नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Wednesday, April 6, 2011

अन्ना हजारे

एक बार फिर अन्ना हजारे आमरण अनशन पर हैं . और इस बार जिस मुद्दे पर हैं उसने देश की सभी राजनैतिक पार्टियों की नींद हराम कर दी है . मुद्दा है - १९६८ से लटक रहे लोकपाल बिल का . लोकपाल बिल जिसमे एक ऐसी स्वतंत्र व्यवस्था है जो भ्रस्टाचार   के उन्मूलन के लिए होगी . लोकपाल बिल एक ऐसी हड्डी है राजैतिक दलों के लिए जो गले में फंसी बैठी है . हर सरकार अपने शासन  काल में एक कोशिश करती है कि किसी तरह ये फांस निकल जाए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. इसलिए हर ५-७ साल में संसद में इस विषय पर बहस का एक नाटक होता है और फिर ये विषय पहुँच जाता है ठन्डे बस्ते में !

इस बार सरकार फंस गयी है . अन्ना हजारे जैसा व्यक्ति जब आमरण अनशन की चुनौती देता है तो वो खोखली धमकी नहीं होती . न ही वो अनशन राजनैतिक नेताओं जैसा होता है , जो नाश्ते के बाद शुरू हो और दोपहर के खाने तक समाप्त हो जाए . सारा जोर लगा रखा है पक्ष और  विपक्ष ने कि  किसी तरह ये अनशन  समाप्त हो और बुड्ढा बातचीत के लिए मान जाये . उन्हें और भी ज्यादा गुस्सा आता है जब किरण बेदी और केजरीवाल जैसे जोशीले लोग अन्ना के प्रवक्ता के रूप में सरकार को फटकार लगते हैं . टी वी के एक न्यूज़ चैनेल की  बहस में तो कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक  सिंघवी ने गरमा कर कह दिया कि इस तरह सरकार कि कनपटी पर बन्दूक रख कर बात मनवाने की कोशिश ठीक नहीं   . लेकिन उनके पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं कि क्यों यह बिल ४२ साल बीत जाने के बाद भी पास नहीं हुआ , इस बिल का जो सरकारी मसौदा  है वो कैसे भ्रस्टाचारियो के खिलाफ काम करेगा जब राजनैतिक पार्टियाँ ही इसे बनायेंगी , वो ही भ्रस्टाचार की शिकायतें सुनेगी और तय करेंगी कि इस पर कोई कार्यवाही हो या नहीं , हो तो  कौन करे और क्या करे .अच्छा मजाक है . चोरों को ही जज की  कुर्सी  पर बिठा दें ? वो तो बैठे हैं ही न ! इसीलिए तो राजा हो या कलमाड़ी - प्रधानमंत्री के चहेते बने रहतें हैं . जनता ने इन्हें नंगा किया है . मीडिया ने मुद्दा सामने ला के रखा , कोर्ट ने सक्रिय भूमिका निभाई .

सरकार अन्ना के अनशन को हल्का न समझे . ये कोई गीदड़ भभकी नहीं है . ये एक चिंगारी है जो सूखे फूस के ढेर पर रखी हुई है. चिंगारी के आस पास की फूस तो प्रज्ज्वलित हो चुकी है ; आंच फ़ैल रही है . देश के सभी शहरों में लोग इस विषय पर सड़क पर उतर रहें हैं . मिश्र देश ने भारत को फिर एक बार सिखाया है कि  क्रांति बिना लड़े भी होती है . इस बार उद्देश्य सरकार का तख्ता पलटने का नहीं बल्कि भ्रस्टाचार का आमूल उन्मूलन है . थोड़ी बहुत जान हो तो आप भी शामिल हो जाएँ अन्ना के सत्याग्रह  में ! 

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