नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Wednesday, August 11, 2010

लघु कथा - छुट्टे नहीं है

मुंबई में बाहर से आने वाली आबादी निरंतर बढती जाती है.इस के साथ ही बढती जाती है यहाँ की व्यवस्था सम्बन्धी मुश्किलें. एक समस्या है भिखारी . भिखारी बढ़ते जा रहें हैं. माना कि भीख मांगना कोई शौक नहीं , मजबूरी है ; लेकिन कुछ लोग इस मजबूरी को भी पेशा बना लेते हैं .

मैं जब घर से दफ्तर जाने के लिए निकलता हूँ , तो थोड़ी ही दूर पर पड़ता है एक ट्राफ्फिक का सिग्नल , जहाँ लाल बत्ती ही मिलती है क्योंकि हरी बत्ती बहुत थोड़ी देर के लिए खुलती है और लाल बत्ती बहुत लम्बे समय के लिए .दो तीन हरी बत्तियां हो चुकने के बाद ही कहीं मेरी गाडी आगे पहुँच पाती है .इस सिग्नल पर हमेशा मिलता था वो दाढ़ी वाला एक भिखारी .उसके हाथ में एक कपडा होता था , गाड़ी के पीछे जाकर वो सीधे गाडी को पोंछना शुरू कर देता था , तेजी से पोंछते पोंछते वो एक तरफ का काम ख़तम करके सामने की तरफ जाता , वहां से मुझसे नजर मिला कर सलाम करता और फिर उसी तेजी से मेरी वाली खिड़की के पास आकर अपना सफाई अभियान समाप्त करता . शुरू में मैं उसे १-२ रुपैये दे देता था . लेकिन जब लगा कि ये तो उसका रोज का काम है , मैंने उसे मना करने कि कोशिश की .वो था की मेरी तरफ तब तक देखने को भी तैयार नहीं होता था, जब तक वो अपना नित्य का सफाई चक्र पूरा न कर ले .

मैंने भी एक रास्ता निकाला. मैं भी उसे अनदेखा कर के अपना काम करता रहता ; वो जब अपना चक्र पूरा कर के पैसे मांगने के लिए मेरी खिड़की पर आता तो मैं उसे कह देता - "छुट्टे नहीं है ." मैंने सोचा की दो चार दिनों में ये समझ जाएगा की मैं कुछ देने वाला नहीं हूँ .लेकिन वो जिद्दी भिखारी अपना सफाई अभियान बंद करने वाला नहीं था . एक दिन जब मैंने उसे अपना रटा रटाया वाक्य बोलने के लिए उसकी और देखा तो मुझसे पहले उसने ही कह दिया - " छुट्टे तो नहीं होंगे ?" यह कह कर वो चला गया पिछली गाडी के सफाई अभियान पर . बड़ा गुस्सा आया जनाब . अजीब भिखारी है , भीख नहीं मिलती तो भी जान नहीं छोडता. उस पर ऐसा ताना सा मार कर चला गया .

अगले दिन भी उस का कार्यक्रम जारी रहा . लेकिन मैंने उस से बात तक नहीं की . खैर उसके ३-४ दिन बाद की बात है .वो अपनी दिनचर्या पूरी करके मेरी खिड़की के पास आया .जब मैंने नजर उठा कर उसे नहीं देखा तो बोला - " साहब , आप के पास कभी छुट्टे नहीं होते है न इस लिए आप से रोज माँगना बंद कर दिता है .अब मैं आपसे महीने दर महीने मांग लूँगा . ये रहा मेरा पिछले महीने का बिल तीस रुपैये का . चलेगा न साब ?" और उसके साथ एक छोटा सा बिल नुमा कागज आगे बढ़ा दिया .

2 comments:

  1. Imposed Self Employment of a beggar... !!
    Nice creation... Mahendra Ji... !!

    ReplyDelete
  2. लघुकथा सशक्‍त है बस अनावश्‍यक शब्‍दों को यदि हटा दिया जाए तो अधिक वजनदार हो जाएगी यह लघुकथा।

    ReplyDelete