मेम साब रामू से फ्रिज की सफाई करवा रही थी . रामू एक बाद एक भगोने फ्रिज से निकल कर रख रहा था . कुछ ऐसा था वार्तालाप -
अरे रामू, ये सुबह वाली सब्जी ठीक से ढक्कन लगा कर रख देना, शाम को काम आ जाएगी .
कल रात की काली दाल भी बच्चे खा लेंगे , ठीक से रख देना .
ये क्या है ?
मेम साब परसों वाली गोभी की सब्जी , आपने रखवाई थी .
ये तुम ले लेना , अब कौन खायेगा .
मेम साब ये पिछले हफ्ते का रायता भी पड़ा है, फेंक दूं क्या ?
खाने की चीजें क्या फेंकने के लिए होती है , ये महरी को दे देना .
मेम साब , और ये मिठाइयाँ ?
मिठाई का क्या करूं. इनको तो डायबिटीज है. पप्पू और मुन्नी को देनी नहीं है - उनका वजन ऐसे ही बढ़ता जा रहा है. एक काम करो, बादाम की बर्फी अभी रहने दो, बंगाली मिठाई तीन चार दिनों की हो गयी है , ये तुम लोग खा लेना .
और इस तरह फ्रिज काम आता है ताजा को बासी बना कर नौकर चाकरों में बाँटने के .
आर्य जी , समाज के कटु सत्य को ही उजागर किया ही आपने - इन ८ पंक्तियों में . ...
ReplyDeleteबहुत सटीक व्यंग्य ...
ReplyDeleteव्यंगात्मक लहजे में ओछी मानसिकता को उजागर किया है आपने..... बेहतरीन!
ReplyDeleteहा हा ....व्यंग बड़ा सार्थक है :)
ReplyDeleteआपको सपरिवार श्री कृष्णा जन्माष्टमी की शुभकामना !
बड़ा नटखट है रे
जय श्री कृष्णा