नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, March 29, 2012

अरविन्द केजरीवाल की प्रतिक्रिया


मैंने कल लिखा था संसद की बोखलाहट और तिलमिलाहट के बारे में . आज पढ़िए अरविन्द केजरीवाल की प्रतिक्रिया को उन्ही के शब्दों में - 
१. हम संसद का सन्मान करते हैं . लेकिन आज कुछ ऐसे लोग संसद में बैठे हुए हैं , जिनके कारण हमें चिंता है . आपराधिक प्रष्ठभूमि वाले सांसदों के रहते क्या ये संभव है की ऐसा कानून बने जो उन्हें ही जेल भिजवा सके .
२. ऐसे फास्ट ट्रैक कोर्ट की जरुरत है जो इनके मामलों का निपटारा करे ६ महीनों में , दोषी हैं तो सजा सुनाये और निर्दोष हैं तो इन्हें बरी करे .
३. वो कहते हैं की हमने संसद का अपमान किया है . क्या उन राजनैतिक दलों ने संसद का अपमान नहीं किया जब उन्होंने ऐसे अपराधियों को टिकट दिया ? क्या तब संसद का अपमान नहीं होता जब ये लोग संसद में पेश हुए बिल को फाड़ कर फेंक देते हैं ? जब कुर्सियों उठा उठा कर फेंकी जाती है तब अपमान नहीं होता ? जब सांसदों की खरीद फरोख्त खुले आम चलती है तो संसद का अपमान नहीं होता ? उन्हें पता होना चाहिए की जिस संविधान ने उन्हें कानून बनाने का धिकार दिया है , उसी संविधान ने हमें भी अपना विरोध जताने का अधिकार दिया है .
४. जब एक फिल्म पान सिंह तोमर का नायक सीधा बोलता है की संसद में डाकू बैठें हैं - तो सारी   जनता तालियाँ बजाती है . क्या ये संसद के लिए चिंता का मुद्दा नहीं ? हम जैसे लोगों को दंड देने से क्या ये मुद्दा ठीक हो जाएगा ? टीम अन्ना को निशाना बनाने से कुछ नहीं होगा ; हम जो भी परिणाम हो भुगतने के लिए तैयार हैं . पर हमने गलत कुछ नहीं बोला . ये आरोप हमारे नहीं है - ये तो CAG , हाई कोर्ट वैगरह में साबित हुए आरोप हैं .
५. जब श्री शरद पवार को किसी ने एक थप्पड़ मार दिया , तब ये संसद उस पर घंटो चर्चा करती रही , लेकिन एक इमानदार अफसर नरेन्द्र कुमार की हत्या की हत्या पर किसी ने चर्चा की ?
६. हम जेनरल वी के सिंह की बहुत इज्जत करते हैं . उन्होंने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत लड़ाई लड़ी . शायद इसीलिए उन्हें भी टार्गेट किया जा रहा है ! सर्कार ने लोकपाल से सेना को अलग रखा है ; अगर ऐसे केसों की जांच सी बी आई करेगी तो निष्कर्ष तो पूर्व निर्धारित ही होगा . 

Wednesday, March 28, 2012

संसद की तिलमिलाहट

 पिछले रविवार , यानि २५ मार्च को टीम अन्ना के जंतर मंतर पर हुए अनशन ने संसद में हंगामा खड़ा कर दिया . आखिर ऐसा क्या कह दिया था टीम अन्ना ने ? अरविन्द केजरीवाल ने एक ऐसी सच्चाई बयान कर दी थी कि किसी भी नेता को उसका जवाब देते नहीं बनता था ; अरविन्द ने कह दिया की संसद में बैठे हैं बहुत सारे लुटेरे , हत्यारे और बलात्कारी ! पूरी पुख्ता जानकारी के साथ अरविन्द ने आंकड़े दिए कि संसद में १६२ सांसद ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मुकद्दमें दर्ज हैं ; उनमे से २० ऐसे हैं , जिनके खिलाफ आरोप हत्या का है . केजरीवाल  ने २५ ऐसे नेताओं का नाम ले लिया जो अपराधियों की फेहरिस्त में हैं ; बड़े बड़े नाम भी थे जैसे कि - शरद पवार, एस एम् कृष्ण , पी चिदंबरम , प्रफुल पटेल, कपिल सिबल , कमल  नाथ , फारुख अब्दुला , अजित सिंह , श्री प्रकाश जैसवाल , सुशिल कुमार शिंदे , विलास राव देशमुख , एम् . के . अजगिरी, जी के वासन आदि !    इतना ही नहीं अरविन्द ने एक खुली चुनौती भी दे दी कि अगर लोकपाल आ जाएगा तो १४ मंत्रियों के खिलाफ तुरंत ऍफ़ आई आर दर्ज हो जाएगा .

