नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, August 30, 2011

धन्यवाद फेसबुक

कल दफ्तर में बैठा था , जब पूना से एक मित्र नितिन का फोन आया । नितिन मेरा सहपाठी था इन्जिनेअरिंग कोलेज के दिनों का । १९७५ से १९७९ तक हम साथ पढ़े और होस्टल में रहे । नितिन की तरह और भी कम से कम १५०-२०० सहपाठी थे । मिलना सब से रोज होता था , गहरी मित्रता कुछ लोगों से ही थी । कोलेज छोड़ने के बाद से सारे सम्पर्क टूट गए । सिर्फ ४-५ गहरे मित्रों से ही संपर्क बना रहा । ५-६ महीनों पहले फेसबुक पर एक पुराने सहपाठी ने याद किया । धीरे धीरे हमारा उन दिनों के सहपाठियों का एक ग्रुप बन गया । सब के स्वरुप बदल चुकें हैं । कुछ लोग याद आ रहे थे , कुछ को नाम से याद कर पाना भी मुश्किल हो रहा था । लेकिन एक कड़ी जुडी ३२ साल पुराने मित्रों से ।

कल जब नितिन का फोन आया तो उसने बताया की हमारा एक और सहपाठी प्रताप गुहा अपनी पत्नी के साथ रांची से पूना जा रहा था ; रांची से विमान से मुंबई पहुंचा , लेकिन मुंबई के हवाई अड्डे पर उतरने के बाद उसकी पत्नी को स्ट्रोक आ गया । स्ट्रोक का अर्थ होता है , मष्तिस्क के अन्दर जोरदार झटका और संभावित रक्त-स्त्राव । इसका परिणाम जानलेवा भी हो सकता है । नितिन ने मुझे प्रताप का नंबर दिया और बताया की हवाई अड्डे के डॉक्टर उसको नानावटी हस्पताल ले जा रहें हैं एक अम्बुलेंस में ।

मैं तुरंत अपने दफ्तर से निकला , और १५ मिनट में पहुँच गया हस्पताल । वहां पहुँच कर कैजुअल्टी में पता किया तो मालूम हुआ की एक महिला थोड़ी ही देर पहले हवाई अड्डे से वहां लायी गयी और उन्हें आई सी यू में भरती किया गया है । फोन कर के प्रताप से संपर्क साधा । प्रताप तुरंत ही मेरे पास पहुंचा । जब मैंने अपना नाम बताया तो मुझसे लिपट गया और रोने लगा । बोला - कभी सोचा नहीं था की जीवन में तुमसे इस तरह मुलाकात होगी । ऐसे समय में किसी भी व्यक्ति के लिए किसी अपने का साथ होना कितना महत्वपूर्ण होता है ये मैंने उस समय जाना ।

मैं दिन भर उस के साथ रहा । सारे दिन की डाक्टरी जांचों के बाद ये तय हो गया की उसकी पत्नी सुपर्णा खतरे से बाहर है । रात भर प्रताप वहीँ रहा । सुबह उससे बात हुई , अभी फिर मिलने जा रहा हूँ ।

इस घटना को यहाँ लिखने का कारण है , फेसबुक जैसी आधुनिक संपर्क की सुविधाओं के लाभ की चर्चा करना । फेसबुक की वजह से आज मैं देश के विबिन्न शहरों में अपने मित्रों के सम्पर्क में हूँ । पता नहीं कब किस शहर में प्रताप की तरह किसी अपने की जरूरत पड़ जाए ।






Saturday, August 27, 2011

स्वर्णिम दिन

आज का दिन भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम दिन के रूप में याद किया जाएगा । शायद वैसा ही जैसे की १५ अगस्त १९४७ का दिन ! उस दिन देश आजाद हुआ था , अंग्रेजों की हुकूमत की ग़ुलामी से। आज देश आजाद हुआ है , अपनी खुद की दासता से । वो दासता , जो हमने ना जाने कब अपना ली , आजादी पाने के बाद । दासता स्वार्थ की , दासता भ्रष्टाचार की , दासता अनजाने अत्याचार की ।

