नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, June 20, 2013

विश्वास मत या विश्वास घात

 आखिर बिहार की विधान सभा में नितीश कुमार की जेडीयु को सत्ता में बने रहने का विश्वास मत मिल ही गया . कुल 242 की संख्या के सदन में आधे से अधिक होता है 122 . नितीश कुमार ने तो 126 अंक प्राप्त कर लिए ; तो फिर विश्वास में क्या कमी ? ये देश की राजनैतिक व्यवस्था का दुर्भाग्य है की सब कुछ यहाँ आंकड़ों के तराजू पर तुल  जाता है - जनता का भरोसा , जनता का विश्वास , गठबंधन की प्रतिबद्धता   और सबसे अधिक व्यक्ति का अपना चरित्र ! वर्ना इस तरह की खोखली जीत पर इतनी बड़ी बड़ी बातें करते नहीं दिखाई देते नितीश !

आइये इन आकड़ों का मंथन करें . 242 का विभाजन कुछ इस प्रकार हुआ -

पक्ष में - 126
विरोध में - 24
बाहर रहे - 92

अब  इन सभी आंकड़ों की पूरी समीक्षा ! पक्ष के 126 में 117 जेडीयु के , 4 कांग्रेस के , 4  निर्दलीय  और १ सी पी आई का ! विरोध में 22 लालू की आरजेडी के तथा २ निर्दलीय ! बाहर रहने वालों में थे 91 बीजेपी के अलावा 1 राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी का विधायक !

अब करते हैं इन आंकड़ों से जुड़े विश्वास की समीक्षा ! कोई भी जनता का विधायक चुन कर आता है , एक प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया से जिसे चुनाव कहते हैं . ये चुनाव जनता करती है अपने उम्मीदवार के चुनावी एजेंडा यानि वायदों , चुनावी गठबंधन और उम्मीदवार की योग्यता के आधार पर . इस सच्चाई की तराजू पर तौल कर देखें इन सभी 242 विधायकों को !

बी जे पी के 91 विधायकों ने अपना धर्म निभाया . उन्हें मतदान मिला था एक गठबंधन के रूप में ; इसलिए अकेले जेडीयू के विपक्ष में मत डालने से भी शायद अवमानना होती, उन लोगों के मतों की जिन्होंने जेडीयू समर्थक होते हुए बीजेपी के उम्मीदवार को एनडीए के प्रतिनिधि के रूप में मत दिया था .

रामविलास पासवान के एक मात्र विधायक को जेडीयू के विरोध मत डालना चाहिए था क्योंकि उनके मतदाताओं ने उन्हें मत दिया था एनडीऐ  के विरुद्ध ; फिर भी  रह कर उन्होंने कुछ हद  अपने मतदाताओं के  साथ बहुत बड़ा  धोखा नहीं  किया .

लालू ने अपना विरोधी दल का धर्म  निभाते हुए विरोध किया ; उनके मतदाताओं के    साथ न्याय हुआ .

निर्दलीय  ६ थे ; चूँकि उन्हें उनके मतदाताओं ने उनके अपने व्यक्तित्व के आधार पर चुन कर ये छूट   दी थी ,  वो जहाँ अपने क्षेत्र का भला समझे वहां जुड़ जाएँ ; इस प्रकार सभी निर्दलियों ने अपने मतदाताओं के साथ न्याय किया .

सबसे बड़ा विश्वासघात किया नितीश कुमार की जेडीयू  और कांग्रेस पार्टी ने अपने मतदाताओं के साथ . नितीश कुमार भूल गए की उनकी ११७ सीटें सिर्फ उनकी नहीं हैं ; ये सीटें एनडीऐ की हैं . इन सीटों पर जेडीयू तथा बीजेपी - दोनों के मतदाताओं ने सांझी मुहर लगायी थी . आज बीजेपी को निकाल  कर और अपने दुश्मनों से हाथ मिला कर उन्होंने बीजेपी के उन सभी मतदाताओं के साथ तो धोखा किया ही है ; अपने १७  वर्षों के सांझेदार की भी पीठ में चाकू भौंक कर बहुत बड़ा धोखा किया है . जो कारण  बताये गए वो बिलकुल लचर हैं . नितीश कुमार के पिछले बयानों को दिखा कर मिडिया उनकी रोज पोल खोल रही है ; उनका स्पष्टीकरण एक घटिया अवसरवादिता के सिवा कुछ नहीं .