तिलमिला उठा पूरा का पूरा संसद ! इस तरह अगर संसद की सच्चाई कोई जनता में बिखेर  देगा , तो क्या होगा सांसदों का ? 
हिम्मत होती तो हर सांसद अपने अपने आरोपों का खंडन करता ; लेकिन ऐसा करने की जगह सब ने मिल कर टीम अन्ना को कोसना शुरू कर दिया . हर सांसद छिपना चाहता है बड़े बड़े शब्दों की आड़ में - संसद की गरिमा , प्रजातंत्र का सर्वोच्च मंच , देश के मतदाताओं का विश्वास वगैरह वगैरह  !
 जनता दल (यू) के मुखिया शरद यादव  ने एक निंदा प्रस्ताव पेश कर दिया ! समाजवादी पार्टी के मुखिया श्री मुलायम सिंह यादव अपनी भरी जीत के तेवर में थे , उन्होंने तो कह दिया की टीम अन्ना को अपराधी की तरह संसद में बुलाना चाहिए ; यहाँ तक भी कहा की सिर्फ माफ़ी मांगने से नहीं चलेगा .  
नेशनल कोंफरेंस के फारुख अब्दुला ने कहा - हम तो यहाँ देश ली सेवा के लिए आते हैं , इस तरह की गालियाँ खाने के लिए नहीं . डी एम् के  के इलानगोवन ने तो टीम अन्ना को भीड़ का मनोरंजन करने वाला जोकर बता दिया . 
देखा आपने - सच्चाई कितनी कडवी होती है . टीम अन्ना ने सच्चाई कह दी तो संसद का अपमान हो गया , लेकिन कोंग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह अगर बाबा रामदेव जैसे पूजनीय व्यक्ति को ठग कहते हैं तो संसद को कोई आपत्ति नहीं होती ; अन्ना  का मजाक उड़ाते हैं तो किसी को फर्क नहीं पड़ता . 
किस किस का मुंह बंद करेगा संसद इस तरह की घुड़कियों से ! हर हिंदी फिल्म राज नेताओं की पोल खोलती है - हाँ किसी का नाम नहीं लेती . हर कवि सम्मलेन भरा होता है , राज नेताओं की काली  कारतुतों की कविताओं से -यहाँ तो नाम भी धड्ले  से लिए जाते हैं . स्कूल के बच्चे तक नेताओं को गालियाँ देते हैं . और इन सब का सामूहिक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं - टीम अन्ना ! संसद का टीम अन्ना पर हमला बोलने का असली कारण है - लोक पाल बिल को ठन्डे बस्ते में डाल देने की कोशिश ! 
यहाँ देखना ये है की टीम अन्ना कितनी दूर तक लोहा लेती है इस भ्रष्ट राजनैतिक व्यवस्था से !  



