नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Sunday, December 16, 2012

नरेन्द्र मोदी का विराट रूप

 किम्वदंती है की महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सारथी के रूप में अपना विराट रूप दिखाया , जिसका उद्देश्य था अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार करना . उस रूप का  काल्पनिक चित्रण हम देखते हैं कई कैलेंडरों में .

गुजरात में चल रहा विधान सभा का चुनाव भी महाभारत से कम नहीं है . और विराट रूप दिखाया है गुजरात के शेरदिल नेता नरेन्द्र  मोदी ने . विज्ञान की तकनीक का सहारा लेकर बनायीं गयी नरेन्द्र मोदी की 3 डी  की होलोग्राम प्रतिमूर्ति , जिसके कारन मोदी का भाषण जीवंत देख पाए एक साथ दर्जनों स्थानों पर गुजरात निवासी . ये कोई टेलीविजन देखने जैसी अनुभूति नहीं है . ये है एक ऐसा अनुभव जिसमें लोग हर स्थान पर नरेन्द्र मोदी को देख  पा रहे थे अपने सन्मुख मंच पर पूरे हाव भाव के साथ . इतना ही नहीं दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर भी संभव थे इन प्रतिमुर्तियों द्वारा .

Narendra Modi's 3D campaign irks Opposition, Congress to move ECयानी की वर्तमान चुनाव प्रचार में नरेन्द्र  मोदी प्रत्यक्ष रूप से प्रचार कर पा रहें हैं - तमाम 182 चुन्नावी क्षेत्रों में . नरेन्द्र मोदी के इस विराट रूप ने नींद उड़ा  रखी  है प्रमुख विपक्षी दल कोंग्रेस की . इसका विरोध करने के लिए कोंग्रेस नए नए बहाने गढ़ रही है . कभी ये कहती है की एक एक स्थान  पर ऐसा प्रचार करने की कीमत 5 करोड़ रुपैये हैं , इसलिए इलेक्सन कमिसन को इस की जांच करनी चहिये . सी पि एम् और नवनिर्मित गुजरात परिवर्तन पार्टी भी इस महान परिवर्तन को पचा नहीं पा रही . और दिग्विजय सिंह जैसे बयानबाज नेताओं ने इसे नरेन्द्र मोदी का मायावी रूप बताते हुए , दस सर वाले रावण से तुलना कर दी .

कोई कुछ भी कहे , सच्चाई ये है -की गुजरात की जनता अपने प्रिय नेता नरेन्द्र मोदी को प्रत्यक्ष रूप से देखना और सुनना  चाहती है - और उनकी वो इच्छा इस माध्यम से पूरी हो रही है . गुजरात चुनाव का पहला दौर समाप्त हो चूका है जिसमें हुए मतदान की  संख्या ने  पिछले सारे रेकोर्ड तौड़ दिए हैं . संभवतः ये मतदान नरेन्द्र मोदी के सर्वव्यापी स्वरूप का ही परिणाम है !


Wednesday, December 12, 2012

अति लघु कथा

 राम ने पूछा - क्यों भाई लक्षमण , तुम्हे क्या लगता है , भारत में ये सरकार  गिरेगी क्या भाई ?

लक्षमण ने कहा - नहीं भैया राम ! इतना गिर चुकी है अब और कितना गिरेगी !

Tuesday, December 11, 2012

कितनी और गिरावट





अभी एक हफ्ता भी नहीं हो पाया है जब की कोंग्रेस ने येन केन प्रकारेण लोकसभा और राज्यसभा में अपना जोड़ घटाव कर के अपने मल्टी ब्रांड खुदरा और फुटकर व्यापार में विदेशी निवेश का प्रस्ताव पारित करवा लिया . जिस तरह से ये प्रस्ताव पारित हुआ वो अपने आप में शर्मनाक था . प्रजातंत्र के बुनियादी अधिकार यानि बहुमत को हथियार बना कर सर्कार ने अपनी बात मनवा ली . समाजवादी पार्टी अपनी पूरी भाषण बाजी के उपरांत मतदान से गायब हो गयी ; उससे से भी शर्मनाक थी बहुजन समाज पार्टी जिसने लोकसभा में तो सपा वाला रास्ता अपना लिया  , लेकिन राज्यसभा में सर्कार के साथ मिल भाव कर के सर्कार को समर्थन देने को तैयार हो गयी . 125 करोड़ वाला ये देश देखता रहा की कैसे उनके चुने हुए नेता उनकी रोजी रोटी के साथ खिलवाड़ करते हैं . बहस के दौरान तो रोजी रोटी से खिलवाड़ ही लगा था , लेकिन पिछले दो-चार  दिनों में जो हुआ उससे तो ये स्पष्ट हो गया की रोजी रोटी से खिलवाड़ नहीं था वो , देश के माध्यम वर्ग और किसानों की रोजी रोटी का सौदा किया गया था .

