नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, June 18, 2013

सबसे सेकुलर नरेन्द्र मोदी


भारत  की राजनीति में रोजाना जितनी चर्चा नरेन्द्र  पर होती है , शायद स्वतंत्र भारत में किसी भी नेता के बारे में इतनी चर्चा नहीं हुई होगी . नरेन्द्र मोदी एक ऐसा बहाव है जिसके प्रवाह में कोई खड़ा नहीं हो सकता . मोदी एक ऐसी शक्ति  है जिसका आधार उसकी सच्चाई और कार्यशीलता है . फिर नरेन्द्र मोदी का इतना विरोध क्यों ? विरोध का कारन भी नरेन्द्र भाई की वो शक्ति है जिससे हर नेता हर दल का डरा हुआ है . कल तक कांग्रेस के गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी ; अब जब नितीश कुमार ने एन डी  ऐ का साथ छोड़ दिया है तब कांग्रेस को कुछ मुह खोलने की हिम्मत आई है .

सेकुलर के नाम पर इस देश की जनता को ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है , जिससे की भारतीय जनता पार्टी पर साम्प्रदायिक की मुहर लग जाए .  एक झूठ को रोजाना सौ बार दोहराए जाने पर वो सच लगने लगता है . वास्तविकता ये है की देश की सबसे अधिक उदार और राष्ट्रीय पार्टी है भारतीय जनता पार्टी और सबसे बड़ी कम्युनल पार्टी है कांग्रेस . कांग्रेस का आधार ही मुसलमानों के तुष्टिकरण पर टिका है . सिर्फ तुष्टिकरण - उनका विकास नहीं . तुष्टिकरण के सबसे अच्छे हथियार हैं उनके धार्मिक मुद्दों पर अंधाधुंध समर्थन देना - चाहे वो हज यात्रा में सरकारी सहायता हो , या मुस्लिम पर्सनल ला  जैसा गलत अपवाद . जरूरत पड़ने पर कांग्रेसी नेता सभी मस्जिदों और मजारों पर जाकर कभी चादर चढ़ा देते हैं तो  कभी उनकी सफ़ेद टोपी पहन कर उनके साथ तस्वीरें खिंचवा लेते हैं . और सबसे बड़ा नाटक है इन सभी सेकुलर कहलाने वाले दलों की इफ्तार पार्टी, यानी की मुस्लमान भाइयों के साथ उनके तरीके से उनका त्यौहार मनाना !

नरेन्द्र मोदी की सेकुलर छवि कांग्रेस से कहीं ऊपर है . गुजरात में एक शहर है सलाया . सुदूर पश्चिमी तट पर जामनगर के पास बसा हुआ एक मुस्लिम शहर . मुस्लिम इसलिए की वहां की ४५  हजार की आबादी में करींब  ४१   हजार लोग मुस्लमान हैं . वहां की स्थानीय कार्यपालिका के चुनाव में बी जे पि ने २४  मुस्लमान उमीदवार खड़े किये थे ; २४  के २४  उमीदवार चुनाव जीत गए . सामने खड़े सारे कांग्रेसी उमीदवारों की जमानत जब्त हो गयी . ये जीत थी मोदी सर्कार की मुस्लमान और पिछड़ों के उत्थान की नीति की . सरकारी  और बिकाऊ मिडिया इस खबर को चुपचाप पचा गयी . 

पूरे गुजरात राज्य में यही ट्रेंड रहा है . ७ ६ मुनिसिपल कोर्पोरेसनों में बी जे पी का वर्चस्व रहा है . इन  मुनिसिपल चुनावों  में बी जे पी के उतारे गए १४५ उम्मीदवारों में से ८१  जीते . कोदिनार मुनिसिपलिटी में बी जे पी के आठ के आठ मुस्लमान उम्मीदवार चुनाव जीत गए . जूनागढ़ में हुए बाई इलेक्सन में बी जे पी के दो उम्मीदवारों के सामने कांग्रेस ने कोई प्रतिद्वंदी तक खड़ा नहीं किया . 

