नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, July 30, 2010

मुकाबला - देव , राज और दिलीप का ; जज आप

आइये चर्चा करें हिंदी फिल्मों के स्वर्ण काल की .अगर आप मुझसे चुनने के लिए कहें तो मैं चुनुँगा १९५५ से १९७० के काल को सर्वश्रेष्ठ काल के रूप में . यूँ तो हिंदी फिल्म का आकाश हमेशा सितारों से जगमगाता रहा है , फिर भी इस युग के तीन नायब नगीने थे - देव आनंद , राज कपूर और दिलीप कुमार . तीनों के तीनों एक से बढ़ कर एक. तीनों ने अनेक फिल्मों में काम किया , उस युग की बेहतरीन हीरोइनों के साथ. कुछ नाम -मधुबाला, वहीदा रहमान ,नर्गिस, नूतन ,मुमताज वैगरह. 

अगर यह तय  करना पड़े की तीनों में सर्वाधिक उत्कृष्ट हीरो कौन था - तो शायद सबसे कठिन काम होगा .आप इनमे से जिसकी भी फिल्म देख रहें हो , वही आपको उस वक़्त सबसे अच्छा लगेगा. आइये एक कोशिश करें . हम तीनों को कस के देखते हैं , कुछ सामान कसौटियों  पर. आप चाहें तो एक कागज और कलम लेकर बैठ जाइये और हर कसौटी  पर अपने हीरो को नंबर दीजिये, जैसे आज कल रियलिटी शो में जज लोग देते हैं. आखिर में जोड़ लगा लीजियेगा .

हमारी पहली कसौटी है - स्टाइल . देखें तीनों में सबसे स्टाइलिश कौन है. ये रहे तीन अलग अलग गाने और उनपर लहराते हमारे तीनों सितारे -   
पहले सितारे देव साहब अपनी एक जबरदस्त फिल्म जेवेल थीफ में -

 



क्यों कैसी रही पहली आईटम . अब वही आइटम राज कपूर साहब के साथ , उनकी लोकप्रिय फिल्म अराउंड द वर्ल्ड में -

 



और अब देखिये स्टाइल युसूफ साहब की; अरे भई दिलीप कुमार साहब - फिल्म सगीना से




तो मिला लिए ना आपने तीनों के नम्बर . मुझे चाहे ना बताये , अपने पास रखें .

अगली प्रतियोगिता रोमांस में. तय करें की तीनो में सबसे अधिक रोमांटिक हीरो कौन रहें है .उस ज़माने की देवियों से पूछ कर देखिये ; आज के सारे हीरो फेल हो जायेंगे .सबसे पहले देखें देव साहब को उनकी एक यादगार फिल्म तेरे मेरे सपने में . साथ में है मुमताज. आनंद लीजिये गीत का .




अब वाह वाह कहना बंद कीजिये और देखिये राज कपूर साहब का वो माचो अंदाज - आवारा के उस खूबसूरत कश्ती वाले गीत में ; साथ में है नर्गिस जी. एक एक पल का मजा लीजिये .






रोमांस का वो जमाना ही अलग था . हीरो पियानो पर गाना गाते हुए , हिरोइन आस पास मंडराते हुए ; और पार्टी के सीन में एक अदद डांसर डांस करते हुए . स्वागत है आपका फिल्म अंदाज की इस पार्टी में दिलीप कुमार के पियानो के साथ.





जीवन का एक अभिन्न अंग है उदासी . हमारे हीरो अपनी उदासी को भी संगीत के अलग अलग रगों में पिरो कर अपने चेहरे के निराश भावों को हमारे सामने रखते थे .

देव आनंद अपने प्रेम की नाकामी पर फिल्म गाइड में कुछ इस तरह अपनी उदासी का इजहार करते हैं -




मेरा नाम जोकर का वो उदासी भरा गीत और राज कपूर साहब का वो मूड किसकी आँखों में पानी ना ला दे . शायद इस मूड का सर्वश्रेष्ठ गीत और राज साहब का ये अभूतपूर्व सीन - 




दिलीप साहब जाने जाते थे ट्रेजेडी किंग के नाम से .उनको चेहरा बिन बोले ही  बोलता था , उनकी आँखें बिन रोये ही रोती थी , उनकी बोडी लन्गुएज गीत की उदासी का एक एक लफ्ज बयां करती थी .देखिये एक मायूस शौहर  का ये विक्षिप्त रूप जिसकी बीवी ने उसे धोखा दिया ; फिल्म थी दास्तान .





