नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Wednesday, August 21, 2013

घटना और प्रतिक्रिया



 पिछले सोमवार , अगस्त १९, २०१३ की घटना ! बिहार के खघरिया जिले में स्थित एक रेलवे स्टेसन धमारा  घाट ! सुबह के करीब पौने आठ बजे का समय। एक तीर्थयात्रियों का समूह रेल की पटरियों के बीचोंबीच चला जा रहा था।  उनके एक तरफ थी प्लेटफार्म पर खड़ी   हुई गाडी - समस्तीपुर से मधेपुरा जाने वाली गाडी ; उनके दूसी तरफ खड़ी   थी मधेपुरा से लौटने वाली गाडी। यानि की ये भीड़ चल रही थी इन दोनों रेल गाड़ियों के बीच स्थित एक पटरी के बीचोंबीच। और तभी उस बीच वाली पटरी पर आ गयी ८० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चल रही राज्यरानी एक्सप्रेस। ट्रेन एक जोरदार हॉर्न की आवाज के साथ आई , लेकिन लोगों के पास आस पास छिटकने तक की जगह नहीं थी।  परिणाम स्वरूप ३७ तीर्थयात्री उस रेल के नीचे चटनी की तरह पिस गए। भीड़ का गुस्सा फूट  पड़ा। गुस्साई भीड़ ने राज्यरानी एक्सप्रेस के अलावा एक और पसेंजर गाडी को आग लगा दी। रेल के २० डिब्बे तहस नहस हो गए। रेल के जो अधिकारी सामने आये उन्हें मार पीट के अपनी गिरफ्त में ले लिया।   राज्यरानी एक्सप्रेस के दो ड्राइवर -राजाराम पासवान और सुशिल कुमार सुमन पर भीड़ टूट पड़ी। 

अब इस घटना की समीक्षा करें।  क्या गलती राज्यरानी एक्सप्रेस के दो ड्राइवरों की थी ? बिलकुल नहीं , ट्रेन के ड्राइवर स्टेसन से सिग्नल मिलने पर ही आगे बढ़ते हैं।  क्या गलती सिग्नल देने वाले व्यक्ति की है ? नहीं , क्योंकि उसका काम  वाली अन्य गाड़ियों की स्थिति देख कर सिग्नल देने की होती है।  अगर गलती किसी की है तो है वो मारे गारे तीर्थ यात्रियों के झुण्ड की।  ट्रेन की पटरियों के बीचोंबीच चलना वो भी जब दोनों तरफ दूसरी दो गाड़ियों की दीवारें बनी हो - एक बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात है।  इस तरह के झुण्ड की एक और समस्या होती है।  जब दो चार लोग ऐसे रास्ते पर चल पड़ते हैं तो बाकी भीड़ भी उनके पीछे पीछे चल पड़ती है।  इस तरह झुण्ड में चलना उन्हें सुरक्षित होने का गलत आभास देता है।

खैर दुर्घटना तो हुई , लेकिन उसके बाद का भीड़ का गुस्सा ? क्या वो जायज है ? बिलकुल नहीं ! लेकिन गुस्सा जायज या नाजायज नहीं होता।  गुस्सा बस गुस्सा होता है।  जब कोई ऐसी घटना आँखों के सामने घटती है , लोगों के मन का आक्रोश  फट पड़ता है।

आइये अब इस घटना को प्रष्ठभूमि में रख कर चर्चा करें २००२ में घटे गोधरा के रेल काण्ड और उसकी प्रतिक्रिया के  विषय में।  सर्कार द्वारा नियुक्त नानावती कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार २७  फरवरी २००२ को अयोध्या से आने वाली रेल गाडी, जिसमे बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू तीर्थयात्री सवार  थे - वो साबरमती एक्सप्रेस जब गुजरात के गोधरा जिले से गुजर रही थी ,तो उस पर एक बहुत बड़ी भीड़ ने पत्थरो से आक्रमण कर दिया।  उनमे से कुछ लोगों ने रेल के डिब्बों के दरवाजे खोल खोल के  उनमे जलती हुई मशालों के साथ पेट्रोल के खुले कनस्तर फेंक दिए।  परिणाम पूरी की पूरी  रेल एक जलती हुई गुफा के रूप में बदल गयी। इस पाशविक अपराध के परिणाम स्वरूप ५९ हिन्दू यात्री पत्थरों और आग के बीच बुरी तरह से मार डाले गए।


नानावती  कमीशन की रिपोर्ट खुलासा करती  है की ये साजिश गोधरा के एक मौलवी हुसैन उमरजी की थी। उसकी साजिश के अनुसार १४० लीटर पेट्रोल ख़रीदा गया।  अब्दुल रजाक मोहम्मद कुरकुर और सलीम पानवाला ने ये पेट्रोल २६ फरवरी की रात को ख़रीदा। इस साजिश पर पूरा कार्यक्रम बना अमन गेस्ट हॉउस में। रेल के डिब्बे S - ६ और S -७ को जबरन खोल कर हसन लालू नाम के व्यक्ति ने जलती हुई मशालें डिब्बों में फेंकी। बाकी सारे काम में शामिल थे - शौकत अली , इमरान शेरी , रफीक बटुक , सलीम जर्दा , जाबिर बहरा और शेरज बाला।  




इसके बाद जो कुछ गुजरात में हुआ वो एक साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया थी। इस तरह के घिनौने, बिना किसी कारण के किये गए पैशाचिक  अपराध की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक थी।इस प्रतिक्रिया तथा फिर उसकी प्रतिक्रिया में ७९० मुसलमान तथा २५४ हिन्दू मारे गए। बेहिसाब संपत्ति का नुक्सान हुआ।


क्या अंतर है दोनों घटनाओं में ? दोनों ही घटनाएँ उदहारण हैं मानविक प्रतिक्रिया का !

नरेन्द्र मोदी पर राजनैतिक कारणों से निरंतर वार किये जाते रहें हैं।  नरेन्द्र मोदी के प्रशासन का असली मापदंड है २००२ के बाद चल रहे ११ वर्षों का राज्य , जिसने इतने बड़े नासूर को दोनों समाजों के दिल से मिटा कर एक सौहार्द का वातावरण तैयार किया।  इन ११ वर्षों में एक भी साम्प्रदायिक दुर्भाव की घटना नहीं हुई।

 



Friday, July 26, 2013

पांच रुपैये में खाना

अगर दिमागी दिवालियेपन  की कोई गरीबी रेखा होती तो कांगेस के बहुत सारे नेता उसके नीचे होते। कल दो बिलकुल ताजा उदहारण सामने आये. घूम फिर कर कांगेस पार्टी में पहुंचे हुए राज बब्बर का कहना है की मुंबई जैसे शहर में कोई भी व्यक्ति बारह रुपैये में भर पेट खाना खा सकता है . इतना ही नहीं उन्होंने बारह रुपैये में मिलने वाले भोजन का पूरा मेनू तक बता दिया - ढेर सारा भात , ढेर सारी दाल और साथ में सब्जी के भी टुकड़े . उनके दूसरे पुराने नेता श्री रशीद मसूद एक कदम और आगे हैं . उनके अनुसार दिल्ली में जामा मस्जिद के बाहर पांच रुपैये में भर पेट खाना मिलता है .