अमेरिकन सीनेट के सामने वालमार्ट कंपनी ने अपनी एक रिपोर्ट दर्ज की जिसके अनुसार वालमार्ट ने विभिन्न देशों में 2008 से लेकर अब तक 25 मिलयन डॉलर यानि की 125 करोड़ रुपैये लोबीयिंग में खर्च किया , जिसमें एक बड़ा हिस्सा भारत में खर्च किया गया . लोबीयिंग का अर्थ है , धन की ताकत पर किसी देश की सर्कार से कोई बात मनवाना . यानि की सर्कार में होने का मतलब हो गया देश को दांव पर लगा कर अपनी दुकानदारी करना . आखिर किसने खाए ये 125 करोड़ रुपैये ? कौन खा सकता है ? वही न जो इसके बदले में कुछ दे सकता था वालमार्ट को ! किसने क्या दिया - ये तो बहुत ताजा है सभी के दिमागों में . सर्कार कहती है - हम इस मुद्दे पर जांच करवाएंगे ! खासा मजाक है ! जिन पर संदेह है पैसे खाने का - वही कहते हैं जांच करवाएंगे . जांचों से होता क्या है ! 

देश का दुर्भाग्य है की ये देश चंद ऐसे लोगों के हाथ में गिरवी है , जिनका हर कदम भ्रष्टाचार से लिप्त होता है . समस्या ये है की इस देश का वोटर न तो अख़बार पढता और न ही टेलीविजन देखता . वोट पड़ते हैं नोटों के बदले ; फैसले होते हैं जाती के आधार पर ! ऐसे प्रजातंत्र से तो शायद सेना का शासन  होता ! 

  


Tuesday, November 13, 2012

पटाखे

पूरा देश दीपावली का त्यौहार मना  रहा है . लोग फुलझड़ियाँ , अनार, रोकेट आदि आतिशबाजी की सामग्री जला कर रौशनी का मजा ले रहें हैं . इस बार पटाखों का धमाका कम है . कारण  ये है की पहली बार सर्कार की तरफ से पटाखों की होने वाली ध्वनि के नियंत्रण पर बने कानूनों को लागू किया जा रहा है . एक तय सीमा से अधिक डेसीबेल (ध्वनि की तीव्रता नापने की इकाई ) पाए जाने पर उन पटाखों को जब्त कर लिया जाता है . सरकारी काम में  देर है और अंधेर तो है ही !

वैसे सबसे उच्च डेसीबेल के पटाखे इस बार छोड़ रहें हैं अरविन्द  केजरीवाल  ! हर हफ्ते एक धमाका करते हैं ; अब तक के धमाकों में रॉबर्ट वाड्रा , सलमान खुर्शीद, नितिन गडकरी , मुकेश अम्बानी , डाबर के बर्मन, एच एस बी सी बैंक  आदि चपेट में आ चुके हैं . आगे के नामों की घोषणा भी जारी है ; कहते हैं की शीला दीक्षित का नंबर है . अफ़सोस ये है की अरविन्द के सारे धमाके दिवाली के पटाखे बन कर रह गए हैं ; एक पटाखे की आवाज बंद होते ही दूसरा  पटाखा ! जिन बातों में एटम बम बनने  की क्षमता है , वो बातें मात्र पटाखे बन कर रह गयी है . कहीं न कहीं अरविन्द के चिंतन में बहुत बड़ी कमजोरी है - जिसके कारण धीरे धीरे लोग उन्हें गंभीरता से लेना बंद कर रहें हैं . शायद अन्ना के मार्गदर्शन  की कमी स्पष्ट नजर आ रही है .

Monday, October 29, 2012

अलग अलग चश्मे

एक व्यस्त सड़क पर एक कुत्ता सड़क पार करने की कोशिश में एक मोटर की चपेट में आ गया वहां लोगों की भीड़ लग गयी . वहां मौजूद लोगों में जो चर्चा हुई वो कुछ इस प्रकार थी .

एक आधुनिक महिला - ये स्ट्रे डॉग्स बहुत बड़ी नुइसेंस हैं सड़क पर ! कोर्पोरेसन  क्या करती है ?

एक एनीमल लवर - ये गाडी चलाने वाले न जाने अपने आप को क्या समझते हैं ? जानवर को जानवर नहीं समझते .

एक ज्योतिषी - ये सब ग्रहों का चक्कर है . इसके ग्रह  इस समय अनुकूल नहीं थे ; इसलिए इसे मरना ही था .

