पिछले दिनों हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनावों के नतीजों ने एक बहुत ही दिलचस्प तुलनात्मक पिटारा खोल दिया . कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रचारक थे उनके स्टार - श्री राहुल गाँधी , जिसे सारा देश जानता है युवा नेता के रूप में . और दूसरी तरफ थे अखिलेश यादव जिन्हें उत्तर प्रदेश की जनता जरूर जानती है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें कोई नहीं जानता था . लेकिन जब चुनाव के नतीजे आये , तो जो हीरो थे वो जीरो बन गए और एक अनजान युवक पूरे देश का हीरो बन गया .इस लेख में मैं तुलना करूंगा दोनों युवा नेताओं की .
राहुल गाँधी का जन्म हुआ १९ जून १९७० को , देश के सबसे बड़े राजनैतिक घराने में - भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के पुत्र , पूर्वतर प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के पौत्र और देश के पूर्वतम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के वंशज के रूप में . उनकी माँ सोनिया गाँधी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष हैं . उनकी तुलना में अखिलेश यादव एक क्षेत्रीय पार्टी के अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव के पुत्र के रूप में पैदा हुए - १ जुलाई १९७३ के दिन . यानी अखिलेश यादव राजीव गाँधी से करीब ३ साल छोटे हैं . राजीव जैसे चमकदार परिवार की जगह उनकी प्रष्ठभूमि में है एक जमीन से जुडी हुई राजनैतिक हस्ती - उनके पिता .
राहुल की शिक्षा दीक्षा देश और विदेश के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों और कोलेजों में हुई .स्कूली शिक्षा शुरू हुई दिल्ली के सेंट कोलंबस में , वहां से चले गए दून स्कूल में , कोलेज की पढाई पहले सेंट स्टीफन कोलेज और फिर विख्यात हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रजुएसन पूरा किया . कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कोलेज से फिलोसफी में मास्टर की डिग्री प्राप्त की .अखिलेश की स्कूली पढाई हुई धौलपुर मिलिटरी स्कूल से , कोलेज की पढाई मैसूर यूनिवर्सिटी और फिर सिडनी यूनिवर्सिटी से हुई .
राहुल से ३ साल छोटे होने के बावजूद अखिलेश का राजनैतिक कैरिअर शुरू हुआ वर्ष २००० में जब वो पहली बार एक एम् पी के रूप में चुने गए , जबकि राहुल गाँधी २००४ में अपने पिता के राजनैतिक क्षेत्र से चुन कर आये एम् पी के रूप में .
राहुल की व्यक्तिगत जिंदगी एक बहुत बड़ा विषय है खोजी पत्रकारों के लिए . आज ४२ साल की उम्र में भी राहुल ने विवाह नहीं किया . उनकी एक कोलंबियन गर्ल फ्रेंड वेरोनिका के साथ उनकी तस्वीरें मिडिया में आती रही है . अपने पिता की तरह शायद एक विदेशी महिला से विवाह करना उनके राजनैतिक करिअर के लिए उचित न हो - हो सकता है की इसी बात के चलते राहुल ने विवाह नहीं किया . अखिलेश मात्र विवाहित ही नहीं बल्कि तीन बच्चों के पिता है . पत्नी डिम्पल तथा उनके तीन बच्चे - अदिति , टीना और अर्जुन उनके पारिवारिक व्यक्ति होने का प्रमाण हैं .
सबसे मूलभूत अंतर है की राहुल एक नेता से ज्यादा एक कलाकार लगते हैं ; सीन के अनुसार कपडे पहनते हैं , दाढ़ी बढ़ाते हैं और डायलोग बोलते हैं . उनका भारत प्रेम एक दिखावा सा लगता है . गाँव में दलित के घर जाकर खाना , आम आदमियों के बीच बैठ कर चर्चा करना - सब कुछ मिडिया में दिखाने के सीन हैं . अखिलेश शुरू से मिडिया से दूर आम आदमियों के बीच में आम आदमी की तरह रहें हैं . समाजवादी पार्टी के कार्यकर्त्ता उन्हें अपने अध्यक्ष का पुत्र होने के नाते किसी राजकुमार की तरह नहीं देखते , बल्कि अपने ही एक भाई जैसा सन्मान देते रहें हैं . अखिलेश ने भी कभी अपने विशेष होने की कोशिश नहीं जताई . नेता के अन्दर सबसे महत्वपूर्ण गुण होता है उसका ग्रास रूट यानी जड़ से जुड़ा होना .