Thursday, March 15, 2012

शिक्षा के नाम पर


महाराष्ट्र के एक दैनिक अख़बार दैनिक सनातन प्रभात के हवाले से ये महत्वपूर्ण खबर दे रहा हूँ . महाराष्ट्र के दहाणु शहर में एक स्कूल है - लोयोला माध्यमिक आश्रम शाला ; ये स्कूल संचालित हो रहा है ईसाई मिशनरियों द्वारा ; हालाँकि इस स्कूल को सरकारी सहायता मिलती है . ये स्थित है एक आदिवासी क्षेत्र में जिसे नाग्ज़री के नाम से जाना जाता है . घटना ये हुई कि चार आदिवासी बच्चों - साहिल नांगरे , रोहित मोर्घा , समीर मोर्घा और कृतिक देसाई को स्कूल में प्रथम कक्षा में दाखिला चाहिए था . स्कूल के प्रधानाध्यापक लुईस  मस्मर   और मुख्य पादरी जैकब ने उन चारों बच्चों के अनपढ़ माता पिता को बुलाया और कहा कि आपके बच्चों को दाखिला मिल सकता है अगर आप ईसाई धर्म  को स्वीकार कर लें . ग्रामीणों ने मना कर दिया . स्कूल ने बच्चों को दाखिला देने से मना कर दिया . ज्ञात हो कि इस स्कूल में छात्रों  को माथे पर तिलक या कन्याओं को हाथ में कंगन पहनने की अनुमति भी नहीं है .  निराश ग्रामीण हताश होकर पहुंचे शिव सेना के उस क्षेत्र के मुखिया श्री प्रभाकर रौल के पास . प्रभाकर अपने दल बल के साथ स्कूल पहुँच गए और जवाब तलब किया . भविष्य के लिए उन्होंने स्कूल के प्रशासन  को इस तरह कि करतूतों से बाज आने की चेतावनी दे दी . 
 
इस घटना से एक उदहारण सामने आता है की किस तरह इस देश के दिए हुए कर से अनुदान प्राप्त करके चलने वाले ये ईसाई स्कूल  गाँव के भोले भाले लोगों को ईसाई बनाने में लगे हैं . देश की सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता , क्योंकि सोनिया गाँधी के  चरणों में समर्पित ये यु पी ऐ सरकार पूरी तरह ईसाइयत के प्रचार  का समर्थन करती है . मुस्लमान इनके वोट बैंक है, इसलिए उनका भी पूरा साथ देती है ; लेकिन हिन्दुओं के लिए किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं इस देश की सरकार के पास . 

Wednesday, March 14, 2012

न्याय अन्याय

पिछले दिनों अफगानिस्तान की एक घटना की चर्चा काफी तेजी से हो रही है। गुलनाज नाम की किसी लड़की से उसी के परिवार के किसी सदस्य ने बलात्कार किया। जाहिर है कि पुलिस इस मामले में कदम उठाती। मुकदमे के बाद बलात्कारी को सजा हो गयी। जहां तक यह घटना साधारण दिखती है। ऐसा अनेक मुल्कों में होता रहता है, लेकिन इस ओर अपराधियों को दंड भी मिलता रहता है। लेकिन इस मामले में असली बात बलात्कारी को दंड मिलने के बाद की है। पुलिस ने गुलनाज को भी गिरफ्तार कर लिया और उस पर भी मुकदमा चला। परंतु प्रश्न है कि इस पूरे कांड में गुलनाज का क्या दोष है? वह तो दरअसल पीडिता है जिसके साथ अन्याय किया गया है। लेकिन अफगानिस्तान में इस्लामिक कानून के व्याख्याकारों का कहना है कि प्रश्न उसके दोषी होने या न होने का नहीं है। इस बलात्कार के बाद गुलनाज की हैसियत व्याभिचारिणी की हो गयी है,और इस्लामी समाज इस्लामी मूल्यों की रक्षा के लिए व्याभचारिणी स्त्री को दंडित करना अपना कर्तव्य मानता है। इस्लामी न्याय के अनुसार गुलनाज को सात वर्ष कैद की सजा हुई। इस बलात्कार के कारण वह एक बच्चे की मां भी है। गुलनाज के इस किस्से को लेकर अनेक देशों में आश्चर्य व्यक्त किया गया तब अफगानिस्तान मे राष्ट्रपति हामिद करजई ने विशेष आज्ञा से गुलनाज की सजा माफ कर दी और उसके जेल से बाहर आने की संभावना पर खुशियां मनायी गई। 