एक इंजिनियर - गाडी के ब्रेक सही नहीं थे , वर्ना शायद बच  जाता .

एक पौराणिक पंडितजी - हर प्राणी का मृत्यु का समय निश्चित है ; ये घडी कभी टल  नहीं सकती .

एक आर्य समाजी - भाई , बात सिर्फ इतनी है की ये कुत्ता उस एक क्षण में ये फैसला नहीं कर पाया की उसे वापस लौटना चाहिए या दौड़ के सड़क पार करनी चाहिए .




Sunday, October 28, 2012

अपशकुन

एक कार बहुत तेजी से सड़क पर जा रही थी . ड्राइवर अपने ही ध्यान में था . अचानक उसकी नजर पड़ी एक काली  बिल्ली पर  जो सड़क के एक तरफ से तेजी सी भागी और उस गाडी के सामने से निकल गयी . गाडी के ड्राइवर ने जोर से  ब्रेक लगाया . गाडी इतनी तेज गति में थी की इस तरह के ब्रेक के उपरांत भी  थोड़ी दूर फिसलती चली गयी . बहरहाल गाड़ी बिल्ली के रास्ता काटने की रेखा से पहले रुक गयी . लेकिन अपशकुन तो अभी होना बाकी था . पीछे से एक ट्रक उतनी ही तेजी से आ रहा था . इस  अचानक बिना कारण  लगे ब्रेक को वो समझ नहीं पाया ; और उसके ट्रक  ने एक बहुत जबरदस्त टक्कर मारी उस कार के पीछे .

कार का ड्राइवर अभी अपनी गाडी में लगाये  गए ब्रेक से संभल भी नहीं पाया था , की पीछे से ये प्राणलेवा धक्का लगा . कार का ड्राइवर उस धक्के की मार से अपनी सीट से उछल  कर कार के सामने लगे शीशे को तोड़ता हुआ सामने सड़क पर जा गिरा . कांच के टुकड़े उसके सर और चेहरे में घुस गए . सर से खून बहने लगा और थोड़ी देर में उसने वहीँ दम तोड़ दिया . ट्रक का ड्राइवर भी बुरी तरह घायल हो गया .

अपशकुन बिल्ली के रास्ता काटने में नहीं था , लेकिन उसके रास्ता काटने को अपशकुन मानने में था .

Tuesday, October 23, 2012

लघुकथा : एक था पेड़

एक था पेड़ ! बहुत हरा भरा बहुत सुन्दर घनी पत्तियों वाला पेड़ ! उसे बस एक ही दुःख था ! उसकी एक शाख पर एक उल्लू ने अपना स्थायी डेरा बना रखा था . पेड़ उसे कोसता रहता , कभी अपनी किस्मत को . कभी भगवान से शिकायत करता - हे भगवन या तो इस उल्लू को यहाँ से हटा या फिर मुझे मरने दे ! भगवन ने उसकी सुन ली ; नहीं नहीं उल्लू  पेड़ से नहीं हटा , कुछ लोगों ने कुल्हाड़ी से वार कर कर के उस पेड़ को काट डाला .उसके ताने के , उसकी डालियों के छोटे बड़े टुकड़े कर दिए . उन सारी  लकड़ियों को काट छील और जोड़ कर बना डाली एक बड़ी सी कुर्सी .

वो कुर्सी पहुँच गयी मंत्रालय में . अब उस पर एक मंत्री निरंतर जमा हुआ है . पेड़ फिर भगवन से दुहाई दे रहा है - हे भगवन , मुझे मर कट के भी क्या चैन नहीं आएगा ; मेरे इस स्वरुप में भी फिर तुमने उल्लू बिठा दिया !

Friday, October 19, 2012

घोटाला तंत्र

 ऐसा लग रहा है जैसे की भारत में कोई बहुत बड़ी कार्यशाला चल रही है आजकल , जिसका विषय है - घोटाले ! अरविन्द केजरीवाल एक तूफ़ान की तरह भारत की राजनीति पर छा  गए हैं . आये दिन एक न एक घोटाला उजागर हो रहा है . सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा जो अब तक एक अलिखित स्वतंत्रता ( immunity ) का आनंद ले रहे थे अचानक आरोपों की बाढ़ में बह रहें हैं , और हाथ पैर मार रहे हैं . उससे भी ज्यादा दिलचस्प बात ये है की पूरी की पूरी कोंग्रेस पार्टी चप्पू लेकर कूद पड़ी है इस बाढ़ में , वाड्रा साहब के बचाव में . और क्यों न हो ऐसा - देवी को प्रसन्न करने का इससे बड़ा सुनहरी मौका किसी पालतू कोंग्रेसी को नहीं मिल सकता .

