नील स्वर्ग

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Monday, September 19, 2011

उपवास , भूख हड़ताल , अनशन, सत्याग्रह

उपवास , भूख हड़ताल , अनशन , सत्याग्रह –

ये शब्द हमारे देश में नए नहीं हैं । विरोध और ध्यानाकर्षण के लिए अपने आप को पूरी तरह भूखा रखना हमारे देश के अहिंसक तरीकों में सबसे ज्यादा सफल रहा है . ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो इस तरह के उपवास का सबसे पुराना उल्लेख मिलता है वाल्मीकि रामायण में . अयोध्या कांड के सर्ग १०३ में उल्लेख है कि जब रामचंद्र वनवास के लिए निकल गए और जब भरत को इस बात का पता चला तो उन्होंने अनशन करने का निर्णय लिया । अपने सारथी सुमंत्र को आदेश दिया कि जंगल से कुश एकत्र कर के लाओ . वन में पहुँच श्री राम के सामने कुशों का आसन बना कर बैठ गए भरत अपने अनशन पर । राम ने अपने प्रेम पूर्ण वचनों से भरत को अनशन छोड़ने के लिए मना लिया .

उपवास में पहले तीन दिन तक शरीर अपने सञ्चालन के लिए शरीर में स्थित ग्लूकोज से ऊर्जा ग्रहण करता है । चौथे दिन से शरीर ऊर्जा विहीन होने लगता है । ऐसे में शरीर कि मांसपेशियां और अन्य महत्वपूर्ण अंग ऊर्जा के लिए क्षय होने शुरू हो जाते हैं . मेरुदंड से अस्थि-रस या बोन मेरो निचुड़ने लगता है . धीरे धीरे प्राणों के लिए खतरा बढ़ने लगता है . विश्व के इतिहास में बहुत सारे उदहारण मिलेंगे जिससे पता चलता है कि ज्यादातर लोगों कि मृत्यु अनशन के दौरान ५० से ७५ दिनों के बीच हुई .

भारत में अनशन को सत्याग्रह का रूप दिया महात्मा गाँधी ने । अंग्रेजों से अपनी अहिंसक लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने कई बार अनशन का सहारा लिया। सिर्फ अंग्रेजों के लिए ही नहीं , बल्कि भारत वाशियों को भी अपना शांति का सन्देश देने के लिए उन्होंने आजादी के बाद अनशन किया । आजादी कि लड़ाई में देश के क्रांतिकारियों का भी बहुत बड़ा हाथ था . जेल में अंग्रेजी सर्कार के दुर्व्यवहार के विरोध में भगत सिंह, बटुकेश्वर दत और जतिन दस ने अनशन किया . जतिन दास ने इस अनशन के दौरान अपने प्राण त्याग दिए । अक्तूबर ५, १९२९ को जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत ने अपना उपवास तोडा , उस समय उनके उपवास को ११६ दिन हो चुके थे , जो कि विश्व के तब तक के सबसे लम्बे उपवास के ९७ दिन के कीर्तिमान को बहुत पीछे छोड़ चुके थे . अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी मांगे मान ली थी .

स्वतंत्र भारत में अनशन का एक बहुत बड़ा उदहारण है पोत्ती श्रीरामुल्लू का आमरण अनशन . पोत्ती ने अनशन किया था एक अलग तेलुगु भाषी लोगों का राज्य बनाने के लिए . ५८ दिन के उपवास के बाद उनकी मृत्यु हो गयी . लेकिन आंध्र प्रदेश बना . इन्दुलाल याग्निक ने उपवास किया था महा-गुजरात के लिए . ७० के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई ने उपवास किया जिसका विषय था - नवनिर्माण .

वर्तमान समय में मणिपुर कि इरोम शर्मीला पिछले दस वर्षों से भूख हड़ताल पर हैं . उन्होंने विरोध किया आर्म्ड फोर्सेस स्पेसल पावर एक्ट , १९५८ का , क्योंकि उनका मानना है कि सेना ने इस एक्ट का दुरुपयोग करके पूरे उत्तर पूर्व के लोगों पर अत्याचार किया है . चूँकि उन्होंने अन्ना और जल दोनों का त्याग कर दिया , इस लिए राज्य सर्कार ने इसे भारतीय कानून के अनुसार आत्मा हत्या माना और राज्य कि पुलिस ने उन्हें जबरदस्ती पाइप से खिलाया . पिछले दस वर्षों से उनका अनशन और सर्कार का फ़ोर्स फीड निरंतर चल रहा है . विश्व में एक व्यक्ति द्वारा किसी मुद्दे पर संघर्ष कि इससे बड़ी मिसाल नहीं मिलेगी .

