नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, September 2, 2010

शाम ढले - हम कितने एकाकी

कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी . बाहर सब कुछ बर्फ में ढका था. तापमान माइनस पांच डिग्री सेल्सिअस था. बफलो वैसे भी कुछ ज्यादा ठंडा रहता है - शायद निआग्रा फाल की वजह से . होटल में बहुत ज्यादा मेहमान नहीं थे . वैसे भी ये सैलानियो के आने का सीजन नहीं था . होटल के पीछे एक नदी थी जो पूरी तरह जम  चुकी थी।

सत्तर वर्षीय अमृता अलाव के और नजदीक होकर बैठ गयी . धर्मवीर भारती का उपन्यास पढने की कोशिश कर रही थी. कोशिश इस लिए की खिड़की के बाहर तो दिन में भी अँधेरा था . लॉबी की रौशनी मध्यम थी. कुछ न करने से ये कोशिश करना ही ठीक लग रहा था . दरअसल इस सीजन में ये भी पता नहीं चलता कि कब शाम हुई , कब रात और फिर कब दिन ! अमृता सोच रही थी - सैलानियों के लिए ये सीजन शायद सही नहीं था ,  लेकिन उसके जैसे  अन्तर्मुखी एकाकी जीवन चाहने वाले लोगों के लिए यह जगह और ये ऋतु - दोनों ही बहुत अच्छी थी।

तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति थोडा लंगड़ाते लंगड़ाते अलाव के पास आये . पूछा - इफ यु डोंट माइंड , कैन आई सिट हियर ?

अमृता ने उनकी और देखा . लम्बा कद , सफ़ेद भरपूर दाढ़ी , आँखों पर पावर वाला चश्मा, उम्र पचहत्तर से कम नहीं होगी . अमृता ने जवाब दिया - "ऑफ़ कोर्स , इट इज सो कोल्ड टुडे ."
बुजुर्ग ने अपना ओवर कोट और हैट उतार कर पास ही लगे एक स्टैंड पर टांग दिए . और एक कुर्सी अलाव के पास खींच कर बैठ गया .

अमृता ने बुजुर्ग के चेहरे की और देखा और कहा - आर यु एन इंडियन ?

बुजुर्ग ने कहा - जी हाँ , मैं तो समझ ही गया था , आप के हाथ में ये किताब देख कर . धर्मवीर भारतीजी का कौन सा उपन्यास है ?

अमृता ने कहा - गुनाहों का देवता। 

बुजुर्ग ने कहा - क्या मैं देख सकता हूँ ?

" हाँ हाँ क्यों नहीं " - यह कह कर अमृता ने पुस्तक उनकी और बढ़ा दी. बुजुर्ग ने पलट के कुछ पन्ने पढ़े . फिर लौट के दूसरे पन्ने पर आ गए . कहा - "चंदर और सुधा की  ये कहानी जितनी बार भी पढ़ो कितनी अपनी सी लगती है। "

" तो आपका नाम है अमृता गुजराल . कहाँ की हैं आप ?"

" मैं हूँ , रोहतक की ." अमृता ने कहा . फिर  पूछा - "आप कहाँ से हैं ?"

" जी मैं ............अब यहीं का समझिये. इसी होटल का मनेजर हूँ. "

" बहुत सुन्दर है आपका ये होटल . कब से हैं यहाँ ?"

" पचास साल से ज्यादा हो गए ." - बुजुर्ग ने उत्तर दिया .

" फिर तो आप पूरे अमरीकन ही हो चुके ?................. क्या आपका परिवार भी यहाँ रहता है ?" अमृता ने पूछा.

" अब कोई नहीं है . पिताजी का देहांत मेरे बचपन में हो चुका था. माँ  साथ रहती थी लेकिन बारह साल पहले वो भी चल बसी ." बुजुर्ग ने बताया . फिर पूछा - " और आप का परिवार ?"

" मैंने शादी नहीं की . लिखने पढने का शौक है , उसी में जीवन बीत रहा है ." अमृता ने बताया .

बुजुर्ग बोले- "अजीब बात है , भारत में लड़कियां इस तरह कुंवारी नहीं रहती . फिर आपने ..................., सॉरी , पर्सनल बातें हैं , चाहें तो न बताएं ."

अमृता ने उत्तर दिया - " जीवन के इस पड़ाव पर कुछ भी ऐसा नहीं होता जो बताया न जा सके, और एक लेखिका के पास अपने जीवन के अनुभवों के अलावा कुछ नहीं होता , जिसे वो लोगों से शेयर कर सके. बस मैंने शादी नहीं की ."

" क्या कोई लड़का पसंद नहीं आया ? ....लेकिन ऐसा नहीं हो सकता - क्योंकि आपकी किताब में ही लिखा है - प्रिय अमृता को मधुर यादों के साथ - पंचम रल्हन . क्या हुआ रल्हन साहब का ?" बुजुर्ग ने जरा मजा लेके पूछा .