पहले मुंबई की बात करें . मैं एक सामजिक संस्था के साथ जुड़ा हूँ - जिसकी एक प्रमुख गतिविधि है अन्न क्षत्र ! मुंबई के दो मशहूर हस्पताल हैं - जे जे हॉस्पिटल और सेंट जोर्ज हॉस्पिटल . दोनों हस्पतालों के अहाते में धर्मशाला बनी हुई है . इन दोनों में व्यवस्था है कमरों की - दुसरे  शहरों से आने वाले बीमारों के साथ आने वाले परिवार जनों के लिए . पहले इनका नियम ये था की रहने वाले आगंतुकों को अपने भोजन की व्यवस्था खुद करनी पड़ती थी . हर कमरे में एक स्टोव और कुछ बर्तन  थे . हमारी संस्था ने दोनों जगहों पर रसोई और भोजन कक्ष बनाये . रहने वाले लोगों के लिए सुबह का नाश्ता , दोपहर का भोजन और रात का खाना बनाने के लिए ठेकेदार नियुक्त किये . साधारण लेकिन शुद्ध और  ताजा भोजन पूरे दिन की कीमत आती है - ७० रुपैये . आधी कीमत पर हमारी ये संस्था रहने वाले मेहमानों को भोजन करवाती है . बाकी आधी कीमत संस्था अपने संसाधनों से भरती है . ये कीमत तब है जब की जगह का कोई भाडा नहीं ; पानी और बिजली मुफ्त में है , ठेकेदार मामूली मुनाफे पर काम करता है . पूरे हफ्ते का मेनू बोर्ड पर लिखा हुआ है . हम सभी अधिकारीयों में से कोई न कोई हर हफ्ते वहां बिना सूचना के पहुँच जाता है , और सामान्य भोजन करते हैं - जिससे भोजन की गुणवत्ता कभी नहीं गिरती

मेरा अनुरोध है श्री राज बब्बर साहब से की हमें वो १२ रुपैये में भोजन खिलने वाले रसोइये से मिलवा देवें . हमारी संस्था का न केवल पैसा बचेगा बल्कि मेहमानों के लिए कीमत और भी बहुत कम हो जायेगी .

जहाँ तक श्री रशीद मसूद साहब के दावे का सवाल है - मैं कभी जामा मस्जिद नहीं गया ; लेकिन मुंबई में महिम से आते जाते माहिम मस्जिद के बाहर बने ३-४ ढाबों को जरूर देखता हूँ , जिनके दरवाजे पर हर समय २०-३० भिखारी बैठे होते हैं . मस्जिद में आने वाले मुस्लिम धर्मात्मा ढ़ाबे वाले को अपनी क्षमता के अनुसार निर्देश और पैसे दे देते हैं . ढाबे वाले एक छड़ी से गिन गिन कर भिखारियों को अन्दर बुलाते हैं . अगर इसी तरह की किसी व्यवस्था का जिक्र मसूद साहब कर रहें हो तो ये संभव है ।

बात पूरी करने के पहले फिर एक बार जिक्र करूंगा , रांची शहर के रिम्स नामके सरकारी हस्पताल के बाहर  सस्ती रोटी का , जिसके बारे में   मैंने पहले   भी एक लेख यहाँ लिखा था . ये सस्ती रोटी साफ़ सुथरे अलुमिनिम के डब्बे में गरम गरम दी जाती - ७ रोटियां और भरपूर मात्रा में आलू की स्वादिष्ट सब्जी . सिर्फ दस रुपैये में . हस्पताल ने रसोई की जगह दे राखी है जहाँ एक रसोइया गरम गरम भोजन बनाता रहता है और ४-५ महिलाएं रोटी बेलती रहती हैं . दस रुपैये में तो शायद वो अलुमिनियम फोयल का डिब्बा ही आता होगा ; कीमत भरते हैं रांची के समाज सेवी श्री शत्रुघ्नलाल गुप्ता और उनकी पत्नी श्रीमती सुशीला देवी गुप्ता . सिर्फ पैसा ही नहीं बल्कि अपना समय देते हैं - पूरी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलने में .
[ http://mahendra-arya.blogspot.in/2012/07/blog-post_07.html ]

समाज में भोजन जैसी जरूरी व्यवस्था को लेकर ये दो रूप हैं सामने - एक है राज बब्बर और रशीद मसूद जैसों की संवेदनहीन घटिया बयान बाजी का , दूसरा है गुप्ता दम्पति जैसे निःस्वार्थ भाव से  भूखों को भोजन कराने  वालों का . एक सिर्फ वोटों की राजनीति कर रहा है और दूसरा  परदे के पीछे रहते हुए लोगों का अज्ञात आशीर्वाद पा रहा है .

Saturday, July 13, 2013

बैंड पार्टी : एक लघु कथा

एक बारात जा रही थी . घोड़ी पर  दुल्हे मियां सेहरा पहन कर शान से बढ़ रहे थे . घोड़ी के सामने बैंड पार्टी जोश में बैंड बजाते हुए चल रही थी . बैंड के आगे दुल्हे के दोस्त नाचने में व्यस्त थे . अच्छे अच्छे सूट  पहन कर पसीने में लथपथ सारे नवयुवक ऐसे नाच रहे थे जैसे जीवन में नाचने का ये अंतिम मौका हो . दुल्हे के ख़ास रिश्तेदार जैसे की जीजा , भाई , मामा नोटों की गड्डी हवा में लहरा रहे थे , और बीच बीच में नोटों को निकल कर हवा में उछाल रहे थे . बैंड पार्टी के नियुक्त एकदो व्यक्ति नोटों को उठा रहे थे .
युवक थे की आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे . परिवार के बुजुर्ग उन्हें समझा बुझा कर आगे बढ़ने को कहते थे , कुछ नरम दिल युवक मान जाते , लेकिन एक दो ऐसे थे की सब को रोकते रहते और बोलते - अंकल , ऐसा मौका कब कब मिलता है , थोड़ी देर और प्लीज़ ! ख़ास कर काले कपड़ों में हीरो सा दिखने वाला एक लड़का , जो बहुत अच्छा नाच रहा था , वो आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा था . वो बीच बीच में अपनी जेब से नोट निकल कर दुल्हे के सर पर वार  कर बैंड  वालों को भी दे रहा था .

आखिर परेशान होकर दुल्हे के पिता ने दुल्हे से धीरे से कहा - बेटा , मुहूर्त निकल जा रहा है , तुम्हारे ये दोस्त आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहे हैं - ख़ास कर वो काले कपड़ों वाला . दुल्हे ने कहा - उसे तो मैं जानता ही नहीं . दुल्हे की पिता ने दुल्हे के एक दो और दोस्तों से पूछा ; उन्होंने भी कहा की उन्हें पता नहीं की वो कौन है ,बल्कि वो लोग सोच रहे थे की उनके दोस्त का कोई रिश्तेदार है .

दुल्हे के पिता ने धीरे से हाथ पकड़ के उस लड़के को बारात से बाहर किया और पुछा - भैया , तुम हो कौन और किस नाते से यहाँ हो ? वो लड़का घबरा गया - अंकल ......अंकल .......मैं तो दुल्हे का दोस्त हूँ . पिता ने कहा - ऐसी एकतरफा दोस्ती तो हमने देखी  नहीं; साफ़ बताओ की कौन हो वर्ना पुलिस में दे दूंगा .

लड़का घबरा गया ; बोला - अंकल पुलिस को मत बुलाइये .मैं कोई चोर उचक्का नहीं हूँ . मैं तो इस बैंड पार्टी का हिस्सा हूँ . मुझे ये लोग तैयार कर के साथ में लाते हैं . हमारी आपस की अंडर  स्टेंडिंग  ये है की जिस बरात में पैसे अच्छे  लुटा रहें हो वहां बारात को बिलकुल धीरे धीरे आगे बढ़ाये और जहाँ माल न मिले वहां औरों को भी जल्दी जल्दी आगे बढ़ाये . आप के यहाँ तो नोटों की बरसात हो रही है . बीच बीच में मुझे भी अपनी जेब से निकाल  कर नोट लुटाने होते हैं , ताकि बाकि सभी को भी जोश आ जाए . बाद में हम सभी अपना अपना हिस्सा पाती बाँट लेते हैं .

दुल्हे के पिता ने हंस कर उसे छोड़ दिया !

Saturday, July 6, 2013

हाइवे का ड्राइवर : सच्ची कहानी

एक था ट्रक ड्राइवर - चंद्रू ! एक ट्रांसपोर्ट कंपनी के लिए ट्रक चलाता  था। ट्रांसपोर्ट कंपनी का मालिक ट्रक पर अपने ग्राहकों के कारखानों से माल लदवा  देता था और रस्ते के खर्च के पैसे देकर चंद्रू को भेज देता था लम्बे लम्बे हाइवे  के लम्बे लम्बे सफ़र पर . ट्रक ड्राइवर की जिंदगी में ट्रक ही उसका घर होता है , जहाँ वो रहता हैं उन तमाम दिनों में जब वो अपने परिवार से दूर रहता है . ट्रक में परिवार की तस्वीर देख देख कर उनके पास होने को महसूस करता है .