अगर इरोम शर्मीला का अनशन विश्व में सबसे लम्बे चलने वाले अनशन का उदहारण है , तो सबसे छोटे अनशन का उदाहरन भी संभवतः भारत में ही मिलेगा .तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री श्री करुणानिधिजी ने २००९ ने में भूख हड़ताल की घोषणा की थी. यह भूख हड़ताल आम भूख हड़तालों जैसी नहीं थी . सार्वजनिक स्थान पर की गयी यह हड़ताल आदरणीय श्री करुणानिधिजी ने घर से सुबह का नाश्ता कर के आने के बाद शुरू की. गर्मी के दिन थे इसलिए वहां सड़क पर शामियाना लगाया गया , गर्मी कुछ ज्यादा ही थी इसलिए दो एयर कुलर भी लगवाए गए . और यह ऐतिहासिक हड़ताल समाप्त हो गयी चार घंटों में क्योंकि श्री करुणानिधिजी का लंच का समय हो गया . मीडिया में दिखने का उद्देश्य पूरा हुआ .
सितम्बर १५, १९८७ को थिलीपन ने अपना उपवास शुरू किया नल्लुर मुरुगन मंदिर में । उनका उद्देश्य था तमिल टाइगर ग्रुप कि मांगों पर देश का ध्यानाकर्षण करना और उनसे सम्बंधित अपनी मांगों को मनवाना . सितम्बर २६, १९८७ को थिलीपन की मृत्यु हो गयी .

हरिद्वार में स्वामी निगमानंद ने गंगा नदी के तट पर चल रहे अवैध खनन के विरोध में फरवरी १९, २०११ को अपना आमरण अनशन शुरू किया . ११५ दिनों के घोर उपवास के बाद उनकी मृत्यु अप्रैल २७, २०११ को हो गयी .

बाबा रामदेव ने भी भ्रष्टाचार और विदेशी बैंकों में पड़े भारत के धन की वापसी को लेकर दिल्ली की रामलीला भूमि पर अपना अनशन २ जून २०११ को शुरू किया । सर्कार ने उनके अनशन को भंग करने के सारे हथियार लगा दिए ; आखिर पुलिस के आक्रमण के सामने एक विशाल अनशन आन्दोलन को कुचल दिया गया . पुलिस से बचने की भागदौड़ में बाबा रामदेव इतने विचलित हो गए कि जून १३, २०११ को उन्हें अपना अनशन समाप्त करना पड़ा .

भ्रस्टाचार को मिटाने के लिए जन लोकपाल लाने कि मांग पर अन्ना हजारे का अनशन तो अन्तर्रष्ट्रीय सुर्ख़ियों में रहा । रामलीला मैदान में उनके १२ दिनों के अनशन ने जहाँ भारत की जनता को सरकारी भ्रष्टाचार के विरोध में एकजुट कर दिया , वहीँ कोंग्रेसी सर्कार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया । अन्ना के अनशन कि विशेषता ये रही कि अन्ना के समर्थन में पूरे देश भर में हजारों लोगों ने अनशन किया । इतना बड़ा देशव्यापी आन्दोलन बिना किसी प्रकार की हिंसा के संपन्न हुआ जो विश्व के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना के रूप में याद किया जाएगा ।

आज गुजरात के मुख्य मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी अनशन पर बैठें हैं . ये तीन दिवसीय अनशन उन्होंने परसों सुबह यानि सितम्बर १७, २०११ को शुरू किया . इस अनशन के पीछे उनका उद्देश्य था , गुजरात में सद्भावना का माहौल बनाना . नरेन्द्र मोदी पर विरोधी पक्ष का आरोप था २००२ में हुए गोधरा के दंगों में पक्षपात पूर्ण ढंग से हिन्दुओं की रक्षा और मुसलमानों के खिलाफ छूट देने का . लेकिन हाल में ही आये सुप्रीम कोर्ट के आर्डर को पढ़ कर ऐसा लगता है की नरेन्द्र मोदी पर लगाये हुए सारे आरोप निराधार सिद्ध हुए .

अनशन की गरिमा को ताक पर रखते हुए , गुजरात के ही कोंग्रेसी नेता शंकर सिंह वाघेला और अर्जुन मोधवाडिया ने भी सितम्बर १७ , २०११ को अपना अनशन शुरू किया । उनके अनशन का उद्देश्य मात्र नरेन्द्र मोदी पर छींटाकशी करना था . घटिया राजनीति ने महात्मा गाँधी के दिए हुए इस महान अहिंसक शस्त्र का भी मजाक बना कर छोड़ दिया .

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