लो साहब अभी तक तो हम सिर्फ हमारे सितारों के हाव भाव देख रहे थे , दूसरों के गाये गीतों पर.लेकिन उनकी आवाज ,उनकी डायलोग अदायगी , और उसके साथ उनका सशक्त अभिनय  , इस संगम को नहीं देखे और सुनेंगे तो कहाँ से फैसला कर पायेंगे.

तो लीजिये हमने तीनों की सबसी बड़ी फिल्म से एक दृश्य लिया है . कोशिश ये की कि  ऐसा दृश्य लें जो उनके जीवन के ५ सबसे अच्छे दृश्यों में शुमार हो . आगे फैसला आपके हाथ में है .

पहला दृश्य अपने युग कि माइल स्टोन फिल्म गाईड से देव आनंद का अन्तरद्वंद्व. कमाल का सीन था . था ना मित्रों?  



श्री चार सौ बीस राज कपूर की बेहतरीन फिल्मों में से एक है . यह दृश्य फिल्म का टर्निंग पॉइंट है . एक छोटे शहर से आया हुआ एक भोला भोला व्यक्ति कैसे चार सौ  बीसी का शिकार बनता है और फिर बदल जाता है - खुद एक चार सौ बीस के रूप में. खो जाइये इस लम्बे से दृश्य में .

और ये रहा ब्रह्मास्त्र दिलीप कुमार का . मुगले आजम के सलीम के रूप में पृथ्वीराज के  चट्टानी व्यक्तित्व का शायद कोई भी सामना नहीं कर पाता , के आसिफ साहब की यादगार फिल्म मुग़ले आजम  में.


अब बारी आपकी है . आप बताइए  आपने कितने नंबर दिए किस हीरो को? जितने भी दियें होंगे सब का जोड़ आस पास ही बैठा होगा . बहुत मुश्किल है तीन कोहिनूर हीरों में से एक का चुनाव करना .

खैर उन्हें आपने जो भी नंबर दिए हों , मुझे अपने  कितने नंबर दिए इस दिलचस्प बातचीत के. आपके चंद शब्द ही काफी होंगे उत्साह  वर्धन को. आज्ञा  दीजिये अगली बात के साथ बातचीत के लिए .

Thursday, July 29, 2010

गरीबी रेखा

एक दिन मेरे ड्राईवर ने कहा - साहब , मेरे गाँव का एक आदमी है , उसको हार्ट की  बीमारी हो गयी है.जो भी पैसा था सब खर्च कर के अन्जियोग्राफी करवाया . अब डॉक्टर का कहना है की उसकी बाय पास सर्जरी करनी पड़ेगी.उसके पास बिलकुल पैसा नहीं है , न ही कोई कमाई का साधन है; कुछ हो सकता है तो करवा दीजिये . मैंने अपने पहचान के एक बड़े हॉस्पिटल से बात की और कोई रास्ता पूछा. उन्होंने बताया की बहुत गरीब आदमी के लिए एक रास्ता है कि अगर वो तहसीलदार का पत्र लेकर आ जाये कि पत्रवाहक गरीबी रेखा से नीचे है तो हमारे पास थोडा ऐसा कोटा है जिसमे उसका इलाज मुफ्त में हो जाए. लेकिन ये पत्र जरूरी है सरकारी नियमों के अनुसार.मैंने पूछा कि ये गरीबी रेखा कि क्या परिभाषा है ; उन्होंने बताया कि जिसकी परिवार की सालाना आय पच्च्चीस हजार से कम हो तो उसे गरीबी रेखा के नीचे समझा जाएगा .