इस दासता का भान हो गया था , देश को १९६८ में जब पहली बार देश के इमानदार नेताओं के मष्तिस्क में लोकपाल की परिकल्पना आई थी । और इस के बाद शुरू हुआ एक लम्बा दौर , जिसमे हर पांच साल में चुनाव होते रहे । हर पञ्च वर्षीय सत्र में लोकपाल पर चर्चा होती रही । सबसे पहले लोकपाल विधेयक लाया गया -१९६८ की लोकसभा में , जिसे १९६९ में पारित कर दिया गया ; लेकिन दुर्भाग्य वश जब तक यह विधेयक राज्य सभा में पारित किया जाता , उसके पहले ही लोकसभा भंग कर दी गयी । ये देश का दुर्भाग्य था, वर्ना शायद इस देश की अवस्था और व्यवस्था ऐसी नहीं होती जैसी आज है । उसके बाद तो इस विधेयक को लाने का दौर चलता रहा ; १९७१, १९७७, १९८५,१९८९, १९९६,१९९८,२००१,२००५ और २००८ की लोकसभाओं में ये विधेयक लाया गया लेकिन कभी पारित नहीं हुआ । अगर इन सभी वर्षों की सरकारों का हिसाब लगायें तो देश की सारी राजनैतिक पार्टियाँ कटघरे में आ जाती है , क्योंकि करीब करीब हर पार्टी के शासन काल में लोकपाल बिल को ठुकराया गया ।

आज वो ऐतिहासिक दिन है , जब लोकपाल बिल की तीन मोटी शर्तों को दोनों सदनों ने संपूर्ण सहमती से पारित किया । ऐसा नहीं था की बहुत बड़ा ह्रदय परिवर्तन हमारे नेताओं में हो गया था । कारण था पूरे देश में आई क्रांति की लहर , और इस अहिंसक क्रांति के सूत्रधार अन्ना हजारे का आमरण अनशन । सरकार की रातों की नींद हराम हो गयी थी । एक तरफ था सरकार का अहम् और स्वार्थ और दूसरी तरफ था अन्ना हजारे का निडर निश्चय । सरकार रोज तेवर बदलती रही - कभी प्यार से , कभी धमका कर , कभी फुसला कर , कभी झुठला कर , कभी तिहाड़ का भय , कभी संसद के नियमो की आड़ ! आखिर सरकार को समझ में आ गया की अन्ना के आन्दोलन के सामने उनके सारे हथियार बौने हैं ।

सारा देश जश्न मन रहा है । अन्ना ने घोषणा कर दी है की वो अपना अनशन कल सुबह १० बजे त्याग देंगे । आज का दिन भारत के भावी जीवन का एक ऐतिहासिक मोड़ है । हर भारतीय को अपने जीवन से भ्रष्टाचार निकालने का प्रण लेना होगा । भ्रष्टाचार एक ऐसा चक्र है , जिसे चलाने में सभी किसी ना किसी रूप में सहायक होतें हैं । अधिकारी अगर रिश्वत लेता है तो उसे कोई ना कोई रिश्वत देता है । भ्रष्टाचार के भागीदार दोनों ही हैं । आइये आज से हम प्रण लेवें , की कम से कम हम अपने जीवन से भ्रष्टाचार को पूरी तरह निकालने का प्रयास करेंगे ।

मेरे स्वर्गीय दादाजी अपने दैनिक यज्ञ के बाद हम सबसे कुछ नारे लगवाते थे , जो इस प्रकार थे -


हम बदलेंगे , जग बदलेगा


हम सुधरेंगे , जग सुधरेगा


दुर्गुण त्यागें , सदगुण धारें


संसार के श्रेष्ठ पुरुषों - एक हो जाओ !


दादाजी के उन सभी नारों का अर्थ आज पूरी तरह समझ में आ रहा है ।

राहुल और किरण

आखिर अन्ना के अनशन का ११ वां दिन भी समाप्त हुआ । घोर निराशा के साथ । कल के दिन की दो प्रमुख बातें थी राहुल और किरण । दोनों बातों में क्या सम्बन्ध था ? आइये पहले करें राहुल की बात ।

एक घर में आग लग गयी । घर के सब लोग बाहर भाग खड़े हुए । थोड़ी देर में सबको याद आया कि घर में एक छोटा बच्चा अपने पालने में सो रहा था । घर के सभी लोग व्याकुल हो गए । आग इतनी भड़क चुकी थी, कि अगर १०-१५ मिनट के अन्दर बच्चे को ना बचाया जाता तो फिर उसे बचाने का कोई रास्ता भी नहीं बचता । सब लोग अपना अपना तरीका बताने लगे -
" भैया कूद पड़ो आग में, बच्चे को बचा लो ; जो होगा भगवान अच्छा ही करेंगे "
" नहीं नहीं , एक तो फंसा है दूसरे को मत फंसने दो , आग बुझाने की कोशिश करो "
" अरे, कोई एक कम्बल लाओ कहीं से ......"
" दमकल वालों को बुलाओ ....."

