इस दासता का भान हो गया था , देश को १९६८ में जब पहली बार देश के इमानदार नेताओं के मष्तिस्क में लोकपाल की परिकल्पना आई थी । और इस के बाद शुरू हुआ एक लम्बा दौर , जिसमे हर पांच साल में चुनाव होते रहे । हर पञ्च वर्षीय सत्र में लोकपाल पर चर्चा होती रही । सबसे पहले लोकपाल विधेयक लाया गया -१९६८ की लोकसभा में , जिसे १९६९ में पारित कर दिया गया ; लेकिन दुर्भाग्य वश जब तक यह विधेयक राज्य सभा में पारित किया जाता , उसके पहले ही लोकसभा भंग कर दी गयी । ये देश का दुर्भाग्य था, वर्ना शायद इस देश की अवस्था और व्यवस्था ऐसी नहीं होती जैसी आज है । उसके बाद तो इस विधेयक को लाने का दौर चलता रहा ; १९७१, १९७७, १९८५,१९८९, १९९६,१९९८,२००१,२००५ और २००८ की लोकसभाओं में ये विधेयक लाया गया लेकिन कभी पारित नहीं हुआ । अगर इन सभी वर्षों की सरकारों का हिसाब लगायें तो देश की सारी राजनैतिक पार्टियाँ कटघरे में आ जाती है , क्योंकि करीब करीब हर पार्टी के शासन काल में लोकपाल बिल को ठुकराया गया ।
आज वो ऐतिहासिक दिन है , जब लोकपाल बिल की तीन मोटी शर्तों को दोनों सदनों ने संपूर्ण सहमती से पारित किया । ऐसा नहीं था की बहुत बड़ा ह्रदय परिवर्तन हमारे नेताओं में हो गया था । कारण था पूरे देश में आई क्रांति की लहर , और इस अहिंसक क्रांति के सूत्रधार अन्ना हजारे का आमरण अनशन । सरकार की रातों की नींद हराम हो गयी थी । एक तरफ था सरकार का अहम् और स्वार्थ और दूसरी तरफ था अन्ना हजारे का निडर निश्चय । सरकार रोज तेवर बदलती रही - कभी प्यार से , कभी धमका कर , कभी फुसला कर , कभी झुठला कर , कभी तिहाड़ का भय , कभी संसद के नियमो की आड़ ! आखिर सरकार को समझ में आ गया की अन्ना के आन्दोलन के सामने उनके सारे हथियार बौने हैं ।
सारा देश जश्न मन रहा है । अन्ना ने घोषणा कर दी है की वो अपना अनशन कल सुबह १० बजे त्याग देंगे । आज का दिन भारत के भावी जीवन का एक ऐतिहासिक मोड़ है । हर भारतीय को अपने जीवन से भ्रष्टाचार निकालने का प्रण लेना होगा । भ्रष्टाचार एक ऐसा चक्र है , जिसे चलाने में सभी किसी ना किसी रूप में सहायक होतें हैं । अधिकारी अगर रिश्वत लेता है तो उसे कोई ना कोई रिश्वत देता है । भ्रष्टाचार के भागीदार दोनों ही हैं । आइये आज से हम प्रण लेवें , की कम से कम हम अपने जीवन से भ्रष्टाचार को पूरी तरह निकालने का प्रयास करेंगे ।
मेरे स्वर्गीय दादाजी अपने दैनिक यज्ञ के बाद हम सबसे कुछ नारे लगवाते थे , जो इस प्रकार थे -
हम बदलेंगे , जग बदलेगा
हम सुधरेंगे , जग सुधरेगा
दुर्गुण त्यागें , सदगुण धारें
संसार के श्रेष्ठ पुरुषों - एक हो जाओ !
दादाजी के उन सभी नारों का अर्थ आज पूरी तरह समझ में आ रहा है ।
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