बहुत से विद्वानों ने इस्लामी मूल्यों में हो रहे बदलावों पर तालियां बजाकर खुशी का इजहार भी किया। यह भी कहा गया कि इस्लामी मूल्य जड़ नहीं है। उनमे भी काल-क्रमानुसार परिवर्तन होता रहता है। परंतु तालियां बजाने वालों की हवा जल्द ही काफूर हो गयी जब गुलनाज के इस किस्से का अंतिम पटाक्षेप हुआ। गुलनाज की सजा से माफी इस शर्त पर दी गयी है कि जेल से छूटने के बाद उसी पुरुष से शादी करेगी जिसने उसके साथ बलात्कार किया था। इस्लाम के दानिशमंदों का कहना है कि गुलनाज द्वारा बलात्कारी पुरुष से शादी करने पर ही इस्लाम की रक्षा हो सकेगी। गुलनाज ने भी अपनी इस नीयति को स्वीकार कर लिया है। उसका कहना है, इस्लामी कानून के इस निर्णय से उसकी बच्ची को बाप का नाम मिल जाएगा, और उसके भाई भी समाज में इज्जत से रह सकेंगे। अन्यथा समाज में उसके भाईयों को व्याभिचारिणी बहन का भाई कहा जाएगा। 


ध्यान रखना चाहिए यह घटना मध्यकाल की नहीं, बल्कि उस 21वीं शताब्दी की है जिसे ज्ञान की शताब्दी कहा जा रहा है और ऐसा भी हो-हल्ला सुनने में आ रहा है कि समूचा विश्व एक गांव बन गया है। इस ज्ञान की शताब्दी और हो-हल्ले के बीच गुलनाज जैसी अनेकों स्त्रियां इस्लाम की रक्षा के लिए बलात्कारी से शादी करने के लिए मजबूर है। क्या इस बंद कमरे से निकलने का कोई रास्ता है?


 ऐसा ही एक रास्ता अफगानिस्तान में ही तलाशने का प्रयास एक युवक ने किया था। वह इस्लाम छोड़कर इसाई हो गया। तब कुछ लोगों ने कहा यह रास्ता सही नहीं है। यह एक बंद कमरे से दूसरे बंद कमरे में जाने का प्रयोग मात्र ही कहा जा सकता है। लेकिन फिलहाल यह बहस का मुद्दा नहीं है। अफगानिस्तान के उस युवक का यह प्रयोग सही था या गलत इसका निर्णय तो बाद के काल में ही हो सकता था। मुख्य प्रश्न है कि क्या उस युवक की अपनी इच्छा से इस्लाम छोड़ने का अधिकार है या नहीं? इस्लामिक कानून ने इस पर भी अपनी निर्णय सुनाया। यह प्रयोग करने के लिए उस युवक को न्यायालय ने मृत्युदंड दिया और फांसी के फंदे पर लटकने के लिए जेल में डाल दिया गया। चर्च को लगा होगा कि इस युवक का बचना अनिवार्य है, नहीं तो दुनियाभर में उसके मतान्तरण आन्दोलन को धक्का पहुंचेगा। राष्ट्रपति पर दबाव डालकर अमेरिका ने उस युवक को बचा तो लिया लेकिन उसे अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा। परंतु इसके साथ ही अप्रत्यक्ष रुप से चेतावनी भी मिल गई कि इस्लाम छोड़कर जाने का अर्थ है मृत्युदंड। क्योंकि चर्च सभी को तो नहीं बचा सकता । शायद इसलिए गुलनाज ने बलात्कारी से शादी करने का निर्णय लिए होगा। एक ओर मौत और दूसरी ओर बलात्कारी 


