नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, August 31, 2010

फ्रिज की सफाई

मेम साब रामू से फ्रिज की सफाई करवा रही थी . रामू एक बाद एक भगोने फ्रिज से निकल कर रख रहा था . कुछ ऐसा था वार्तालाप -


अरे रामू, ये सुबह वाली सब्जी ठीक से ढक्कन लगा कर रख देना, शाम को काम आ जाएगी .

कल रात की काली दाल भी बच्चे खा लेंगे , ठीक से रख देना .

ये क्या है ?

मेम साब परसों वाली गोभी की सब्जी , आपने रखवाई थी .

ये तुम ले लेना , अब कौन खायेगा .

मेम साब ये पिछले हफ्ते का रायता भी पड़ा है, फेंक दूं क्या ?

खाने की चीजें क्या फेंकने के लिए होती है , ये महरी को दे देना .

मेम साब , और ये मिठाइयाँ ?

मिठाई का क्या करूं. इनको तो डायबिटीज है. पप्पू और मुन्नी को देनी नहीं है - उनका वजन ऐसे ही बढ़ता जा रहा है. एक काम करो, बादाम की बर्फी अभी रहने दो, बंगाली मिठाई तीन चार दिनों की हो गयी है , ये तुम लोग खा लेना .

और इस तरह फ्रिज काम आता है ताजा को बासी बना कर नौकर चाकरों में बाँटने के .

4 comments:

  1. आर्य जी , समाज के कटु सत्य को ही उजागर किया ही आपने - इन ८ पंक्तियों में . ...

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  2. बहुत सटीक व्यंग्य ...

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  3. व्यंगात्मक लहजे में ओछी मानसिकता को उजागर किया है आपने..... बेहतरीन!

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  4. हा हा ....व्यंग बड़ा सार्थक है :)
    आपको सपरिवार श्री कृष्णा जन्माष्टमी की शुभकामना !
    बड़ा नटखट है रे
    जय श्री कृष्णा

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