नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, September 20, 2011

इबादत की टोपी

नरेन्द्र मोदी का तीन दिवसीय उपवास कल समाप्त हुआ . एक बहुत बड़ा उत्सव जिसका विषय था - सद्भावना . बहुत हद तक मोदी सफल रहे अपने सद्भावना मिशन में . सद्भावना पूरे गुजरात के लोगों के प्रति , सद्भावना पूरी भाजपा की मोदी के प्रति , सद्भावना सभी धर्मों के प्रति - कुल मिला कर संपूर्ण सद्भावना का पर्व ही बना रहा , नरेन्द्र मोदी का तीन दिवसीय अनशन समारोह .

लेकिन समाज का एक वर्ग हमेशा गुजरात में दाल में काले की ही तलाश करता है . उस वर्ग को हवा देने का काम मीडिया करता है . इसी लिए इस समारोह के तीसरे दिन जब एक स्थानीय मस्जिद के इमाम सय्यद शाही इमाम सय्यद अपने अन्य दो साथियों के साथ नरेन्द्र मोदी का अभिनन्दन करने के लिए मंच पर पहुंचे , तो उन्होंने अपनी जेब से एक सफ़ेद टोपी निकली , जो आम तौर पर हर मुस्लमान मस्जिद जाने के समय पहनता है . उन्होंने वो टोपी मोदी को पहनाने के लिए हाथ बढाया , तो नरेन्द्र मोदी ने कुछ कहते हुए उस टोपी पहनने से इंकार कर दिया . क्षण भर के लिए इमाम साहब थोडा परेशान हुए , लेकिन दूसरे ही क्षण उन्होंने अपना शाल उतर कर मोदी के कन्धों पर दाल दिया , जिसे नरेन्द्र मोदी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया .

मीडिया ने इस छोटी सी घटना को पूरे तीन दिन का निचोड़ बना दिया . मुस्लमान समाज को यह किस्सा बढ़ा चढ़ा कर बताया और दिखाया गया . इमाम साहब जो मोदी की सभा में नाराज नहीं थे , बाहर आकर उन्होंने इसे इस्लाम का अपमान ही बता दिया . प्रिंट मीडिया ने भी उस घटना के चित्र को छाप कर तूल देने की कोशिश की . कांग्रेसी नेताओं के बयान आने शुरू हो गए . तथाकथित सेकुलर एन जी ओ ने इसे बहुत बड़ा मुद्दा बता कर मोदी की सद्भावना यात्रा को नाटक बता दिया .

इस देश में चल क्या रहा है ? देश की सारी शक्तियां हिन्दू और मुसलमानों में दूरी बढ़ने का प्रयास करती है और उसे मत्थे मंढा जाता है नरेन्द्र मोदी के ? तीन दिनों के इस कार्यक्रम में मोदी के कहे हुए शब्द गौण हो गए , देश के प्रबुद्ध नेताओं के भाषण गौण हो गए , मोदी का सर्व धर्म के धर्म गुरुओं के हाथों से रस का गिलास पीकर उपवास तोडना गौण हो गया - मुख्य हो गयी , एक मस्जिद के इमाम द्वारा दी गयी टोपी को न पहनने की घटना .

आइये अब इस घटना की भी समीक्षा करें . खोपड़ी नुमा सफ़ेद टोपी जिसे अरबी में तखिया कहा जाता है , मुस्लमान समाज का एक धार्मिक पहनावा है . खुदा की इबादत के समय सारे मुस्लमान भाई इसे पहनते हैं . उनके लिए ये टोपी बहुत ही पाक है . फिर ऐसी चीज क्या किसी हिन्दू को पहनने के लिए देना कोई बहुत समझदारी का काम है ? क्या कोई मुस्लमान रामनामी चादर ओढने के लिए तैयार होगा ? क्या कोई ईसाई , हिन्दुओं का धार्मिक चिन्ह यज्योपवीत (जनेऊ ) धारण करेगा ? क्या कोई सिख गले में ईसाईयों की क्रोस वाली माला पहनेगा ? और क्या ये सब न पहनने वाले उन धर्मों का अपमान करेंगे ?

और बात सिर्फ पहनावे तक ही क्यों ? क्या कोई हिन्दू ईद पर हलाल की हुई गाय का मांस प्रसाद समझ कर खा लेगा ? क्या कोई मुस्लमान - किसी ईसाई के त्यौहार पर पके सूअर के मांस के व्यंजन खा लेगा ? खाना पीना तो दूर हमारे देश के मुस्लमान भाइयों को तो उनके इमाम वन्देमातरम बोलने और गाने की इजाजत नहीं देते . तो क्या सारी उदारता का ठेका हिन्दू नेताओं ने ले रखा है ?

दरअसल अपने मजहब का अपमान तो किया है इमाम साहब ने एक ग़ैर मुस्लिम को अपने धर्म चिन्ह को पहनने के लिए देकर . दूसरे धर्मों के प्रति सद्भावना का अर्थ होता है उन धर्मों के मानने वालों के प्रति समान प्रेम और समभाव ; न कि उन जैसा दिखने की कोशिश करना . वास्तव में इस देश की तथाकथित सेकुलर पार्टियों ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एक बहुत बड़ा ढोंग रच रखा है . हर धर्म के त्यौहार में शामिल होकर उस धर्म के जैसे आचरण करना . होली दिवाली का मिलन तो कभी सुना नहीं लेकिन हर सेकुलर पार्टी इफ्तार पार्टियों का आयोजन जरूर करती है . इबादत की टोपी में सारे सेकुलरी नेताओं की तस्वीरें कहीं न कहीं जरूर मिल जायेगी .

अल्पसंख्यक शब्द की आड़ में इस देश में सिर्फ राजनैतिक लाभ लेने वाली पार्टियों में होड़ लगी रहती है - मुसलमानों के तुष्टिकरण की! ऐसे में मीडिया के सामने खुल कर ये बोलने वाले कि- हाँ , मैंने माइनोरिटी के लिए कुछ नहीं किया , लेकिन मैंने मेजोरिटी के लिए भी कुछ नहीं किया ; मैंने तो जो भी किया गुजरात के ६ करोड़ गुजरातियों के लिए किया ; ऐसे नरेन्द्र मोदी इस देश का भविष्य है . इस घोर अंधकारमय राजनैतिक वर्तमान में अगर कोई आशा की किरण है तो वो है - भाई नरेन्द्र मोदी !

अभिनन्दन नरेन्द्र मोदी !

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