उभरते हुए नेताओं को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है . अखिलेश के गुरु रहे उसके पिता मुलायम सिंह यादव , जिन्होंने उसे उत्तर प्रदेश की राजनैतिक मानसिकता से पूरी तरह परिचित कराया ; राहुल का दुर्भाग्य रहा के उन्हें दिग्विजय सिंह के रूप में एक ऐसा व्यक्ति राजनैतिक गुरु के रूप में मिला , जिसकी अपनी छवि पूरे देश में हास्यास्पद है . दिग्विजय के बयान उन्हें हमेशा चर्चा में रखते रहें हैं , लेकिन गलत प्रसिद्धि के साथ . लोगों का कहना है की दिग्गी जब भी मिडिया में मुह खोलते हैं - कांग्रेस के १० - २० हजार वोट ले डूबते हैं .
कांग्रेस के अन्दर प्रचलित चमचावाद ने राहुल को बिना किसी वजह देश का भावी प्रधानमंत्री घोषित कर रखा है . चमचों को इस बात की जरा भी फ़िक्र नहीं की पूरा देश राहुल की योग्यता के बारे में क्या सोचता है . सोनिया जी को खुश करने के लिए राहुल और प्रियंका को देश का भविष्य बताने में कांग्रेसी नेता कोई कसर नहीं छोड़ते . ख़ास बात तो ये है , जो नेता समझदार हैं , वो भी इन बातों का खंडन नहीं करते . ये सोच ही भविष्य में कांग्रेस के पतन का कारण बनेगी .
इसके विपरीत जब पूरा देश ये अटकले लगा रहा है की यु पी के मुख्य मंत्री का पद अखिलेश यादव को मिलना चाहिए , तो बिना क्षण भर को भी विचलित हुए अखिलेश मिडिया से कहते हैं कि पूरी पार्टी चाहती है नेताजी ( उनके पिता मुलायम सिंह यादव ) ही यह पद संभालें . इसका सबसे बड़ा कारण है कि न ही समाजवादी पार्टी झूठे परिवारवाद की पोषक है और न ही मुलायम सिंह ने ऐसी चापलूसी को सराहा है . राहुल की तुलना में अखिलेश एक बहुत समझदार और धरती से जुड़े हुए व्यक्ति हैं .
और अंतिम तुलना सामने आती है यु पी चुनाव के नतीजों के बाद . मार्च ६ की सुबह से जो रुझान टी वी पर आने शुरू हुए उससे लगने लगा कि कांग्रेस की स्थिति बहुत ख़राब और समाजवादी पार्टी की स्थिति बहुत मजबूत है . शाम तक राहुल का कहीं अता पता नहीं था . यू पी का पूरा चुनाव राहुल के नेतृत्व में हुआ . चुनाव के दौरान पार्टी की और से जो कहना था सब राहुल ने कहा, बड़े बड़े आश्वाशन दिए , लेकिन हार स्वीकार करने के लिए राहुल की जगह कांग्रेस की पूरी फ़ौज मिडिया में आ गयी - ये कहने के लिए नहीं कि हम अपनी हार स्वीकार करते हैं ; बल्कि इस बात का ढिंढोरा पीटने के लिए इस हार का राहुल गाँधी से कोई लेना देना नहीं ; दोष का ठीकरा अपने यू पी के संगठन के सर पर फोड़ने के लिए . लेकिन जब मिडिया का दबाव बराबर बना रहा, तब पहले दिग्गी और फिर राहुल मिडिया के सामने आये और अपनी जिम्मेवारी स्वीकार की . इसके विपरीत अखिलेश ने इस विराट जीत को अपनी जबरदस्त मेहनत के बावजूद अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की जीत बताया . मिडिया के बार बार उकसाने पर भी उन्होंने एक बार भी ये स्वीकार नहीं किया वो कहीं भी मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में शामिल हैं .
राहुल और अखिलेश देश के युवा नेतृत्व के दो चेहरे हैं . राहुल देश के शहरों में तो अपने सुदर्शन व्यक्तित्व के कारण लोकप्रिय हो सकते हैं लेकिन भारत का गाँव उन्हें अपने बीच का आदमी नहीं मानता ; अखिलेश अपने सहज व्यवहार के कारण पूरे देश के नेता बनने का गुण रखते हैं . एक तरफ जहाँ राहुल आगे बढ़ने की जल्दी में ये भूल जाते हैं की उनकी पार्टी के वयोवृद्ध प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक सम्मानित नेता हैं ; वहीँ अखिलेश अपने आप को अपनी पार्टी के सिपाही के रूप में ही देखना पसंद करते हैं .
देश सब कुछ देखता है . कम से कम वर्तमान स्थिति राहुल के भविष्य के लिए बहुत अच्छी नहीं है .यु पी को देश की प्रतिक्रिया का एक सही नमूना मानते हुए , ऐसे में कांग्रेस पार्टी को भी धरातल पर आकर राहुल गाँधी को देश का भावी प्रधानमंत्री बताने की बकवास छोड़ देनी चाहिए .
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