 पिछले दिनों ऐसी ही एक घटना कश्मीर में हुयी। कश्मीर में कुछ मुस्लमान इसाई हो गए। उन्होंने इस्लाम छोड़कर इसाई सम्प्रदाय में जाना क्यों बेहतर समझा इसका उत्तर तो वो ही दे सकते हैं। लेकिन इस घटना के बाद जो तहलका मचा वह काबीले गौर है, अल्पसंख्यक आयोग के आलमबरदार तुरंत श्रीनगर पहुंचे और उन्होंने मुसलमानों के अनेक संगठनों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि, इसाई संगठन आगे से ऐसा कुफ्र नहीं करेंगे। इस बार उन्हें क्षमा कर दिया जाए। जिस पादरी ने मुसलमान युवकों को यीशु मसीह का उपदेश देने की हिमाकत की थी उसे जम्मू-कश्मीर सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और मुस्लिम संगठनों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की। हुर्रियत क्रान्फ्रेंस के मीरवाईज उमर फारुख ने सब मुल्ला-मौलवियों को आगाह कर दिया है कि इस्लाम के किले में सेंध लगाने वाले इन दुष्टों को इक्ट्ठे होकर और डटकर मुकाबला करना होगा। संदेश बिलकुल साफ है कि इस्लाम का किला छोड़कर जाने की किसी को इज्जात नहीं दी जा सकती । इस किले में दाखिल होने के सभी दरवाजे खुले है लेकिन इससे जाने के लिए दरवाजे की बात तो दूर एक छेद तक उपलब्ध नहीं है। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इस किले की रक्षा के लिए कश्मीर में वहां की सरकार भी पूरी ताकत से मौलवियों के साथ है। अफगानिस्तान से लेकर कश्मीर तक, कश्मीर से लेकर सउदी अरब तक, सब जगह एक ही हालात हैं। भारत में जब चर्च हिन्दुओं को मतान्तरण करने का प्रयास करता है तो सरकार और तथाकथित मानवाधिकारवादी चर्च के साथ डटकर खड़े हो जाते हैं, और यही चर्च इस्लाम के किले में दाखिल होने की कोशिश करता है तो सरकार और मानवाधिकारवादी इस्लामी संगठनों के आगे क्षमायाचना की मुद्रा में दुम हिलाते हैं। इस प्रश्न का उत्तर अन्तत: भारत की जनता को ही खोजना होगा।

(साभार - प्रवक्ता.कॉम )

Friday, March 9, 2012

राहुल गाँधी बनाम अखिलेश यादव

पिछले दिनों हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनावों के नतीजों ने एक बहुत ही दिलचस्प तुलनात्मक पिटारा खोल दिया . कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रचारक थे उनके स्टार - श्री राहुल गाँधी , जिसे सारा देश जानता है युवा नेता के रूप में . और दूसरी तरफ थे अखिलेश यादव जिन्हें उत्तर प्रदेश की जनता जरूर जानती है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें कोई नहीं जानता था . लेकिन जब चुनाव के नतीजे आये , तो जो हीरो थे वो जीरो बन गए और एक अनजान युवक पूरे देश का हीरो बन गया .इस लेख में मैं तुलना करूंगा दोनों युवा नेताओं की .



राहुल गाँधी का जन्म हुआ १९ जून १९७० को , देश के सबसे बड़े राजनैतिक घराने में - भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के पुत्र , पूर्वतर  प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के पौत्र   और देश के पूर्वतम   प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के वंशज के रूप में . उनकी माँ सोनिया गाँधी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष हैं . उनकी तुलना में अखिलेश यादव एक क्षेत्रीय पार्टी के अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव के पुत्र के रूप में पैदा हुए - १ जुलाई १९७३ के दिन . यानी अखिलेश यादव राजीव गाँधी से करीब ३ साल छोटे हैं . राजीव जैसे  चमकदार परिवार की जगह उनकी प्रष्ठभूमि में है एक जमीन से जुडी हुई राजनैतिक हस्ती - उनके पिता .