मैंने सारी बात मेरे ड्राईवर को समझा दी .उसने अपने गाँव में फोन कर के उस व्यक्ति को जरूरत समझा दी .दो तीन दिन बाद मेरा ड्राईवर वापस आया - साब , तहसीलदार बोलता है कि पच्चीस हजार आय का पत्र तो वो नहीं देगा , लेकिन चालीस हजार आय का दे सकता है .उस पत्र को देने के लिए पांच हजार रुपैया मांगता है .मैं समझ नहीं पाया की उसे क्या सलाह दूं.


ये कैसे देश में जी रहें हैं हम ? गरीब आदमी को बीमार पड़ने का हक़ नहीं ? महंगा इलाज संभव नहीं . और कहीं कोई आशा की किरण नजर आ भी जाए तो कदम कदम पर गिद्ध बैठे हैं , जिन्दा आदमी का मांस नोचने के लिए . और ये सरकारी परिभाषाएं ! पच्चीस हजार की सालाना आय एक परिवार की ! कोई क्या खायेगा और क्या इलाज करवाएगा -पढाई लिखाई  तो दूर की बात ठहरी.

जीवन जीना उतना आसान नहीं जितना हमें लगता है .

Wednesday, July 28, 2010

क्या आप विश्वास करते हैं - ज्योतिष में ?

क्या आप विश्वास करते हैं - ज्योतिष में ? मेरा अगला प्रश्न होगा -अगर हाँ तो क्यूं ? मैं तो समझ नहीं पाता ज्योतिष का आधार .कैसे कोई किसी के हाथ को देख कर उसके भविष्य के बारे में बता सकता है ? कैसे कोई जन्म कुंडली निर्धारित करती है किसी व्यक्ति का पूरा जीवन ? ईश्वर  ने बनाया मनुष्य को कर्म करने की स्वंत्रता देकर .तभी तो हम हमेशा उपदेश देते और सुनते हैं की हमेशा भला करो , बुरा मत करो . अगर सारे कर्म और फल पूर्व निर्धारित हैं , तो ऐसी शिक्षा का क्या तात्पर्य ?
कुछ ज्ञानी लोग समझाते हैं कि ग्रह और नक्षत्रों की अवस्था प्रभावित करती है प्रत्येक मनुष्य के जीवन को . फिर इस से जुड़ कर मेरे कुछ प्रश्न -
१. अगर प्रकृति मनुष्य को प्रभावित करती है तो फिर सब मनुष्यों को एक सा ही करेगी . अगर ठण्ड है तो सबके लिए है , अगर गर्मी है तो भी सब के लिए है ; एक एक व्यक्ति छंट छंट कर प्रभावित कैसे होगा.
२. ग्रह  नक्षत्रों की वर्तमान अवस्था निकाल  पाना कैसे संभव है ? आप कहेंगे विज्ञानं ने ऐसी मशीने बना ली है जिससे उसे हर गृह की आज की अवस्था (लोकेसन ) पता चल सकती है . मेरा कहना है - की एक एक ग्रह और नक्षत्र पृथ्वी से लाखों करोड़ों प्रकाश वर्ष की दूरी पर है . एक प्रकाश वर्ष का अर्थ हुआ वो फासला जो प्रकाश की एक किरण तय करती है पूरे एक बरस में . अंदाज लगा सकते हैं ये कितना फासला हुआ . प्रकाश की गति है १,८६,२८२ मील प्रति सेकण्ड . यानि एक प्रकाश वर्ष दूरी का अर्थ हुआ - १,८६,२८२ x ६० x ६० x २४ x ३६५ मील . यानी अगर एक प्रकाश की किरण एक  जनवरी को चलती है तो पृथ्वी तक पहुंचेगी अगली एक जनवरी को उसी समय .यानी की जो अवस्था हम देखेंगे वो अवस्था होगी एक वर्ष पूर्व की ना कि आज की .

ये गणना तो थी एक प्रकाश वर्ष पूर्व दूरी पर स्थित एक नक्षत्र की . लाखों करोड़ों प्रकाश वर्ष दूरी पर स्थित सितारों की आज की स्थिति हमें पता चलेगी लाखों करोड़ों वर्षों के बाद ही. 