कोल गेट का सुलगना अभी मंद भी नहीं हुआ था की सवालों के घेरे में आ गए - साफ़ सुथरे सुन्दर स्मार्ट नेता सलमान खुर्शीद . देश के कानून मंत्री पर आरोप ये लगा की उन्होंने सरकारी 71 लाख रुपैये के अनुदान को अपंगो के निमित्त खर्चने की जगह अपनी तिजोरी में डाल  लिया। मुश्किलें तब बढ़ गयी जब उन्होंने इस सहायता को प्राप्त करने वाले गरीबों की सूची प्रस्तुत की . लिस्ट में दिए गए नाम बहुत पहले ही मर चुके थे ; या फिर ऐसे नाम थे जिन्होंने दरख्वास्त तो की थी लेकिन जिन्हें मिला कुछ भी नहीं था .

सलमान के बचाव में आगे आये इस्पात मंत्री श्री बेनी प्रसाद वर्मा ; बचाव में क्या आये , उन्होंने तो सरकारी संस्कृति की जैसे पोल ही खोल दी . बेनी प्रसाद वर्मा उवाच ये था कि देश के एक उच्च नेता के लिए 71 लाख रुपैया बहुत छोटी रकम है ; कुछ इस अंदाज में कहा जैसे कह रहे हों की 71 लाख रुपैया तो सलमान के हाथ का मैल  है। इतना ही नहीं आगे यह भी कह दिया की 71 करोड़ की बात होती तो उसे गंभीरता से लेते . लो साहब , जिस देश में गरीबी रेखा की परिभाषा प्रतिदिन की एक परिवार की आमदनी 32 रुपैये हों , वहां सरकारी मंत्रियों की गरीबी की रेखा 71 करोड़ बन गयी .

बात यहाँ पर ख़त्म नहीं हुई ; जब सलमान खुर्शीद साहब की सारी  सफाई झूठी साबित होती गयी , तो उन्होंने अपना विनम्रता का चौला उतार फेंका , और आ गए सीधे सीधे उत्तर प्रदेश के धमकी भरे स्वर में . क्या कहा उन्होंने - बहुत हो गयी ये कलम की लड़ाई , अब तो मामला खून की लड़ाई का है . अरविन्द केजरीवाल जी जरा आकर तो दिखाएँ फरुखाबाद ! आना उनके हाथ में है लेकिन जाना नहीं . समझ में नहीं आया की टी वी पर देश का कानून मंत्री सलमान खुर्शीद बोल रहा था या  बॉलीवुड  का दबंग स्टार सलमान खान !

परसों केजरीवाल  महोदय ने आड़े हाथों लिया बी जे  पी के अध्यक्ष गडकरी जी को ; यहाँ केजरीवाल का होम वर्क जरा दुरुस्त नहीं था . बी जे पी ने पूरे मुद्दे को बिलकुल साफ़ कर दिया . वास्तव में आरोप गडकरी पर न होकर अजित पवार पर था , जो महाराष्ट्र  सर्कार से पहले ही इस्तीफ़ा देकर बैठे हैं .

कल एक ताजा कहानी निकल कर आ गयी - खाद्य मंत्री शरद पवार के लवासा प्रकल्प की . उधर चौटाला ने राहुल गांधी के घोटाले की एक नयी फ़ाइल खोल दी . मध्य प्रदेश में एक मॉल को लेकर दिग्विजय सिंह की पूछताछ सी बी आई कर रही है .

इस सर्कार में कोई बचा है क्या - ऐ राजा , सुरेश कलमाड़ी , दयानिधि मारण , कन्हीमोयी , सुबोध सहाय , जैसवाल ,  सलमान खुर्शीद , बेनी प्रसाद , शरद पवार, राहुल गाँधी , दिग्विजय सिंह यहाँ तक की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ! जिस देश की पूरी की पूरी सर्कार भ्रष्टाचार में लिप्त हो और पकड़ी भी जाए , तब भी उसकी सर्कार ज्यों की त्यों बनी रहती हो - ऐसा सिर्फ भारत के प्रजातंत्र में ही संभव है . क्यों न इस देश का एक नया विशेषण दिया जाए - घोटाला तंत्र !


