नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Monday, December 19, 2011

धरम करम - एक लघु कथा

वो डॉक्टर के सामने गिडगिडा रहा था -  डॉक्टर साहब ,मेरे बाप को बचा लो , वो मर रहा है . दो दिन से शरीर भट्टी की तरह जल रहा है , पेट में कुछ गया नहीं .  डॉक्टर ने कहा - पहले जाकर हस्पताल में दस  हजार रुपैये जमा करवा दो , फिर उसे हस्पताल में जगह मिलेगी . उसने कहा -  डॉक्टर साहब , मेरे पास तो बीवी के दो कंगन के सिवा कुछ नहीं , इन्हें रख कर ही मेरे बाप को भरती कर लो .  डॉक्टर ने कहा - पैसों का जुगाड़ हो जाए तो आ जाना  . ये कह कर  डॉक्टर मुंह फेर कर चल दिया .

वो रुआंसा होकर जमीन पर लेटे बापू के पास गया और बोला - बापू मैं क्या करूँ ? बापू उसका उत्तर देने के लिए जीवित नहीं था .

थोड़ी देर बाद वो फिर गिडगिडा रहा था , गाँव के पंडितजी के सामने - पंडितजी , बापू का किरिया करम करवा दीजिये . पंडितजी बोले - किरिया करम तो हो ही जाएगा , लेकिन उसके लिए तैयारी करनी पड़ेगी .अर्थी , लकड़ी ,घी आदि का मूल्य करीब अढाई हजार , गौदान के निमित्त पांच हजार और मृतक भोज के लिए कम से कम तीन हजार का खर्च है . वो फिर गिड़गिड़ाया - पंडितजी इतना पैसा होता तो आज बापू जिन्दा होता .मेरे पास तो बस बीवी के दो कंगन हैं . उसे ले लीजिये . पंडितजी ने बिदक कर कहा - छी छी , तुम्हारी बीवी के कंगन मैं लूँगा ? जाकर साहूकार के यहाँ बेच आओ , कह देना पंडितजी ने भेजा है . हजार पांच सौ कम भी मिले तो चला लेंगे .

वो फिर एक बार रुआंसा होकर बापू की लाश के पास गया और बोला - बापू तुम्ही बताओ , मैं क्या करूँ ? बापू से उत्तर नहीं मिला .

तभी उसकी बीवी ने कहा - तुमने बेटे का धरम निभा लिया , डॉक्टर के पास लेकर गए , पंडितजी से मिन्नत कर ली ; उन लोगों ने अपना धरम नहीं निभाया . अब उठाओ बापू को अपने हाथों में और चलो शमशान . जो करना है हमें ही करना है . उसने अपनी बीवी की आँखों में देखा और फिर  आश्वस्त  होकर बापू को हाथों में उठा लिया .  


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