ऐसी ही एक यात्रा में चंद्रू अपने ट्रक में किसी दवा  कंपनी का कीमती माल भर के ले जा रहा था . दावा के हलके हलके छोटे छोटे कार्टून भी लाखों रुपैये के होते हैं . माल के ऊपर बंधा होता है मजबूत रस्सियों के नीचे एक मोटा सा तिरपाल , जो माल को बरसात और चोरों से सुरक्षित रखता है . सूरज ढलने के बाद बढ़ चले अँधेरे का समय था . चंद्रू अपनी मस्ती में अपना ट्रक भगाए जा रहा था . हाइवे का एक सुनसान पहाड़ी हिस्सा था . एक मोटर साईकिल पीछे से आई और उसने आगे बढ़ कर ट्रक का रास्ता रोक लिया . उसपर बैठे दो लोगों में से एक उतर कर चंद्रू के कैबिन में घुस गया . उसने अपने कम्बल से एक खतरनाक चाकू निकाला और चंद्रू को धमकी दी - चुपचाप चलते रहो . सामने मोटर साईकिल जा रही थी जिसके कारन चंद्रू धीमी गति से ट्रक को चला पा रहा था . अचानक चंद्रू को आभास हुआ की ट्रक के ऊपर भी कुछ लोग चढ़ गए हैं , लेकिन वो मुड  के कुछ देखने की कोशिश करता , उसके साथ बैठे गुंडे ने चाकू को उसकी गर्दन पर रख दिया और बोला - ज्यादा होशियारी की तो मारे जाओगे . आधे घंटे के बाद उस गुंडे ने ट्रक रुकवाया . उतरते उतरते उसने फिर चंद्रू को धमकी दी - पुलिस में जाने की गक्ति मत करना वर्ना तुम्हारा और हमारा रोज का रास्ता यही है .सारे चढ़े हुए गुंडे उतर गए . चंद्रू ने देखा की पीछे पीछे एक पिक अप वें आ रही थी . उसे समझ में आ गया की गुंडों ने रस्सी काट कर कुछ माल उतार  लिया है . लेकिन वो इतना डरा हुआ था की अगले आधे घंटे तक वो चुपचाप ट्रक चलाता रहा . फिर किसी ढाबे के पास उसने ट्रक खड़ा किया . ट्रक पर चढ़ कर देखा तो पाया की ट्रक के ऊपर के मोटे रस्से को तथा फिर उसके नीचे के तिरपाल को किसी तेज हथियार से काट दिया था , और उसके बीच खाली  जगह से पूरा गड्ढा बना हुआ था . उसने अंदाज लगाया की कम से कम २० कार्टून गायब थे .

उसने ट्रांसपोर्ट के मालिक को फोन किया और सारा  किस्सा बताया . पहले तो ट्रांसपोर्ट के मालिक ने मोटी  मोटी  दस बीस गालियाँ सुनाई और कहा की वो क्या सो रहा था , की उसको माल निकलने का पता नहीं लगा . आखिर मालिक ने कहा की नजदीक के पुलिस स्टेसन पर जाओ और ऍफ़ आई आर दर्ज करवाओ .

चंद्रू पहुंचा पुलिस स्टेसन ! वहां एक हवलदार बैठा हुआ ऊंघ रहा था . चंद्रू ने उसे जगाया और कहा की रपट लिखनी है . उसने कहा - सवेरे आओ , अभी साब बाहर दौरे पर गए हैं . अन्दर से किसी की आवाज आई - " कौन है बे ". हवलदार ने उत्तर दिया - सर कोई ट्रक वाला है . अन्दर से फिर आवाज आई - ठीक है , बोलो सवेरे आये . सवेरे का मतलब १० बजे !

चंद्रू ने बहुत विनती करने की कोशिश की , लेकिन हवलदार बात करने के मुड  में बिलकुल नहीं था . चंद्रू ने अपने मालिक को फोन किया . मालिक ने फिर १० - २० मोटो मोटी  गालियाँ दी आयर फिर सलाह दी की रात भर गाडी के पास पहरा दो और सुबह पुलिस स्टेसन पर जाओ . चंद्रू बेचारा रात भर जाग कर पहरा देता रहा ; न रात का खाना खाया और न एक पल को सोया . सुबह रात भर का जाग उनींदा चंद्रू पहुंचा पुलिस स्टेसन . हवलदार तरोताजा बैठा था . पहले सारी  कहानी सुनी फिर बोला - हम्म्म ! किस्सा तो अछ्छा है, लेकिन साहब को पसंद नहीं आएगा . कोई सस्ता मन्द माल होता तो शायद सस्ते में काम पट जाता। लेकिन इसमें हाथ नहीं डालेंगे . चंद्रू की समझ में कुछ नहीं आया .

डेढ़ घंटे बैठने के बाद सब इन्स्पेक्टर ने बुलाया और बोला - बताओ ? चंद्रू विस्तार से पूरी बात बताने लगा ; एक वाकया बोल भी नहीं था , की सब इन्स्पेक्टर गुस्से में बोला - पूरी रामायण मत सुनाओ , बस बताओ कितने का माल है ? चंद्रू बोल - साहब २० -२२ कार्टून गए हैं , पंद्रह  बीस लाख का तो जरुरे होगा . साल सब की मिली भगत है .

साला , किसको मालूम तुम्हारा स्टोरी कितना सच्चा है ? तुम्ही किया होगा तो ? खैर ये बताओ की किसने किया ?

सर मुझे क्या मालूम ? मैं किसी को नहीं जानता . हाँ , जो मेरे साथ ट्रक में बैठा था उसे पहचान सकता हूँ .

अबे , चोरी किसने की ? वो जो ट्रक के ऊपर चढ़े थे . पहचानना तो उनको पड़ेगा न ? खैर, जाने दो . ये घटना कहाँ हुई ?

सर, मैं इतना डर गया था, की उनके उतरने के बाद आधी घंटा मैं गाडी भगा कर यहाँ आया हूँ . मुझे लगता है कम से कम २० - २५ किलोमीटर के पहले !

सब इन्स्पेक्टर ने जोर से रजिस्टर बंद किया और बोला - साले , भाग यहाँ से ! यहाँ क्या लेने आया है ?

सर, तो मैं क्या करूँ ?

गंगा जी में छलांग लगा दो .

हवलदार जोर जोर से हंसा - सर आपका वो क्या कहते हैं न - हूमर ऑफ़ सेन्स बहुत बढ़िया है .

सब इन्स्पेक्टर - सेन्स ऑफ़ हूमर !

चंद्रू गिडगिडाया - साहब , मेरी मदद करो , मैं गरीब आदमी कहाँ जाऊं ?

सब इन्स्पेक्टर - साल तुम लोगों का प्रोब्लम ये है की तुम लोगों को कोई कानून कायदा मालूम नहीं ; और लेकर निकल पड़ते हो लाखों करोड़ों का माल . अगर तुम्हारा माल चोरी हुआ बीस पच्चीस किलोमीटर पहले तो तुम्हे जाना पड़ेगा चांदपुर पुलिस स्टेसन , क्योंकि हमारे पुलिस स्टेसन की हद तो पिछले दस किलोमीटर से शुरू होती है . अब यहाँ से चलते नजर आओ !

निराश चंद्रू  ने फिर अपने मालिक को फोन किया और फिर वही मोटी  मोटी  गालियों का सन्देश . थका  मांदा , भूखा प्यासा , डरा सहमा , अपमानित चंद्रू वापस गाडी को लेकर पहुंचा चांदपुर पुलिस स्टेसन में . वहां फिर उसका वैसा ही स्वागत हुआ . एक अंतर था - वहां के सब इन्स्पेक्टर ने उसकी कहानी सुनने के पहले २ -४ थप्पड़ रसीद कर दिए . चंद्रू कुछ समझ नहीं पाया .

सब इन्स्पेक्टर बोला - तुम लोग सब साले मिले हुए हो . तुम तुम्हारा ट्रांसपोर्ट और वो दवा  वाला . सबको झूठा ऍफ़ आई आर चाहिए , क्योंकि सेठ लोग को इन्सुरेंस से पैसा मिल जाएगा . तुमको बक्शीश मिल जायेगी , और तुम्हारा ये ऍफ़ आई आर पड़ा रहेगा हमारे गले  में - हमारा रेकोर्ड बिगाड़ने  को ! फोन कर के सेठ से बात कर लो की ऍफ़ आई आर चाहिए तो ५ पेटी लगेगा .

