नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, January 1, 2013

अपराधी कौन ?




आइये आपको कुछ सच्ची घटनाएँ बताऊँ -
 
१. तमिलनाडु के गोविंदसामी ने १९८४ में अपने पांच रिश्तेदारों को नींद में ही मार डाला . अदालत ने उसे  फांसी की सजा सुना दी . उसकी फांसी की २२ वर्ष की इन्तजार के दौरान उसकी  जीवन दान के लिए की गयी तीन प्रार्थनाएं ठुकरा दी गयी .
 
२.  झारखण्ड के हजारीबाग जिले में ११ दिसंबर १९९६ को एक नौ वर्षीय बालक चिर्कु बेसरा अचानक गायब हो गया . बाद में पता चला की उसी इलाके का एक व्यक्ति सुशील मुर्मू चिर्कु को बहला फुसला कर ले गया और देवी काली को प्रसन्न करने के लिए उसकी बलि चढ़ा दी . मुर्मू का इतिहास ऐसी ही घटनाओं से भरा था ; उसने इसके पहले एक बार अपने ही भाई की बलि इसी प्रकार दे दी थी .२००४ में अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी . सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया .

३. १९९४ में धर्मेन्द्र सिंह और नरेन्द्र  यादव ने उत्तर प्रदेश में पांच लोगों के एक परिवार को मौत के घाट उतार दिया, जिनमे एक १५ साल की लड़की भी थी जिसका बलात्कार करने की नाकाम कोशिश नरेन्द्र यादव कुछ दिनों पहले कर चूका था , और बाद में उसने धर्मेन्द्र सिंह की मदद से पूरे परिवार को सबक सिखाने का फैसला किया .तीन व्यक्तियों के सर काट दिए गए और एक दस साल का बच्चा जिन्दा आग में झोंक  दिया गया. अदालत ने दोनों की मौत की सजा सुना दी .
 
४. बिहार के भभुआ जिले में स्थित तिरोजपुर दुर्गावती गाँव के शोभित चमार ने एक सवर्ण परिवार के ६ सदस्यों, जिनमे दो बच्चे थे 8 और १० साल के ,   को निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया . उसे संदेह था की उसके भाई की हत्या में उस परिवार का हाथ था . १९९८ में सुप्रीमकोर्ट ने इस अपराध को जघन्य बताया क्योंकि इस पैशाचिक काण्ड के बाद शोभित चमार खुशियाँ मना रहा था, अदालत ने उसे मौत की सजा सुना दी .
५. २० फरवरी , १९९६ को मोलाई राम नाम का व्यक्ति सेन्ट्रल जेल , रेवा , मध्य प्रदेश के अन्दर अपनी ड्यूटी पर था  यानि की जेलर साहब के क्वार्टर के  बाहर  पहरेदारी . उसी जेल में था एक कैदी संतोष यादव जो एक बलात्कार के काण्ड में सजा काट रहा था . उस दिन संतोष यादव की ड्यूटी लगी थी जेलर साहब के घर के बाहर बगीचे के रख रखाव की . तभी बाहर आ गयी जेलर साहब की बच्ची , संतोष यादव और मोलाई राम ने मिलकर उसका  बलात्कार किया और उसे एक सेप्टिक टैंक में डाल दिया . अदालत ने दोनों के लिए सजा ऐ मौत सुना दी .

आप जानना चाहेंगे की इन सब घटनाओं का जिक्र मैं यहाँ क्यों कर रहा हूँ ? इन सब घटनाओं में क्या समानताएं हैं ?

इन सब घटनाओं में सिर्फ एक समानता है की इन सब अपराधियों को हमारी पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती  प्रतिभा  पाटिल  जी  ने जीवन दान दे दिया . इस जीवन दान की क्या प्रक्रिया है ये तो मुझे पूरी तरह नहीं मालूम  लेकिन ये मालूम है की अपने राष्ट्रपति काल में उन्होंने कमाल किया ; अपने अंतिम २८ महीनों में उन्होंने एक के बाद एक ३० लोगों का प्राण दंड माफ़ कर दिया . इन तीस लोगों में से २२ अपराधी ऐसे हैं जिन्होंने  जघन्य  बहु - हत्या  और बलात्कार  का अपराध किया है , जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं . जिन लोगों को देश के सर्वोच्च न्यायलय ने इस समाज में जीवित रहने के काबिल नहीं समझा  उन्हें राष्ट्रपति महोदय से फिर  वो अधिकार मिल गया .  क्या ऐसे अपराधी किसी भी प्रकार की दया के हकदार थे .

एक और मजे की बात ये हैं की स्वतंत्र भारत में जितने भी राष्ट्रपति आज तक  हुए हैं और उन सब ने मिल कर जितने भी प्राण दंड क्षमा किये हैं उस पूरी संख्या का ९० प्रतिशत का श्रेय एक मात्र श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी को जाता है .      

अब कोई ये बताये की सरकार द्वारा आये दिन किये जा रहे कड़े कानून बनाने के वायदों का कोई अर्थ है जिसके अनुसार वो ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाना चाहते हैं . उस कानून का क्या लाभ होगा , जब की  भारत का सर्वोच्च व्यक्ति बिना किसी स्पष्टीकरण के उन अपराधियों को बचा लेगा . मेरी प्रार्थना है सभी राजनैतिक दलों से की अपने नए कानून के प्रावधानों में एक प्रावधान ये भी  होना चाहिए की राष्ट्रपति के पास किसी भी सजा को माफ़ करने का कोई प्रावधान नहीं होगा . आप क्या कहते हैं ?

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