पिछले दिनों जो हुआ वो ठीक नहीं हुआ .भारतीय जनता पार्टी का गोवा अधिवेशन देश के राजनैतिक भविष्य के लिए सुनहरा स्वप्न बन जाता , अगर श्रद्धेय लाल कृष्ण जी अडवाणी ने अपनी अनुपस्थिति से इसमें कसैला स्वाद न भर दिया होता . पार्टी के अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने बहुत चतुराई से अडवाणी जी की अनुपस्थिति को ढकने का प्रयत्न किया . लेकिन अडवाणी जी ने अगले दिन अपना इस्तीफ़ा देकर ही नहीं बल्कि सार्वजनिक कर के अपनी ही पार्टी के नेताओं को झूठा साबित कर दिया .क्या कहा जाए अडवाणी जी की इस हठधर्मिता को !
जब सारा देश जानता था और सांस रोक कर प्रतीक्षा कर रहा था कि कब श्री नरेन्द्र मोदी जी पार्टी की कमान संभालें , तब क्या अडवाणी इस दिवास्वप्न में ही थे की भविष्य के नेता वही बने रहेंगे ? क्या उन्हें देश का मिजाज नजर नहीं आता था ? पढ़े लिखे नेता हैं - क्या अलग अलग मिडिया की सर्वे रिपोर्ट से उन्हें ये नहीं पता लग रहा था की नरेन्द्र मोदी ही इस देश के सर्वोच्च चहेते भावी प्रधानमन्त्री हैं ? यहाँ तक की कांग्रेस के राहुल गाँधी तक की हिम्मत नहीं पड़ी की वो मोदी के सामने अपनी दावेदारी पेश करें ; ऐसे में अडवाणी जी ने अपने सारे जीवन की नेकनामी को धता बता कर ये बचकाना काम किया .
अगर अडवाणी जी के दृष्टिकोण को समझाने का प्रयास किया जाए तो उनका विरोध किस बात का था -
१. नरेन्द्र मोदी की जगह उनका नाम भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में लिया जाता ? दो दो चुनावों को हारने के बाद देश की जनता तो क्या उनकी पार्टी के नेता भी उनकी दावेदारी को मानने से इनकार कर देते . कांग्रेस तो हमेशा ही उनका मजाक उडाती है उन्हें स्थाई प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री के नाम से .
२. अगर वो चाहते थे की नरेन्द्र मोदी की जगह उनका कोई चहेता इस पद पर हो , तो कौन हो ? सुषमा स्वराज , अरुण जेटली, गडकरी या फिर राजनाथ सिंह ? हालांकि ये सारे नेता बहुत मंजे हुए नेता हैं , लेकिन मोदी जैसी सफलता और उससे मिली लोकप्रियता का इतिहास किसी के पास नहीं है . यही कारण है की गोवा अधिवेशन में अडवाणी जी की नाराजगी के उपरांत भी इन सभी ने मोदी जी के नाम का समर्थन किया .
३. अगर अडवाणी जी को ये लगता है की कहीं उनकी उपेक्षा हुई थी , तो ये विषय पार्टी के आन्तरिक स्तर पर होना चाहिए था , ना की सारे देश की मिडिया में ! इस से तो उनकी भद्द ही उडी है . अगर किसी का अपमान हुआ है तो वो हैं पार्टी के अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह - जिनकी घोषणा और निर्णय को अडवाणी जी ने सार्वजनिक रूप से नकार दिया .
सबसे बड़ा अपराध अडवाणी जी ने जो किया , वो है २०१ ४ में होने वाले संसदीय चुनाव के पहले उन्होंने अपने ही लगाए और बढ़ाये हुए वृक्ष की जड़ काटने की कोशिश की . उनका पत्र पूरी पार्टी और उसके नेताओं को आरोपित करता है . और आरोप क्या है ? आरोप ये है की पार्टी का हर नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए लड़ रहा है . मेरी दृष्टि में तो , अडवाणी जी , ये आरोप सबसे अधिक आप पर ही लगता है . आप अपने सपनों में ही खोये रहे , कभी जमीनी वास्तविकता को समझने की कोशिश नहीं की .