चंद्रू की आँखें फटी की फटी रह गयी . बोला - साहब मैं किस मुंह से इतना पैसा के लिए बोलूं सेठ को ; उसका तो पहले ही कितना नुक्सान हो गया है .

सब इन्स्पेक्टर -सुन बे , सेठ के पैसों की इतनी फ़िक्र है तुझे तो वहीँ जा, यहाँ हमारा टेम  ख़राब न कर !

चंद्रू - साब ! मेरी एक बात मानेंगे ? मैं फोन लगा के देता हूँ , आप ही सेठ से बात कर लो !
चंद्रू अपने मोबाईल फोन से सेठजी का नंबर लगाता  है और बोलता है - सर, चांदपुर पुलिस टेसन से बोल रहा हूँ . यहाँ के बड़े साब आपसे बात करना चाहते हैं .

ये कह कर चंद्रू ने अपना मोबाईल फोन सब इन्स्पेक्टर के हाथ में दे दिया . सब इन्स्पेक्टर ने कहा - देखिये सेठजी , इस तरह के झूठे कम्प्लेन  हमारे पास रोज आते हैं . ये ट्रक ड्राइवर लोग खुद ही माल बेच खाते हैं और फिर चले आते हैं यहाँ शिकायत लिखाने ! बताएं हम क्या करें ?

थोड़ी देर बाद जब बात ख़तम हो जाती है तो सब इन्स्पेक्टर कहता है - हाँ भैया , अब बताओ क्या करें ?

चंद्रू ने डरते डरते पुछा - क्या कहा सेठजी ने ?

सब इन्स्पेक्टर ने कहा - तुम्हारे सेठ ने बोला  की अगर ड्राइवर पर डाउट हो तो साले के मार मार के खाल उधेड़ दो , लेकिन एक ऍफ़ आई आर लिख कर दे दो .

चंद्रू सहम गया . बोला - साहब , आपको मेरे ऊपर डाउट है ?

सब इन्स्पेक्टर थोडा नरम पड़ा - भई , बात ये है - सब को अपनी पड़ी है . जैसे तुम्हारे सेठजी के अपने ऍफ़ आई आर के सामने तुम्हारी कोई कीमत नहीं , तुम्हे अपनी नौकरी के लिए ऍफ़ आई आर चाहिए , वैसे ही हम लोगों को भी अपने प्रोमोसन के लिए हमारा रेकोर्ड क्लीन चाहिए . रही बात लुटेरों की ; तो वो तो ये काम रोज करते हैं . हम सब को जानते भी हैं , लेकिन उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते . लूट का आधा  हिस्सा इस एरिया के एम पी का है .एम पी की भी मजबूरी है , ये इलाका इतना गरीब है , की चुनाव लड़ने का चंदा  कहाँ से आये !

चंद्रू रोते रोते बोला - साब मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊं ?

सब इन्स्पेक्टर ने कहा - इस फालतू नौकरी को छोड़ो , अपने गाँव जाओ , फॅमिली के साथ रहो . चाहे मेहनत  मजदूरी कर  लो . ऐसे सेठ की नौकरी करके क्या फायदा !

चंद्रू को इन्स्पेक्टर की बात समझ में आ गयी . उसने उसी समय निर्णय ले लिया की उस क्षण के बाद वो कभी किसी ट्रक को नहीं चलाएगा , और न ही उसका बेटा  या पोता  ये काम करेगा .

[ ये संकेतिक कथा है हाइवे पर ट्रक चलने वाले ट्रक ड्राइवरों के जीवन की दुर्दशा के बारे में . उनका जीवन खतरों से भरा होता है . परिवार से दूर बुरे से बुरे मौसम में वो अपने ट्रक से जूझता है . सन्मान या आत्म सन्मान नाम की चीज उसके जीवन में नहीं . इसका परिणाम ये है की आज देश में हर १० ट्रकों के पीछे सिर्फ ८ ड्राइवर उपलब्ध हैं . ये संख्या निरंतर घट रही है . ड्राइवरों की अगली पीढ़ी कभी भी इस पेशे में नहीं आएगी .]


Thursday, June 20, 2013

विश्वास मत या विश्वास घात

 आखिर बिहार की विधान सभा में नितीश कुमार की जेडीयु को सत्ता में बने रहने का विश्वास मत मिल ही गया . कुल 242 की संख्या के सदन में आधे से अधिक होता है 122 . नितीश कुमार ने तो 126 अंक प्राप्त कर लिए ; तो फिर विश्वास में क्या कमी ? ये देश की राजनैतिक व्यवस्था का दुर्भाग्य है की सब कुछ यहाँ आंकड़ों के तराजू पर तुल  जाता है - जनता का भरोसा , जनता का विश्वास , गठबंधन की प्रतिबद्धता   और सबसे अधिक व्यक्ति का अपना चरित्र ! वर्ना इस तरह की खोखली जीत पर इतनी बड़ी बड़ी बातें करते नहीं दिखाई देते नितीश !

आइये इन आकड़ों का मंथन करें . 242 का विभाजन कुछ इस प्रकार हुआ -

पक्ष में - 126
विरोध में - 24
बाहर रहे - 92

अब  इन सभी आंकड़ों की पूरी समीक्षा ! पक्ष के 126 में 117 जेडीयु के , 4 कांग्रेस के , 4  निर्दलीय  और १ सी पी आई का ! विरोध में 22 लालू की आरजेडी के तथा २ निर्दलीय ! बाहर रहने वालों में थे 91 बीजेपी के अलावा 1 राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी का विधायक !

अब करते हैं इन आंकड़ों से जुड़े विश्वास की समीक्षा ! कोई भी जनता का विधायक चुन कर आता है , एक प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया से जिसे चुनाव कहते हैं . ये चुनाव जनता करती है अपने उम्मीदवार के चुनावी एजेंडा यानि वायदों , चुनावी गठबंधन और उम्मीदवार की योग्यता के आधार पर . इस सच्चाई की तराजू पर तौल कर देखें इन सभी 242 विधायकों को !

बी जे पी के 91 विधायकों ने अपना धर्म निभाया . उन्हें मतदान मिला था एक गठबंधन के रूप में ; इसलिए अकेले जेडीयू के विपक्ष में मत डालने से भी शायद अवमानना होती, उन लोगों के मतों की जिन्होंने जेडीयू समर्थक होते हुए बीजेपी के उम्मीदवार को एनडीए के प्रतिनिधि के रूप में मत दिया था .

रामविलास पासवान के एक मात्र विधायक को जेडीयू के विरोध मत डालना चाहिए था क्योंकि उनके मतदाताओं ने उन्हें मत दिया था एनडीऐ  के विरुद्ध ; फिर भी  रह कर उन्होंने कुछ हद  अपने मतदाताओं के  साथ बहुत बड़ा  धोखा नहीं  किया .

लालू ने अपना विरोधी दल का धर्म  निभाते हुए विरोध किया ; उनके मतदाताओं के    साथ न्याय हुआ .

निर्दलीय  ६ थे ; चूँकि उन्हें उनके मतदाताओं ने उनके अपने व्यक्तित्व के आधार पर चुन कर ये छूट   दी थी ,  वो जहाँ अपने क्षेत्र का भला समझे वहां जुड़ जाएँ ; इस प्रकार सभी निर्दलियों ने अपने मतदाताओं के साथ न्याय किया .

सबसे बड़ा विश्वासघात किया नितीश कुमार की जेडीयू  और कांग्रेस पार्टी ने अपने मतदाताओं के साथ . नितीश कुमार भूल गए की उनकी ११७ सीटें सिर्फ उनकी नहीं हैं ; ये सीटें एनडीऐ की हैं . इन सीटों पर जेडीयू तथा बीजेपी - दोनों के मतदाताओं ने सांझी मुहर लगायी थी . आज बीजेपी को निकाल  कर और अपने दुश्मनों से हाथ मिला कर उन्होंने बीजेपी के उन सभी मतदाताओं के साथ तो धोखा किया ही है ; अपने १७  वर्षों के सांझेदार की भी पीठ में चाकू भौंक कर बहुत बड़ा धोखा किया है . जो कारण  बताये गए वो बिलकुल लचर हैं . नितीश कुमार के पिछले बयानों को दिखा कर मिडिया उनकी रोज पोल खोल रही है ; उनका स्पष्टीकरण एक घटिया अवसरवादिता के सिवा कुछ नहीं .

