नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, August 12, 2010

लघुकथा - जय हिंद टी स्टाल

फोन  की घंटी बजी .बनवारीलाल अपने कमरे में बैठ कर दो दिन पुराना अखबार बांच रहे थे .तीन चार घंटी बज गयी. तभी दूसरे कमरे से बहू की आवाज आयी -  " बाबूजी , फोन क्यों नहीं उठाते , क्या आपको घंटी नहीं सुनती ?"

बनवारीलाल जल्दी जल्दी उठते हुए बोले- "अभी उठाता हूँ बहू ,मैंने सोचा शायद तुम्हारा फोन ........."

"बैठे बैठे ही सब सोच लेते हैं . आपको पता है ना कि मेरे सारे कॉल मेरे सेल पर आते हैं. लैंड लाइन पर बस फालतू फोन ...." बहू की कड़क आवाज आयी.

तब तक बनवारीलाल फोन तक पहुँच चुके थे - " हेलो , कौन बोल रहें हैं आप ? "

उधर से आवाज आयी -" क्या ये बनवारी लालजी  का घर है ?"

" हाँ भई, मैं बनवारी लाल ही बोल रहा हूँ . आप कौन हैं ?

" हम्म....., मियां तुम्ही बताओ हम कौन हैं ? देखें पहचानते हो क्या ?"

" अरे भई ऐसे कैसे पहचानूँगा आपको ! कुछ नाम पता तो बताइए ."

" चलो कुछ हिंट देता हूँ - जय हिंद टी स्टाल का समोसा. कुछ याद आया, मियां ?"

" जय हिंद टी ..........., कौन रहमत ?"

" वाह बनवारी, दोस्त को भूल गए , समोसा अब तक याद है . हाँ मियां पैंतालिस  साल बाद वतन लौटा हूँ . तुम्हारे शहर में आज ही आया ."

" कमाल है , पूरी जिंदगी निकल गयी , और अब आये  हो रहमत !"

" हाँ बनवारी , पुराने दिन कॉलेज के आज तमाम याद आ रहे हैं . बताओ कैसे मिलें ?"

" कैसे क्या सीधे घर चले आओ . शाम का खाना साथ में खायेंगे"

" मियां तुम्हारा पता ठिकाना ............"

तभी कमरे के अन्दर से आवाज आयी - " किसे बुला रहे हो खाने पर ..........हम लोग तो  बाहर जा रहें हैं , शाम को .नौकरों ने भी छुट्टी मांग  रखी है. किसी को बुला मत लेना ......"

बनवारीलाल ने फोन के बोलने वाले हिस्से को जरा बंद करते हुए  कहा - " बहू , मेरा बहुत पुराना दोस्त रहमत आज आया है , पैंतालिस साल बाद; उसे ही........ "

" रहमत ? मुस्लमान ? बाबूजी भूल कर के भी उसे घर मत बुला लेना . घर के अन्दर किसी बर्तन में उसे हम नहीं खिला सकते ."

" बहू, जरा धीरे बोलो.........."

" क्या धीरे बोलो , आपके अन्दर भी इतनी समझ तो होनी चाहिए ना?"

बनवारी लाल कुछ समय वैसे ही खड़े रहे . समझ नहीं पा रहे थे कि चोंगे से हाथ उठा कर क्या कहें . खैर किसी तरह हिम्मत कर के चोंगा मुह  के  पास ले गए - " रहमत , भई बात ये है .........."

"अरे भई बनवारी , सॉरी यार , आज तो नहीं आ सकूंगा . भूल गया था कि आज शाम तो मेरी कांफरेन्स   के बाद वहीँ डिन्नर है, निकलना मुश्किल होगा ."

बनवारी लाल भांपने की कोशिश कर रहे थे कि रहमत ने बहू की बात सुनी या नहीं.

" बनवारी , ऐसा करते हैं , कल सुबह मोर्निंग वाक साथ में लेते हैं , अपने कोलेज के पास नेहरु पार्क में . और वहीँ से चलेंगे अपने पुराने अड्डे जयहिंद टी स्टाल पर चाय और समोसे खाने के लिए . क्यों मजा आएगा ना ?"

बनवारी लाल का उत्साह ठंडा पड़ चूका था - " हाँ, रहमत , बड़ा मजा आएगा "

" चलो तो फिर सात बजे सवेरे नेहरु पार्क . "

बनवारी ने कांपते हाथों से फ़ोन रख दिया . दोनों आँखों में दो मोती चमकने लगे. उधर रहमत ने भी फ़ोन रख कर के जेब से रुमाल निकाल ली. दोनों दोस्तों का मिलाप दिल ही दिल में हो ही गया पैंतालिस सालों बाद.

     

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