इतने में एक बहुत ही पढ़ा लिखा पडौसी नौजवान सामने आया । बोला मेरी सुनो - " ये आग लगी है , घर के असुरक्षित निर्माण की वजह से । अगर इसमें फायर प्रूफ सामग्री लगी होती तो ये घर नहीं जलता । इसलिए मैं चाहता हूँ की इस घर का पुनः निर्माण किया जाए ; मेरी गारंटी है , की इसमें कभी आग नहीं लगेगी । "

बच्चे की माँ बिफर पड़ी - " बड़ा आया पढ़ा लिखा , मेरा बच्चा अन्दर मर रहा है , किसी के अन्दर इतनी मर्दानगी नहीं है की उसे जाकर आग से बचाए । सारे के सारे बेकार हो । कोई बाप , कोई चाचा, कोई दादा बना बैठा है , लेकिन बच्चे को बचाने के लिए कोई नहीं कूद रहा । सारा जीवन झोंक दिया मैंने इनकी सेवा में - आज मेरा कोई नहीं ! "

इस कहानी का युवक है श्री राहुल गाँधी , जिनकी पिछले दस दिनों में कहीं सूरत भी नजर नहीं आई । कल जब सारा देश सांस थामे इंतजार कर रहा था की संसद में अन्ना के जन लोकपाल बिल पर चर्चा होगी और शायद दिन में ही अन्ना का उपवास टूट जाएगा ; ऐसे में संसद शुरू हुआ प्रश्न काल में देश की दूसरी समस्याओं पर चर्चा के साथ । और फिर अचानक राहुल गाँधी अवतरित हुए , कुछ ऐसे तेवर में जैसे कोई बहुत बड़ा समाधान लेकर आयें हों । और फिर पढ़ दिया अपना ५-६ पन्नो का भाषण - जिसका सारांश था , की ये लोकपाल बिल वैगरह सब बकवास की बातें हैं ; भ्रष्टाचार इन सबसे मिटने वाला नहीं है और उसका एकमात्र रास्ता वो है जो प्रिंस राहुल गाँधी के दिमाग में अचानक आया था । कोंग्रेस की परंपरा के अनुसार गाँधी परिवार की तरफ से आया हुआ लचर से लचर सुझाव भी वेद वाक्य हो जाता है । राहुल गाँधी ने संसद को एक गलत भटकाव देकर अन्ना को धकेल दिया उनके अनशन के बारहवें दिन की तरफ ।

अब बात करें किरण बेदी की । उनका अन्ना के मंच से एक जोरदार भाषण हुआ । एक ऐसा भाषण जिसमे क्रोध की पराकाष्ठा , निराशा की उदासी और अन्ना के गिरते हुए स्वस्थ्य के प्रति घोर चिंता का मिश्रण था । ऐसा लगता था की किरण को किसी और शक्ति ने अपने वश मे कर लिया था । उनका क्रोध देश के सांसदों पर जहर बन कर बरस रहा था । लेकिन ये गुस्सा उस माँ के गुस्से की तरह था जिसका बच्चा जलते हुए घर मे मर रहा हो , और लोग सुझाव देने मे लगे हो ।

राहुल और किरण के भाषण थे क्रिया और प्रतिक्रिया । हर बात का एक समय होता है । राहुल देश की नब्ज नहीं समझ रहे । अन्ना के स्वस्थ्य से उन्हें कोई लेना देना नहीं । प्रधानमंत्री के ह्रदय से निकले परसों के भाषण के बाद राहुल की बातें कोंग्रेस पार्टी की दिशा विहीनता ही दर्शाती है । अपनी ही पार्टी के सर्वोच्च नेता- देश के प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के अलावा राहुल ने कुछ नहीं किया

जितना नाजायज था राहुल का संसद मे भाषण , उतना ही जायज था किरण का विष वमन । हर भारतीय के मन मे वैसी ही लहरें करवट ले रही थी । ये अलग बात है की टी वी पर चलने वाली बहस मे लोग बुद्धिजीवियों वाला मुखौटा पहन लेते हैं और फिर निंदा करतें हैं किरण के व्यवहार की ।


















Wednesday, August 24, 2011

याद है फिल्म गाइड ?