दूसरी धोखेबाज पार्टी रही कांग्रेस , जिसके मतदाताओं ने उन्हें जेडीयू तथा बीजेपी दोनों के खिलाफ वोट देकर जिताया था . अपने सभी मतदाताओं के विश्वास को धता बता कर कांग्रेस ने अपनी २0१४ के चुनावों की बिसात  बिछाते हुए बिना मांगे ही जेडीयू को समर्थन दिया . और तो और कांग्रेस ने अपने निरंतर बने रहे सहयोगी लालू की भावनाओं को भी बेकार समझ कर कचरे के डिब्बे में फेंक दिया . लालू बेचारे देखते रह गए की उनकी स्वामिभक्ति का उन्हें क्या इनाम मिला .

मतदाता अनपढ़ हो सकता है , लेकिन मूर्ख  नहीं है . ये बातें सभी को समझ में  आती है . इस घटिया विश्वास मत की बुनियाद में भरा है बिहार के मतदाताओं का अतिशय क्रोध , जो समय आने पर ज्वालामुखी बन के फूटेगा . नितीश ने अपने जीवन का सबसे बड़ा गलत निर्णय लिया है .

    

Tuesday, June 18, 2013

सबसे सेकुलर नरेन्द्र मोदी


भारत  की राजनीति में रोजाना जितनी चर्चा नरेन्द्र  पर होती है , शायद स्वतंत्र भारत में किसी भी नेता के बारे में इतनी चर्चा नहीं हुई होगी . नरेन्द्र मोदी एक ऐसा बहाव है जिसके प्रवाह में कोई खड़ा नहीं हो सकता . मोदी एक ऐसी शक्ति  है जिसका आधार उसकी सच्चाई और कार्यशीलता है . फिर नरेन्द्र मोदी का इतना विरोध क्यों ? विरोध का कारन भी नरेन्द्र भाई की वो शक्ति है जिससे हर नेता हर दल का डरा हुआ है . कल तक कांग्रेस के गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी ; अब जब नितीश कुमार ने एन डी  ऐ का साथ छोड़ दिया है तब कांग्रेस को कुछ मुह खोलने की हिम्मत आई है .

सेकुलर के नाम पर इस देश की जनता को ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है , जिससे की भारतीय जनता पार्टी पर साम्प्रदायिक की मुहर लग जाए .  एक झूठ को रोजाना सौ बार दोहराए जाने पर वो सच लगने लगता है . वास्तविकता ये है की देश की सबसे अधिक उदार और राष्ट्रीय पार्टी है भारतीय जनता पार्टी और सबसे बड़ी कम्युनल पार्टी है कांग्रेस . कांग्रेस का आधार ही मुसलमानों के तुष्टिकरण पर टिका है . सिर्फ तुष्टिकरण - उनका विकास नहीं . तुष्टिकरण के सबसे अच्छे हथियार हैं उनके धार्मिक मुद्दों पर अंधाधुंध समर्थन देना - चाहे वो हज यात्रा में सरकारी सहायता हो , या मुस्लिम पर्सनल ला  जैसा गलत अपवाद . जरूरत पड़ने पर कांग्रेसी नेता सभी मस्जिदों और मजारों पर जाकर कभी चादर चढ़ा देते हैं तो  कभी उनकी सफ़ेद टोपी पहन कर उनके साथ तस्वीरें खिंचवा लेते हैं . और सबसे बड़ा नाटक है इन सभी सेकुलर कहलाने वाले दलों की इफ्तार पार्टी, यानी की मुस्लमान भाइयों के साथ उनके तरीके से उनका त्यौहार मनाना !

नरेन्द्र मोदी की सेकुलर छवि कांग्रेस से कहीं ऊपर है . गुजरात में एक शहर है सलाया . सुदूर पश्चिमी तट पर जामनगर के पास बसा हुआ एक मुस्लिम शहर . मुस्लिम इसलिए की वहां की ४५  हजार की आबादी में करींब  ४१   हजार लोग मुस्लमान हैं . वहां की स्थानीय कार्यपालिका के चुनाव में बी जे पि ने २४  मुस्लमान उमीदवार खड़े किये थे ; २४  के २४  उमीदवार चुनाव जीत गए . सामने खड़े सारे कांग्रेसी उमीदवारों की जमानत जब्त हो गयी . ये जीत थी मोदी सर्कार की मुस्लमान और पिछड़ों के उत्थान की नीति की . सरकारी  और बिकाऊ मिडिया इस खबर को चुपचाप पचा गयी . 

पूरे गुजरात राज्य में यही ट्रेंड रहा है . ७ ६ मुनिसिपल कोर्पोरेसनों में बी जे पी का वर्चस्व रहा है . इन  मुनिसिपल चुनावों  में बी जे पी के उतारे गए १४५ उम्मीदवारों में से ८१  जीते . कोदिनार मुनिसिपलिटी में बी जे पी के आठ के आठ मुस्लमान उम्मीदवार चुनाव जीत गए . जूनागढ़ में हुए बाई इलेक्सन में बी जे पी के दो उम्मीदवारों के सामने कांग्रेस ने कोई प्रतिद्वंदी तक खड़ा नहीं किया . 

अब आयें विधान सभा के चुनावों की तरफ ! दिसंबर २ २ में हुए चुनावों में ३२ मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों में से 22   सीटों में बी जे पी का मत प्रतिशत था ३०  से लेकर ६७ ! मजे की बात ये हैं की विधान सभा चुनावों में बी जे पी ने 1८२   सीटों में एक भी मुस्लमान उम्मीदवार खड़ा नहीं किया . कांग्रेस जरा इस प्रश्न का उत्तर दे की ये सारा  समर्थन मोदी को मिला या किसी और को . ये जीत है नरेन्द्र मोदी के उस नारे की जिसमे उन्होंने पूरे राज्य को ये सन्देश दिया - प्रगति सबकी और तुष्टिकरण किसी का नहीं !

प्रगति का सन्देश सरकारी आंकड़ों से नहीं मिलता , बल्कि जमीनी वास्तविकता से मिलता है . सलाया गाँव में क्या हुआ था ? जिस गाँव में कांग्रेस काल में एक भी सड़क नहीं थी उसमें १ २   किलोमीटर की बढ़िया पक्की सड़के हैं ; जिस गाँव में सरकारी शौच निकास की सुविधा नहीं थी , आज पूरे गाँव के हर घर के पास वह बुनियादी सुविधा है . समुद्री खारे पानी से जीवन यापन  करने को बाध्य ये गाँव आज  पीने का पानी पा रहा है . ऐसे गाँव के मतों को अपनी खोखली सेकुलर वादी नाराबाजी से कौन छीन  सकता है .

विधान सभा के चुनावों में मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों - भुज और वागरा में वहां की जनता ने कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों की जगह मोदी के हिन्दू उम्मीदवारों को चुना . क्यों ? क्योंकि ये चुनाव मोदी का था ! वागरा के  गाँव की कहानी - कांग्रेस ने १९ ६ ७ में वहां एक हस्पताल का निर्माण किया- लेकिन २० ० ७ तक वो मात्र एक भवन था जिसमें हस्पताल  कभी शुरू ही नहीं हुआ . वहां उस समय की सर्कार पशुओं का चारा रखने का काम करती थी . पालेज के स्थानीय नेता दुष्यंत पटेल ने मोदी सर्कार की मदद से २.७0 करोड़ रुपैयों की लागत से उस हस्पताल को शुरू करवाया .उस गाँव में हर महीने औसतन ३0 महिलाएं प्रसव के लिए आती हैं , जो की इसके पहले ३0  किलोमीटर  जाने के लिए बाध्य होती थी . ऐसी जगह के मत कहाँ जायेंगे ?  

