नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Saturday, August 7, 2010

एक लघु कथा : झुग्गी और बंगला




सड़क के किनारे बनी हुई झुग्गियों में से एक उसके माता पिता की थी .आठ साल के नन्हे जगन का सारा ज्ञान उस झुग्गी के इर्द गिर्द होने वाली चीजों तक सीमित था . जब से पैदा हुआ - जन्म से लेकर नहाना धोना , शौच ,खेल कूद, लड़ाई झगडा , सोना जागना - सब कुछ इसी फूटपाथ पर हुआ . उसके लिए दुनिया की परिभाषा इतनी ही थी . माँ बाप दोनों मजदूर थे , दिन भर मजदूरी कर के लौटते . थकी हारी मां परिवार के लिए जो भी रूखा सूखा होता पका देती. बाप देसी दारू के कुछ घूँट बाहर से ही चढ़ा कर आता और आकर कटे हुए पेड़ की तरह नायलोन के फीतों से बनी हुई टूटी चारपाई पर पड़ जाता.



जगन के खेल खिलोनो में वो सामान था जो वो दिन भर कचरे के ढेर से चुन कर लाता था , मसलन बिसलेरी पानी की बोतल, टूटी हुई कंघी , बिना हाथ वाली गुडिया ,इन सब को सहेज कर रखने के लिए किसी का फेंका हुआ स्कूल का फटा हुआ बस्ता , जिस पर पीठ पर लटकाने के लिए जुड़े हुए थे दो फीते और साथ में जंग खाए हुए स्टील के बकल . जीवन में किसी चीज की कमी नहीं थी , तब तक, जब तक की सामने वाले फूटपाथ पर बने हुए एक बंगले में वो बच्चा रहने को नहीं आया था . समस्या शुरू हो गयी जब वो करीब करीब जगन की उम्र का बच्चा उस बंगले में रहने को आ गया . जगन रोज उसके ठाठ बाट देखता . सुबह सुबह वह अपनी बड़ी सी गाडी में बैठ कर , युनिफोर्म पहन कर अंग्रेजी स्कूल जाता . दोपहर में शोर करता हुआ घर में घुसता . थोड़ी देर में अपना खेलने का सामान लेकर बंगले के गार्डन में खेलने लगता .उसके पास बहुत सारी चीजें थी . क्रिकेट का बल्ला और विकेट , रंग बिरंगी फुटबाल, और कुछ बैटरी से चलने वाले खिलोने . जगन दरवाजे से थोड़ी दूर खड़ा खड़ा सब कुछ देखता. जगन को सबसे अधिक तकलीफ तब होती जब वो लड़का अपनी तीन पहिये वाली साईकिल लेकर घुमाता था .



एक दिन जब शाम को उसका बाप लौटा तो उसने जिद ठान ली - " बापू, तुम मुझे कुछ नहीं ला कर देते .सामने वाले मकान में वो बच्चा रोज नयी नयी चीजें लाता है. थोड़ी देर तो अम्मा ने बहलाने फुसलाने की कोशिश की , लेकिन जब किसी तरह भी जगन चुप होने को तैयार नहीं हुआ , तो उसके बाप को आया गुस्सा . खटिया से खड़ा हो गया और शुरू कर दी पिटाई जगन की . साथ में भद्दी भद्दी गालियाँ- "साला हरामजादा ! बड़े बड़े शौक पाल रहा है . पेट में डालने को पूरा निवाला नहीं है और लाट साहब को चाहिए सइकिल. ले और ले सइकिल......... गली के गटर में पैदा हुआ ....और साले को चाहिए .......... और ले ........" बड़ी मुस्किल से अम्मा ने उसे छुड़ाया , आँचल से आंसू पोंछते हुए ले गयी दूसरी तरफ . न जाने उस रात कितने घंटे रोते रोते सो गया जगन . अगले दिन सारी बात भूल चुका था जगन .