कल से फिल्म गाइड याद आ रही है . देव आनंद साहब की एक जबरदस्त फिल्म ! जब जब समाचारों में देखता हूँ , अन्ना के उपवास का कल नौवां और आज दसवां दिन - मुझे वो फिल्म याद आती है . फिल्म का नायक राजू पहुँच जाता है एक गाँव में . राम राम की चादर ओढ़े गाँव के एक मंदिर के पास बैठा होता है तो लोग धीरे धीरे उससे जुड़ने लगते हैं . पूरे गाँव के लोगों को लगने लगता है की उनकी सारी समस्याओं का हल है, उस अलग किस्म के स्वामीजी के पास . राजू यानि स्वामीजी को मुकाबला करना पड़ता है, गाँव के पंडों से जो गाँव को धर्म की आड़ में डरा कर अपना उल्लू सीधा किया करते थे . स्वामीजी उन्हें शास्त्रार्थ में भी हरा देते हैं . गाँव के पण्डे सोचने लगते हैं कि ये व्यक्ति तो उनकी जड़ें ही काट देगा .

तभी गाँव में सूखा पड़ता है . पानी बिना सारी खेती सूखने लगती है . गाँव भूखा मरने लगता है . गाँव के पण्डे इस मौके का फायदा उठा कर गाँव वालों के मन में ये बात बिठा देते हैं कि अगर स्वामीजी गाँव के लिए अनशन करेंगे तो बरसात हो सकती है . गाँव वालों का इतना दृढ़ विश्वास देख कर स्वामीजी अनशन पर बैठ जाते हैं . उनका ये उपवास लम्बा होता चला जाता है . देश विदेश की मीडिया उनके दर्शन करने और कराने के लिए गाँव आती है . आखिर राजू यानि स्वामीजी प्राण त्याग देते हैं , और उसी क्षण आसमान पर बादल घिर आते हैं , और जोरदार बरसात शुरू हो जाती है .

वो तो एक फिल्म थी , एक काल्पनिक कहानी ! लेकिन आज जो देश में घट रहा है वो काल्पनिक नहीं है . ७३ वर्ष के अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ एक लड़ाई लड़ रहें हैं देश के ठेकेदारों से जो आजादी के ६४ वर्षों के बाद भी देश को ग़ुलाम बनाये हुए है . सरकार सारे हथकंडे अपना रही है , फिर एक बार बेवक़ूफ़ बना कर इस आन्दोलन को समाप्त करने की . बाबा रामदेव का आन्दोलन इसी तरह ख़त्म कर दिया गया था . बाबा अकेले लड़ना चाह रहे थे , इसलिए कहीं चूक गए ; लेकिन अन्ना की नजर एकटक उनके लक्ष्य की तरफ है ; बाकी सारी बातें करने के लिए उनके पास एक बहुत समझदार और मजबूत टीम है . और उससे भी बढ़ कर पूरे देश में उठी हुई समर्थन की लहर है .

प्रधानमंत्रीजी ! ये गाइड फिल्म नहीं है . यहाँ स्वामीजी मरेंगे नहीं . मरेगी आपकी सरकार ! समय रहते चेत जाएँ वर्ना ये जन लहर आपको तथा आपकी सरकार को न जाने कहाँ बहा ले जायेगी . जो जनता आपकी संसद को चुनती है वही जनता आप को कुर्सी से हटा भी सकती है . राजनीति को वेश्या बनाने वाले भ्रष्टाचार को विदा कीजिये .

Friday, August 19, 2011

आम आदमी का हाथ

विरोध पक्ष की जबरदस्त मांग पर प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में अन्ना की गिरफ़्तारी पर सरकारी स्पष्टीकरण दिया . उनका स्पष्टीकरण जैसा भी था लेकिन एक बहुत अजीब मुद्दा खड़ा कर दिया प्रधानमंत्रीजी ने जब उन्होंने अपने भाषण के १७वें भाग में ये कहा की भारत आर्थिक रूप से एक उदीयमान देश है और हम विश्व के नक़्शे पर एक बहुत बड़ी ताकत के रूप में उभर रहें हैं . उन्होंने कहा की बहुत सी ऐसी ताकतें हैं जो हमें अपने सच्चे स्वरुप तक पहुँचने से रोकना चाहती है . हमें उनके हाथों में नहीं पड़ना चाहिए . हम एक ऐसा वातावरण नहीं चाहते जहाँ हमारी आर्थिक प्रगति आपसी झगड़ों में उलझ कर रह जाए . हमें हमारी सोच देश के आम आदमी के आर्थिक उत्थान की तरफ केन्द्रित रखनी है .

