लो साहब बाबा रामदेव को तो क्लीन बोल्ड कर दिया . अब लेते हैं अन्ना को आड़े हाथों ! करीब करीब यही अंदाज था कपिल सिब्बल का - जब ६ जून को होने वाली लोकपाल कमिटी का बहिष्कार कर दिया था टीम अन्ना नें .उधर अन्ना राजघाट पर अपना एक दिवसीय अनशन करके सरकार द्वारा
रामलीला मैदान में की गयी ज्यादतियों पर अपनी नाराजगी जाता रहे थे , उधर टीम - सिब्बल ने घोषणा कर दी की अन्ना नहीं आते तो न सही , हम इसे उनका वाक-ओवर मान कर के लोकपाल बिल के जितने मुद्दे बाकी हैं उन पर अपना निर्णय ले लेंगे . अर्थात टीम अन्ना को साथ में लेना एक खाना पूर्ती के अलावा कुछ नहीं है . यानि की पंचों की राय सर माथे लेकिन पतनाला तो यहीं बहेगा .
कमिटी की अगली मीटिंग कल १५ जून को तय थी , कोई अनोखी बात नहीं हुई - क्योंकि वही हुआ जो अपेक्षित था . टीम अन्ना नाराज होकर आ गयी और मीडिया को बता दिया की सरकार के लोग अपना ड्राफ्ट बना कर बैठें हैं , और उसके अलावा वो कोई बात नहीं मानेंगे . अन्ना ने सही कहा कि अगर उन्हें अपने ढीले ढाले लचर लोकपाल बिल को ही प्रस्तुत करना और पास करवाना था तो फिर ये इतना लम्बा नाटक करने की जरूरत थी . बतौर अन्ना - अन्ना फिर से अपने उपवासी - आन्दोलन पर बैठेंगे . अन्ना कैसे बैठेंगे ये तो सब जानते हैं लेकिन इस बार सरकारी ऊँट किस करवट बैठेगा ये देखना है . प्रजातंत्र से तानाशाही की तरफ बढ़ता हुआ प्रशासन कहीं फिर से अपने पुलिसिया तेवर दिखने की तैयारी में जुटेगा ?
बहरहाल भ्रष्टाचार का मुद्दा इस देश का सबसे भद्दा मजाक बन के रह गया है . क्या फरक पड़ता है की संसद में टीम अन्ना का बिल पेश हो या टीम सिब्बल का ? फैसला अगर संसद को ही करना है तो फिर सरकार क्या और विपक्ष क्या . कौन किसको आइना दिखाए , इस हमाम में तो सभी नंगे भरे हैं . इन सब बातों से हट कर जो एक बात है वो ये की इस देश के १२१ करोड़ लोग रोजाना देख रहें हैं कि कैसे सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कलाबाजियां खाती है . मुझे तो इस राष्ट्रीय मौन में एक बहुत बड़ी क्रांति नजर आती है , जैसे राख के ढेर के नीचे सुलगते हुए अंगारे !
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