नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, February 15, 2013

नोट काउंटर : एक लघु कथा


सेठजी पहुँच गए एक इलेक्ट्रोनिक सामान की दुकान पर। सेल्समैन से पुछा - भाई , क्या तुम नोट गिनने वाली मशीन बेचते हो ? सेल्समैन खुश   होकर बोला - जी हाँ सेठजी ! बिलकुल बेचते हैं  ,  दिखाऊँ ?
सेठजी ने कहा दिखाओ। सेल्समैन ने बिलकुल नयी  मशीन निकाली , उसमें बैटरी डाली , दराज से एक नोटों की गड्डी निकाली , मशीन में गड्डी को डाला ; बटन दबाते हुए ही मशीन ने फटाफट नोटों को गिनना शुरू किया . कुछ सेकेंडों में गिनती समाप्त हो गयी . गिनती पूरे सौ बता रही थी .

सेल्समैन ने कहा - साहब पैककर दूं ?
सेठजी ने कहा - कितने की है ?
सेल्समैन बोल - जी सिर्फ चार हजार  रुपैये की ! पैक कर दूँ ?
सेठजी ने कहा - पहले पैसे तो लेलो . ऐसा कह कर सेठ जी ने दस दस के नोटों की चार गड्डियां  निकाली और सेल्समैन की तरफ बढाई .
सेल्समैन थोडा झिझका - साहब बड़े नोट नहीं है क्या ? इतने कौन गिनेगा ? सेठजी ने कहा - क्यों ये है न मशीन ?
सेल्समैन सकुचाते हुए बोला - साहब मशीन से गिनने के बाद भी मुझे फिर गिनना पड़ेगा। हमारे मालिक की ये पालिसी है।
सेठजी ने पैसे वापस जेब में डाल  लिए। बोले - जिस मशीन पर तुम्हारे  मालिक  की विश्वास  न करने की पोलिसी  है , उस मशीन पर मैं भला कैसे विश्वास  करूंगा ?
और सेठजी बिना   मशीन ख़रीदे ही चल  दिए। 

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