राहुल की शिक्षा दीक्षा देश  और विदेश के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों और कोलेजों में हुई .स्कूली शिक्षा शुरू हुई दिल्ली के सेंट कोलंबस में , वहां से चले गए दून स्कूल में , कोलेज की पढाई पहले सेंट स्टीफन  कोलेज और फिर विख्यात हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रजुएसन पूरा किया . कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कोलेज से फिलोसफी में मास्टर की डिग्री प्राप्त की .अखिलेश की स्कूली पढाई हुई धौलपुर मिलिटरी स्कूल से , कोलेज की पढाई मैसूर यूनिवर्सिटी और फिर सिडनी यूनिवर्सिटी से हुई .




राहुल से ३ साल छोटे होने के बावजूद अखिलेश का राजनैतिक कैरिअर शुरू हुआ वर्ष २००० में जब वो पहली बार एक एम् पी के रूप में चुने गए , जबकि राहुल गाँधी २००४ में अपने पिता के  राजनैतिक  क्षेत्र से चुन कर आये एम् पी के रूप में .


 राहुल की व्यक्तिगत जिंदगी एक बहुत बड़ा विषय है खोजी पत्रकारों के लिए . आज ४२ साल की उम्र में भी राहुल ने विवाह नहीं किया . उनकी एक कोलंबियन गर्ल फ्रेंड वेरोनिका के साथ उनकी तस्वीरें मिडिया में आती रही है .  अपने पिता की तरह शायद एक विदेशी महिला से विवाह करना उनके राजनैतिक करिअर के लिए उचित न हो - हो सकता है की इसी बात के चलते राहुल ने विवाह नहीं किया . अखिलेश मात्र विवाहित ही नहीं बल्कि तीन बच्चों के पिता  है . पत्नी डिम्पल तथा उनके तीन बच्चे - अदिति , टीना और अर्जुन उनके पारिवारिक व्यक्ति होने का प्रमाण हैं .





सबसे मूलभूत अंतर है की राहुल एक नेता से ज्यादा एक कलाकार लगते हैं ; सीन के अनुसार कपडे पहनते हैं , दाढ़ी बढ़ाते हैं और डायलोग बोलते हैं . उनका भारत प्रेम एक दिखावा सा लगता है . गाँव में दलित के घर जाकर खाना , आम आदमियों के बीच बैठ कर चर्चा करना - सब कुछ मिडिया में दिखाने के सीन हैं . अखिलेश शुरू से मिडिया से दूर  आम आदमियों के बीच में आम आदमी की तरह रहें हैं . समाजवादी पार्टी के कार्यकर्त्ता उन्हें अपने अध्यक्ष का पुत्र होने के नाते किसी राजकुमार की तरह नहीं देखते , बल्कि अपने ही एक भाई जैसा सन्मान देते रहें हैं . अखिलेश ने भी कभी अपने विशेष होने की कोशिश नहीं जताई  . नेता के अन्दर सबसे महत्वपूर्ण गुण होता  है उसका ग्रास रूट यानी जड़ से जुड़ा होना .



उभरते हुए नेताओं को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है . अखिलेश के गुरु रहे उसके पिता मुलायम सिंह यादव , जिन्होंने उसे उत्तर प्रदेश की राजनैतिक मानसिकता से पूरी तरह परिचित कराया ; राहुल का दुर्भाग्य  रहा के उन्हें दिग्विजय सिंह के रूप में  एक ऐसा व्यक्ति राजनैतिक गुरु के रूप में मिला , जिसकी अपनी छवि पूरे देश में हास्यास्पद है . दिग्विजय के बयान उन्हें हमेशा  चर्चा  में रखते रहें हैं , लेकिन गलत प्रसिद्धि  के साथ . लोगों का कहना है की दिग्गी जब भी मिडिया में मुह खोलते हैं - कांग्रेस के १० - २० हजार वोट ले  डूबते हैं .


