नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, July 26, 2016

कुंठा : फ़िल्मी गानों के माध्यम से

कुंठा जीवन की एक सच्चाई है।  असफलता जन्म देती है , निराशा को और निराशा ह्रदय की कुढ़न बन कर बन जाती है - कुंठा। असफलता के कई कारण हो सकते है - खेल कूद , पढ़ाई , व्यापार या प्यार।  फिल्मों से मिलने
 वाले उदाहरण प्रायः प्रेम की असफलता के कारण ही होते हैं। 

इस गीतों भरी बातचीत में हम देखेंगे कुंठा के बदलते हुए स्वरुप।  जब कोई व्यक्ति अपने प्रिय या प्रिया को अपने आप से दूर करने का प्रयास करते हुए देखता है , तो जिस कुंठा का जन्म होता है , उसे कहते हैं ईर्ष्या ! कुंठित मन चीत्कार कर उठता है - और नहीं बस और नहीं , ग़म के प्याले और नहीं !

और जब वह दुराव जीवन के सबसे बड़े नुक्सान में बदल जाता है ; जब उसकी प्रियतमा किसी और की हो जाती है ; तब कुंठा अपने पूरे प्रचंड स्वरुप में आ जाती है। वो समाज चिंता छोड़ कर सीधे सीधे दोष देता है अपनी प्रियतमा को उसका नाम लेकर - ओ मेरी महुआ  तेरे वादे क्या हुए ?


और फिर वो विदा होती है अपने गाँव से , उस समय उस प्रेमी का ह्रदय टुकड़े टुकड़े हो जाता है। उसे अपने टूटे हुए सपने टूटे हुए फूल से और अपनी मीत आँखों में शूल सी चुभती है !


उसकी कुंठा उसे दीवाना बना देती है। वो गली गली भटकता है - ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं !


थक हार कर रातों को सोने की कोशिश में अपनी तन्हाई में आवाज देता है - कोई लौट दे मेरे बीते हुए हुए दिन !


और कुंठा का अंतिम स्वरुप उभरता है , पूरे समाज और पूरी दुनिया के प्रति आक्रोश के रूप में। वो चीत्कार कर उठता है - जला दो इसे फूंक डालों ये दुनिया , मेरे सामने से हटालो ये दुनिया ; तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया !







Sunday, July 10, 2016

सिंगापुर : पर्यावरण



पर्यावरण की सुरक्षा जीवन के हर काम में निहित होनी चाहिए। एक मजेदार बात ; ख़ास कर हम भारत में रहने वालों के लिए। एक दिन मैंने देखा की हमारी गली में एक मकान के सामने के एक कंक्रीट मिक्सर की गाडी आकर खड़ी थी।  उसका मिक्सर वाला टैंक घूम रहा था।  हमारे देश में इस तरह की गाडी खड़ी होती है किसी निर्माणाधीन ईमारत के पास। मुझे समझ में नहीं आया की ये यहाँ क्या कर रही है !

बाद में जब मैं नीचे गया और उस ईमारत के सामने से गुजरा तो देखा की उसके अहाते में एक मिस्त्री अपने औजार लेकर जमीन की सतह एक हिस्से को ठीक कर रहा था। तब मुझे समझ में आया की इस देश में चाहे कोई छोटी सी मरम्मत ही क्यों न करनी हो , सीमेंट ओर कंक्रीट का गारा खुले में नहीं बनाया जाता है।  ये डिपो से कंक्रीट मिक्सर में डाल कर भेजा जाता है।

अब बताइए , ऐसे देश में कहाँ से किसी प्रकार का प्रदुषण फैलेगा !

Monday, July 4, 2016

सिंगापुर : कुछ और अनुभव


किसी भी देश को महान बनते हैं वहां के नागरिक और वहां का प्रशासन ! सिंगापुर में ये दोनों ही इतने चुस्त हैं की जन जीवन में किसी प्रकार की बुराई नजर ही नहीं आती।

फेरीवाले प्रायः हर देश में पाये जाते हैं। अंग्र्जी में इन्हे हॉकर्स कहते हैं। सस्ते दर पर तैयार भोजन खिलते हैं ये हॉकर्स। प्रायः इनका बनाया हुआ भोजन स्वादिष्ट भी होता है। लेकिन समस्या ये होती है की ये सड़कों पर जहाँ तहाँ अपना डेरा जमा लेते हैं। वहां गंदगी फैलाते हैं। इसके अलावा इनके भोजन की स्वच्छ्ता पर हमेशा प्रश्न खड़ा रहता है। भारत में तो ये दोनों बातें बिल्किल साफ़ नजर आती हैं।

सिंगापुर की सड़कों पर मुझे कोई हॉकर खाने पीने की सामग्री बेचता हुआ नहीं दिखा। मैंने अपनी बेटी पल्लवी से पुछा इसके बारे में। उसने बताया की पहले सिंगापुर में भी हॉकर्स हुआ करते थे ; लेकिन सफाई और स्वच्छ्ता के कारण वहां की सरकार ने कई जगहों पर हॉकर सेंटर बना दिए हैं। ये सेंटर पूरी तरह से व्यवस्थित हैं।  यहाँ बैठने के लिए कुर्सियां और टेबल आदि की व्यवस्था है। सरकार के निरीक्षक निश्चित अवधि पर इन हॉकर्स के स्टाल्स का निरिक्षण करते हैं। उनकी सफाई की अवस्था के अनुरूप उनकी रेटिंग की जाती है और वो रेटिंग वहां सामने एक सर्टिफिकेट की तरह दिखना अनिवार्य होती है।

कितना आसान समाधान ! कौन हॉकर चाहेगा की उसकी रेटिंग ख़राब हो , क्योंकि उसकी दुकान पर आने वाला व्यक्ति रेटिंग देख कर ही खायेगा।

क्या ये छोटी छोटी बातें - जो मुझे आकर्षित करती है , हमारी  सरकार के लोगों को नजर नहीं आती ?