नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Monday, October 24, 2011

गोर्डन और नोरमा का प्रेम


I _____, take you ______, to be my wedded wife. To have and to hold, from this day forward, for better, for worse, for richer, for poorer, in sickness or in health, to love and to cherish 'till death do us part. And hereto I pledge you my faithfulness.

ऊपर दिया वाक्य एक प्रतिज्ञा है , जो किसी भी ईसाई विवाह में स्त्री और पुरुष एक दूसरे से करते हैं, पति पत्नी घोषित किये जाने से पूर्व . यूँ  तो आज के युग में ऐसी प्रतिज्ञाएँ एक ढकोसला ही लगती हैं , लेकिन जीवन में कभी कभी  ऐसा उदहारण सामने आता है जो इन प्रतिज्ञाओं को चरितार्थ करता  है.

ऐसी ही एक घटना घटी अमेरिका के डेस मोइन्स नाम के शहर में  वहां के आयोवा राज्य में . ९४ वर्षीय गोर्डन यागर और ९० वर्षीया नोरमा यागर के विवाह को ७२ वर्ष बीत चुके थे . ओक्टोबर १२ को ये वृद्ध दम्पति सुबह आठ बजे एक साथ अपनी गाडी में घर से निकले . कुछ ही देर बाद एक चौरस्ते पर उनकी गाडी की भिडंत हो गयी , एक दूसरी कार के साथ . इस दुर्घटना में यागर दम्पति बुरी तरह घायल हो गए . 

घायल पति पत्नी को मार्शल टाऊन हस्पताल के आई सी यू में भर्ती किया गया. उनके बेटे डेनिस के अनुरोध पर दोनों पति पत्नी को एक ही कमरे में पास पास बेड पर लिटाया गया . डेनिस का कहना था की उसके माता पिता का विवाह मई २६, १९३९ को हुआ था , और तब से वो कभी भी एक दूसरे से दूर एक दिन के लिए भी जाना नहीं चाहते थे ; इसलिए जीवन के अंतिम समय में दोनों साथ रहें तो उन्हें ख़ुशी होगी .

और इसके बाद जो  हुआ उसे प्रेम की पराकाष्ठा या उसके कारण होने वाला चमत्कार ही कहा जाएगा .आई सी यू में दोनों पति पत्नी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर लेटे हुए थे; शायद उन्हें भी इस बात का आभास  हो गया था की अंतिम समय नजदीक था .  गोर्डन की मृत्यु दोपहर के तीन बज कर ३८ मिनट पर हो गयी . लेकिन एक बहुत विचित्र बात हो गयी . गोर्डन की साँसे रुक चुकी थी लेकिन हार्ट मोनिटर पर ह्रदय गति जीवित थी . डेनिस ने नर्स से पूछा की ये कैसे संभव है ? नर्स भी एक बार तो सकते में आ गयी , लेकिन फिर उसने कारण ढूंढ निकाला. नर्स ने बताया की हालांकि गोर्डन की साँसे बंद हो चुकी हैं लेकिन चूँकि नोरमा उनका हाथ अपने हाथ में पकड़ी हुई हैं इसलिए नोरमा के ह्रदय की धड़कन गोर्डन के शरीर के माध्यम से गोर्डन के हार्ट मोनिटर तक पहुँच रही हैं . नोरमा ने चार बज कर ४८ मिनट पर अपने प्राण त्याग दिए , और फिर हार्ट मोनिटर पूरी तरह शिथिल हो गया .

यागर दम्पति के बच्चे डेनिस और डोना अपने माता पिता के एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना से गर्वान्वित  है. अंतिम संस्कार के समय तक गोर्डन और नोरमा एक दूसरे का हाथ थामे हुए थे . दोनों के लिए एक ही ताबूत बनवाया गया , जिसमे दोनों के पार्थिव शरीरों को एक साथ दफनाया गया . 

गोर्डन और नोरमा का प्रेम आज के समय में ज्यादातर  पति पत्नी के संबंधों में व्याप्त सामान्य दरारों को पाटने का काम करेगा . धन्य गोर्डन ! धन्य नोरमा ! 