मैं प्रधानमन्त्री की बात को कुछ समझ नहीं पाया . लेकिन उसके बाद पिछले दो दिनों तक जो चर्चाएँ मैंने टी वी के चैनलों पर सुनी तो मुझे प्रधानमंत्री जी की बात का अर्थ समझ में आया . उनका ये कहना था की जो देश व्यापी आन्दोलन श्री अन्ना हजारे के समर्थन में चल रहा है , उसमे अमरीका जैसी विदेशी ताकतों का हाथ है .एक प्रवक्ता ने आर एस एस का नाम लिया . बाकि सभी किसी न किसी ताकत का हाथ बताते हैं . सरकार को ये सारा आन्दोलन किसी निहित स्वार्थ वाले गुट का कोई मंचन किया हुआ नाटक लगता है .

प्रधानमंत्रीजी ! मैं हूँ आम आदमी . मैं देख रहा हूँ सरकार की गतिविधियों को पिछले ४-५ महीनों से . १६ अगस्त की सुबह को जब टी वी पर देखा और सुना की अन्ना हजारे को उनके मयूर विहार निवास से बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया गया है , तो एक आम आदमी की तरह मेरा भी खून खौल उठा. मेरे भी मन में आया कि मैं भी अन्ना के समर्थन में बाहर निकल पडूं. मैंने कोशिश भी की , बहुत से लोगों को फोन किया कि आओ सड़क पर उतरें, लेकिन चूँकि लोग अपने अपने काम पर निकल चुके थे इसलिए उस दिन हम कुछ नहीं कर सके . सब के आपस में फोन और एस एम् एस चलते रहे. अगले दिन हम सब जुड़ गए एक अन्ना समर्थन समूह के साथ , जो अँधेरी स्टेशन के सामने इकठ्ठा हुआ , और देखते देखते ७-८ हजार लोग इकट्ठे हो गए . जुलुस में १०-१२ साल के लड़कों से लेकर ८०-८५ साल के वृद्ध थे . सबसे बड़ी संख्या में थे - १८ से ३० वर्ष के आयु के लड़के और लड़कियां . हर व्यक्ति के चेहरे पर सरकार के रवैये के प्रति रोष था . कोई पिकनिक जैसा माहौल नहीं था. बहुत सारे लोगों ने अन्ना जैसी टोपी पहन रखी थी जिस पर विभिन्न भाषाओँ में लिखा था - मैं हूँ अन्ना . जुलुस करीब एक किलोमीटर लम्बा बन गया . हाथ में मशालों को लेकर सारा का सारा काफिला जुहू बीच की तरफ बढ़ा. इस जुलुस में मेरे भाग लेने से कोई बहुत बड़ी बात नहीं हुई . मेरे अन्दर एक जो कुलबुलाहट थी सरकार के इस रवैय्ये और भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत आवाजों को लगातार दबाने की कोशिश के प्रति , वो कुलबुलाहट शांत हुई . मैंने अपना मत उस भीड़ में शामिल होकर देश के सामने रखा . यही कारण है हर व्यक्ति के किसी न किसी रूप में इस आन्दोलन का हिस्सा बनने का .

प्रधानमंत्रीजी , मुझे किसी अमरीकी ताकत ने नहीं उकसाया कि मैं उस जुलुस में शामिल हो जाऊं . न ही मुझे आर एस एस या किसी और राजनैतिक दल ने फोन कर के बुलाया . ये मेरे मन के अन्दर की कुलबुलाहट थी कि मैं भी इस अभियान का एक हिस्सा बनूँ क्योंकि मैं भी वही महसूस करता हूँ जो कोई भी आम हिन्दुस्तानी करता है .बाहरी ताकतों का हाथ बता कर आपने एक आम आदमी की कुलबुलाहट को बाजारू बताया है , जो किसी न किसी के हाथ बिकी हुई है .

