नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, August 20, 2010

जीना इसी का नाम है !

जीना इसी का नाम है !


रांची शहर के बरिआतु  रोड पर राजेंद्र मेडिकल कोलेज से आगे जाकर एक बहुत बड़ा परिसर पड़ता है , जो किसी ज़माने में आरोग्य भवन - ४ के नाम से जाना जाता था .आज उसके अन्दर बहुत सी गतिविधियाँ चल रही है , मसलन एक स्कूल, एक छोटा सा बालगृह और एक बहुत ही सुन्दर भवन में एक वृद्ध आश्रम .इस वृद्ध आश्रम में करीब २०-२२ वृद्ध महिला और पुरुष निवास करते हैं . मैं अभी दो दिन पहले ही वहां से होकर लौटा हूँ . आप उन लोगों से बात करें तो आपको जिंदगी की सच्चाई जानने को मिलेगी.

एक  मिले पढ़े लिखे प्रोफेस्सेर साहब , बहू के हाथों अपमानित होने के बाद घर त्याग के यहाँ आकर रहने लगे. एक बुढिया मां , जिसे उसके बेटों ने घर से निकाल कर एक मंदिर में छोड़ दिया , लोगों ने सहारा देकर इस आश्रम में पहुँचाया  ; एक वृद्ध पिता जिन्होंने अपनी जीवन भर  की कमाई अपना घर बेटों के नाम कर दिया , बदले में बेटों ने उन्हें घर से बेदखल कर दिया . हाँ एक मां ऐसी भी मिली जिन्हें उनके बेटे कुछ दिनों के लिए वहां छोड़ गए थे , क्योंकि उनके घर में कोई विवाह था , लेकिन बाद में खुद मां ने ही वापस जाने से इनकार कर दिया .  यानी की प्रत्येक झुर्रिओं वाले चेहरे के पीछे छुपी थी एक दुखद कहानी . अच्छी बात ये थी की उनका अतीत जितना दर्दनाक था उनका वर्तमान उतना ही खुशहाल. कारण थे वो गुप्ता  दम्पति जो इन तमाम वृद्धों के सेवा करते थे . उन सब का भोजन, चिकित्सा, मनोरंजन - हर चीज पर उनका हमेशा ध्यान रहता . आप उनमे से किसी से भी बात कीजिये , उनका एक ही कहना था - हमारे अपने अब ये ही दोनों पति और पत्नी हैं - शत्रुघ्न और सुशीला . हमारे बेटे बेटी और परिवार , बस ये ही दोनों है .

एक और दिलचस्प बात सामने आयी. रांची शहर के पास है बहुत बड़ा इंजीनियरिंग कोलेज - बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेकनोलोजी (बी आई टी )   . इस बार सुना की वहां होटल मैनेजमेंट और केटरिंग का भी कोर्स शुरू हो गया है . अब आता हूँ असली बात पर . मैं रांची गया था १९ अगस्त को; ४ दिन पहले  यानी १५ अगस्त को बी आई टी के उस नए विभाग के छात्रों और छात्राओं ने अपना स्वतंत्रता दिवस मनाया एक अनोखे अंदाज में - उसी वृद्धाश्रम में . होटल और केटरिंग की शिक्षा ले रहे ये बच्चे अच्छे होटल के मनेजरों  और चेफ की तरह साझ धज कर आये, उन्होंने वहां की टेबलों  को फाइव स्टार होटलों की तरह सजाया . वृद्ध दादा दादियों को बैठा कर साफ़ सुथरा नैपकिन  दिया और उन्हें खिलाया स्वादिष्ट भोजन कई कोर्सेस में .  कितनी आत्माएं तृप्त हुई उस दिन !  ना सिर्फ स्वादिष्ट भोजन से बल्कि बच्चों की उस प्यार भरी सेवा से ! एक दिन के लिए ही सही उन्हें अपने पोते और पोतियाँ जो मिल गए थे .

ये सब कुछ मुझे पता चला जब मैंने वहां पड़ा हुआ दैनिक अखबार टेलेग्राफ़ देखा जिसमे उस खूबसूरत दृश्य की एक तस्वीर छपी थी. आप भी देखिये . मुझे भी गर्व है की ये बच्चे उसी कोलेज के हैं जहाँ कभी मैंने भी अपनी इंजीनियरिंग पूरी की थी . मुझे और भी अधिक गर्व है कि मैं उस महान दम्पति शत्रुघ्न और सुशीला गुप्ता का भतीजा   हूँ .

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