भुज क्षेत्र में स्थित मुसलमानी गाँवों को तो जैसे जीवन मिल गया . पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित इन गावों का कोई खैरख्वाह नहीं था . मोदी के पर्यटन के नारे - अगर आपने कच्छ  नहीं देखा तो समझो कुछ नहीं देखा  - ने वहां पर्यटकों की कतारें लगवा दी , जिससे मिला वहां के निवासियों को आमदनी का एक अभूत पूर्व अवसर ! अब बताये की कहाँ जाएँगे  कच्छ के मतदाता !
नितीश कुमार जैसे अवसरवादी को मोदी में सिर्फ २ ० ० २ का दंगा नजर आता है , २00३ का प्रगतिशील घोर मोदी समर्थक गुजराती मुस्लमान नहीं ! सच्चाई ये हैं की नितीश को भय ये था की एक और सत्र के बाद बिहार के सारे मुस्लमान बी जे पी के खाते में चले जायेंगे और उनका अपना आधार खोखला हो जाएगा . और ये होने वाला है पूरे देश में ही !

इस लेख का समापन करता हूँ गुजरात के एक मुस्लमान भाई ज़फर सरेशवाला के ब्लॉग की चाँद पंक्तियों से - आज की सच्चाई ये हैं की गुजरात ने आजादी के बाद ये पहला एक दशक देखा है , जिसमें गुजरात में एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ ; सब की सामान उन्नति हुई है . गुजरात का मुस्लमान आज नरेन्द्र भाई के साथ है , क्योंकि हम 2 0 0 2 के सबसे घ्रणित व्यक्तित्व को भूल कर 2 0 1 4  का एक सबसे सही प्रधान मंत्री पाते हैं .

Thursday, June 13, 2013

हद कर दी आपने

पिछले दिनों जो हुआ वो ठीक नहीं हुआ .भारतीय जनता पार्टी का गोवा अधिवेशन देश के राजनैतिक भविष्य के लिए सुनहरा स्वप्न बन जाता , अगर श्रद्धेय लाल कृष्ण जी अडवाणी ने अपनी अनुपस्थिति से इसमें कसैला स्वाद न भर दिया होता . पार्टी के अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने बहुत चतुराई से अडवाणी जी की अनुपस्थिति को ढकने का प्रयत्न किया . लेकिन अडवाणी जी ने अगले दिन अपना इस्तीफ़ा देकर ही नहीं बल्कि सार्वजनिक कर के अपनी ही पार्टी के नेताओं को झूठा साबित कर दिया .क्या कहा जाए अडवाणी जी की इस हठधर्मिता को !

जब सारा  देश जानता था और सांस रोक कर प्रतीक्षा कर रहा था कि  कब श्री नरेन्द्र मोदी जी पार्टी की कमान संभालें , तब क्या अडवाणी इस दिवास्वप्न में ही थे की भविष्य के नेता वही बने रहेंगे ? क्या उन्हें देश का मिजाज नजर नहीं आता था ? पढ़े लिखे नेता हैं - क्या अलग अलग मिडिया की सर्वे रिपोर्ट से उन्हें ये नहीं पता लग रहा था की नरेन्द्र मोदी ही इस देश के सर्वोच्च चहेते भावी प्रधानमन्त्री हैं ? यहाँ तक की कांग्रेस के राहुल गाँधी तक की हिम्मत नहीं पड़ी की वो मोदी के सामने अपनी दावेदारी पेश करें ; ऐसे में अडवाणी जी ने अपने सारे जीवन की नेकनामी को धता बता कर ये बचकाना काम किया .

अगर अडवाणी जी के दृष्टिकोण को समझाने का प्रयास किया जाए तो उनका विरोध किस बात का था -

१. नरेन्द्र मोदी की जगह उनका नाम भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में लिया जाता ? दो दो चुनावों को हारने के बाद देश की जनता तो क्या उनकी पार्टी के नेता भी उनकी दावेदारी को मानने से इनकार कर देते . कांग्रेस तो हमेशा ही उनका मजाक उडाती है उन्हें स्थाई प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री के नाम से .

२. अगर वो चाहते थे की नरेन्द्र मोदी की जगह उनका कोई चहेता इस पद पर हो , तो कौन हो ? सुषमा स्वराज , अरुण जेटली, गडकरी या फिर राजनाथ सिंह ? हालांकि ये सारे नेता बहुत मंजे हुए नेता हैं , लेकिन मोदी जैसी सफलता और उससे मिली लोकप्रियता का इतिहास किसी के पास नहीं है . यही कारण  है की गोवा अधिवेशन में अडवाणी जी की नाराजगी के उपरांत भी इन सभी ने मोदी जी के नाम का समर्थन किया .

३. अगर अडवाणी जी को ये लगता है की कहीं उनकी उपेक्षा हुई थी , तो ये विषय पार्टी के आन्तरिक  स्तर  पर होना चाहिए था , ना की सारे देश की मिडिया में ! इस से तो उनकी भद्द ही उडी है . अगर किसी का अपमान हुआ है तो वो हैं पार्टी के अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह - जिनकी घोषणा और निर्णय को अडवाणी जी ने सार्वजनिक रूप से नकार दिया .

सबसे बड़ा अपराध अडवाणी जी ने जो किया , वो है २०१ ४ में होने वाले संसदीय चुनाव के पहले उन्होंने अपने ही लगाए और बढ़ाये हुए वृक्ष की जड़ काटने की कोशिश की . उनका पत्र पूरी पार्टी और उसके नेताओं को आरोपित करता है . और आरोप क्या है ? आरोप ये है की पार्टी का हर नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए लड़ रहा है . मेरी दृष्टि में तो , अडवाणी  जी , ये आरोप सबसे अधिक आप पर ही लगता है . आप अपने सपनों में ही खोये रहे , कभी जमीनी वास्तविकता को समझने की कोशिश नहीं की .

अडवाणी जी ! आप के इस बचकाने कदम के लिए ये देश आपको कभी माफ़ नहीं करेगा !


Friday, May 31, 2013

नौटंकी और पीड़ा -एक लघु कथा

सेठजी मंदिर में पहुंचे . भगवन की प्रतिमा को दंडवत किया . उसके बाद पुजारी जी से कहा - पुजारीजी , आज मेरे बेटे का जन्मदिन है , आशीर्वाद दीजिये .पुजारीजी ने प्रतिमा के चरणों से एक फूल  उठाया और सेठजी को दे दिया . सेठजी ने दान पात्र में डालने के लिए जेब से हजार हजार के पांच नोट निकाले ; पुजारी जी ने रोका - ये शुभ दिन का चढ़ावा  है , ईश्वर की मूर्ति पर ही रहेगा  पूरे दिन ; यह कह कर पुजारी जी ने इश्वर की प्रतिमा पर पैर के नीचे सरका दिए . सेठ जी कृत कृत हो गए . प्रणाम कर के  बाहर   निकल गए . पुजारी जी ने नोटों का पुलिंदा धीरे से जेब में डाल  लिया .

मंदिर के बाहर सेठजी अपनी गाडी में बैठने जा रहे थे , तभी एक भिखारिन बुढिया  ने पुकार दी - बेटा , तेरे बेटे पोते सौ साल जियें , इस गरीब बुढिया की  दवा के लिए पैसे दे जाओ . सेठजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए गाडी का दरवाजा बंद किया और बोले - सब साले नौटंकी करते हैं .

ईश्वर देख रहा था मंदिर के अन्दर की नौटंकी  और बाहर की पीड़ा !



Sunday, February 17, 2013

मानवीय दृष्टिकोण और अफज़ल गुरु की फांसी

  अफज़ल गुरु को फांसी हो ही गयी . ये फांसी तो तय हो चुकी थी 7-8 वर्षों पहले  ही . ये तो होनी ही थी और होनी चाहिए भी थी, इसलिए हो भी गयी। मुद्दा ये तो हो ही नहीं सकता की अफज़ल गुरु को फांसी क्यों दी गयी !
मुद्दा ये है की फांसी इतनी चुपचाप और जल्दी बाजी में क्यों दी गयी .

सर्कार ने बहुत समझदारी से काम लिया है . अगर ये खबर किसी भी रूप में बाहर आ जाती तो कश्मीर की घाटी में बैठे अलगाव वादी गुट ऐसी  आतंक की स्थिति पैदा कर देते , कि  सरकार के लिए फांसी देने का काम धर्म संकट हो जाता.

