नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Saturday, August 27, 2011

राहुल और किरण

आखिर अन्ना के अनशन का ११ वां दिन भी समाप्त हुआ । घोर निराशा के साथ । कल के दिन की दो प्रमुख बातें थी राहुल और किरण । दोनों बातों में क्या सम्बन्ध था ? आइये पहले करें राहुल की बात ।

एक घर में आग लग गयी । घर के सब लोग बाहर भाग खड़े हुए । थोड़ी देर में सबको याद आया कि घर में एक छोटा बच्चा अपने पालने में सो रहा था । घर के सभी लोग व्याकुल हो गए । आग इतनी भड़क चुकी थी, कि अगर १०-१५ मिनट के अन्दर बच्चे को ना बचाया जाता तो फिर उसे बचाने का कोई रास्ता भी नहीं बचता । सब लोग अपना अपना तरीका बताने लगे -
" भैया कूद पड़ो आग में, बच्चे को बचा लो ; जो होगा भगवान अच्छा ही करेंगे "
" नहीं नहीं , एक तो फंसा है दूसरे को मत फंसने दो , आग बुझाने की कोशिश करो "
" अरे, कोई एक कम्बल लाओ कहीं से ......"
" दमकल वालों को बुलाओ ....."

इतने में एक बहुत ही पढ़ा लिखा पडौसी नौजवान सामने आया । बोला मेरी सुनो - " ये आग लगी है , घर के असुरक्षित निर्माण की वजह से । अगर इसमें फायर प्रूफ सामग्री लगी होती तो ये घर नहीं जलता । इसलिए मैं चाहता हूँ की इस घर का पुनः निर्माण किया जाए ; मेरी गारंटी है , की इसमें कभी आग नहीं लगेगी । "

बच्चे की माँ बिफर पड़ी - " बड़ा आया पढ़ा लिखा , मेरा बच्चा अन्दर मर रहा है , किसी के अन्दर इतनी मर्दानगी नहीं है की उसे जाकर आग से बचाए । सारे के सारे बेकार हो । कोई बाप , कोई चाचा, कोई दादा बना बैठा है , लेकिन बच्चे को बचाने के लिए कोई नहीं कूद रहा । सारा जीवन झोंक दिया मैंने इनकी सेवा में - आज मेरा कोई नहीं ! "

इस कहानी का युवक है श्री राहुल गाँधी , जिनकी पिछले दस दिनों में कहीं सूरत भी नजर नहीं आई । कल जब सारा देश सांस थामे इंतजार कर रहा था की संसद में अन्ना के जन लोकपाल बिल पर चर्चा होगी और शायद दिन में ही अन्ना का उपवास टूट जाएगा ; ऐसे में संसद शुरू हुआ प्रश्न काल में देश की दूसरी समस्याओं पर चर्चा के साथ । और फिर अचानक राहुल गाँधी अवतरित हुए , कुछ ऐसे तेवर में जैसे कोई बहुत बड़ा समाधान लेकर आयें हों । और फिर पढ़ दिया अपना ५-६ पन्नो का भाषण - जिसका सारांश था , की ये लोकपाल बिल वैगरह सब बकवास की बातें हैं ; भ्रष्टाचार इन सबसे मिटने वाला नहीं है और उसका एकमात्र रास्ता वो है जो प्रिंस राहुल गाँधी के दिमाग में अचानक आया था । कोंग्रेस की परंपरा के अनुसार गाँधी परिवार की तरफ से आया हुआ लचर से लचर सुझाव भी वेद वाक्य हो जाता है । राहुल गाँधी ने संसद को एक गलत भटकाव देकर अन्ना को धकेल दिया उनके अनशन के बारहवें दिन की तरफ ।

अब बात करें किरण बेदी की । उनका अन्ना के मंच से एक जोरदार भाषण हुआ । एक ऐसा भाषण जिसमे क्रोध की पराकाष्ठा , निराशा की उदासी और अन्ना के गिरते हुए स्वस्थ्य के प्रति घोर चिंता का मिश्रण था । ऐसा लगता था की किरण को किसी और शक्ति ने अपने वश मे कर लिया था । उनका क्रोध देश के सांसदों पर जहर बन कर बरस रहा था । लेकिन ये गुस्सा उस माँ के गुस्से की तरह था जिसका बच्चा जलते हुए घर मे मर रहा हो , और लोग सुझाव देने मे लगे हो ।

राहुल और किरण के भाषण थे क्रिया और प्रतिक्रिया । हर बात का एक समय होता है । राहुल देश की नब्ज नहीं समझ रहे । अन्ना के स्वस्थ्य से उन्हें कोई लेना देना नहीं । प्रधानमंत्री के ह्रदय से निकले परसों के भाषण के बाद राहुल की बातें कोंग्रेस पार्टी की दिशा विहीनता ही दर्शाती है । अपनी ही पार्टी के सर्वोच्च नेता- देश के प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के अलावा राहुल ने कुछ नहीं किया

जितना नाजायज था राहुल का संसद मे भाषण , उतना ही जायज था किरण का विष वमन । हर भारतीय के मन मे वैसी ही लहरें करवट ले रही थी । ये अलग बात है की टी वी पर चलने वाली बहस मे लोग बुद्धिजीवियों वाला मुखौटा पहन लेते हैं और फिर निंदा करतें हैं किरण के व्यवहार की ।


















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