अडवाणी जी ! आप के इस बचकाने कदम के लिए ये देश आपको कभी माफ़ नहीं करेगा !
जब सारा देश जानता था और सांस रोक कर प्रतीक्षा कर रहा था कि कब श्री नरेन्द्र मोदी जी पार्टी की कमान संभालें , तब क्या अडवाणी इस दिवास्वप्न में ही थे की भविष्य के नेता वही बने रहेंगे ? क्या उन्हें देश का मिजाज नजर नहीं आता था ? पढ़े लिखे नेता हैं - क्या अलग अलग मिडिया की सर्वे रिपोर्ट से उन्हें ये नहीं पता लग रहा था की नरेन्द्र मोदी ही इस देश के सर्वोच्च चहेते भावी प्रधानमन्त्री हैं ? यहाँ तक की कांग्रेस के राहुल गाँधी तक की हिम्मत नहीं पड़ी की वो मोदी के सामने अपनी दावेदारी पेश करें ; ऐसे में अडवाणी जी ने अपने सारे जीवन की नेकनामी को धता बता कर ये बचकाना काम किया .
अगर अडवाणी जी के दृष्टिकोण को समझाने का प्रयास किया जाए तो उनका विरोध किस बात का था -
१. नरेन्द्र मोदी की जगह उनका नाम भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में लिया जाता ? दो दो चुनावों को हारने के बाद देश की जनता तो क्या उनकी पार्टी के नेता भी उनकी दावेदारी को मानने से इनकार कर देते . कांग्रेस तो हमेशा ही उनका मजाक उडाती है उन्हें स्थाई प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री के नाम से .
२. अगर वो चाहते थे की नरेन्द्र मोदी की जगह उनका कोई चहेता इस पद पर हो , तो कौन हो ? सुषमा स्वराज , अरुण जेटली, गडकरी या फिर राजनाथ सिंह ? हालांकि ये सारे नेता बहुत मंजे हुए नेता हैं , लेकिन मोदी जैसी सफलता और उससे मिली लोकप्रियता का इतिहास किसी के पास नहीं है . यही कारण है की गोवा अधिवेशन में अडवाणी जी की नाराजगी के उपरांत भी इन सभी ने मोदी जी के नाम का समर्थन किया .
३. अगर अडवाणी जी को ये लगता है की कहीं उनकी उपेक्षा हुई थी , तो ये विषय पार्टी के आन्तरिक स्तर पर होना चाहिए था , ना की सारे देश की मिडिया में ! इस से तो उनकी भद्द ही उडी है . अगर किसी का अपमान हुआ है तो वो हैं पार्टी के अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह - जिनकी घोषणा और निर्णय को अडवाणी जी ने सार्वजनिक रूप से नकार दिया .
सबसे बड़ा अपराध अडवाणी जी ने जो किया , वो है २०१ ४ में होने वाले संसदीय चुनाव के पहले उन्होंने अपने ही लगाए और बढ़ाये हुए वृक्ष की जड़ काटने की कोशिश की . उनका पत्र पूरी पार्टी और उसके नेताओं को आरोपित करता है . और आरोप क्या है ? आरोप ये है की पार्टी का हर नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए लड़ रहा है . मेरी दृष्टि में तो , अडवाणी जी , ये आरोप सबसे अधिक आप पर ही लगता है . आप अपने सपनों में ही खोये रहे , कभी जमीनी वास्तविकता को समझने की कोशिश नहीं की .
अडवाणी जी ! आप के इस बचकाने कदम के लिए ये देश आपको कभी माफ़ नहीं करेगा !
I don't think any sane person in India will have any other thought on this. Mr. L. K. Advani has tarnished his own image to irreparable extent. I am compelled to re-think if it is true that after 60 "aadmi 'SATHIYA' jaata hai".
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