नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Saturday, January 26, 2013

गणतंत्र दिवस का संगीत


रोज की तरह आज भी सुबह की सैर के लिए बगीचे में गया . रोज मिलने वाले लोग मिलने लगे . मजे की बात ये है की कोई भी व्यक्ति किसी को देश के गणतंत्र दिवस की बधाई नहीं दे रहा था . मैंने एक दो लोगों को दी तो उनका उत्तर कुछ इस अंदाज में आया जैसे की ये कोई बधाई देने की बात न हो . मजे की बात ये है की दिवाली , नया वर्ष, क्रिश्मस आदि पर हर व्यक्ति एक दूसरे  को बधाई देता हुआ नजर आता है .

पार्क में रोज बजने वाला भजन भी आज नहीं बज रहा था . इतने में कहीं से एक बांसुरी बजने की धुन सुनाई पड़ी . बांसुरी पर कोई व्यक्ति एक मधुर धुन बजा रहा था - मेरे देश की धरती सोना उगले ....! चूँकि वो पार्क के बाहर  से बजा रहा था इसलिए उसे देख पाना  संभव नहीं था .  लेकिन एक के बाद एक उसने जो  धुनें बजायी , जैसे की - ऐ मेरे वतन के लोगों , दे दी हमें आजादी , आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ ...........वगैरह  , ऐसा लगा जैसे उसने गणतंत्र दिवस की इस सुबह को एक राष्ट्रीय जलसे की खुशबू से भर दिया . ऐसा जलसा जिसमे न कोई भाषण थे , न कोई आयोजक , न कोई मंच और न कोई माइक . श्रोता थे आस पास के सभी लोग और केंद्र था वो बांसुरी वाला जो किसी को नजर नहीं आ रहा था .

पार्क के बाहर निकल कर मैंने उस बांसुरी वाले को ढूँढा . वो पार्क  के बाहर एक दिवार के पास अपनी बांसुरियों का एक बहुत बड़ा गुलदस्ता सा  बना कर बजा रहा था , और बेचने की कोशिश कर रहा  था . मैंने उसे गणतंत्र दिवस की बधाई दी , उसके संगीत की तारीफ की और फिर सौ रुपैये में एक अच्छी सी बांसुरी खरीदी .

बचपन में स्कूल में बांसुरी सीखी थी ; उसे ही याद कर के बजाने  की कोशिश कर रहा  हूँ . बांसुरी जैसी भी बजे बहरहाल मैं बहुत खुश हूँ .

मेरे प्रत्येक पाठक को भारत के गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई !

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