बड़ा जटिल लगता है ना ये सब . इतने बड़े ब्रह्माण्ड में एक एक व्यक्ति का भविष्य बता पाना , वो भी उसी ब्रह्माण्ड के सहारे, मेरी दृष्टि में असंभव  है. आप कि प्रतिक्रिया , सहमती, असहमति दोनों का स्वागत है . जरूर लिखें .  

कहानी- बुद्धि-जीवीओं का प्रजातंत्र


चुनावी माहौल  था . विधान सभा के आगामी  चुनाव कुल दस दिन ही दूर बचे थे .जगह जगह पर चुनाव सभाएं हो रही थी. आम सभाएं सड़कों पर शामिआना तान कर हो रही थी. बड़े बड़े बुध्हिजीवी समूह चर्चा मंच का आयोजन कर रहे थे . समझदार लोगों का ऐसा ही एक समूह मिल रहा था एक चर्चा गोष्ठी पर - जिमखाना क्लब में .चर्चा का विषय था - राजनीति का अपराधीकरण. सभा सात बजे से थी .लोग पौने सात से ही आने शुरू हो गए थे . शहर के लब्ध प्रतिष्ठित लोग ही निमंत्रित किये गए थे  . चूँकि कोई निमंत्रण पत्र नहीं भेजा गया था , इस लिए प्रवेश कपड़ों के आधार पर ही था . अच्छे सूट बूट वालों को अनुरोध कर के आगे की  सीटों पर बैठाया जाता था . जो सपत्निक थे उन्हें सोफा पर .साधारण वेश भूषा वालों से पूछा जाता था -' डिड यु गेट एन इनविटेसन?' उत्तर हाँ होने  पर उन्हें पीछे की सीटें दिखा दी जाती थी . जरा सा ना का इशारा होने पर खेद सहित लौटा दिया जाता था .आखिर शहर के चुनिन्दा लोगों के लिए ही थी ये सभा .

मुख्या आयोजक श्री भंडारी जी कभी अन्दर कभी बाहर चक्कर काट रहे थे . बड़े बड़े लोगों को व्यक्तिगत रूप से रिसीव  करने के लिए. बीच बीच में किसी कार्य कर्ता को फुसफुसा कर टोक देते - ' जरा ध्यान दो , कैसे कैसे लोग घुसें चले आ रहे हैं . वी वांट क्वालिटी जेन्ट्री ओनली .'

खैर , चर्चा शुरू हुयी सवा सात बजे . मुख्य  वक्ता थे - प्रमुख उद्योगपति खन्ना साहब, बैंक के चेयरमन जोशी साहब , मशहूर फिल्म निर्देशक कपूर साहब और प्रसिद्ध मॉडल श्वेता जी. मोड़रेटर थे खुद भंडारी जी . चर्चा जोरदार रही . लोग चेहरों को देखने आये थे सो देखते रहे .

अंत में भंडारी जी ने सभी वक्ताओं के भाषण का सार कुछ यूँ दिया -
" मित्रों, खन्ना साहब ने हमें एक नयी दिशा दी , की जब तक अच्छे लोग राजनीति में नहीं आयेंगे , सब कुछ ऐसा ही चलेगा ....
. जोशी साहब तो बैंकर हैं ना, बड़े ही चुटीले अंदाज में उन्होंने सन्देश दिया की जो आप अपने खाते में डालेंगे वही ना सूद समेत पाएंगे .......
 कपूर साहब सिर्फ परदे के ही शोमैन नहीं हैं , कितना दुरुस्त कहा उन्होंने कि नेता क्या जरूरी है कि कोई बुड्ढा सा , बदसूरत सा इन्सान  ही बने .अच्छे चेहरों को सामने लाइए , जनता खुद बखुद उनके लिए वोट करेगी.........
 और हमारी दिलों कि धड़कन श्वेताजी ! उनकी क्या तारीफ़ करूं. कितनी मासूमियत से उन्होंने कहा कि राजनीति  की  उन्हें विशेष जानकारी नहीं . कौन कहता है कि नहीं ! श्वेताजी ने अमरीकी पोलीटिसयंस के जो कुछ उदहारण हमें दिए उस से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है ......
 आज कि चर्चा का अंतिम निचोड़ है कि राजनीति में अपराधी आये या ना आये , ये फैसला सिर्फ हमारे हाथ है . आइये प्रण ले कि कम से कम आगामी चुनाव में हमारे शहर से किसी अपराधी को ना जीतने दें ."

