नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, February 17, 2015

'आप' - फ़िल्मी गाने -फ़िल्मी ताने

आम आदमी पार्टी  संक्षिप्त नाम यानि 'आप' ,  हिंदी भाषा  का एक शब्द होने के कारण बहुत सारे फ़िल्मी गानों में प्रयुक्त हुआ है।  हमने चुने हैं कुछ ऐसे ही गाने जो दिल्ली के चुनाव के बाद बहुत दिलचस्प ढंग से किसी न  किसी व्यक्तित्व से मेल खाते हैं।  उद्देश्य विशुध्द हास्य के अलावा कुछ नहीं है।  आनंद लीजिये -

अन्ना हजारे 
आप से हमको बिछड़े हुए , एक जमाना बीत गया

सतीश उपाध्याय (किरण बेदी से )
आप यहाँ आये किसलिए , आप ने बुलाया इसलिए
आये हैं तो काम भी बताइये , पहले जरा आप मुस्कुराइए

किरण बेदी 
दर्दे दिल दर्दे जिगर दिल  जगाया आप ने

योगेन्द्र यादव (अरुण जेटली से )
आप ने सौ इल्जाम लगाये , वो मेरे नाम लगाये , कहिये कुछ और
चोरों को सारे नजर आते हैं चोर

शीला दिक्षित 
आप को पहले भी कहीं देखा है

प्रशांत भूषण 
क्या क्या न सहे हमने सितम आप की खातिर

दिल्ली 
आप मुझे  अच्छे लगने लगे , सपने सच्चे लगने लगे

सोनिया गांधी
चैन से हमको कभी आप ने जीने ना दिया

राहुल गांधी
जब हमने दास्ताँ अपनी सुनाई , आप क्यों रोये

अजय  माकन
करवटें बदलते रहे सारी रात हम , आप की कसम

नज़ीब जंग
आप की नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे

ममता बनर्जी
आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये , तो बात बन जाए

साजिया इल्मी
हम आपके आपके  हैं कौन

उद्धव ठाकरे
आप के हसीन रुख पे आज नया नूर है
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कुसूर  है

केजरीवाल (मोदी से )
आप की राय मेरे बारे में क्या है कहिये

मोदी (केजरीवाल से )
ये मुझे देख कर आपका मुस्कुराना
मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

अरविन्द केजरीवाल
आइये आप को मैं अपने बंगले की सैर कराऊँ


क्यों ? आया न मजा ? 

Monday, February 16, 2015

आखिर दिल्ली में हुआ क्या ?



दिल्ली विधान सभा के २०१५ के परिणामों ने पूरे देश को चौंका दिया। आम आदमी के पक्ष में जो फैसला आया उससे तो आम आदमी पार्टी भी स्तब्ध रह गयी। बीजेपी ने ऐसे परिणामों की स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी। कांग्रेस पार्टी तो लगभग अपना वजूद ही खो बैठी है। 

आइये २०१३ से २०१५ तक के परिवर्तन के  परिणामों के आंकड़ों पर नजर डालें -

परिणाम सीटों के दृष्टिकोण से -

                                  २०१३                २०१५                     अंतर                      प्रतिशत 

बीजेपी                         ३१                      ०३                       -२८                        -९०.३२ %

आम आदमी                २८                       ६७                        ३९                        + १३९.२८ %

कांग्रेस                          ०८                      ००                       -०८                       -१०० %

अन्य                           ०३                       ००                      -०३                       - १०० 

इन आंकड़ों को देख कर ऐसा लगता है जैसे आम आदमी ने तो अपनी स्थिति दुगने से ज्यादा मजबूत कर ली है और अन्य सभी दल करीब करीब  साफ़ हो गए हैं। लेकिन वास्तविकता ये नहीं है। 

सीटें परिणाम होती है - बहुमत का। अगर दो दलों के बीच में सिर्फ एक वोट का भी अंतर हो तो उसमे से एक उस सीट का १०० % विजेता होता है और दूसरा उस सीट पर १०० % पराजित !

आइये देखें जनता ने कितना किसे समर्थन दिया और कितना किसे नकार दिया।  ये तुलना मतों की गिनती के आधार पर है। 

परिणाम प्राप्त मतों  के दृष्टिकोण से -

                                  २०१३                       २०१५                      अंतर                            प्रतिशत               

बीजेपी                         ३३.०७ %               ३२.१०%               -०.९७ %                         -०२.९३%

आम आदमी                ३०.०० %                ५४.०० %              +२४ %                           +८०.०० %                   
कांग्रेस                         २४.५५ %                ०९.८०%              - १४. ७५ %                     - ६०.०८ %

अन्य                           १२.३८ %                ०४.१० %              - ०८.२८ %                      -६६.८८ %

इन नतीजों से जो पता चलता है वो इस प्रकार है -

१. बीजेपी ने अपना मुख्य आधार बचा  कर रखा लेकिन उसमे बढ़ोतरी नहीं कर पायी। 
२. कांग्रेस ने अपना वोट बैंक आम आदमी के हाथों खो दिया। 
३. अन्य दल जिसमे मुख्य रूप से आते हैं - बीएसपी , जेदीयु और स्वतंत्र। उनके वोटों का भी वही हुआ जो        कांग्रेस के वोट बैंक का हुआ। 
४. दिल्ली में मुस्लिम जनसँख्या २५ से २७ प्रतिशत है ; जो कभी भी बीजेपी को वोट नहीं देगी । 

जब पूरी दिल्ली दो खेमों में बँट  गयी हो तो परिणाम तो ऐसे ही आने थे।  बिजली मुफ्त ,पानी मुफ्त , अवैध निर्माण बनेंगे वैध - ऐसे नारों से सारी दलित जनता , सारे अवैध रूप से बसे  बंगला देशी  - पूरी की पूरी जमात आम आदमी के पक्ष में चली गयी।  

ये चुनाव था - सुधार और उधार के बीच ; प्रगति और दुर्गति के बीच ; सौर बिजली और चोर बिजली के बीच तथा आत्म सन्मान और मुफ्तखोरी के बीच। दुर्भाग्य से सुधार , प्रगति , सौर बिजली और आत्म सन्मान को मुंह की खानी पड़ी। 

दिल्ली को भगवान बचाये।  सौभाग्य से पूरा भारत इस तरह से नहीं सोचता है।