मुंबई की बरसात जब आती है तो बहुत जबरदस्त . इस बार मानसून की वो पहली जोरदार बरसात थी . जगन को बड़ा मजा आया . मूसलाधार बारिस में नाच कर घंटो भीगता रहा जगन .और फिर जब सड़क पर पानी भरने लगा तो जगन के आनंद की कोई सीमा न थी .बाहर से आवाज देकर बोल दिया -" बापू , बहुत मजा आ रहा है . मैं बाहर पानी में तैर रहा हूँ ." बापू को भी ये सब देख कर बहुत मजा आ रहा था . बोला - मौज कर बेटा . भगवान् ये ही मस्ती तो बिना पैसों के देता है ."



जगन के माँ बापू ही नहीं , कोई और भी जगन की ये मस्ती देख रहा था - वो सामने वाले बंगले का बच्चा खिड़की से . जब उस से रहा नहीं गया तो वो भी बाहर आ गया सड़क पर . सड़क के पानी में गोते लगाने लगा , बारिस में भीगने का मजा लेने लगा ; लेकिन ज्यादा देर नहीं ले पाया . खिड़की पर उसकी माँ आयी और आवाज लगाई - "टिंकू , कम इन साइड. बीमार पड़ना है क्या ? दिस इज डर्टी वाटर . इन्फेकसन हो जायेगा" ; लेकिन टिंकू कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था . इतना मजा उसको आज तक किसी खिलोने में नहीं आया था . जब मम्मी ने देखा की टिंकू आने को तैयार नहीं है तो उसने टिंकू के पापा से शिकायत की . पापा अपने दोस्तों के साथ बरसात का लुत्फ़ उठा रहे थे - व्हिस्की के साथ गरम गरम पकोड़े खा कर . जब उनकी बीवी तीसरी बार शिकायत लेकर आयी तो उनका पारा चढ़ गया . गुस्से में बाहर निकले अपना छाता लेकर . कड़क आवाज में टिंकू को डांटा- "यु कम इन साइड एट वंस . ......सड़क छाप बच्चों की तरह बी - हैव मत करो ".



जगन सब कुछ देख रहा रहा था. धीरे धीरे उसे सारी घटना में बहुत मजा आने लगा था . टिंकू इतनी मस्ती में था की उसने अपने पापा की बात मानने से भी इंकार कर दिया . चिल्ला कर बोला - "सॉरी पापा . यु एन्जॉय रेन्स इनसाइड , आइ एन्जॉय इट हियर". पापाजी का गुस्सा पूरे जोर में आ गया . उन्होंने आव देखा न ताव , छत्री को अन्दर फेंका और आकर एक हाथ से टिंकू का कान मरोड़ा , और दूसरे हाथ से शुरू की पिटाई - ..." जुबान लडाता है, यही सीखा है स्कूल में .........इस गंदे पानी में खेल कर बीमार पड़ने का शौक चढ़ा है ...........और ले .................." पापाजी पर भूत सवार था ; उनके आनंद में इतना बड़ा विघ्न जो पड़ा था . वो तो भला हो मम्मी का जिसने बीच बचाव कर के छुड़ा लिया . टिंकू सुबकते सुबकते घर के अन्दर चला गया .



नन्हा जगन सब कुछ देख रहा था . उसके नन्हे मन के अन्दर कहीं बहुत बड़ा सुकून था . उसे अपनी जिंदगी से अब कोई शिकायत नहीं रह गयी थी . उसे लगा की हर बच्चा जीवन में कभी न कभी गरीब ही होता है , और हर बाप कभी न कभी इतना जालिम . हाँ , मां ही असली प्यार करती है बच्चों से .आज उसके मन में सामने के बंगले और उसकी झुग्गी का अंतर मिट गया था . ख़ुशी से उसने एक जोरदार किलकारी मारी और फिर कूद गया पानी में .

1 comment:

  1. बहुत अच्छी कथा ....सच है बच्चों को मंहगे खिलौने नहीं खुला आसमां चाहिए

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