दूसरी धोखेबाज पार्टी रही कांग्रेस , जिसके मतदाताओं ने उन्हें जेडीयू तथा बीजेपी दोनों के खिलाफ वोट देकर जिताया था . अपने सभी मतदाताओं के विश्वास को धता बता कर कांग्रेस ने अपनी २0१४ के चुनावों की बिसात  बिछाते हुए बिना मांगे ही जेडीयू को समर्थन दिया . और तो और कांग्रेस ने अपने निरंतर बने रहे सहयोगी लालू की भावनाओं को भी बेकार समझ कर कचरे के डिब्बे में फेंक दिया . लालू बेचारे देखते रह गए की उनकी स्वामिभक्ति का उन्हें क्या इनाम मिला .

मतदाता अनपढ़ हो सकता है , लेकिन मूर्ख  नहीं है . ये बातें सभी को समझ में  आती है . इस घटिया विश्वास मत की बुनियाद में भरा है बिहार के मतदाताओं का अतिशय क्रोध , जो समय आने पर ज्वालामुखी बन के फूटेगा . नितीश ने अपने जीवन का सबसे बड़ा गलत निर्णय लिया है .

    

Tuesday, June 18, 2013

सबसे सेकुलर नरेन्द्र मोदी


भारत  की राजनीति में रोजाना जितनी चर्चा नरेन्द्र  पर होती है , शायद स्वतंत्र भारत में किसी भी नेता के बारे में इतनी चर्चा नहीं हुई होगी . नरेन्द्र मोदी एक ऐसा बहाव है जिसके प्रवाह में कोई खड़ा नहीं हो सकता . मोदी एक ऐसी शक्ति  है जिसका आधार उसकी सच्चाई और कार्यशीलता है . फिर नरेन्द्र मोदी का इतना विरोध क्यों ? विरोध का कारन भी नरेन्द्र भाई की वो शक्ति है जिससे हर नेता हर दल का डरा हुआ है . कल तक कांग्रेस के गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी ; अब जब नितीश कुमार ने एन डी  ऐ का साथ छोड़ दिया है तब कांग्रेस को कुछ मुह खोलने की हिम्मत आई है .

सेकुलर के नाम पर इस देश की जनता को ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है , जिससे की भारतीय जनता पार्टी पर साम्प्रदायिक की मुहर लग जाए .  एक झूठ को रोजाना सौ बार दोहराए जाने पर वो सच लगने लगता है . वास्तविकता ये है की देश की सबसे अधिक उदार और राष्ट्रीय पार्टी है भारतीय जनता पार्टी और सबसे बड़ी कम्युनल पार्टी है कांग्रेस . कांग्रेस का आधार ही मुसलमानों के तुष्टिकरण पर टिका है . सिर्फ तुष्टिकरण - उनका विकास नहीं . तुष्टिकरण के सबसे अच्छे हथियार हैं उनके धार्मिक मुद्दों पर अंधाधुंध समर्थन देना - चाहे वो हज यात्रा में सरकारी सहायता हो , या मुस्लिम पर्सनल ला  जैसा गलत अपवाद . जरूरत पड़ने पर कांग्रेसी नेता सभी मस्जिदों और मजारों पर जाकर कभी चादर चढ़ा देते हैं तो  कभी उनकी सफ़ेद टोपी पहन कर उनके साथ तस्वीरें खिंचवा लेते हैं . और सबसे बड़ा नाटक है इन सभी सेकुलर कहलाने वाले दलों की इफ्तार पार्टी, यानी की मुस्लमान भाइयों के साथ उनके तरीके से उनका त्यौहार मनाना !

नरेन्द्र मोदी की सेकुलर छवि कांग्रेस से कहीं ऊपर है . गुजरात में एक शहर है सलाया . सुदूर पश्चिमी तट पर जामनगर के पास बसा हुआ एक मुस्लिम शहर . मुस्लिम इसलिए की वहां की ४५  हजार की आबादी में करींब  ४१   हजार लोग मुस्लमान हैं . वहां की स्थानीय कार्यपालिका के चुनाव में बी जे पि ने २४  मुस्लमान उमीदवार खड़े किये थे ; २४  के २४  उमीदवार चुनाव जीत गए . सामने खड़े सारे कांग्रेसी उमीदवारों की जमानत जब्त हो गयी . ये जीत थी मोदी सर्कार की मुस्लमान और पिछड़ों के उत्थान की नीति की . सरकारी  और बिकाऊ मिडिया इस खबर को चुपचाप पचा गयी . 

