नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Monday, June 13, 2011

विजय या विनाश


 
आखिर बाबा रामदेव ने अपना अनशन तोड़ दिया .उनका गिरता हुआ स्वास्थ्य, आन्दोलन का नेत्रत्वहीन हो जाना  और उनके हजारों लाखों भक्तों का निवेदन ही कारण था उनके मान जाने का . श्री श्री रविशंकर जी पिछले तीन दिन तक उनसे रोज मिलते रहे . संत मोरारी बापू और कृपालु  महाराज उनसे निवेदन करने पहुँच गए . राजनैतिक नेताओं में ओमप्रकाश चौटाला , शुभ्रमनियम  स्वामी , प्रकाश सिंह बादल आदि बाबा से अनुरोध कर रहे थे . पूरा साधु समाज बाबा से अनशन तोड़ने की गुहार कर रहा था . अनशन तोड़ने पर बाबा के अन्तरंग सहयोगी बालकृष्ण ने बाबा की तरफ से एक वक्तव्य जारी किया कि बाबा का अनशन समाप्त हो रहा है , लेकिन आन्दोलन नहीं . बाबा ने कहा है कि अपनी अंतिम सांस तक वो भ्रस्टाचार और काले धन के मुद्दे पर लड़ेंगे .
 
सरकार और कांग्रेस ने चैन कि सांस ली . लेकिन जैसा कुछ नेताओं का स्वाभाव है वो हर स्थिति को अपने ढंग  से ही देखते हैं. कांग्रेस के दिग्विजय सिंह तुरंत टी वी पर नजर आ गए और बोले - चलो बाबा का ड्रामा समाप्त हुआ . इतना ही नहीं , उन्होंने बाबा के नए बयान का भी मजाक उड़ाया कि बाबा को आन्दोलन जारी रखना ही था तो अनशन  तोडा क्यों ; और अगर अनशन तोडना था तो किया ही क्यों ? कांग्रेस के सबसे गंभीर और वरिष्ठ नेता श्री प्रणव मुखर्जी ने भी अपना बहादुरी वाला चेहरा पहन लिया और मीडिया से बोले - कुछ लोगों ने संसद को कमजोर करने की साजिश की है. उन्होंने बाबा रामदेव और अन्ना हजारे को भी दोषी ठहराया . कुल मिला कर उन्होंने संसद को सर्वोच्च बताया .
 
संसद के सर्वोच्च होने में किसी को भी शंका नहीं ! संसद सर्वोच्च इस लिए है की उसका चयन भारत की जनता करती है . इसलिए सर्वोच्च है भारत का नागरिक . हम लोगों ने संसद को अधिकार दिया है की वो पूरी निष्ठा से भारत के नागरिकों की उन्नति और सुरक्षा के लिए सारे काम करे . इस लिए नहीं की कोमनवेल्थ खेलों के नाम पर लूट मचाये . इस लिए नहीं की संचार की सुविधाओं  को मनमाने ढंग से बाँट कर अपने गोदाम भर ले , इसलिए नहीं कि जल सेना को दी गयी जमीन पर आदर्श जैसी ईमारत कड़ी कर के पदासीन लोगों में बन्दर बाँट कर ले - ये तो शुरुवात है . मंत्रियों के कार्यकलापों को जहाँ भी खोल कर देखेंगे वही भ्रष्टाचार कि दुर्गन्ध निकलेगी .
 
जब ऐसी सरकार होगी तो अन्ना हजारे जैसे लोग लोकपाल बिल के लिए सड़कों पर उतरेंगे ही . जब मंत्रियों के ही काले पैसे विदेशी बैंकों में भरे पड़े हों , तो बाबा रामदेव जैसे संत अपने प्राणों कि बाजी लगा के भी आन्दोलन करेंगे . कौन सी संसद कि बात कर रहें हैं प्रणव मुखर्जी साहब ? वो संसद जिस पर सशस्त्र आतंकवादियों ने हमला बोला २००१ में और आज दस साल बाद भी उस हमले का सरगना अफजल गुरु सरकार का खास मेहमान बना बैठा है . या वो संसद जो ये नहीं जानती कि २६/११ के भयानक आतंकवादी हमले कि क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए ? अमेरिका की सरकार ने तो अपना २६/११ का हिसाब किताब चूका लिया लेकिन हमारी संसद अभी भी किसी चमत्कार का इन्तजार कर रही है . और वो संसद जिसका एक सत्र इस जिद में चला गया की २ जी घोटाले पर एक संयुक्त संसदीय कमिटी बनायीं जाए या नहीं ! या फिर वो संसद जहाँ नोटों के बदले वोट खरीदने के जीवंत नाटक पेश होते हैं . 
 
क्यों नहीं पारित किया लोकपाल बिल इस संसद ने पिछले ४०-५० सालों में ? क्यों बहानाबाजी चली हर संसद में जब भी इस बिल की चर्चा उठी . विदेशों में जमा काले धन को लेकर जब खुद प्रधानमंत्री ने अपने चुनाव परिपत्र में आश्वाशन  दिया था, तो क्यों भूल गए उस बात को . भूल गए सो भूल गए , लेकिन जब एक संत उस बात को याद दिलाने की कोशिश करता है तो उस के साथ क्यों धोखा धडी और अत्याचार किया सरकार ने .
 
बाबा रामदेव के अनशन समाप्त होने को सरकार लगता है की अपनी विजय मान बैठी है ! सरकार देश के मनोभाव को नहीं आंक रही . बाबा ने तो अपना काम कर दिया . एक घास फूस के बने कमजोर ढांचे को समाप्त करने के लिए बस एक चिंगारी की जरूरत होती है , जो बाबा ने प्रज्वलित कर दी . अन्ना हजारे इस यज्ञ की ज्वाला को तीव्र बनायेंगे . इस विनाश से बचने का सिर्फ एक रास्ता  है - सरकार बाबा रामदेव के अजेंडे को अपना अजेंडा बना कर कुछ काम करे . लेकिन ये संभव नहीं क्योंकि जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते .   

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