विरोध पक्ष की जबरदस्त मांग पर प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में अन्ना की गिरफ़्तारी पर सरकारी स्पष्टीकरण दिया . उनका स्पष्टीकरण जैसा भी था लेकिन एक बहुत अजीब मुद्दा खड़ा कर दिया प्रधानमंत्रीजी ने जब उन्होंने अपने भाषण के १७वें भाग में ये कहा की भारत आर्थिक रूप से एक उदीयमान देश है और हम विश्व के नक़्शे पर एक बहुत बड़ी ताकत के रूप में उभर रहें हैं . उन्होंने कहा की बहुत सी ऐसी ताकतें हैं जो हमें अपने सच्चे स्वरुप तक पहुँचने से रोकना चाहती है . हमें उनके हाथों में नहीं पड़ना चाहिए . हम एक ऐसा वातावरण नहीं चाहते जहाँ हमारी आर्थिक प्रगति आपसी झगड़ों में उलझ कर रह जाए . हमें हमारी सोच देश के आम आदमी के आर्थिक उत्थान की तरफ केन्द्रित रखनी है .
मैं प्रधानमन्त्री की बात को कुछ समझ नहीं पाया . लेकिन उसके बाद पिछले दो दिनों तक जो चर्चाएँ मैंने टी वी के चैनलों पर सुनी तो मुझे प्रधानमंत्री जी की बात का अर्थ समझ में आया . उनका ये कहना था की जो देश व्यापी आन्दोलन श्री अन्ना हजारे के समर्थन में चल रहा है , उसमे अमरीका जैसी विदेशी ताकतों का हाथ है .एक प्रवक्ता ने आर एस एस का नाम लिया . बाकि सभी किसी न किसी ताकत का हाथ बताते हैं . सरकार को ये सारा आन्दोलन किसी निहित स्वार्थ वाले गुट का कोई मंचन किया हुआ नाटक लगता है .
प्रधानमंत्रीजी ! मैं हूँ आम आदमी . मैं देख रहा हूँ सरकार की गतिविधियों को पिछले ४-५ महीनों से . १६ अगस्त की सुबह को जब टी वी पर देखा और सुना की अन्ना हजारे को उनके मयूर विहार निवास से बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया गया है , तो एक आम आदमी की तरह मेरा भी खून खौल उठा. मेरे भी मन में आया कि मैं भी अन्ना के समर्थन में बाहर निकल पडूं. मैंने कोशिश भी की , बहुत से लोगों को फोन किया कि आओ सड़क पर उतरें, लेकिन चूँकि लोग अपने अपने काम पर निकल चुके थे इसलिए उस दिन हम कुछ नहीं कर सके . सब के आपस में फोन और एस एम् एस चलते रहे. अगले दिन हम सब जुड़ गए एक अन्ना समर्थन समूह के साथ , जो अँधेरी स्टेशन के सामने इकठ्ठा हुआ , और देखते देखते ७-८ हजार लोग इकट्ठे हो गए . जुलुस में १०-१२ साल के लड़कों से लेकर ८०-८५ साल के वृद्ध थे . सबसे बड़ी संख्या में थे - १८ से ३० वर्ष के आयु के लड़के और लड़कियां . हर व्यक्ति के चेहरे पर सरकार के रवैये के प्रति रोष था . कोई पिकनिक जैसा माहौल नहीं था. बहुत सारे लोगों ने अन्ना जैसी टोपी पहन रखी थी जिस पर विभिन्न भाषाओँ में लिखा था - मैं हूँ अन्ना . जुलुस करीब एक किलोमीटर लम्बा बन गया . हाथ में मशालों को लेकर सारा का सारा काफिला जुहू बीच की तरफ बढ़ा. इस जुलुस में मेरे भाग लेने से कोई बहुत बड़ी बात नहीं हुई . मेरे अन्दर एक जो कुलबुलाहट थी सरकार के इस रवैय्ये और भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत आवाजों को लगातार दबाने की कोशिश के प्रति , वो कुलबुलाहट शांत हुई . मैंने अपना मत उस भीड़ में शामिल होकर देश के सामने रखा . यही कारण है हर व्यक्ति के किसी न किसी रूप में इस आन्दोलन का हिस्सा बनने का .
प्रधानमंत्रीजी , मुझे किसी अमरीकी ताकत ने नहीं उकसाया कि मैं उस जुलुस में शामिल हो जाऊं . न ही मुझे आर एस एस या किसी और राजनैतिक दल ने फोन कर के बुलाया . ये मेरे मन के अन्दर की कुलबुलाहट थी कि मैं भी इस अभियान का एक हिस्सा बनूँ क्योंकि मैं भी वही महसूस करता हूँ जो कोई भी आम हिन्दुस्तानी करता है .बाहरी ताकतों का हाथ बता कर आपने एक आम आदमी की कुलबुलाहट को बाजारू बताया है , जो किसी न किसी के हाथ बिकी हुई है .
आदरणीय प्रधानमंत्रीजी ! आप एक सम्मानित नेता हैं . अगर आप के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है जिससे आप भ्रष्टाचार को मिटा सकें , तो कोई बात नहीं , लेकिन इस तरह की हलकी बातें कह के देश के मनोबल और अपनी पार्टी की जड़ों को कमजोर न करें .
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