          






Wednesday, October 19, 2011

अन्ना का मौन

अन्ना ने मौन धारण कर लिया . जब मन में बेचैनी ज्यादा बढ़ जाए तो मौन ही सबसे अच्छा उपाय है . टीम अन्ना अपने अभियान की सफलता को व्यक्तिगत सफलता मान बैठी . स्वामी अग्निवेश   तो इस टीम से तभी बाहर हो गए थे , जब उन्होंने अन्ना की पीठ पीछे कपिल सिब्बल से बात कर के टीम अन्ना के खिलाफ उन्हें भड़काने की कोशिश की थी .

किरण बेदी रामलीला मैदान में अपनी बेबाक और नाटकीय टिप्पणियों से विवादों में आ गयी थी . उसके बाद से उन्होंने अपने आप को संयत करने की कोशिश की है . 

हिसार के चुनाव में खुल कर कांग्रेस का विरोध करना भी शायद कोई साझा निर्णय नहीं था . जस्टिस संतोष हेगड़े शुरू से ही एक एक कदम फूंक फूंक कर रख रहें हैं . वो हर परिस्थिति को पहले तौलते हैं , उसके बाद अपना वक्तव्य देते हैं . टीम अन्ना के इस कदम को उन्होंने गलत बताया .

प्रशांत भूषण ने एक बेमतलब का विवाद खड़ा कर दिया . उन्होंने कश्मीर के मुद्दे को जनमत (पेबिसाईट) द्वारा सुलझाने की वकालत कर के कश्मीर के अलगाववादियों को एक नया समर्थन दे दिया . ये कोई टीम अन्ना का निर्णय नहीं था . अन्ना जी को तो खुल कर इसका विरोध करना पड़ा . अन्ना ने कहा की कश्मीर देश का एक अखंड हिस्सा है , और इसकी रक्षा के लिए वो फिर एक बार भारतीय सेना में शामिल होकर लड़ना चाहेंगे .

आज फिर खबर है की टीम अन्ना के दो अन्य साथी गांधीवादी  नेता पी वी राजगोपाल और मैगसेसे अवार्ड के विजेता राजिंदर सिंह भी हिसार के चुनाव के मुद्दे को लेकर टीम अन्ना की कोर टीम से छटक गएँ हैं . 

टीम अन्ना के सबसे बड़े स्तम्भ अरविन्द केजरीवाल पर लखनऊ की एक सभा ने किसी कांग्रेसी ने एक जूता फेंका . उसके  गुस्से का कारण भी टीम अन्ना द्वारा कांग्रेस पार्टी का खुला विरोध है .

ऐसे में अन्ना का मौन पर बैठना ही शायद सही कदम है . लेकिन फिर उनके अभियान का क्या होगा ? सरकार पर दबाव डालने की जगह टीम अन्ना खुद ही दबाव में आती जा रही है . सरकार एक चतुर बिल्ली की तरह टीम अन्ना के इस विघटन को देख रही है . हिसार की सीट पर जमानत जब्त होने के दुःख से ज्यादा कोंग्रेस को ख़ुशी है कि हिसार के चुनाव ने टीम अन्ना के बढ़ते प्रभाव को कमजोर कर दिया .

किसी भी आन्दोलन को लम्बे समय तक जीवित रखने के लिए एक संस्था का स्वरुप होना बहुत जरूरी है . हर संस्था में होते हैं - अध्यक्ष , उपाध्यक्ष , कोषाध्यक्ष , सचिव , प्रवक्ता , पी आर ओ , कार्यकारी सदस्य , साधारण सदस्य आदि . ऐसे स्वरुप में हर व्यक्ति का चुनाव उसकी योग्यता के आधार पर होता है . हर नीति हर फैसला सबकी बैठक में लिया जाता है . हर बड़ा फैसला  साधारण सदयों तक को विश्वास में लेकर किया जाता है . समूह कि सदस्य संख्या उस समूह कि शक्ति को बताती है .

अन्ना का बहुत बड़ा प्रशंसक होने के नाते उनसे मैं ये प्रार्थना करूंगा , कि वो अपने मौन काल में , सारी परिस्थिति की समीक्षा करें और अपने समूह को एकजुट करें . 