Friday, October 5, 2012

चुनाव अमरीकी स्टाइल

 दो दिन पहले अमरीका  में एक जोरदार चुनावी बहस हुई - वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके सीधे प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिकन पार्टी के मिट्ट रोमनी के बीच . बहस का सञ्चालन कर रहे थे अमरीका के एक लोकप्रिय न्यूज़ एडिटर जिम लेहरर . अमरीका  में ये चुनावी प्रचार का तरीका बहुत लम्बे समय से चल रहा है , जिसमें वहां के  दोनों मुख्य दलों के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार एक सीधी  बहस में हिस्सा लेते हैं , जिसका सञ्चालन कोई चुना हुआ होशियार पत्रकार करता है . संचालक एक बाद एक मुद्दा उठता है जिस पर दोनों उम्मीदवार अपनी राय देते हैं . दोनों अपनी भावी योजनाओं का प्रारूप भी देतेहैं . वहां उपस्थित जनता भी सवाल करती है , जिनका उत्तर दोनों उम्मीदवारों को देना पड़ता है . इस डेढ़ घंटे के कार्यक्रम में दोनों उम्मीदवार न  केवल अपनी बात रखते हैं , बल्कि अपनी वक्तृत्व कला और हास्य से लोगों को प्रभावित भी करते हैं . सारा कार्यक्रम पूरे देश के लोग विभिन्न टी वी चैनलों पर देखते हैं . इस कार्यक्रम के बाद एक अध्ययन किया जाता है विभिन्न एजेंसियों द्वारा जिसके आधार पर दोनों उम्मीदवारों की रेटिंग बताई जाती है . अमेरिका की राजनीति का ये एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि इस कार्यक्रम के बाद वो लोग जो किसी भी दल के कट्टर समर्थक नहीं हैं अपना मन बनाते हैं . चुनाव के निर्णय काफी हद तक प्रभावित होते हैं इन कार्यक्रमों से .

कल भारत में एक न्यूज़ चैनल ने ये चर्चा छेडी - क्या ये तरीका भारत में संभव नहीं है ? ज्यादातर नेताओं ने कहा की हमारा चुनावी मोडल अम्रीका से अलग है इसलिए हमारे यहाँ इस तरह की बहस संभव नहीं है . मेरे विचार में ये संभव नहीं होने के कारण कुछ अलग हैं ; आइये देखें उन कारणों को -

1. अमरीका में चुनाव होता है दो दलों के बीच में , लेकिन हमारे यहाँ छोटी बड़ी दर्जनों पार्टियाँ हैं . मजे की बात ये है , की सबसे बड़ी पार्टी से लेकर सबसे छोटी पार्टी का नेता भी प्रधानमंत्री बन सकता है . इस बात का गवाह इतिहास है , कि  कैसे चंद्रशेखर , देवेगौडा और गुजराल बिना दो प्रमुख दलों में होते हुए भी देश के प्रधानमंत्री रहे . ऐसी हालत में चुनावी डिबेट दो व्यक्तियों के बीच नहीं बल्कि कम से कम एक दर्जन व्यक्तियों के बीच होगा .

2. अमरीका की दोनों पार्टियाँ कम से कम ये जानती हैं की उनका राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन होगा . हमारे यहाँ तो हर पार्टी में कई दावेदार होंगे . उदाहरन के लिए बी जे  पी किसे पेश करेगी - अडवाणी जी . मोदी जी, सुषमा जी या जेटली जी को . पहला राउण्ड  तो हर पार्टी के अन्दर ही होगा .

3. अगर सभी पार्टियों के दावेदार इस बहस में उतरेंगे तो दृश्य क्या होगा - बी जे पी के नरेन्द्र मोदी , कांग्रेस के राहुल गाँधी , एस पी के मुलायम सिंह यादव , बी एस पी की मायावती , टी एम् सी की ममता बैनर्जी , समता पार्टी के नितीश कुमार , आर जे डी  के लालूजी , इसके अलावा जयललिता , प्रकाश करात , चंद्रबाबू नायडू , नवीन पटनायक आदि सभी मैदान में होंगे ; सबसे बड़ा मुद्दा होगा की किस भाषा में बहस हो . अमेरिका तो पूरा अंग्रेजी बोलता है लेकिन हमारे यहाँ तो भाषाओँ का पूरा गुलदस्ता है . जिन लोगों ने पिछले दिनों ममता बनर्जी का दिल्ली में हिंदी में भाषण सुना , वो लोग समझ सकते हैं की ममता दीदी ने हिंदी भाषा के साथ वो ही किया जो कांग्रेस ने ममता दीदी के साथ किया . यानि  की हर भाषा का भाषण अपने अपने क्षेत्र को ही प्रभावित करेगा .

3. अगर किसी तरह ऊपर लिखी बातों का समाधान करके देश की दो प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवारों की बहस करवाई जाए तो उसका क्या स्वरुप होगा  - 1. मनमोहन सिंह बनाम सुषमा स्वराज 2. सोनिया गाँधी बनाम अडवाणी 3. नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गाँधी . कांग्रेस के पास स्पीकर कम और बातें ज्यादा हैं . लीडर की जगह रीडर हैं . भाषण की जगह तू तू मैं मैं है . ऐसे में क्या निर्णय होगा कोई भी सोच सकता है .

