नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Wednesday, August 29, 2012

सरकारी कोयले का रंग

मुद्दा ये है की देश के लेखा जोखा विभाग (सी ऐ जी ) ने सर्कार को लताड़ लगायी , की आपकी सर्कार लगातार 2004 से लेकर अब तक शासन  में है , और इस दौरान आपने देश की कोयला संपदा को मन मर्जी से बाँट दिया ; उनके अनुसार अगर ये खजाना बाजार की कीमतों के आधार पर बोली लगवा कर बेचा जाता तो जो पैसा सर्कार को मिलता , वो अब मिलने वाली कीमत से रुपैये 1 लाख 86 हजार करोड़ अधिक होता . यानि की आरोप ये बना की आपने सारा माल मिटटी के दाम में बेच दिया .जब इस रिपोर्ट पर 26 मई 2012  को  लोकसभा में बहस शुरू हुई तो एक तूफ़ान उठ खड़ा हुआ . तूफ़ान का कारण  था की कोयला विभाग सीधा सीधा प्रधानमंत्री के अधिकार में था .प्रधानमंत्री ने 29 मई को यहाँ तक कह दिया की अगर इस मामले में उनकी कोई गलती पायी गयी तो वो राजनैतिक जीवन से सन्यास ले लेंगे .विपक्ष ने जोरदार भाषा में प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग कर दी .

क्या हुआ क्या नहीं - ये मुद्दा निरंतर मिडिया में आ रहा है . मैं यहाँ दो मुद्दों की चर्चा करना चाहता हूँ . पहला मुद्दा सरकारी गणित का . वित्त मंत्री चिदंबरम ने एक प्रेस कोंफरेंस में कहा की नुक्सान कहाँ हुआ ,क्योंकि सारा कोयला तो अभी तक धरती माँ  की गोद में दबा पड़ा है . इस बात का क्या अर्थ हुआ ? भाई , आपने एक कोयले की खान को एक प्राइवेट पार्टी को बेच दिया , कीमत लेकर - फिर आपके पास क्या है , जिसके आधार पर आप कहते हैं की नुक्सान कहाँ हुआ है ? विचित्र गणित है सर्कार का . 

इस गणित की विचित्रता बढ़ाते हैं कपिल सिब्बल साहब . टाइम्स नाऊ से एक इंटर व्यू में उनका कहना था  की ये कोयला हमने कोई बेचने के लिए थोड़ी दिया है ; ये कोयला तो इस्पात और बिजली बनाने के लिए काम आएगा . वाह   सिब्बल साहब ! अगर किसी कंपनी को उसका रा मटिरिअल अगर सस्ते दाम पर दे दिया जाए तो उसमे उस कम्पनी का नफा और  क्या सर्कार का घाटा  नहीं होता .

बहरहाल , सर्कार ने जो नया पैंतरा खेला है उसके अनुसार उन्होंने कोयले की खान प्राप्त करने वाली 58 कंपनियों को नोटिस जारी किया है , की आपने अब तक कोयले का उत्पादन क्यों नहीं शुरू किया ; अगर आपके पास कोई संतोषजनक कारण  नहीं हुआ तो हम आपको किया हुआ आवंटन ही रद्द कर देंगे . यानी जब तक सब कुछ दबा ओढा  पड़ा रहे , सर्कार अपना फायदा कर के बैठी रही ; और जब फ़ाइल खुल गयी तो सारी  मुसीबत डाल  दो उन उद्योगपतियों पर जिन्होंने देश के औद्योगीकरण के लिए आपसे कोयला लिया . 

अगर आपकी नीति सही नहीं थी तो क्या ये दोष उन कम्पनियों का है , जिन्होंने आपसे कोयला माँगा ? क्या उन्होंने आपसे कोई जोर जबरदस्ती कर के कोयला माँगा ? और अगर उनकी तरफ से कोई कमी हुई भी है तो क्या आपकी स्क्रीनिंग कमिटी सो रही थी ?

सर्कार का ये तरीका बिलकुल गलत है ; सीधा सीधा देश के उद्योग पर प्रहार है . अगर सर्कार  ऐसे रंग बदलती रही तो विदेश में इस देश की क्या साख रह जायेगी ? बाहर  से पूँजी निवेश आना तो छोडिये , जो लगा हुआ है वो भी जाने लगेगा . सर्कार बौखलाई हुई है , और इस बौखलाहट में सारे निर्णय गलत ले रही है . इस सर्कार को भगवन बचा पायेगा या नहीं ये तो भविष्य बता पायेगा ; लेकिन अगर इस तरह  से 2 जी और कोयले के अपने आवंटन रद्द कर के सर्कार उद्योग का गला घोटेगी  तो फिर अगले चुनाव में उसे कोई नहीं बचा पायेगा .