जम्मू कश्मीर के विभाजनवादी गुटों का प्रलाप तो समझ में आता है , लेकिन  वहां के मुख्य मंत्री श्री  ओमर अब्दुल्ला ने फांसी के 2-3 दिन बाद  सुर बदल लिए . उनको शिकायत थी की गुरु की पत्नी को पहले क्यों नहीं मिलवाया गया ; यहाँ तक की फांसी की सरकारी सूचना भी उन्हें डाक घर के माध्यम से भेजी गयी . ये भी आरोप लगा की देश के कानून के अनुसार अफज़ल गुरु को अपने परिवार से मिलने  का अधिकार था .

मानव अधिकार और   मानवीय दृष्टिकोण मानव के लिए होता है . अफज़ल गुरु जैसे खूंखार आतंकवादी के साथ मानवता और उसके अधिकारों का सवाल बेमानी है . क्या ये आतंकवादी उन निर्दोष निरपराध और मासूम लोगों को ये  मौका  देते हैं की पहले जाकर अपने परिवार से मिल आओ , उसके बाद  बम  फोड़ेंगे . संसद की रक्षा में शहीद होने वाले बहादुर सैनिक क्या अपने घर वालों से ये कह के आये थे की शाम को नहीं लौटेंगे .

पागल कुत्तों को  सीधा गोली मारना पड़ता है ,  उनके साथ पालतू कुत्तों के जैसा व्यवहार नहीं होता . जहाँ तक अफज़ल गुरु के परिवार के साथ किसी प्रकार के अन्याय होने का सवाल है - तो सबसे बड़ा अन्याय उनके साथ किया है खुद अफज़ल गुरु ने . क्या उसे पता नहीं था कि जिस रस्ते पर वो चल रहा  था  , वो  सीधा फांसी  के तख्ते तक जाता है . खुद अफज़ल ने ही अपनी पत्नी के लिए दुखों की वसीयत लिख दी थी .

ओमर अब्दुला जैसे नेता की प्रतिक्रिया उनकी गलत सहानुभूति का सन्देश ही देती है .  

Friday, February 15, 2013

नोट काउंटर : एक लघु कथा


सेठजी पहुँच गए एक इलेक्ट्रोनिक सामान की दुकान पर। सेल्समैन से पुछा - भाई , क्या तुम नोट गिनने वाली मशीन बेचते हो ? सेल्समैन खुश   होकर बोला - जी हाँ सेठजी ! बिलकुल बेचते हैं  ,  दिखाऊँ ?
सेठजी ने कहा दिखाओ। सेल्समैन ने बिलकुल नयी  मशीन निकाली , उसमें बैटरी डाली , दराज से एक नोटों की गड्डी निकाली , मशीन में गड्डी को डाला ; बटन दबाते हुए ही मशीन ने फटाफट नोटों को गिनना शुरू किया . कुछ सेकेंडों में गिनती समाप्त हो गयी . गिनती पूरे सौ बता रही थी .

सेल्समैन ने कहा - साहब पैककर दूं ?
सेठजी ने कहा - कितने की है ?
सेल्समैन बोल - जी सिर्फ चार हजार  रुपैये की ! पैक कर दूँ ?
सेठजी ने कहा - पहले पैसे तो लेलो . ऐसा कह कर सेठ जी ने दस दस के नोटों की चार गड्डियां  निकाली और सेल्समैन की तरफ बढाई .
सेल्समैन थोडा झिझका - साहब बड़े नोट नहीं है क्या ? इतने कौन गिनेगा ? सेठजी ने कहा - क्यों ये है न मशीन ?
सेल्समैन सकुचाते हुए बोला - साहब मशीन से गिनने के बाद भी मुझे फिर गिनना पड़ेगा। हमारे मालिक की ये पालिसी है।
सेठजी ने पैसे वापस जेब में डाल  लिए। बोले - जिस मशीन पर तुम्हारे  मालिक  की विश्वास  न करने की पोलिसी  है , उस मशीन पर मैं भला कैसे विश्वास  करूंगा ?
और सेठजी बिना   मशीन ख़रीदे ही चल  दिए। 

Saturday, January 26, 2013

गणतंत्र दिवस का संगीत


रोज की तरह आज भी सुबह की सैर के लिए बगीचे में गया . रोज मिलने वाले लोग मिलने लगे . मजे की बात ये है की कोई भी व्यक्ति किसी को देश के गणतंत्र दिवस की बधाई नहीं दे रहा था . मैंने एक दो लोगों को दी तो उनका उत्तर कुछ इस अंदाज में आया जैसे की ये कोई बधाई देने की बात न हो . मजे की बात ये है की दिवाली , नया वर्ष, क्रिश्मस आदि पर हर व्यक्ति एक दूसरे  को बधाई देता हुआ नजर आता है .

पार्क में रोज बजने वाला भजन भी आज नहीं बज रहा था . इतने में कहीं से एक बांसुरी बजने की धुन सुनाई पड़ी . बांसुरी पर कोई व्यक्ति एक मधुर धुन बजा रहा था - मेरे देश की धरती सोना उगले ....! चूँकि वो पार्क के बाहर  से बजा रहा था इसलिए उसे देख पाना  संभव नहीं था .  लेकिन एक के बाद एक उसने जो  धुनें बजायी , जैसे की - ऐ मेरे वतन के लोगों , दे दी हमें आजादी , आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ ...........वगैरह  , ऐसा लगा जैसे उसने गणतंत्र दिवस की इस सुबह को एक राष्ट्रीय जलसे की खुशबू से भर दिया . ऐसा जलसा जिसमे न कोई भाषण थे , न कोई आयोजक , न कोई मंच और न कोई माइक . श्रोता थे आस पास के सभी लोग और केंद्र था वो बांसुरी वाला जो किसी को नजर नहीं आ रहा था .

पार्क के बाहर निकल कर मैंने उस बांसुरी वाले को ढूँढा . वो पार्क  के बाहर एक दिवार के पास अपनी बांसुरियों का एक बहुत बड़ा गुलदस्ता सा  बना कर बजा रहा था , और बेचने की कोशिश कर रहा  था . मैंने उसे गणतंत्र दिवस की बधाई दी , उसके संगीत की तारीफ की और फिर सौ रुपैये में एक अच्छी सी बांसुरी खरीदी .

बचपन में स्कूल में बांसुरी सीखी थी ; उसे ही याद कर के बजाने  की कोशिश कर रहा  हूँ . बांसुरी जैसी भी बजे बहरहाल मैं बहुत खुश हूँ .

मेरे प्रत्येक पाठक को भारत के गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई !

Wednesday, January 23, 2013

सेवा भाव या सेवा का भाव : एक लघु कथा

श्रीमान सेवक राम सफ़र कर रहे थे रेल से . आराम से बैठे बैठे अपनी पत्नी जी सी बातें कर रहें थे - अपने सेल फोन पर। उनके पास की साइड वाली सीट पर एक सज्जन उन्हें देखे जा रहे थे . जैसे ही सेवक राम जी ने अपनी बात समाप्त की , वो सज्जन तपाक  से उठ कर आये और बोले - श्रीमानजी , मैं आप से एक मदद चाहता हूँ . मैं पिछले स्टेसन से ही चढ़ा हूँ . मुझे पता चला की शहर  में मेरे बेटे के साथ  कोई हादसा  हो गया है;इसलिए सुनते ही मैंने ये गाडी पकड़ ली . लेकिन अब मुझे बहुत बेचैनी हो रही है . क्या मैं आपके सेल फोन से वहां बात कर के पता कर  सकता हूँ की मेरा बेटा  खतरे से बाहर  हुआ कि  नहीं ?

सेवक राम जी अपने स्वभाव के अनुसार पूरी सहानुभूति दिखाते हुए बोले - ये लीजिये भाई साहब , ये कोई पूछने की बात है . सज्जन ने नंबर मिलाया और तमिल भाषा में जोर जोर से बात की . बात मुश्किल से 20-30 सेकेण्ड हुई . सेवक राम जी ने पुछा - क्या हुआ , भाई साहब ?