जोरदार तालियों के बीच सभा समाप्त हुई . बुध्हिजीवी सजे धजे श्रोता गंभीरता से चर्चा करते हुए निकल गए. सभा के बाद सभी स्पीकरस के लिए कोकटेलस की  व्यवस्था  थी . कोकटेलस  पर हुई बात चीत का कुछ अंश प्रस्तुत है -

भंडारी जी - कमाल का बोलते हैं कपूर साब . मजा आ गया .............
कपूर साहब - साहब बोलने की ही खाते  हैं हम फिल्म वाले... हा... हा... हा... हा....
जोशी साहब - भाई खाते हैं कि नहीं पर पीते जरूर हैं ....हा.... हा..... हा
भंडारी जी - श्वेता जी , आप का अंदाजे  बयां तो बहुत ही ख़ास है ........
श्वेताजी - अंदाजे बयां अभी देखा ही कहाँ है आपने ? क्यों कपूर साहब ?
कपूर साहब - यकीनन श्वेताजी ...
खन्ना साहब - तो फिर कभी  दिखाइए ना आपका वो अंदाजे बयां.............
श्वेताजी - इतनी बोरिंग इलेक्शन मीटिंग में तो पोसिबल नहीं. किसी ढंग की जगह कोई अच्छी पार्टी वार्टी रखिये ......
खन्ना साहब- लो , नेकी और पूछ पूछ . अगले ही लॉन्ग वीक एंड पर चलते हैं सभी . खंडाला में मेरा फार्म हाउस है . दिन भर ड्रिंक्स , पोकर,स्नूकर ............शाम को कुछ गाना बजाना .
कपूर साहब- भाई हम तो तैयार हैं , जब चलना है चलो .
भंडारी जी - अगला लॉन्ग वीक एंड तो इलेक्शन वाला है
जोशी साहब - फिर तो हमारा बैंक भी बंद रहेगा . चलेंगे भाई.
भंडारी जी- लेकिन चुनाव ?
श्वेताजी- भई, हमारे भरोसे तो कोई हारने या जीतने वाला है नहीं, हमने तो आज तक वोट डाला ही नहीं.
कपूर साहब- हमारे इलाके से तो परमानेंट वही जीतता है , वो भोंसले समथिंग...........अपना ख़ास है . एक  वोट से उसका कुछ होने वाला नहीं .और वो भी मिल जायेगा उसको , अगर टाइम से बता दिया कि मैं नहीं हूँ.  सब साला मनेज  होता है यार .
भंडारी जी- आप सब जा रहें है तो क्या हमने ही ठेका लिया है देश का .......भाड़ में जाए .........चलेंगे सभी..... चीअर्स ..........
कपूर साहब- चीअर्स फॉर खंडाला .............
श्वेता जी - चीअर्स फॉर इलेक्शन होलीडे .............
जोशी साहब - चीअर्स फॉर अ ग्रेट वीकएंड...............
खन्ना साहब - चीअर्स फॉर माय लकी होलीडे होम ..........

और साहब , इस तरह समाप्त होती है , वो महत्वपूर्ण चुनावी चर्चा की शाम. शहर के सारे बड़े लोग अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ कर कहीं लॉन्ग वीक एंड मानाने चले जायेंगे . वोट बूथों पर लाइन लगेगी , उन मैले कपडे वालों की जिन्हें इस सभा में निमंत्रण नहीं था .प्रजातंत्र बुद्धि-जीविओं का मनोरंजन है - शक्ति नहीं .    

