्ति इन सब चीजों के भविष्य में सुचारु और इच्छानुसार किये जाने के लिए गवाह भी नियुक्त होता होगा।

भारत के परिपेक्ष्य में अगर हम सोचें तो इस हद की मानसिकता हमारे देश में नहीं है ; क्योंकि हम परिवारवादी लोग हैं। बेटे कितने भी नालायक क्यों न हों , मरणोपरांत रीति रिवाज जग दिखावे के लिए ढंग से पूरे करते हैं।  लेकिन सवाल रीति रिवाज का नहीं है।  सवाल है , उस कर्ज का जो हमारे शव के साथ जुड़ा है। आर्य समाज की अंतिम संस्कार पद्धति के अनुसार एक सामान्य मनुष्य के शव के दाह कर्म के लिए १० मन (३७३ किलो) लकड़ी और ४ मन (१५० किलो घी ) की आवश्यकता होती है। शव के पूरी तरह जल जाने के बाद उसकी अस्थियां गंगा या किसी अन्य नदी में बहा दी जाती है।

इस प्रकार हमारे ऊपर मृत्योपरांत तीन कर्ज होते हैं - पेड़ का कर्ज , गाय का कर्ज और गंगा (नदी) का कर्ज। हर व्यक्ति को ये कर्ज अपने जीवन काल में अग्रिम भुगतान के रूप में चुका देने चाहिए।

१. जीवन में एक पेड़ अवश्य लगाएं।

२. एक गाय को जीवन पर्यन्त पालने की व्यवस्था करें।

३. नदियों को दूषित न करें। और आज के समय में तो हम प्रधान मंत्री मोदी के गंगा सफाई अभियान में भी भाग ले सकते हैं।

जीवन के ये चिंतन हमें प्रेरित करते हैं समाज , देश और प्रकृति के प्रति अपने दायित्व का वहन करने की !

Saturday, April 22, 2017

इति विपक्ष एकता प्रकरणम

विपक्षी दलों की एकता

आपने भी पढ़ा होगा की दो दिन पहले नितीश कुमार  श्रीमती सोनिया गाँधी से मिलने गए । मुद्दा था - राष्ट्रपति चुनाव में पूरा विपक्ष एक होकर अपना उम्मीदवार उतारे। सब कुछ तो मीडिया को भी पता नहीं होता। ये रही अंदर की बात -

नितीश - सोनिया जी , आज मैं एक खास मुद्दे पर आपसे बातचीत करने आया हूँ ; मेरा प्रस्ताव है की हम सभी विपक्ष के लोग एकजुट होकर राष्ट्रपति पद का एक उम्मीदवार चुने और मोदी जी के कैंडिडेट को हरा कर उनका घमंड चकनाचूर करें।
सोनिया - आपका विचार अच्छा है , लेकिन क्या मेरे को कैंडिडेट बनाने से मेरा फोरेन रूट का प्रॉब्लम नहीं आएगा ?
नितीश - बिलकुल आएगा , वर्ना आपसे अच्छा कैंडिडेट कौन होता ! वैसे लालूजी भी बहुत इंटरेस्टेड हैं , लेकिन उनको सबका समर्थन नहीं मिलेगा।  मेरे बारे में आपका क्या ख्याल है ? लोग मुझको पसंद करते हैं।

( तभी लालू का प्रवेश )
लालू - क्यों नितीश भाई , आपने चर्चा कर ली हमारे नाम की ?
नितीश - (फुसफुसा कर ) - मैडम ने ना कर दिया है।
लालू - क्यों मैडम ? जब भी कांग्रेस पर संकट पड़ा है , हमने आपका साथ दिया है।
सोनिया - संकट भी तो आपके कारण पड़ा है !