4. और अंतिम बात मोड्रेटर या संचालक की ! अगर टाइम्स नाऊ  के न्यूज़ एडिटर अर्नव गोस्वामी को मोडरेटर बना दें तो दोनों उम्मीदवार कम और अर्नव ही ज्यादा बोलेंगे . अगर प्रभु चावला को  बना दें - तो दोनों उम्मीदवार मिल कर प्रभु चावला जी के खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज पर नाराज होकर उनपर ही धावा बोल देंगे . संसद की स्पीकर मीरा कुमार को बना दिया तो वो संसद की तरह 'बैठ जाइए , बैठ जाइए ' का उद्घोष करती रहेंगी .

5. और फिर जो आंकडें सामने आयेंगे - वो बिलकुल उत्तर दक्षिण होंगे . सर्कार प्रेमी मिडिया इसे सर्कार की विजय बताएगी ; और सर्कार विरोधी मिडिया इसे विपक्ष की .आम आदमी उसी तरह उधेड़बुन  में रहेगा जैसे की आज है .

कुल मिलकर निष्कर्ष ये हैं की इस तरह की बहस अमेरिका जैसे पढ़े लिखे देशों के लिए तो  ठीक हैं हमारे यहाँ इस बहस का क्या फायदा होगा , जब देश की  70 प्रतिशत जनता  टी वी देखती ही नहीं है . वो जो 30 प्रतिशत देखती है उसमें से 50 % वोट  डालते नहीं ; लेकिन बाकी के 70 % में से 90 % वोट जरूर पड़ते हैं .

नेताओं की ओढ़ी  ढकी रहे तभी ठीक है , वर्ना दुनिया जरूर जान जायेगी की हमारे नेता कितने प्रबुद्ध हैं !



















Thursday, October 4, 2012

अक्तूबर 2

अक्तूबर 2 ! इस तारीख को सुनते ही हर भारतीय के मस्तिष्क में एक नाम और एक छवि उभरती है - राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की , जिन्हें  पूरा देश बापू के नाम से भी याद करता है . किसी विद्यालय के बच्चों से पूछिए की 2 अक्तूबर का क्या महत्व है , 100 प्रतिशत बच्चे आपको बताएँगे की बापू का जन्मदिन है . भारत के कैलेण्डर में 15 अगस्त और 26 जनवरी के बाद सबसे महत्वपूर्ण सरकारी छुट्टी है गाँधी जयंती की .


कितनी आसानी से  भुला दिया देश ने अपने पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को जिनका जन्मदिन भी पड़ता है अक्तूबर 2 को . जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद भारत के प्रधान मंत्री बने थे शास्त्रीजी 1964 में . उनके पद पर आने की बाद बहुत जल्दी ही पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया देश पर। शास्त्री जी एक जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे . आम आदमी और किसानों के दर्द को समझते थे . जय जवान जय किसान का नारा देकर उन्होंने किसान को देश की सुरक्षा करने वाले जवानों के समकक्ष कर दिया . पाकिस्तान को युद्ध में मुंह की खानी पड़ी . रूस के महामहिम कोसिगिन ने मध्यस्थता करते हुए रूस के तास्कंद शहर में  भारत और पाकिस्तान की एक वार्ता करवाई , जनवरी 1966 में, जिसमें शास्त्रीजी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेनानायक अयूब खान ने भाग लिया . इस वार्ता के उपरांत दोनों देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किये , जिसके अनुसार दोनों देश एक दुसरे  के आतंरिक मामलों में दखल नहीं देंगे . दुर्भाग्य वश ताशकंद की उस यात्रा के दौरान शास्त्रीजी को ह्रदय का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी . और इस प्रकार एक प्रभावी नेता का शाशनकाल अल्पावधि में ही समाप्त हो गया .

कहते हैं की देश के नायकों के कार्य उन्हें अमर बना देते हैं . पूरा देश ऐसे नायकों को जीवित रखता है अपने हृदयों में . लेकिन ऐसा हुआ नहीं . देश में प्रायः हमेशा ही कांग्रेस पार्टी का शासन  रहा . इस पार्टी ने अपने सभी नायकों को जन साधारण की स्मृति से मिटा दिया अगर वो नेहरु परिवार के नहीं थे . आप किसी विद्यालय के बच्चों से अगर ये पूछें की लाल बहादुर शास्त्री कौन थे , तो मुझे नहीं लगता की 5-10 प्रतिशत बच्चे भी इस नाम को जानते होंगे।  

आज जिन आर्थिक सुधारों के लिए कांग्रेस अपनी  पीठ थपथपाती है , उन सुधारों के जनक थे भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय नरसिम्हा राव , जिन्होंने वर्तमान प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाकर उनके आर्थिक ज्ञान को महत्व दिया . पहली बार दुनिया के इतिहास में रुपैये ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में प्रवेश किया . ऐसे नरसिम्हा राव का इतिहास भी कांग्रेस पार्टी ने ऐसे साफ़ कर दिया जैसे किसी कपडे पर लगे दाग .