Monday, July 26, 2010

एक लघु कथा : पढाई-लिखाई

सुबह बहुत अँधेरी थी.हवा में अच्छी ठंडक भरी थी. रजाई से बाहर हाथ भी निकालने का मन नहीं होता था .नन्हा मनकू  रजाई में दुबका पड़ा था . माँ का मन ही नहीं कर रहा था उसे इतनी ठण्ड में नींद से उठाने का .

तभी बाहर से बापू की आवाज आयी - 'अरी मनकू की मां. मनकू उठा के ना ?'

माँ ने एक हाथ से मनकू को झकझोरा और आवाज लगाई - 'अभी उठ रहा है जी.'

'अरे भागवान इतनी देर से उठाएगी तो देर हो जाएगी . मास्टर जी ने कहा था की बच्चे को सात बजे तक भेज देना .' - हलके गुस्से में बापू की आवाज थी .

मनकू बेचारा ठण्ड और नींद - दोनों से परेशान था . मां ने जल्दी जल्दी में उसका मुह धोया. ठन्डे पानी के छींटे उसके कमजोर शरीर को अन्दर तक हिला गए . सात- आठ साल का ही तो था वो. बापू चाहते ते की पढ़ लिख कर आदमी बन जाये . मां बेचारी भी चाहती तो येही थी लेकिन बचपन पर ऐसा कठोर अनुशासन  नहीं देख पाती थी. खैर पांच सात मिनटों में बिना किसी नाश्ता पानी के मनकू रवाना हुआ.

मास्टरजी के दरवाजे पर तो सांकल लगी थी. डरते डरते खटखटाया .किसी ने नहीं खोला. हिम्मत जुटा कर थोडा जोर से खटखटाया. अबकी अन्दर से आवाज आयी - कर्कश स्वर में. किसी नारी की -' सवेरे सवेरे कौन आ मरा'

मनकू सहम गया .धीरे से बोला - मैं मनकू . मास्टरजी ने बुलाया था . आवाज और कर्कश हो गयी- ' ये मास्टरजी तो ना खुद सोता है और ना मुझे सोने देता है. ओ छोरे तू बैठ अभी बाहर.......'

मास्टरजी की आवाज आये- ' रुकमनी , किसे डांट  रही हो ? अरे वो मनकू होगा ! आने दो उसे . सुबह सुबह उठने में बहुत तकलीफ होती है ना. जरा घंटा आधी घंटा पैर दबा देगा .'

'ठीक है . तुम्हारे दबा ले तो मेरे पास भेज देना . थक जाती हूँ सारा दिन तुम्हारी गृहस्थी चलाते चलाते.'- रुक्मिणी खुश होकर बोली.

मास्टर जी खुशामद की आवाज में बोले- ' इस्सी लिए तो .......'  

Saturday, July 24, 2010

प्रेरणा - फ़िल्मी गानों से

जीवन के निराश  लम्हों में हम ढूंढते हैं कोई सहारा , कोई साथी जो हमारा उत्साह वर्धन करे , हमें प्रेरणा दे जीने की . बहुत मुश्किल है ऐसा साथी मिलना . हम अपनी समस्याएँ दूसरों को बताना ही नहीं चाहते , तो कोई तसल्ली क्या देगा . हम दोहरी जिंदगी जीतें हैं.हमारे अन्दर भरी होती है हमारी निराशा, हमारी कुंठाएं, हमारी समस्याएँ - और बाहर के चेहरे पर बेफिक्री,ख़ुशी और व्यस्तता. ऐसे में प्रेरणा कौन दे.