पूरे गुजरात राज्य में यही ट्रेंड रहा है . ७ ६ मुनिसिपल कोर्पोरेसनों में बी जे पी का वर्चस्व रहा है . इन  मुनिसिपल चुनावों  में बी जे पी के उतारे गए १४५ उम्मीदवारों में से ८१  जीते . कोदिनार मुनिसिपलिटी में बी जे पी के आठ के आठ मुस्लमान उम्मीदवार चुनाव जीत गए . जूनागढ़ में हुए बाई इलेक्सन में बी जे पी के दो उम्मीदवारों के सामने कांग्रेस ने कोई प्रतिद्वंदी तक खड़ा नहीं किया . 

अब आयें विधान सभा के चुनावों की तरफ ! दिसंबर २ २ में हुए चुनावों में ३२ मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों में से 22   सीटों में बी जे पी का मत प्रतिशत था ३०  से लेकर ६७ ! मजे की बात ये हैं की विधान सभा चुनावों में बी जे पी ने 1८२   सीटों में एक भी मुस्लमान उम्मीदवार खड़ा नहीं किया . कांग्रेस जरा इस प्रश्न का उत्तर दे की ये सारा  समर्थन मोदी को मिला या किसी और को . ये जीत है नरेन्द्र मोदी के उस नारे की जिसमे उन्होंने पूरे राज्य को ये सन्देश दिया - प्रगति सबकी और तुष्टिकरण किसी का नहीं !

प्रगति का सन्देश सरकारी आंकड़ों से नहीं मिलता , बल्कि जमीनी वास्तविकता से मिलता है . सलाया गाँव में क्या हुआ था ? जिस गाँव में कांग्रेस काल में एक भी सड़क नहीं थी उसमें १ २   किलोमीटर की बढ़िया पक्की सड़के हैं ; जिस गाँव में सरकारी शौच निकास की सुविधा नहीं थी , आज पूरे गाँव के हर घर के पास वह बुनियादी सुविधा है . समुद्री खारे पानी से जीवन यापन  करने को बाध्य ये गाँव आज  पीने का पानी पा रहा है . ऐसे गाँव के मतों को अपनी खोखली सेकुलर वादी नाराबाजी से कौन छीन  सकता है .

विधान सभा के चुनावों में मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों - भुज और वागरा में वहां की जनता ने कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों की जगह मोदी के हिन्दू उम्मीदवारों को चुना . क्यों ? क्योंकि ये चुनाव मोदी का था ! वागरा के  गाँव की कहानी - कांग्रेस ने १९ ६ ७ में वहां एक हस्पताल का निर्माण किया- लेकिन २० ० ७ तक वो मात्र एक भवन था जिसमें हस्पताल  कभी शुरू ही नहीं हुआ . वहां उस समय की सर्कार पशुओं का चारा रखने का काम करती थी . पालेज के स्थानीय नेता दुष्यंत पटेल ने मोदी सर्कार की मदद से २.७0 करोड़ रुपैयों की लागत से उस हस्पताल को शुरू करवाया .उस गाँव में हर महीने औसतन ३0 महिलाएं प्रसव के लिए आती हैं , जो की इसके पहले ३0  किलोमीटर  जाने के लिए बाध्य होती थी . ऐसी जगह के मत कहाँ जायेंगे ?  

भुज क्षेत्र में स्थित मुसलमानी गाँवों को तो जैसे जीवन मिल गया . पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित इन गावों का कोई खैरख्वाह नहीं था . मोदी के पर्यटन के नारे - अगर आपने कच्छ  नहीं देखा तो समझो कुछ नहीं देखा  - ने वहां पर्यटकों की कतारें लगवा दी , जिससे मिला वहां के निवासियों को आमदनी का एक अभूत पूर्व अवसर ! अब बताये की कहाँ जाएँगे  कच्छ के मतदाता !
नितीश कुमार जैसे अवसरवादी को मोदी में सिर्फ २ ० ० २ का दंगा नजर आता है , २00३ का प्रगतिशील घोर मोदी समर्थक गुजराती मुस्लमान नहीं ! सच्चाई ये हैं की नितीश को भय ये था की एक और सत्र के बाद बिहार के सारे मुस्लमान बी जे पी के खाते में चले जायेंगे और उनका अपना आधार खोखला हो जाएगा . और ये होने वाला है पूरे देश में ही !

इस लेख का समापन करता हूँ गुजरात के एक मुस्लमान भाई ज़फर सरेशवाला के ब्लॉग की चाँद पंक्तियों से - आज की सच्चाई ये हैं की गुजरात ने आजादी के बाद ये पहला एक दशक देखा है , जिसमें गुजरात में एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ ; सब की सामान उन्नति हुई है . गुजरात का मुस्लमान आज नरेन्द्र भाई के साथ है , क्योंकि हम 2 0 0 2 के सबसे घ्रणित व्यक्तित्व को भूल कर 2 0 1 4  का एक सबसे सही प्रधान मंत्री पाते हैं .