परिवारवाद का अन्धविश्वास कांग्रेस पार्टी में इस कदर घर कर गया है की उन्हें गाँधी नेहरु के आगे सब कुछ गौण लगता है . जो देश और जाति  अपने अत्तीत  का सन्मान नहीं करती , उसका भविष्य भी उसका सन्मान नहीं करता .





Monday, October 1, 2012

यमराज बनाम युवराज

कैंसर - एक ऐसा शब्द , जिसे सुन कर दिल दहल जाता है मजबूत से मजबूत व्यक्ति का ! ये रोग इतना अधिक  व्याप्त हो चूका है कि  आज के ज़माने में शायद ही कोई ऐसा हो जो इसके बारे में नहीं जानता . लोगों ने दूर से या पास से - इस रोग का परिणाम देखा है . जब  कोई अदालत का जज किसी आरोपी को मृत्युदंड की सजा सुना देता है  , तो उस आरोपी की सजा चाहे सालों बाद ही पूरी की जाये , लेकिन वो व्यक्ति और उसका परिवार तो हर रोज मरते हैं .उसी तरह जब एक व्यक्ति को ये पता चलता है , उसका मरण उसी दिन से  शुरू हो जाता है

सबसे दुखद बात ये है कि  मनुष्य अपनी सारी  कोशिशों के बाद भी इस महा भयानक कर्क रोग का इलाज नहीं ढूंढ पाया है . इलाज भी अपने आप में एक सजा है . कीमोथेरपी के नाम से किया जाने वाला इलाज एक ऐसा विनाशक इलाज है , जिसमें आक्रमण कैंसर के सेल के साथ साथ शरीर के स्वस्थ सेलों पर भी भरपूर होता है . और ये इलाज महज मौत को थोडा दूर ही धकेल पाता  है .

ऐसी ही बीमारी का शिकार बना भारत का चहेता क्रिकेट खिलाडी युवराज सिंह ! युवराज के कन्सर ग्रस्त होने की खबर ने पूरे देश को उदास बना दिया . युवराज दुनिया का एकमात्र खिलाडी था जिसने छह गेंदों के एक ओवर में छह छक्के मार इतिहास रच दिया था . भारत की हर छोटी बड़ी जीत में युवराज के हस्ताक्षर जरूर होते रहें हैं .

लेकिन युवराज ने इस बीमारी को भी एक क्रिकेट मैच की तरह लिया और चुनौती दे डाली यमराज को . ये युवराज की जबरदस्त इच्छा शक्ति और खेल के प्रति समर्पण का परिणाम है की आज युवराज फिर से एक बार भारत की टीम में एक महत्वपूर्ण खिलाडी के रूप में चुना गया ; बल्कि अपना पूरा योगदान दे रहा है . कल हुई पाकिस्तान की करारी हार में विराट  कोहली  के बाद युवराज का ही दूसरा योगदान था जिसने भारत को इतनी भारी  विजय अपने  सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी पकिस्तान  के खिलाफ दिलाई .

युवराज ! तुम्हारा ये हौसला सिर्फ क्रिकेट की विजय  ही नहीं है ;   बल्कि कैंसर  जैसे रोग पर विजय पाने के लिए दुनिया के करोड़ों कैंसर पीड़ित लोगों के ह्रदय में एक रौशनी जगायेगा . कैंसर की इस टूर्नामेंट में तुमने यमराज पर विजय पा ली है !

युवराज तुम्हे प्रणाम !

Tuesday, September 25, 2012

मूर्तिपूजा का व्यापार


मुंबई शहर में आजकल गणेश पूजा की धूम धाम है . पूजा के दिन के बहुत पहले ही इन मूर्तियों का निर्माण करने वालों की दुकाने सज जाती हैं . इन दुकानों पर लोग अपने घरों , कारखानों और मुहल्लों के लिए मूर्तियों का मोल भाव करते हैं . यानि की छोटे गणेश कम दाम में और बड़े गणेश अधिक दाम में उपलब्ध होते हैं . आजकल कुछ समाज सुधारकों ने एक और नया नारा दिया है -  आप इको फ्रेंडली (पर्यावरण अनुकूल ) गणेश ही लाइएक्योंकि जब मुंबई के सभी गणेशों  को समुद्र में विसर्जित किया जाता है तो  उससे  पर्यावरण  का  बहुत अधिक ह्रास होता है .  