आदरणीय प्रधानमंत्रीजी ! आप एक सम्मानित नेता हैं . अगर आप के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है जिससे आप भ्रष्टाचार को मिटा सकें , तो कोई बात नहीं , लेकिन इस तरह की हलकी बातें कह के देश के मनोबल और अपनी पार्टी की जड़ों को कमजोर न करें .

Wednesday, August 17, 2011

किंकर्तव्य- विमूढ़ सरकार

तमाशा शुरू हुआ था प्रधानमंत्री के १५ अगस्त के भाषण से ! प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में सारा जोर लगा दिया था ये बताने में की सरकार अपनी तरफ से पूरा जोर लगा रही है भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए ।प्रधानमंत्री जी के भाषण को पूरे २४ घंटे भी नहीं हुए थे की सरकार का असली चेहरा सामने आ गया ।

अन्ना हजारे ने अपने पिछले अनशन तोड़ने के समय से ही घोषणा कर दी थी की अगर सरकार ने लोकपाल बिल में ईमानदारी नहीं दिखाई तो १६ अगस्त से उनका अनशन फिर शुरू हो जाएगा । इस से ज्यादा लम्बी सूचना शायद सरकार को कोई दे भी नहीं सकता था । कमिटी के नाम पर सरकार के मंत्रियों ने अन्ना और उनकी टीम का मजाक उड़ाया सरकार की नीयत किसी भी क्षण साफ़ नहीं थी ।

अन्ना की टीम ने देश को सिखाया की प्रजातंत्र में किसी मुद्दे पर कैसे लड़ा जाता है । एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब लोकपाल बिल के विषय में टीम अन्ना ने कहीं ना कहीं अपने विचार नहीं दिए हों । मीडिया ने भी अन्ना के विचारों का प्रसारण किया क्योंकि उनकी बात में सच्चाई थी । अरविन्द केजरीवाल जैसे सुलझे हुए लोगों ने सरकारी लोकपाल को जोकपाल बताते हुए उस बिल की खामियों को उदाहरणों के साथ मीडिया में रखा । सरकार के पास किसी भी स्थिति में उनके दिए गए उदाहरणों का कोई जवाब नहीं था ।

कल १६ अगस्त की सुबह दिल्ली पुलिस ने अन्ना हजारे को उनके दिल्ली के निवास से ही गिरफ्तार कर लिया । अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी और शांतिभूषण को भी गिरफ्तार कर लिया गया । मानसिक रूप से दिवालिया हो चुकी सरकार का ये आत्मघाती कदम उनके लिए कितना भारी पड़ रहा है ये पूरा देश देख रहा है । कल शाम होते होते देश के हर शहर में जनता सड़क पर उतर चुकी थी । तिहाड़ जेल के बाहर हजारों लोगों का जमावड़ा अन्ना के समर्थन में रात भर बैठा रहा । शाम होते होते सरकार के उग्र तेवर एक किंकर्तव्य विमूढ़ स्थिति में बदले नजर आये । किरण बेदी और शांतिभूषण को बिना किसी सफाई के छोड़ दिया गया । अन्ना की रिहाई का कोर्ट का आदेश लेकर सरकारी नुमाइंदा तिहाड़ पहुंचा । सरकार ने सोचा की दिन भर तिहाड़ में रहने के बाद शायद अन्ना चुपचाप बाहर आ जायेंगे । लेकिन ऐसा हुआ नहीं । अन्ना ने शर्त रख दी की वो तब तक तिहाड़ के बाहर नहीं आयेंगे जब तक सरकार उन्हें लिखित में इस बात का आश्वाशन नहीं देती की उन्हें अपना अनशन बिना किसी शर्त के दिल्ली में करने देगी ।

सरकार अन्ना की शर्तों के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस गयी है .अन्ना की शर्तों को मानना सरकार के लिए थूक कर चाटने के सामान होगा । ना मानने का मतलब है देश में अन्ना के आन्दोलन को बढ़ने देना । एक टी वी चैनल ने बहुत बढ़िया हेड लाइन लिखी - अन्ना ने सरकार को गिरफ्तार किया ।