अब आयें विधान सभा के चुनावों की तरफ ! दिसंबर २ २ में हुए चुनावों में ३२ मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों में से 22   सीटों में बी जे पी का मत प्रतिशत था ३०  से लेकर ६७ ! मजे की बात ये हैं की विधान सभा चुनावों में बी जे पी ने 1८२   सीटों में एक भी मुस्लमान उम्मीदवार खड़ा नहीं किया . कांग्रेस जरा इस प्रश्न का उत्तर दे की ये सारा  समर्थन मोदी को मिला या किसी और को . ये जीत है नरेन्द्र मोदी के उस नारे की जिसमे उन्होंने पूरे राज्य को ये सन्देश दिया - प्रगति सबकी और तुष्टिकरण किसी का नहीं !

प्रगति का सन्देश सरकारी आंकड़ों से नहीं मिलता , बल्कि जमीनी वास्तविकता से मिलता है . सलाया गाँव में क्या हुआ था ? जिस गाँव में कांग्रेस काल में एक भी सड़क नहीं थी उसमें १ २   किलोमीटर की बढ़िया पक्की सड़के हैं ; जिस गाँव में सरकारी शौच निकास की सुविधा नहीं थी , आज पूरे गाँव के हर घर के पास वह बुनियादी सुविधा है . समुद्री खारे पानी से जीवन यापन  करने को बाध्य ये गाँव आज  पीने का पानी पा रहा है . ऐसे गाँव के मतों को अपनी खोखली सेकुलर वादी नाराबाजी से कौन छीन  सकता है .

विधान सभा के चुनावों में मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों - भुज और वागरा में वहां की जनता ने कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों की जगह मोदी के हिन्दू उम्मीदवारों को चुना . क्यों ? क्योंकि ये चुनाव मोदी का था ! वागरा के  गाँव की कहानी - कांग्रेस ने १९ ६ ७ में वहां एक हस्पताल का निर्माण किया- लेकिन २० ० ७ तक वो मात्र एक भवन था जिसमें हस्पताल  कभी शुरू ही नहीं हुआ . वहां उस समय की सर्कार पशुओं का चारा रखने का काम करती थी . पालेज के स्थानीय नेता दुष्यंत पटेल ने मोदी सर्कार की मदद से २.७0 करोड़ रुपैयों की लागत से उस हस्पताल को शुरू करवाया .उस गाँव में हर महीने औसतन ३0 महिलाएं प्रसव के लिए आती हैं , जो की इसके पहले ३0  किलोमीटर  जाने के लिए बाध्य होती थी . ऐसी जगह के मत कहाँ जायेंगे ?  

भुज क्षेत्र में स्थित मुसलमानी गाँवों को तो जैसे जीवन मिल गया . पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित इन गावों का कोई खैरख्वाह नहीं था . मोदी के पर्यटन के नारे - अगर आपने कच्छ  नहीं देखा तो समझो कुछ नहीं देखा  - ने वहां पर्यटकों की कतारें लगवा दी , जिससे मिला वहां के निवासियों को आमदनी का एक अभूत पूर्व अवसर ! अब बताये की कहाँ जाएँगे  कच्छ के मतदाता !
नितीश कुमार जैसे अवसरवादी को मोदी में सिर्फ २ ० ० २ का दंगा नजर आता है , २00३ का प्रगतिशील घोर मोदी समर्थक गुजराती मुस्लमान नहीं ! सच्चाई ये हैं की नितीश को भय ये था की एक और सत्र के बाद बिहार के सारे मुस्लमान बी जे पी के खाते में चले जायेंगे और उनका अपना आधार खोखला हो जाएगा . और ये होने वाला है पूरे देश में ही !

इस लेख का समापन करता हूँ गुजरात के एक मुस्लमान भाई ज़फर सरेशवाला के ब्लॉग की चाँद पंक्तियों से - आज की सच्चाई ये हैं की गुजरात ने आजादी के बाद ये पहला एक दशक देखा है , जिसमें गुजरात में एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ ; सब की सामान उन्नति हुई है . गुजरात का मुस्लमान आज नरेन्द्र भाई के साथ है , क्योंकि हम 2 0 0 2 के सबसे घ्रणित व्यक्तित्व को भूल कर 2 0 1 4  का एक सबसे सही प्रधान मंत्री पाते हैं .

1 comment: