एक था पेड़ ! बहुत हरा भरा बहुत सुन्दर घनी पत्तियों वाला पेड़ ! उसे बस एक ही दुःख था ! उसकी एक शाख पर एक उल्लू ने अपना स्थायी डेरा बना रखा था . पेड़ उसे कोसता रहता , कभी अपनी किस्मत को . कभी भगवान से शिकायत करता - हे भगवन या तो इस उल्लू को यहाँ से हटा या फिर मुझे मरने दे ! भगवन ने उसकी सुन ली ; नहीं नहीं उल्लू पेड़ से नहीं हटा , कुछ लोगों ने कुल्हाड़ी से वार कर कर के उस पेड़ को काट डाला .उसके ताने के , उसकी डालियों के छोटे बड़े टुकड़े कर दिए . उन सारी लकड़ियों को काट छील और जोड़ कर बना डाली एक बड़ी सी कुर्सी .
वो कुर्सी पहुँच गयी मंत्रालय में . अब उस पर एक मंत्री निरंतर जमा हुआ है . पेड़ फिर भगवन से दुहाई दे रहा है - हे भगवन , मुझे मर कट के भी क्या चैन नहीं आएगा ; मेरे इस स्वरुप में भी फिर तुमने उल्लू बिठा दिया !
वो कुर्सी पहुँच गयी मंत्रालय में . अब उस पर एक मंत्री निरंतर जमा हुआ है . पेड़ फिर भगवन से दुहाई दे रहा है - हे भगवन , मुझे मर कट के भी क्या चैन नहीं आएगा ; मेरे इस स्वरुप में भी फिर तुमने उल्लू बिठा दिया !
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