Monday, August 15, 2011

प्रधानमंत्री जी का लाल किले से भाषण

भारत की आजादी की ६४ वीं वर्षगाँठ पर प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने लाल किले की प्राचीर से भाषण दिया । भाषण में उन्होंने क्या कहा और उसका क्या अर्थ निकलता है आइये जरा समीक्षा करें -
प्रधानमंत्री ने कहा की इस वक़्त हमें जरूरत है आपसी समझ बूझ और अपने ऊपर लगाम लगाने की वर्ना देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा है । कुछ लोग देश में गड़बड़ी फ़ैलाने की कोशिश कर रहें हैं , ताकि हमारी प्रगति रुक जाये । हम ऐसा नहीं होने देंगे ।
प्रधानमंत्रीजी जनता ने बहुत कुछ समझ बूझ लिया है । लगाम भी बहुत लम्बे समय तक लगा चुकी । सही है कुछ लोग देश में गड़बड़ी फ़ैलाने की कोशिश कर रहें हैं , उनमे से कुछ तो तिहाड़ चले गए, लेकिन बहुत सारे अभी भी संसद में बैठें हैं । अगर आपका इशारा स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे जैसे देश भक्तों की तरफ है तो आप की सोच ग़लत है । ये लोग आज के समय के क्रन्तिकारी हैं , सच्चे देशभक्त हैं । प्रगति का अर्थ तो सिर्फ उन लोगों की ही प्रगति है , जो शासन के नाम पर सिर्फ भ्रष्टाचार करते हैं । काश आप ऐसा नहीं होने देते ।
प्रधानमंत्री ने कहा - समय है व्यक्तिगत और राजनैतिक फायदों से ऊपर उठ कर देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर एकमत होने का ।
जनता का कौन सा व्यक्तिगत और राजनैतिक फायदा है, महामहिम ! एकमत होने का परिणाम भुगत चुकें हैं रामलीला मैदान में ।
प्रधानमंत्री ने माना की भ्रष्टाचार देश के विकास में बहुत बड़ी बाधा है , लेकिन भ्रष्टाचार पर बहस इस प्रकार नहीं होनी चाहिए जिससे प्रगति के रास्ते में रुकावट आये । उन्होंने कहा की भ्रष्टाचार का मुद्दा हमारे आत्मा विश्वास को कहीं बिगाड़ ना दे !
प्रधानमंत्रीजी , इन सब बातों का क्या अर्थ है जरा खुल के बताते तो अच्छा होता । आपने अपने भाषण में अपनी सात सालों की उपलब्धियों का भी हवाला दिया , क्या अगले बचे हुए साल उसी प्रकार की उपलब्धियों का नंगा नाच देखे ये देश ? आत्म विश्वास जनता में तो बढ़ा ही है , लेकिन आपकी यू पी ऐ सरकार का आत्म विश्वास गिरा है ।

प्रधानमंत्री ने कहा - हम एक बहुत ही मजबूत लोकपाल का निर्माण चाहते हैं जो ऊंचे बैठे लोगों के भ्रष्टाचार की भी जांच पड़ताल कर सके । उन्होंने कहा की भूख हड़ताल और अनशन आदि से कोई लाभ नहीं । इन्होने कहा की न्यायपालिका की स्वायत्ता को कम नहीं किया जाना चाहिए । उन्होंने ये भी कहा उनकी सरकार भ्रष्टाचार को मिटने और सरकारी खरीद फरोख्त में कम करने के लिए हरसंभव कदम उठा रही है लेकिन सरकार के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है .
बहुत खूब ! प्रधानमंत्री के आदरणीय स्थान से इतना बड़ा झूठ स्वीकार्य नहीं । आपकी सरकार के लोकपाल बिल की धज्जियाँ तो पूरे देश में उड़ चुकी हैं । औरों की जाने दीजिये आप ने तो अपने आप को भी लोकपाल के दायरे में रखने की हिम्मत नहीं दिखाई । आपकी सरकार द्वारा उठाये हुए क़दमों को तो देश झेल ही रहा है । अगर १२१ करोड़ लोगों का दिया हुआ अधिकार ही कोई जादुई छड़ी नहीं है तो क्या अधिकार है आपकी सरकार को इस देश पर शासन करने का ?
प्रधानमंत्रीजी ! लाल किले से दिया हुआ आपका भाषण आपके दिल की कही हुई बातें नहीं थी । सरकारी वक्तव्य ही था । आम आदमी से आप दूर होते जा रहें हैं । अपनी सरकार की छवि को जनता के बीच जाकर पहचानिए । आपके प्रवक्ता टी वी पर एक हारी हुई लड़ाई लड़ते ही नजर आते हैं । ऐसे माहौल में आप भाषण लाल किले से दें या क़ुतुब मीनार से - एक ही बात है !