नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, October 6, 2022

बहुत से मित्रों के फ़ोन आते रहते हैं ; उन्हें शिकायत है की आजकल ब्लॉग पर कुछ लिख क्यों नहीं रहे ? शिकायत दुरुस्त है। जब मैं अपने मन में कारण ढूंढता हूँ , तो मुझे बस एक ही कारण नजर आता है। वो कारण  है देश का माहौल।

नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्ति हमें प्रधानमंत्री के रूप में मिला , देश की अपेक्षाएं बढ़ी। उन अपेक्षाओं को पूरा करने में मोदी ने अपना दिन रात एक कर दिया। दुनिया उनको एक विशेष सन्मान के साथ देख रही है। जितना काम उन्होंने अपने इस डेढ़ साल के कार्यकाल में किया है , मुझे नहीं लगता पिछली किसी प्रधानमंत्री ने इतना काम किया हो। एक ऐसा व्यक्ति जिसके भाषणों में हमेशा देश प्रेम की खुशबू आती है ; जो व्यक्ति हमेशा देश के १२२ करोड़ भारतीयों के लिए काम करता है , और जो व्यक्ति अमन के लिए बड़े से बड़ा जोखिम उठा कर एक फोन पर दिए गए निमंत्रण को स्वीकार कर दुश्मन देश पाकिस्तान चला जाता है - क्या बराबरी करेगा उसका कोई दूसरा प्रधामंत्री !

लेकिन वाह  रे भारत ! जिस व्यक्ति को देश ने पूर्ण बहुमत से अपना नेता चुना उन्हें ये स्वार्थ का चश्मा चढ़ाये हुए विरोधी दल चौबीस घंटे बदनाम करने पर तुले हैं। बेमतलब की बातों पर उन्हें प्रधानमंत्री का बयान  चाहिए।  राज्य स्तर पर हुए अपराधों पर उन्हें प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा चाहिए। इनका बस चलता तो वो मोदी की पाकिस्तानी दौरे को राष्ट्र विरोधी कार्यवाही घोषित कर देते ; लेकिन जिस ढंग से विश्व ने इस साहसिक कार्य को सराहा उसे देख कर दबी जुबान में बोलती रह गयी कांग्रेस।

देश की सबसे निकम्मी दिल्ली सरकार बात बात पर केंद्र सरकार को उल्टा सीधा कहती रहती है।  अपनी नाकामियों को छुपाने का के लिए केंद्र सरकार की आलोचना को अपना हथियार बनाया है आप ने।

बिहार के चुनाव को मापदंड बना लिया मोदी की सफलता और विफलता का। बिहार की हार मोदी की विफलता नहीं , बल्कि बिहार के मतदातों की विफलता है। उन्हें कोईबुराई नजर नहीं आती लालू जैसे अपराधियों  को अपना  सर्वेसर्वा बनाने में। उन्हें जरा भी विचित्र नहीं लगता जब लालूजी के दो अनुभवहीन बेटों को सरकार में उच्च पदों पर थोप दिया जाता है। नितीश की बोलती बंद है , क्योंकि अपने पुराने बड़बोलेपन के कारण उन्हें मोदी की जगह लालू को अपना भागिदार बनाना पड़ा।

ममता की तृणमूल कांग्रेस जूझ रही है अपने ही मंत्रियों के कारनामों से। दीदी ने अजीब लोगों का समूह पाल रखा है। एनसीपी किंकर्तव्यविमूढ़ है ; कहीं न कहीं उनके अंदर आशाएं है की शायद उन्हें बीजेपी अपने साथ ले ले।

देश में किसी मुस्लमान के साथ कुछ बुरा हो जाए तो सारे सेक्युलर वादी नाचने लगते हैं , और बिना किसी कारन के मोदी जी जिम्मेवार हो जाते हैं ; लेकिन हजारों हिन्दू लड़कियों का बलात्कार और हत्या हो जाए उनके लिए किसी का मुंह नहीं खुलता। एक दलित छात्र ने आत्महत्या कर ली तो सारी केंद्र सरकार जिम्मेवार हो गयी , लेकिन आई एस आई से जुड़े दर्जनों आतंकवादी पकडे गए तो सबकी बोलती बंद। कहाँ  चला जाता है ये सेक्युलर वाद का नाटक।

मिडिया भी चिताओं की अग्नि पर पूरियां सेक रही है। हत्या मार काट के वीडियो दिन भर में सैंकड़ों बार दिखाए जाते हैं ; फिर एक कहानी शुरू कर दी जाती है

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