मैं मेरी प्रेरणा लेता हूँ बॉलीवुड से . मजाक ना समझे. बहुत संजीदा हूँ . क्या आपको याद हैं वो गीत , रफी साहब की ताजगी भरी वाणी और तलत साहब की रेशमी आवाज में - ग़म की अँधेरी रात में दिल को ना बेक़रार कर ; सुबह जरूर आएगी , सुबह का इन्तेजार कर.......... क्या ये बोल बुझे हुए मन में कहीं रौशनी नहीं जगा देते . सुन कर देखिये-






मुझे याद है एक बार- बड़ा ही निराश लौटा कॉलेज से . शायद प्रोफ़ेसर ने किसी बात पर डांट दिया था. हॉस्टल के कमरे में बड़ा उदास अकेला बैठा था . बेखुदी में रेडियो चला दिया . एक गीत बज रहा था . क्या बताऊँ  आपको . मेरी शाम बदल कर रख दी उस गीत ने . बहुत ही प्यारा गीत जयदेव   साहब का कम्पोज  किया हुआ . वही दिल को छू  लेने वाली आवाज रफ़ी की ..... जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया , जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया.......



जीवन मैं ऐसे मौके आते हैं जब लगता है कि बिलकुल अकेले हैं. एक बार मेरे सबसे गहरे  मित्र ने नाराज होकर मुझसे बोलचाल बंद कर दी.उस के साथ साथ ग्रुप के अन्य मित्रों ने भी किनारा कर लिया . उस समय ऐसा लगा जैसे पूरे विश्व में मैं अकेला हूँ. प्रेरणा दी इन पंक्तियों ने  - तेरा कोई साथ ना दे तो तू खुद से प्रीत जोड़ ले ; बिछोना धरती को कर ले, अरे आकाश ओढ़ ले..................मुकेश का गाया हुआ वह खूबसूरत गीत आज भी प्रेरणा देता है .......



हर व्यक्ति जीवन में प्रयास करता है कुछ पाने के लिए.कई बार कुछ को सफलता मिलती है, लेकिन असफलता भी प्रयास का दूसरा परिणाम है . असफलता किसी के लिए क्षणिक निराशा का कारण तो निशित रूप से है ही , लेकिन कभी कभी ये निराशा का दौर कुछ ज्यादा ही लम्बा हो जाता है . जीवन के ऐसे निराशापूर्ण दौर में सुकून देती हैं किशोर दा की गयी हुई ये पंक्तियाँ - रूक जाना नहीं तू कहीं हार के , काँटों पे चल के मिलेंगे साए बहार के...................ओ राही........... ओ राही................


जिंदगी का संघर्ष करते करते कई बार हम इतना थक जातें हैं , कि ऐसा लगता है की कोई आकर कंधे पर हाथ रख दे .कोई आकर कहे - ये सफ़र बहुत है कठिन मगर ना उदास हो मेरे हमसफ़र ..........................



जरूरी नहीं की प्रेरणा सिर्फ  निराशा के समय ही मिले .कई बार जीवन में हम कुछ ऐसा ठान लेते हैं कि जो हमारे बल बूते से बाहर होता है. कोई ऐसी चुनौती स्वीकार कर बैठते हैं जो असंभव नहीं तो अत्यधिक मुश्किल जरूर होती है . मैंने  अपने जीवन में एक बार एक चुनाव में अपनी उम्मीदवारी  भर दी . लोगों ने कहा , ये किससे पंगा ले रहे हो भाई ? जोश में हमने कह दिया - जब ले लिया तो ले लिया. अब तो जीत के ही दिखायेंगे . प्रचार के बाद रात को सोने के समय ये गीत सीडी पर लगा के लेट जाता था. सुबह उठता था एक नयी स्फूर्ति के साथ .और फिर वो हो गया जिसकी लोगों को उम्मीद नहीं थी. भारी  मतों से मैं विजयी हुआ. और वो गीत जो मुझे सोने के पहले चार्ज करता था - अपनी जीत हो, उनकी हार हाँ ,............बार बार हाँ ...................



मित्रों, उम्मीद है की आपको मेरे इस संगीतमय उपदेश से जरूर प्रेरणा मिली होगी. जीवन में परेशानी हो तो अच्छे गीत सुनिए . परेशानी कम जरूर होगी.

Wednesday, July 21, 2010

कश्मीर समस्या






दो थी पडोसने - भारती और पाकीजा . दोनों के घरों के चारों तरफ बगीचे थे .दोनों को अलग करने के लिए थी एक बाड़. भारती के बगीचे में बहुत सारे फूल खिले थे. बाड़ के पास भी बहुत सारे गुलाब के फूल खिले थे .फूलों की डालियाँ बाड़ के ऊपर भी लहराती थी. उन फूलों को देख कर पाकीजा का मन बहुत ललचता था . लेकिन वो फूल उसके नहीं थे इस लिए वो इन्हें पा नहीं सकती थी.

