नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, September 16, 2010

नेता , नीति और नीयत : सचित्र कहानियां


भारत में नेता एक घटिया शब्द बन चुका है . जितने हास्य कवि हैं , कॉमेडी शो  के मसखरे हैं या फिर कार्टूनकार हैं , किसी का काम नहीं चलता बिना नेता . गालियाँ देने का मन करता है तो लोग नेता को दे लेते हैं. किसी को  नौकरी नहीं मिली तो नेता , किसी को कोलेज में दाखिला नहीं मिला तो नेता , किसी की दुकान बंद हो गयी तो नेता और अगर सड़क पर गड्ढे हैं तो नेता. ऐसा क्या किया है बेचारे नेताओं ने ?
 
उत्तर आसान है . बात है बात की . नेता का हथियार है बात , बात यानी वादे , वादे यानि सब्जबाग , सब्जबाग यानि जो पुरे  न हो वो वादे. वोट मिलने के बाद कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें है और बातों का क्या ? आइये कुछ चित्र देखें . चित्र में जो दीखता है उससे कुछ ज्यादा देखें .



पहला चित्र है आदरणीय श्री करुणानिधिजी  का . आपको याद है न श्रीमानजी ने २००९ ने में भूख हड़ताल की घोषणा की थी. यह भूख हड़ताल आम भूख हड़तालों जैसी नहीं थी . सार्वजनिक स्थान पर की गयी यह हड़ताल आदरणीय श्री करुणानिधिजी   ने घर से सुबह का नाश्ता कर  के आने के बाद शुरू की. गर्मी के दिन थे इसलिए वहां सड़क पर शामियाना लगाया गया , गर्मी कुछ ज्यादा ही थी इसलिए दो एयर कुलर भी लगवाए गए . और यह ऐतिहासिक हड़ताल समाप्त हो गयी चार घंटों में क्योंकि   श्री करुणानिधिजी का लंच का समय हो गया . मीडिया में दिखने का उद्देश्य पूरा हुआ .


अगला चित्र अप्रैल २००४ का , उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर का . बी जे पी के वरिष्ठ नेता श्री लालजी टंडन ने अपना जन्म दिन मनाया एक चुनावी सभा में . सभा तो २.३० बजे समाप्त हो गयी , लेकिन उसके बाद शुरू हुआ एक शर्मनाक जलसा . माइक  पर घोषणा की गयी की टंडन साहब के जन्मदिन के उपलक्ष्य में गरीब औरतों को साड़ियाँ दी जाएँगी . एक गरीब देश की अति गरीब महिलाओं को अगर आप मुफ्त साड़ियाँ बांटने का मेला लगायेंगे तो क्या होगा ? हुआ वही जो होना था . जोरदार अफरा तफरी - परिणाम २५ महिलाएं और बच्चे कुचल कर मारे गए और पचास से भी अधिक हस्पताल पहुँच गए .




एक ताजा चित्र और मिला है , किसी मित्र ने इ मेल से फॉरवर्ड किया है . चित्र दिलचस्प बन गया है उस पर अंकित शब्दों और निशानियों के कारण . चित्र है हमारे देश के कांग्रेसी भविष्य युवराज राहुल गाँधी का , जब उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान किसी निर्माण स्थल पर गरीब मजदूरों ( या मजदूरनों ) से कन्धा से कन्धा मिला कर काम किया. कितनी देर काम किया यह तो ये चित्र नहीं बता पायेगा पर काम करने में क्या अंतर था उसे समझाने के लिए मेरे शब्दों की जरूरत नहीं .     
 
ऐसे चित्रों से या यूँ कहिये ऐसे दिखावे से हमारा देश भरा पड़ा है , फिर क्यों न आजादी हो इस देश में जनता को नेताओं को गलियाने की !!!!!!!!!!!!

1 comment:

  1. भई वाह ,क्या खूब प्रस्तुति है । मजा आ गया । बधाई ।

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