अमृता शरमा गयी और बोली- "अरे ऐसी कोई बात नहीं थी . पंचम को मेरे माता पिता ने पसंद किया था मेरे लिए . हमारी मुलाकात हुई . बल्कि एक सप्ताह वो रोहतक में रहे . मुझे पसंद आने लगे थे .ये किताब भी उन्होंने उस छोटी सी कोर्टशिप के दौरान मुझे भेंट की. "

बुजुर्ग ने कहा - " वाह, देखो उगलवा लिया न आपसे आपके दिल का राज . लेकिन जब वो मिस्टर पंचम आपको पसंद आ गए थे तो आपने उनसे शादी क्यों नहीं की ? ............देखिये अगर आप न चाहें तो इस बात का उत्तर न दें. "

अमृता ने कहा - " बहुत बड़ी लव स्टोरी की उम्मीद न रखें . हुआ ये कि पंचम कहीं विदेश में नौकरी करते थे . हमसे कह कर गए कि नौकरी से एक महीने की  छुट्टी लेकर आयेंगे शादी करने , और फिर हमें भी ले जायेंगे . लेकिन हमारी लव स्टोरी पर यहीं फुल स्टॉप लग गया . उस भले आदमी ने जाकर न कोई ख़त लिखा न लौट कर आया . कुछ महीनों बाद मेरे मां बाप ने कहा कि उसकी तरफ से ना आ गयी थी . हाँ ये मलाल जरूर रहा कि अगर उसे ना ही कहनी थी तो मुझे ही कह जाता . झूठे वादों की क्या जरूरत थी ."

" ये तो बुरा हुआ आपके साथ !  ऐसा नहीं करना चाहिए था उस व्यक्ति को आपके साथ ." बुजुर्ग व्यक्ति ने अफ़सोस जाहिर किया .

अमृता को इस बातचीत में मजा आने लगा था . उसने पूछ ही लिया - "मेरी कहानी तो आपने पूरी निकाल ली , कुछ अपनी बताइए . आपने क्यों नहीं की शादी ? "

बुजुर्ग ने हलकी सी मुस्कान के साथ कहा - " मेरी कहानी तो तुम से भी ज्यादा बकवास है . अमरीका में रहने वाले भारतीयों को शादी करने के लिए भारत जाना पड़ता है . कुछ दिनों के सफ़र में जिनसे मिल पाते हैं उनमे से एक चुननी होती है................"

"और आप को अपनी पसंद की कोई मिली नहीं ? क्यों यही न ?" अमृता ने चुटकी ली .

हँसते हुए उसने उत्तर दिया - " नहीं इतनी ज्यादा बुरी भी नहीं अपनी कहानी . एक पसंद आ गयी . उस समय मैंने सोचा कि मैं भी उसे पसंद आ गया . मेरी मां ने दो महीने बाद की तारीख भी तय कर ली थी . लेकिन इस बीच एक दुर्घटना हो गयी. एक रोड एक्सिडेंट में मेरा बायाँ पैर इतना जख्मी हो गया कि घुटने से नीचे का हिस्सा काटना पड़ा . चोंकिये मत मेरा बायाँ पैर लकड़ी का है . "

अमृता ने अफ़सोस के साथ पूछा - " ओह, ये तो बहुत बुरा हुआ आपके साथ. क्या उस लड़की ने इंकार कर दिया ? "

" पता नहीं . लेकिन मैंने सारी बात एक ख़त में लिख कर उस लड़की के माता पिता को बता दी थी .मैंने लिख दिया था कि इस हादसे के कारण उन पर कोई दबाव नहीं है . मैंने ये भी लिख दिया था कि अगर वो उचित समझे तो अपनी बेटी की  राय ले लें. माता पिता से तो उम्मीद नहीं थी लेकिन मुझे ऐसा लगा था कि वो लड़की शायद सब कुछ हो जाने के बाद भी मुझे स्वीकार कर लेगी." बुजुर्ग ने जरा दर्द भरी आवाज में कहा .

अमृता ने फिर अफ़सोस जाहिर किया - " बड़ा मुश्किल फैसला रहा होगा बेचारी के लिए ? अगर उसने ना किया हो तो भी आपको बुरा नहीं मानना चाहिए ."

" मैंने बिलकुल बुरा नहीं माना , हाँ एक बात की हूक रह गयी . उसने अपने पिता के माध्यम से अपनी ना का समाचार दिया . अगर एक बार बात कर के कह देती तो शायद जीवन की  सच्चाई को स्वीकार कर पाना और सहज हो जाता . लेकिन शायद ऐसी सच्चाई अपने मुह से बोल पाना आसान नहीं होता ." बुजुर्ग ने कहा .

"हम सब अपने अपने जीवन में कोई ना कोई चोट खाए होते हैं . अच्छा लगता है जब किसी से ये बातें शेयर कर पातें हैं . बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर." अमृता ने कहा .

बुजुर्ग ने उठने की मुद्रा में कहा -" मुझे भी बहुत अच्छा लगा आपसे बात करके . जीवन के इस मोड़ पर भी किसी का साथ कितना अच्छा लगता है . आप चाहें तो आज डिनर आप मेरे साथ ले सकती हैं ."

" क्यों नहीं ? वर्ना अकेले तो शायद मेरी डिनर लेने की नौबत ही ना आये ." हँसते हुए अमृता ने उत्तर दिया .

बुजुर्ग अपना ओवर कोट  पहन चुके थे - " तो फिर ठीक है शाम के सात बजे रेस्तौरेंट में मिलते हैं "
बुजुर्ग सज्जन अपने दफ्तर की और कदम बढ़ाते हैं , तभी पीछे से अमृता की आवाज आयी - " अरे मैंने आपका नाम तो पूछा ही नहीं ? "

बुजुर्ग पलटे थोडा मुस्कुराये और बोले - " पंचम रल्हन "

अमृता देखती रह गयी .जीवन के वो सबसे अच्छे सात दिन दिमाग में कौंध गए। 

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