नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, May 31, 2013

नौटंकी और पीड़ा -एक लघु कथा

सेठजी मंदिर में पहुंचे . भगवन की प्रतिमा को दंडवत किया . उसके बाद पुजारी जी से कहा - पुजारीजी , आज मेरे बेटे का जन्मदिन है , आशीर्वाद दीजिये .पुजारीजी ने प्रतिमा के चरणों से एक फूल  उठाया और सेठजी को दे दिया . सेठजी ने दान पात्र में डालने के लिए जेब से हजार हजार के पांच नोट निकाले ; पुजारी जी ने रोका - ये शुभ दिन का चढ़ावा  है , ईश्वर की मूर्ति पर ही रहेगा  पूरे दिन ; यह कह कर पुजारी जी ने इश्वर की प्रतिमा पर पैर के नीचे सरका दिए . सेठ जी कृत कृत हो गए . प्रणाम कर के  बाहर   निकल गए . पुजारी जी ने नोटों का पुलिंदा धीरे से जेब में डाल  लिया .

मंदिर के बाहर सेठजी अपनी गाडी में बैठने जा रहे थे , तभी एक भिखारिन बुढिया  ने पुकार दी - बेटा , तेरे बेटे पोते सौ साल जियें , इस गरीब बुढिया की  दवा के लिए पैसे दे जाओ . सेठजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए गाडी का दरवाजा बंद किया और बोले - सब साले नौटंकी करते हैं .

ईश्वर देख रहा था मंदिर के अन्दर की नौटंकी  और बाहर की पीड़ा !



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