Thursday, June 13, 2013

हद कर दी आपने

पिछले दिनों जो हुआ वो ठीक नहीं हुआ .भारतीय जनता पार्टी का गोवा अधिवेशन देश के राजनैतिक भविष्य के लिए सुनहरा स्वप्न बन जाता , अगर श्रद्धेय लाल कृष्ण जी अडवाणी ने अपनी अनुपस्थिति से इसमें कसैला स्वाद न भर दिया होता . पार्टी के अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने बहुत चतुराई से अडवाणी जी की अनुपस्थिति को ढकने का प्रयत्न किया . लेकिन अडवाणी जी ने अगले दिन अपना इस्तीफ़ा देकर ही नहीं बल्कि सार्वजनिक कर के अपनी ही पार्टी के नेताओं को झूठा साबित कर दिया .क्या कहा जाए अडवाणी जी की इस हठधर्मिता को !

जब सारा  देश जानता था और सांस रोक कर प्रतीक्षा कर रहा था कि  कब श्री नरेन्द्र मोदी जी पार्टी की कमान संभालें , तब क्या अडवाणी इस दिवास्वप्न में ही थे की भविष्य के नेता वही बने रहेंगे ? क्या उन्हें देश का मिजाज नजर नहीं आता था ? पढ़े लिखे नेता हैं - क्या अलग अलग मिडिया की सर्वे रिपोर्ट से उन्हें ये नहीं पता लग रहा था की नरेन्द्र मोदी ही इस देश के सर्वोच्च चहेते भावी प्रधानमन्त्री हैं ? यहाँ तक की कांग्रेस के राहुल गाँधी तक की हिम्मत नहीं पड़ी की वो मोदी के सामने अपनी दावेदारी पेश करें ; ऐसे में अडवाणी जी ने अपने सारे जीवन की नेकनामी को धता बता कर ये बचकाना काम किया .

अगर अडवाणी जी के दृष्टिकोण को समझाने का प्रयास किया जाए तो उनका विरोध किस बात का था -

१. नरेन्द्र मोदी की जगह उनका नाम भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में लिया जाता ? दो दो चुनावों को हारने के बाद देश की जनता तो क्या उनकी पार्टी के नेता भी उनकी दावेदारी को मानने से इनकार कर देते . कांग्रेस तो हमेशा ही उनका मजाक उडाती है उन्हें स्थाई प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री के नाम से .

२. अगर वो चाहते थे की नरेन्द्र मोदी की जगह उनका कोई चहेता इस पद पर हो , तो कौन हो ? सुषमा स्वराज , अरुण जेटली, गडकरी या फिर राजनाथ सिंह ? हालांकि ये सारे नेता बहुत मंजे हुए नेता हैं , लेकिन मोदी जैसी सफलता और उससे मिली लोकप्रियता का इतिहास किसी के पास नहीं है . यही कारण  है की गोवा अधिवेशन में अडवाणी जी की नाराजगी के उपरांत भी इन सभी ने मोदी जी के नाम का समर्थन किया .

३. अगर अडवाणी जी को ये लगता है की कहीं उनकी उपेक्षा हुई थी , तो ये विषय पार्टी के आन्तरिक  स्तर  पर होना चाहिए था , ना की सारे देश की मिडिया में ! इस से तो उनकी भद्द ही उडी है . अगर किसी का अपमान हुआ है तो वो हैं पार्टी के अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह - जिनकी घोषणा और निर्णय को अडवाणी जी ने सार्वजनिक रूप से नकार दिया .

सबसे बड़ा अपराध अडवाणी जी ने जो किया , वो है २०१ ४ में होने वाले संसदीय चुनाव के पहले उन्होंने अपने ही लगाए और बढ़ाये हुए वृक्ष की जड़ काटने की कोशिश की . उनका पत्र पूरी पार्टी और उसके नेताओं को आरोपित करता है . और आरोप क्या है ? आरोप ये है की पार्टी का हर नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए लड़ रहा है . मेरी दृष्टि में तो , अडवाणी  जी , ये आरोप सबसे अधिक आप पर ही लगता है . आप अपने सपनों में ही खोये रहे , कभी जमीनी वास्तविकता को समझने की कोशिश नहीं की .

अडवाणी जी ! आप के इस बचकाने कदम के लिए ये देश आपको कभी माफ़ नहीं करेगा !