नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Wednesday, August 21, 2013

घटना और प्रतिक्रिया



 पिछले सोमवार , अगस्त १९, २०१३ की घटना ! बिहार के खघरिया जिले में स्थित एक रेलवे स्टेसन धमारा  घाट ! सुबह के करीब पौने आठ बजे का समय। एक तीर्थयात्रियों का समूह रेल की पटरियों के बीचोंबीच चला जा रहा था।  उनके एक तरफ थी प्लेटफार्म पर खड़ी   हुई गाडी - समस्तीपुर से मधेपुरा जाने वाली गाडी ; उनके दूसी तरफ खड़ी   थी मधेपुरा से लौटने वाली गाडी। यानि की ये भीड़ चल रही थी इन दोनों रेल गाड़ियों के बीच स्थित एक पटरी के बीचोंबीच। और तभी उस बीच वाली पटरी पर आ गयी ८० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चल रही राज्यरानी एक्सप्रेस। ट्रेन एक जोरदार हॉर्न की आवाज के साथ आई , लेकिन लोगों के पास आस पास छिटकने तक की जगह नहीं थी।  परिणाम स्वरूप ३७ तीर्थयात्री उस रेल के नीचे चटनी की तरह पिस गए। भीड़ का गुस्सा फूट  पड़ा। गुस्साई भीड़ ने राज्यरानी एक्सप्रेस के अलावा एक और पसेंजर गाडी को आग लगा दी। रेल के २० डिब्बे तहस नहस हो गए। रेल के जो अधिकारी सामने आये उन्हें मार पीट के अपनी गिरफ्त में ले लिया।   राज्यरानी एक्सप्रेस के दो ड्राइवर -राजाराम पासवान और सुशिल कुमार सुमन पर भीड़ टूट पड़ी। 

अब इस घटना की समीक्षा करें।  क्या गलती राज्यरानी एक्सप्रेस के दो ड्राइवरों की थी ? बिलकुल नहीं , ट्रेन के ड्राइवर स्टेसन से सिग्नल मिलने पर ही आगे बढ़ते हैं।  क्या गलती सिग्नल देने वाले व्यक्ति की है ? नहीं , क्योंकि उसका काम  वाली अन्य गाड़ियों की स्थिति देख कर सिग्नल देने की होती है।  अगर गलती किसी की है तो है वो मारे गारे तीर्थ यात्रियों के झुण्ड की।  ट्रेन की पटरियों के बीचोंबीच चलना वो भी जब दोनों तरफ दूसरी दो गाड़ियों की दीवारें बनी हो - एक बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात है।  इस तरह के झुण्ड की एक और समस्या होती है।  जब दो चार लोग ऐसे रास्ते पर चल पड़ते हैं तो बाकी भीड़ भी उनके पीछे पीछे चल पड़ती है।  इस तरह झुण्ड में चलना उन्हें सुरक्षित होने का गलत आभास देता है।

खैर दुर्घटना तो हुई , लेकिन उसके बाद का भीड़ का गुस्सा ? क्या वो जायज है ? बिलकुल नहीं ! लेकिन गुस्सा जायज या नाजायज नहीं होता।  गुस्सा बस गुस्सा होता है।  जब कोई ऐसी घटना आँखों के सामने घटती है , लोगों के मन का आक्रोश  फट पड़ता है।

आइये अब इस घटना को प्रष्ठभूमि में रख कर चर्चा करें २००२ में घटे गोधरा के रेल काण्ड और उसकी प्रतिक्रिया के  विषय में।  सर्कार द्वारा नियुक्त नानावती कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार २७  फरवरी २००२ को अयोध्या से आने वाली रेल गाडी, जिसमे बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू तीर्थयात्री सवार  थे - वो साबरमती एक्सप्रेस जब गुजरात के गोधरा जिले से गुजर रही थी ,तो उस पर एक बहुत बड़ी भीड़ ने पत्थरो से आक्रमण कर दिया।  उनमे से कुछ लोगों ने रेल के डिब्बों के दरवाजे खोल खोल के  उनमे जलती हुई मशालों के साथ पेट्रोल के खुले कनस्तर फेंक दिए।  परिणाम पूरी की पूरी  रेल एक जलती हुई गुफा के रूप में बदल गयी। इस पाशविक अपराध के परिणाम स्वरूप ५९ हिन्दू यात्री पत्थरों और आग के बीच बुरी तरह से मार डाले गए।


नानावती  कमीशन की रिपोर्ट खुलासा करती  है की ये साजिश गोधरा के एक मौलवी हुसैन उमरजी की थी। उसकी साजिश के अनुसार १४० लीटर पेट्रोल ख़रीदा गया।  अब्दुल रजाक मोहम्मद कुरकुर और सलीम पानवाला ने ये पेट्रोल २६ फरवरी की रात को ख़रीदा। इस साजिश पर पूरा कार्यक्रम बना अमन गेस्ट हॉउस में। रेल के डिब्बे S - ६ और S -७ को जबरन खोल कर हसन लालू नाम के व्यक्ति ने जलती हुई मशालें डिब्बों में फेंकी। बाकी सारे काम में शामिल थे - शौकत अली , इमरान शेरी , रफीक बटुक , सलीम जर्दा , जाबिर बहरा और शेरज बाला।  




इसके बाद जो कुछ गुजरात में हुआ वो एक साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया थी। इस तरह के घिनौने, बिना किसी कारण के किये गए पैशाचिक  अपराध की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक थी।इस प्रतिक्रिया तथा फिर उसकी प्रतिक्रिया में ७९० मुसलमान तथा २५४ हिन्दू मारे गए। बेहिसाब संपत्ति का नुक्सान हुआ।


क्या अंतर है दोनों घटनाओं में ? दोनों ही घटनाएँ उदहारण हैं मानविक प्रतिक्रिया का !

नरेन्द्र मोदी पर राजनैतिक कारणों से निरंतर वार किये जाते रहें हैं।  नरेन्द्र मोदी के प्रशासन का असली मापदंड है २००२ के बाद चल रहे ११ वर्षों का राज्य , जिसने इतने बड़े नासूर को दोनों समाजों के दिल से मिटा कर एक सौहार्द का वातावरण तैयार किया।  इन ११ वर्षों में एक भी साम्प्रदायिक दुर्भाव की घटना नहीं हुई।

 



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