Wednesday, August 22, 2012

क्या कहना है , क्या सुनना है

आखिर कांग्रेस ने चैन की सांस ली . अन्ना एंड कंपनी हार मान कर चले गए . जाते जाते ये धमकी दे गए की अब अगला मुकाबला चुनाव के मैदान में होगा . फिर आये बाबा रामदेव . उन्होंने अपनी सभा पहले कांग्रेस को निमंत्रित कर के शुरू की . बाबा भी जानते थे की कांग्रेस जैसी अहंकारी पार्टी के कानों पर जूं  भी नहीं रेंगेगी . उनका अगला दांव था , अन्य सभी राजनैतिक दलों को अपने मंच पर दावत देना . और लोग आये . खूब जम कर आये और जम कर बोले . कांग्रेस को कहने को एक बात मिल गयी की बाबा तो बी जे  पी के ही आदमी हैं . बाबा भी जोरदार गर्जना के साथ हरिद्वार चले गए .

कांग्रेस ने सुख की सांस ली . वो ये समझती है कि  खतरा टल  गया. उनका ये सोचना उस कबूतर की सोच की तरह है जो आँखें बंद कर के कल्पना करे कि  बिल्ली उसके सामने से हट गयी . कांग्रेस का खतरा अन्ना या बाबा नहीं , बल्कि स्वयं कांग्रेस है . एक के बाद एक घोटाला ! कोमनवेल्थ  ! टू  जी ! एअरपोर्ट की जमीन ! और अब कोयला कांड ! सारे एक से बढ़ कर एक ! लाख करोड़ अब भ्रष्टाचार की एक छोटी इकाई बन चुकी है . बतीस रुपैये की कमाई  को गरीबी रेखा की उपरी सीमा  बताने वाले देश में एक एक मंत्री लाख करोड़ की लूट मचा रहा है . और अब तो पानी सर से ऊपर जा चुका  है . पहले के सारे घोटाले तो अलग अलग मंत्रियों की देख रेख में संपन्न हुए थे , और विपक्ष तक भी प्रधानमंत्री को एक विफल लेकिन इमानदार प्रधानमंत्री मानता था . लेकिन इस बार तो सारे छलावे  समाप्त हो चुके हैं  . कोयला विभाग सीधा सीधा मनमोहन सिंह जी के अंतर्गत रहा है . कोयला खानों के सारे आबन्टन  उनके ही हस्ताक्षर से हुए हैं . ऐसे में कोई क्या कहे और क्या सुने . कपिल सिब्बल पालतू मंत्री की तरह कह रहें हैं की हमारे प्रधानमंत्रीजी कुछ भी गलत नहीं कर सकते हैं ; जिसका सीधा सीधा मतलब ये निकलता है की बाकी सारे मंत्री तो कुछ भी गड़बड़ कर सकते हैं लेकिन प्रधानमंत्री जी नहीं .

अन्ना और बाबा अपना अपना आन्दोलन कर के चले  गए - ऐसा कांग्रेस समझती है . आन्दोलन कोई आयोजन नहीं है ,जो 3-4 दिनों के लिए रामलीला मैदान या जंतर मंतर पर होता है . आन्दोलन एक वृक्षारोपण है , जो एक बीज को मिटटी में डालने से शुरू होता है . आन्दोलन उसी ख़ामोशी से आगे बढ़ता है जिस ख़ामोशी से मिटटी के नीचे दबा हुआ बीज अंकुरित होता है  और पनपता है . वो नजर तब आता है जब वो एक ऐसे विशाल पेड़ का रूप धारण कर लेता है , जो कठोर से कठोर तूफानों में भी सर उठाये खड़ा होता है . भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना और बाबा का आन्दोलन भी ऐसे ही एक बीज के रूप में प्रत्येक भारतीय के ह्रदय में पनप रहा है . और इसका विशाल रूप दिखाई देगा जब अगले चुनाव में पूरे देश का जनादेश इस भ्रष्ट सर्कार के खिलाफ दिखाई देगा .

ऐसे में याद आती एक गीत की पंक्तियाँ - ' कुछ न कहो , कुछ भी न कहो ; क्या कहना है , क्या सुनना है ; हमको पता है , तुमको पता है ,समय का ये पल थम सा गया है !'

Friday, August 3, 2012

कुछ तो लोग कहेंगे !

एक कहानी याद आती है . एक बाप और बेटा कहीं यात्रा पर पैदल जा रहे थे . साथ में उनका एक गधा चल रहा था . रस्ते में किसी ने व्यंग किया - देखो , कैसे बेवकूफ है ; दोनों पैदल चले जा रहे हैं , गधे पर नहीं बैठते . दोनों ने सोचा चलो गधे पर बैठ जाते हैं . फिर किसी ने फिकरा कस  दिया  - दो दो मुस्टंडे एक बेचारे निरीह प्राणी पर  लाद   कर जा रहे हैं . बाप ने कहा - बेटा, मैं उतर जाता हूँ , तो बैठा रह . फिर किसी ने फिकरा कसा - क्या जमाना है , जवान बेटा तो गधे पर मजे से बैठा है , बूढा बाप पैदल चल रहा है . बेटा बोला - बापू, लोग ठीक कह रहे हैं ; ये अच्छा नहीं लग रहा . आप बुजुर्ग हैं , आप गधे पर बैठो , मैं नीचे उतरता हूँ . फिर एक व्यंग आ गया - देखो बाप है की कसाई.  इतनी गर्मी में बेटा पैदल चल रहा है , लेकिन जालिम बाप मजे से सवारी कर रहा है . यानि दुनिया तो कुछ न कुछ कहेगी ही .