सज्जन ने कहा - सामने वाले ने बताया की बेटा आई सी यु में है , और डॉक्टर साहब उसके पास है ; इसलिए उन्होंने आधे घंटे बाद फोन करने को कहा है . सेवक राम ने कहा - बेफिक्र होकर आप फिर बात कर लीजियेगा . सज्जन ने दो घंटों  के दौरान 3 बार उनके  फोन का प्रयोग किया . एक बड़े स्टेसन पर वो सज्जन  सेवक राम जी के प्रति पूरी कृतज्ञता का ज्ञापन कर के उतर गए .

सेवक राम जी अपनी इस समाज सेवा से बहुत संतुष्ट थे . थोड़ी देर बाद उनके फोन पर घंटी बजी . उन्होंने उठाया तो कोई बोला  ही नहीं . एक मिनट बाद फिर घंटी बजी , फिर कोई आवाज नहीं आई . तीसरी बार घंटी बजी तो सेवक राम जी ने 3-4 घंटी बजने की प्रतीक्षा की ; तभी उन्होंने अचानक  देखा की 5-7 पुलिस वाले दौड़ते हुए डिब्बे में आये उनकी सीट के पास पहुंचे . सेवक राम जी के फोन की घन्टी  अभी भी  बज रही थी . एक पुलिस वाले ने उन्हें देखा , फिर उनके हाथ में बजते  हुए  सेल  को देखा . जोर से चिल्लाया - 'साहब मिल गया . यही है '. 

तीन चार पुलिस वाले झपट पड़े उसके ऊपर . उन्होंने सेवक राम के हाथों को कास कर पकड़ लिया . उनके पीछे से आया सिनिअर पुलिस अफसर . सेवक राम की तरफ देखा ऊपर से नीचे की तरफ . फिर उन्हें दिखाते हुए अपने हाथ के सेल फोन को दिखाया और दुसरे हाथ से उसकी लाइन काटी . उधर सेवक  राम के सेल के फोन की घंटी बजनी बंद हो गयी .

इन्स्पेक्टर ने मूछों पर ताव देते हुए कहा - बड़ी अच्छी जगह ढूंढी है साले , फिरौती की रकम मांगने के लिए . ताकि तू इस गाडी में आगे बढ़ता जाए और पुलिस तेरी खोज न कर सके . लेकिन तू बेवक़ूफ़ है , ये नहीं समझता की जब तू रेलगाड़ी से फोन करता है तो सामने वाले को भी रेल गाडी की आवाज सुनती  है . चल बच्चू , अब बता कहाँ अगवा कर के छुपाया है बच्चे को ?

ये कहते कहते 4-5 जोरदार घूंसे जमा दिए सेवक राम के शरीर पर जहाँ तहां . सेवक राम के अंदर इतनी ताकत नहीं बची थी की वो कुछ भी बता पाता  . आज सेवाभाव का भाव उसे पता चल गया .  

Tuesday, January 1, 2013

अपराधी कौन ?




आइये आपको कुछ सच्ची घटनाएँ बताऊँ -
 
१. तमिलनाडु के गोविंदसामी ने १९८४ में अपने पांच रिश्तेदारों को नींद में ही मार डाला . अदालत ने उसे  फांसी की सजा सुना दी . उसकी फांसी की २२ वर्ष की इन्तजार के दौरान उसकी  जीवन दान के लिए की गयी तीन प्रार्थनाएं ठुकरा दी गयी .
 
२.  झारखण्ड के हजारीबाग जिले में ११ दिसंबर १९९६ को एक नौ वर्षीय बालक चिर्कु बेसरा अचानक गायब हो गया . बाद में पता चला की उसी इलाके का एक व्यक्ति सुशील मुर्मू चिर्कु को बहला फुसला कर ले गया और देवी काली को प्रसन्न करने के लिए उसकी बलि चढ़ा दी . मुर्मू का इतिहास ऐसी ही घटनाओं से भरा था ; उसने इसके पहले एक बार अपने ही भाई की बलि इसी प्रकार दे दी थी .२००४ में अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी . सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया .

३. १९९४ में धर्मेन्द्र सिंह और नरेन्द्र  यादव ने उत्तर प्रदेश में पांच लोगों के एक परिवार को मौत के घाट उतार दिया, जिनमे एक १५ साल की लड़की भी थी जिसका बलात्कार करने की नाकाम कोशिश नरेन्द्र यादव कुछ दिनों पहले कर चूका था , और बाद में उसने धर्मेन्द्र सिंह की मदद से पूरे परिवार को सबक सिखाने का फैसला किया .तीन व्यक्तियों के सर काट दिए गए और एक दस साल का बच्चा जिन्दा आग में झोंक  दिया गया. अदालत ने दोनों की मौत की सजा सुना दी .
 
४. बिहार के भभुआ जिले में स्थित तिरोजपुर दुर्गावती गाँव के शोभित चमार ने एक सवर्ण परिवार के ६ सदस्यों, जिनमे दो बच्चे थे 8 और १० साल के ,   को निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया . उसे संदेह था की उसके भाई की हत्या में उस परिवार का हाथ था . १९९८ में सुप्रीमकोर्ट ने इस अपराध को जघन्य बताया क्योंकि इस पैशाचिक काण्ड के बाद शोभित चमार खुशियाँ मना रहा था, अदालत ने उसे मौत की सजा सुना दी .
५. २० फरवरी , १९९६ को मोलाई राम नाम का व्यक्ति सेन्ट्रल जेल , रेवा , मध्य प्रदेश के अन्दर अपनी ड्यूटी पर था  यानि की जेलर साहब के क्वार्टर के  बाहर  पहरेदारी . उसी जेल में था एक कैदी संतोष यादव जो एक बलात्कार के काण्ड में सजा काट रहा था . उस दिन संतोष यादव की ड्यूटी लगी थी जेलर साहब के घर के बाहर बगीचे के रख रखाव की . तभी बाहर आ गयी जेलर साहब की बच्ची , संतोष यादव और मोलाई राम ने मिलकर उसका  बलात्कार किया और उसे एक सेप्टिक टैंक में डाल दिया . अदालत ने दोनों के लिए सजा ऐ मौत सुना दी .

आप जानना चाहेंगे की इन सब घटनाओं का जिक्र मैं यहाँ क्यों कर रहा हूँ ? इन सब घटनाओं में क्या समानताएं हैं ?

इन सब घटनाओं में सिर्फ एक समानता है की इन सब अपराधियों को हमारी पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती  प्रतिभा  पाटिल  जी  ने जीवन दान दे दिया . इस जीवन दान की क्या प्रक्रिया है ये तो मुझे पूरी तरह नहीं मालूम  लेकिन ये मालूम है की अपने राष्ट्रपति काल में उन्होंने कमाल किया ; अपने अंतिम २८ महीनों में उन्होंने एक के बाद एक ३० लोगों का प्राण दंड माफ़ कर दिया . इन तीस लोगों में से २२ अपराधी ऐसे हैं जिन्होंने  जघन्य  बहु - हत्या  और बलात्कार  का अपराध किया है , जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं . जिन लोगों को देश के सर्वोच्च न्यायलय ने इस समाज में जीवित रहने के काबिल नहीं समझा  उन्हें राष्ट्रपति महोदय से फिर  वो अधिकार मिल गया .  क्या ऐसे अपराधी किसी भी प्रकार की दया के हकदार थे .

एक और मजे की बात ये हैं की स्वतंत्र भारत में जितने भी राष्ट्रपति आज तक  हुए हैं और उन सब ने मिल कर जितने भी प्राण दंड क्षमा किये हैं उस पूरी संख्या का ९० प्रतिशत का श्रेय एक मात्र श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी को जाता है .      

अब कोई ये बताये की सरकार द्वारा आये दिन किये जा रहे कड़े कानून बनाने के वायदों का कोई अर्थ है जिसके अनुसार वो ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाना चाहते हैं . उस कानून का क्या लाभ होगा , जब की  भारत का सर्वोच्च व्यक्ति बिना किसी स्पष्टीकरण के उन अपराधियों को बचा लेगा . मेरी प्रार्थना है सभी राजनैतिक दलों से की अपने नए कानून के प्रावधानों में एक प्रावधान ये भी  होना चाहिए की राष्ट्रपति के पास किसी भी सजा को माफ़ करने का कोई प्रावधान नहीं होगा . आप क्या कहते हैं ?