कांग्रेस के अन्दर प्रचलित चमचावाद ने राहुल को बिना किसी वजह देश का भावी प्रधानमंत्री घोषित कर रखा है . चमचों को  इस बात की जरा भी फ़िक्र नहीं की पूरा देश राहुल की योग्यता के बारे में क्या सोचता है . सोनिया जी को खुश करने के लिए राहुल और प्रियंका को देश का भविष्य बताने में कांग्रेसी नेता कोई कसर  नहीं छोड़ते . ख़ास बात तो ये है , जो नेता समझदार हैं , वो भी इन बातों का खंडन नहीं करते . ये सोच ही भविष्य में कांग्रेस के पतन का कारण बनेगी .

 इसके विपरीत जब पूरा देश ये अटकले लगा रहा है की यु पी के  मुख्य मंत्री का पद अखिलेश यादव को मिलना चाहिए , तो बिना क्षण भर को भी विचलित हुए अखिलेश मिडिया से कहते हैं कि पूरी पार्टी चाहती है नेताजी       ( उनके पिता मुलायम सिंह यादव ) ही यह पद संभालें . इसका सबसे बड़ा कारण है कि न ही समाजवादी पार्टी झूठे परिवारवाद की पोषक है और न ही मुलायम सिंह ने ऐसी चापलूसी को सराहा है .  राहुल की तुलना में अखिलेश एक बहुत समझदार और धरती से जुड़े हुए व्यक्ति हैं .


और अंतिम तुलना सामने आती है यु पी चुनाव के नतीजों के बाद . मार्च ६ की  सुबह से जो रुझान टी वी पर आने शुरू हुए उससे लगने लगा कि कांग्रेस की  स्थिति बहुत ख़राब और समाजवादी  पार्टी की स्थिति बहुत मजबूत है . शाम तक राहुल का कहीं अता पता नहीं था . यू पी का पूरा  चुनाव राहुल के नेतृत्व में हुआ . चुनाव के दौरान पार्टी की और से जो कहना था सब राहुल ने कहा, बड़े बड़े आश्वाशन दिए ,   लेकिन हार स्वीकार करने के लिए राहुल की जगह कांग्रेस की पूरी फ़ौज मिडिया में आ गयी - ये कहने के लिए नहीं कि हम अपनी हार स्वीकार करते हैं ; बल्कि इस बात का  ढिंढोरा पीटने के लिए इस हार का राहुल गाँधी से कोई लेना देना नहीं ; दोष का ठीकरा   अपने यू पी के संगठन  के सर पर फोड़ने के लिए . लेकिन जब मिडिया का दबाव बराबर बना रहा, तब पहले दिग्गी और फिर राहुल मिडिया के सामने आये और अपनी जिम्मेवारी स्वीकार की . इसके विपरीत अखिलेश ने इस विराट जीत को अपनी जबरदस्त मेहनत के बावजूद अपनी   पार्टी के कार्यकर्ताओं की जीत बताया . मिडिया के बार बार उकसाने पर भी उन्होंने एक बार भी ये स्वीकार नहीं किया वो कहीं भी मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में शामिल हैं .


राहुल और अखिलेश देश के युवा नेतृत्व के दो चेहरे हैं . राहुल देश के शहरों में तो अपने सुदर्शन व्यक्तित्व के कारण  लोकप्रिय हो सकते हैं लेकिन भारत का गाँव उन्हें अपने बीच का आदमी नहीं मानता ; अखिलेश अपने सहज व्यवहार के कारण पूरे देश के नेता बनने का गुण रखते हैं . एक तरफ जहाँ राहुल आगे बढ़ने की जल्दी में ये भूल जाते हैं की उनकी पार्टी के वयोवृद्ध प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक सम्मानित नेता हैं ; वहीँ अखिलेश अपने आप को अपनी पार्टी के सिपाही के रूप में ही देखना पसंद करते हैं .


देश सब कुछ देखता है . कम से कम वर्तमान स्थिति राहुल के भविष्य के लिए बहुत अच्छी नहीं है .यु पी को देश की प्रतिक्रिया का एक सही नमूना मानते हुए , ऐसे में कांग्रेस पार्टी को भी धरातल पर आकर राहुल गाँधी को देश का भावी प्रधानमंत्री बताने की बकवास छोड़ देनी चाहिए .