 
यही हुआ टीम अन्ना के साथ . जब टीम अहिंसक तरीके से अनशन के द्वारा लोकसभा में बैठे प्रतिनिधियों से गुहार कर रहे थे लोकपाल की ; तब लोकसभा में नेताओं के वक्तव्य आते थे ; कोई भी कानून सड़कों पर नहीं बनते . कानून बनते हैं लोकसभा में जहाँ चुने हुए जन प्रतिनिधि देश के हित के निर्णय लेते हैं . कई महानुभावों ने तो तो अन्ना को चुनौती  दे दी , की हिम्मत हो तो हमारी तरह चुनाव लड़ के दिखाओ ; और फिर बनाओ जो कानून तुम्हे बनाना है . एक साल के संघर्ष के बाद टीम अन्ना ने कल सबको चौंका दिया - ये कह के अगर यही रास्ता बचा है तो हम भी तैयार है चुनाव लड़ने के लिए .
 
अब वही सारे  महापुरुष कह रहे हैं की इनका असली अजेंडा तो यही था , सत्ता में आने का ! वाह ! चित्त भी मेरी और पट भी मेरी ! ये बहुत सही विचार है टीम अन्ना  का . एक वर्ष के संघर्ष में उन्होंने अपने लिए ऐसी छवि बना ली है की - किसी भी चिंतनशील व्यक्ति के लिए अन्ना की पार्टी ही पहला विकल्प होगी .
 
हार में से ही जीत का रास्ता निकलता है . इस यु पी ऐ सर्कार ने टीम अन्ना का तिरस्कार  और बहिष्कार करने में कोई कमी नहीं रखी .बेशर्मी से इन बहादुर युवकों के अनशन को भी अनदेखा करते रहे . और इसी परिस्थिति ने जन्म दिया टीम अन्ना के इस नए विचार को .
 
मेरी पूरी सहमति और शुभकामना - इस बहादुर सेनापति की बहादुर टीम को !

Thursday, August 2, 2012

रक्षा बंधन



रक्षा बंधन - एक ऐसा दिन जो याद दिलाता है हर भाई को अपनी बहन की रक्षा करने के  कर्तव्य का ! एक ऐसा दिन जब एक बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँध कर जताती है अपना विशवास अपने भाई की शक्ति में ! क्या भाई सिर्फ वो होता है जो उसका अपना सहोदर हो ; या फिर वो जो उसकी रक्षा करे भाई की तरह !

भ्रष्टाचार का प्रेत पूरे देश को निगल रहा है .  पहले इसके निवाले होते थे छोटे छोटे , लेकिन अब ये अजगर बहुत जल्दी  में है सब कुछ खा जाने के लिए  . सत्य वो नहीं है जो मिडिया हमें दिखने की कोशिश कर रही है  ; सत्य वो भी नहीं जो बहुत से तथाकथित बुद्धिजीवी टेलीविजन के वातानुकूलित स्टूडियो में बैठ कर बताते हैं ; सर्कार जो बताती है उसमे सत्य का कोई अंश तक नहीं है . सत्य ये है की चार देशभक्त - अन्ना , अरविन्द, गोपाल और मनीष सिसोदिया अपने प्राणों की बाजी लगाकर एक क्रांति लाने का प्रयास कर रहें हैं , इस देश में . मिडिया को जब कोई दूसरा कारण  नहीं मिलता , उन लोगों के खिलाफ कुप्रचार का , तो ये इल्जाम लगाते  हैं की उनका कोई छिपा हुआ राजनैतिक अजेंडा है . काश कोई राजनैतिक अजेंडा ही होता , कम से कम इस देश के भ्रष्ट राज नेताओं के सामने कोई देशभक्त तो खड़ा होता चुनौती  लेकर .

 आज रक्षा बंधन के दिन मैं आह्वान करता हूँ देश की तमाम बहनों का कि  आपके चार भाई दिल्ली के जंतर मंतर पर बैठे हैं , अनशन पर - सिर्फ आपकी और हम सब की रक्षा के लिए . जाइए और उन सब की कलाइयों   पर बांधिए राखियाँ अपनी भावना को साकार रूप देने के लिए . आपकी राखियों से जहाँ उन सेनानियों को बल मिलेगा , वहीँ देश के तमाम भाइयों को मिलेगी  प्रेरणा इस महायज्ञ में आहुति देने की ! और डरेगी ये सरकार  जो भ्रष्ट नेताओं का बचाव करने में लगी है .