Thursday, October 13, 2011

जगजीत सिंह के अंतिम दर्शन

 जुलाई २७, २०११ ! मुझे आमंत्रित किया था कवि नारायण जी अगरवाल नें अपने लिखे हुए भजनों की सी डी के विमोचन के अवसर पर . मेरे लिए ये निमंत्रण और भी अधिक महत्व पूर्ण बन गया , जब मैंने देखा की भजन श्री जगजीत सिंह जी ने गाये थे .

इस्कोन के हाल में , जब विमोचन का कार्यक्रम शुरू हुआ तो देखा की कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि थे  प्रसिद्द  संगीतकार खय्याम साहब .  स्टेज पर बैठे थे खैय्याम , जगजीत सिंह और नारायण अगरवाल . जगजीत सिंह ने माइक अपने हाथ में लिया , और घोषणा की वो किसी और को भी मंच पर बुलाना चाहते हैं . किसे बुलाना है उसका परिचय देने के लिए उन्होंने एक गीत की दो पंक्तियाँ गा कर सुनाई - " तुम अपना रंजो ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो .."

इसके बाद जगजीत ने कहा - मैं बुलाना चाहता हूँ , खय्याम साहब की हमसफ़र और मेरी हमनाम जगजीत कौर को . जगजीत कौर जी शरमाते हुए मंच पर आ गयी .

सचमुच जगजीत सिंह का अपना ही अंदाज था . उस दृश्य का एक थोडा अस्पष्ट विडिओ मैंने अपने ब्लैक- बेरी पर लिया था , वोमैन यहाँ अपलोड कर रहा हूँ , मेरे सभी पढने वालों के लिए . 

Monday, October 10, 2011

ख़त जगजीत सिंह के नाम

मेरे प्यारे दोस्त जगजीत ,

आज पहली बार मैं तुम्हे ये ख़त लिख रहन हूँ , वो भी तब जब की तुम अपनी सबसे लम्बी यात्रा पर निकल गए हो . तुम्हे दोस्त तो कह रहा हूँ , लेकिन दरअसल मेरी दोस्ती हमेशा रही तुम्हारी उस आवाज से जो हमेशा मेरे कानों से होकर मेरी आत्मा तक पहुँचती थी . आज इस ख़त में सिर्फ तुम्हारे खतों की बात - 

याद है तुम्हे तुम्हारा वो गीत , जिसमे तुमने लिखा था प्यार का पहला ख़त . ऐसे ख़त को लिखने में वक़्त तो लगता है , लेकिन ऐसे ख़त एक बार लिखे  जाते हैं तो उसे सारी दुनिया पढ़ती रहती है हमेशा . 

Pyar ka pahla khat likhne mein 

कई बार कोई ख़त लिखा भी जाता है और फिर उसे फाड़ के पुर्जा पुर्जा कर के उड़ा दिया जाता है . इसी लिए तुमने गाया था न - वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था , हवाओं का रुख दिखा रहा था -

Wo khat ke purje uda raha था

कितना दर्द था तुम्हारी आवाज में , जब तुम किसी के खुशबू में बसे खतों को फाड़ नहीं पा रहे थे . इस गीत की एक एक पंक्ति बयान करती है उस कसक को -

Tere khusbu me base khat main jalata kaise

और आज जब मैंने सोचा की तुम्हे ये ख़त लिखूं तो तुम न जाने किस जहाँ में खो गए . ऐसी जगह चले गए जहाँ से न कोई चिट्ठी आती है और न ही कोई सन्देश -

Chitthi na koi सन्देश

मेरे सुरीले दोस्त ! तुमने ही कहा था न की हाथ अगर छूट भी जाए तो रिश्ते नहीं छूटा करते . सचमुच कभी नहीं छूटेंगे ये रिश्ते जो तुम्हारी आवाज ने बनाये हैं करोड़ों लोगों से . श्रद्धांजलि देता हूँ तुम्हे तुम्हारी इस ग़जल से -
Haath Choote bhi to rishte nahin choota karte

भारत के संगीत के इतिहास में तुम हमेशा अद्वितीय रहोगे . ग़जल को आम   आदमी  के दिल  तक पह्नुचाने   वाली  तुम्हारी आवाज हमेशा जीवित  रहेगी  , मेरे मित्र  ! विदा  !