( अखिलेश का प्रवेश )
अखिलेश - सब को पिताजी की तरफ से नमस्ते !
लालू - और तुम्हारी तरफ से ?
अखिलेश - अंकल , हमारी नमस्ते कौन सुनता है ? यू पी  के चुनाव के बाद से ही हम दोनों नौजवानो के सितारे गर्दिश  में है।
सोनिया - तुमने राहुल को बिना मतलब फँसाया !
अखिलेश - आंटी , जाने दें , किसको किसने फँसाया। फिलहाल मैं एक दरख्वास्त लेकर आया हूँ। जब से हम यू पी चुनाव हारे हैं , पिताजी बौखला गये हैं। हारने का कारण मुझे बताते हैं ; जबकि सच्चाई ये है कि मेरे कारण उनकी इज्जत बच गयी ; वर्ना मुख्यमंत्री वो भी होते तो हारना निश्चित था। जहाँ तहाँ मेरे बारे में उल्टा सुलटा बकते हैं। उनके साथ बैठकर शिवपाल अंकल उन्हें भड़काते हैं।
लालू - भैया , ये तो तुम्हारा आतंरिक मामला है तुम्ही निपटो। ऐसे सभा सोसाइटी में समधी जी की टोपी मत उछालो।
अखिलेश - अरे नहीं लालू अंकल , हम तो बस ये अनुरोध लेकर आये हैं , की  आप सब मिलकर उनको राष्ट्रपति का कैंडिडेट बना दो , तो हमारी जान छूट जाये।
सोनिया - इम्पॉसिबल ! मुलायम वाज  वैरी हार्ड ऑन  राहुल। उसने कांग्रेस के  बारे भी  ग़लत बोलै।

( सीताराम येचुरी का प्रवेश )

सीताराम - कम्युनिस्ट पार्टी का कैंडिडेट बनूँगा मैं। कम्युनिस्ट पार्टी ने कभी कोई पद नहीं माँगा।  बल्कि ज्योति बाबू को प्रधानमन्त्री  बनने से भी रोका।  हमेशा आप लोगों का साथ दिया।  हमारा पोलितब्यूरो ने फैसला किया है ,  कि देश का राष्ट्रपति मुझे बनाया जाय।

(अचानक ममता का प्रवेश )

ममता - अच्छा अब गुण्डो की पार्टी को भी राष्ट्रपति बनना है।  तुमलोगों ने पश्चिम बंगाल को बरबाद कर दिया , अब क्या हिंदुस्तान को बर्बाद करोगे।

(मायावती का प्रवेश )

मायावती - कभी तो दलितों की महिला को भी चांस दो ! मैंने फैसला किया है,  कि अब मैं यूपी की चुनावी राजनीति से सन्यास ले लूँ।
अखिलेश - अरे बुआ , सन्यास तो तुम्हे मोदी जी ने दिला दिया। तुम अपने  भतीजे को गलियाती रह गयी , वो हम दोनों की बजा के चला गया।

तभी सम्बित पात्रा का प्रवेश -

संबित - मुझे मोदीजी ने एक सन्देश देकर भेजा है , की इस बार हमलोग एक नयी मिसाल पेश करेंगे।  हमलोग इस बार किसी विरोधी पार्टी के किसी समझदार वरिष्ठ  नेता को राष्ट्रपति  उम्मीदवार बनाएंगे।  अगर आप लोगों ने कोई उम्मीदवार चुन लिया हो तो उन्हें खबर कर देना।

ऐसा सुनते ही सारे नेता भाग लिए सभा से।  अपनी चिर परिचित कुटिल मुस्कान के साथ संबित्त भी वहां से निकल लिए।
                                          
इति विपक्ष एकता प्रकरणम

Wednesday, October 12, 2016

खेल ख़त्म पैसा हजम !

  1. लो जी हमने कल फूंक दिए देश के सारे रावण ! कोई भी नहीं बचा। खेल ख़त्म पैसा हजम ! किसे भुलावा देते हैं हर साल ? जिसे जलाते हैं , वो तो सिर्फ एक पुतला था , जिसे बनाकर किसी गरीब के घर का चूल्हा जला होगा। सड़कों पर बाजार लगते हैं रावण के पुतलों के। छोटा रावण , बड़ा रावण , मूंछ वाला रावण , दस सर वाला रावण ! रावण जितना बड़ा - पैसे उतने ज्यादा। छोटे बच्चे , बूढी औरतें , सभी मिलकर बनाते हैं वो बेंत और कागज वाले रावण। भरण पोषण होता है उनके परिवारों का । ऐसे रावणों को मैं क्यों बुरा कहूँ , जो स्वयं जल कर भी गरीब को रोटी देते हैं।                                       
  2. उन रावणों को कौन जलाएगा , जो निर्भया जैसी मासूम बच्चियों का बलात्कार करते हैं ! उन पुलिस के वेश में बैठे जल्लादों को कौन जलाएगा जो गरीब आदमी को फंसा कर थाने में मार डालते हैं। शहाबुद्दीन जैसे खूंखार हत्यारों को जो बेल पर छुड़ा लेते हैं - उनको कौन जलाएगा ? नगर नगर में रावणों की भरमार है ; लेकिन उनके वध के लिए कोई विजयादशमी नहीं आती।