प्रायः हर मोहल्ले में गणेश जी की छोटी बड़ी प्रतिमाएं लगायी जाती हैउन प्रतिमाओं का भव्य  शृंगार किया जाता हैबेशुमार पैसे चंदे से इकट्ठे कर के इन प्रतिमाओ को सजाया जाता हैबड़े बड़े  पांडाल  बनते हैं . उन पंडालों की सजावट भी एक से बढ़ कर एक होती हैपंडालों के अलावा संगीत, प्रसाद, झांकियां आदि पर भी बहुत पैसा खर्च किया जाता है . लाखों लोग इन पंडालों में घूम फिर  कर आनंद लेते हैं .  

पिछले कई सालों से कई स्पर्धाएं शुरू हो चुकी हैं , जिसमें एक निर्णायक मण्डली चुनाव करती है की सबसे सुन्दर गणेश कहाँ के हैं . कई अलग अलग मापदंडों पर इसका आकलन होता है . बड़े बड़े पारितोषिक दिए जाते हैं - विजेता गणेश की प्रतिमा को .

मुंबई के लाल बाग़ नाम के इलाके की मूर्ति बहुत ही भव्य होती है ; पूरा लाल बाग़ का इलाका एक मेले के रूप में बदल जाता है . बेशुमार चढ़ावा आता है . करोड़ों रुपैये का खर्च और आमद होती है . इस पूजा के आयोजक - गणेश गली गणेशोत्सव के पदाधिकारी अपने गणेश को २००४ वर्ष से  'मुंबई का राजा'  कहते हैं .

२००८ में एक सज्जन श्री किशोर शर्मा ने एक वेबसाईट का निर्माण किया , जिसका नाम उसने रखा - मुंबई का राजा ( मराठी में मुंबई चा राजा ). इस वेबसाईट के माध्यम से उसने एक स्पर्धा शुरू की जिसमें गणेशोत्सव में जाने वाले लोग अपना मत डाल सकते हैं की उन्हें कौन सी गणेश प्रतिमा और पंडाल  पसंद आये . लोगों के मतों के आधार पर ये वेबसाईट ये फैसला करती है की मुंबई का राजा कौन  से गणेश हैं .पिछले सालों में कौन से गणेश विजेता या उपविजेता रहें हैं और कौन सिर्फ संत्वना पुरष्कार प्राप्त कर सके - ये सारे विजेता गणेश आपको सचित्र इस वेबसाईट पर नजर आयेंगे . आप स्वयं देख सकते हैं- इस वेबसाईट पर - www.mumbaicharaja.com

कुछ दिनों पहले लाल बाग़ वाली संस्था ने मुंबई हाई कोर्ट में इस वेबसाईट के विरुद्ध एक याचिका दर्ज करायी . उनका दावा था कि लालबाग के गणेश को ये पद हमेशा से प्राप्त है , इसलिए इस वेबसाईट को कोई अधिकार नहीं कि वो इसका फैसला करे कि मुंबई का राजा कौन सा गणेश बने . हाई कोर्ट ने अपना निर्णय सुना दिया कि किशोर शर्मा की वेबसाईट ने किसी के अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं किया है . इस प्रकार हाई कोर्ट ने लालबाग के गणेश आयोजकों का दावा अस्वीकार कर दिया . अब मुंबई के किसी भी क्षेत्र के गणेश को ये पदवी जीतने का अधिकार  है .

मूर्ती पूजा के पक्षधर लोगों का ये दावा होता है कि साधारण मनुष्य अमूर्त ईश्वर को समझ नहीं पाता इसलिए उसमें अपनी आस्था नहीं ला पातालेकिन जब वो उसी ईश्वर की प्रतिमा को देखता है तो उसे ईश्वर की भक्ति में खो जाने का भाव प्राप्त होता है . लेकिन क्या वास्तव में ईश्वर की मूर्ती किसी प्रकार की भक्ति का विषय है ? मुंबई में चल रही गणेशोत्सव की प्रतिस्पर्धा और कारोबार से तो यह लगता है कि मूर्ती पूजा  एक सम्पूर्ण व्यापार का रूप हैआम आदमी इस पूरे मेले में एक मनोरंजन को प्राप्त करता है ; आयोजक इसके नाम पर अच्छी खासी धनराशी जुगाड़  कर पाते हैं . और जब इस कारोबार की स्पर्धा और इर्ष्या बहुत अधिक बढ़ जाती है तो लोग कोर्ट कचहरी तक चले जाते हैं . इसे पर्यावरण के ह्रास का कारण अब स्वयं मूर्तिपूजक मानने लगे हैं .