एक दिन सवेरे सवेरे पाकीजा ने भारती से झगडा मोल ले लिया .पाकीजा ने दावा किया कि दोनों के ससुर-मित्रों ने ये जगह मिल कर खरीदी थी .बाद में जब दोनों के पतियों ने जगह का बंटवारा किया तो बीच कि रेखा जरा गलत खींच दी गयी , जिसके फलस्वरूप गुलाब के पौधे जो उसके हिस्से में आने चाहिए थे , वो भारती के हिस्से में चले गए . भारती ने कहा जो काम बुजुर्ग कर के चले गए उस पर अब कोई प्रश्न खड़ा करने का लाभ नहीं. लेकिन पाकीजा किसी भी तरह समझने को तैयार नहीं थी.इस प्रकार दोनों पड़ोसनो के संबंधों में खिचाव आने लगा .ये अवस्था काफी महीनों तक चली.

पाकीजा को जब कोई फायदा होता हुआ नहीं दिखा तो उसने अपने बच्चों के द्वारा रात के समय भारती के गुलाबों को तहस नहस करने का षडयन्त्र रचा. अगले दिन सुबह जब भारती ने उठ कर अपने बगीचे कि दुर्दशा देखी तो उसने पाकीजा को आवाज दे कर बुलाया और शिकायत की.पाकीजा ने साफ़ इनकार कर दिया की ये काम उसके बच्चों का नहीं है. भारती ने आस पास के घरों में भी इस व्यवहार की चर्चा की. लेकिन पाकीजा के रुख में कोई बदलाव नहीं आया. इस तरह की घटनाएँ फिर होती रही , जिसके कारण उनकी आपस की बोलचाल करीब करीब बंद हो गयी.

बड़े बुजुर्गों ने दोनों को समझाया की पडोसी हो , आपस के रिश्ते ठीक रखो , दोनों के लिए अच्छा रहेगा. लेकिन जब भी बात चीत का माहोल बनता पाकीजा गुलाब के पौधों के अपने पुराने झगडे को लेकर बैठ जाती. इसलिए आपस की बोलचाल बंद ही रही. बच्चे जो कभी आपस में एक दूसरे के घर खेलने जाते थे, उनका आपस में आना जाना बंद हो गया. छोटे मोटे झगडे भी होने लगे .

एक दिन तो हद हो गयी . भारती और उसके पति किसी काम से बाहर गए थे .पीछे से पाकीजा के बच्चे हाकी की स्टिक लेकर आ गए . आकर उन्होंने सारे घर में तोड़ फोड़ की . भारती के बच्चों को मारा , लहू लुहान कर दिया . सारे पौधों को तहस नहस कर दिया . जब भारती घर लौटी तो घर की दुर्दशा देखी.भारती का मन गुस्से और आक्रोश से भर गया .भारती ने अपने पति मोहन से बात की और कहा की आप को अब पाकीजा के ऊपर कार्यवाही करनी पड़ेगी. उसका कहना था की या तो आप सीधे चढ़ाई कर दें , जैसा की वो लोग करते हैं , या फिर कोई पुलिस की कार्यवाही करें .

मोहन ठन्डे स्वभाव के आदमी हैं . उन्होंने समझाया , लड़ाई झगडे से कुछ नहीं होगा . धीरे धीरे बात चीत से सब सुलझ जायेगा . आपस का मामला है इसलिए पुलिस वैगरह बुलाना भी ठीक नहीं है . इन सब बातों को वर्षों बीत चुके हैं .पाकीजा और उसके बच्चों की बदमाशियां वैसे ही जारी है. भारती अकेले में बैठ कर रो लेती है.मोहन अपने ठन्डे स्वभाव के साथ बुढ़ापे की और बढ़ रहें हैं.