नील स्वर्ग

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प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Sunday, June 12, 2011

बाबा कहाँ चूके ?

 आज १२ जून है . बाबा रामदेव ने अपना अनशन शुरू किया था ४ जून को . इन नौ दिनों में जैसे बाबा रामदेव ने  अपने पूरे  जीवन के तमाम संघर्षों से भी बड़ा संघर्ष   कर लिया . संघर्ष अभी भी जारी है .
 
आखिर बाबा ने सरकार से ऐसा क्या मांग लिया कि सरकार इस योगी सन्याशी से बात भी नहीं करना चाहती . इन नौ दिनों में बाबा सरकार के अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक नेता की श्रेणी से निकल कर किसी असामाजिक तत्त्व होने की स्थिति में आ गए .
 
आइये पहले तो ये समीक्षा करें कि इतने बड़े आन्दोलन में बाबा ने कहाँ कहाँ गलतियाँ की -
१. बाबा ने जब पूरे देश को ये बता रखा था की ४ जून से उनका सामूहिक अनशन शुरू होगा तो उन्हें योग शिविर के उद्देश्य से रामलीला मैदान की बुकिंग नहीं करनी चाहिए थी. जैसे की सबने देखा सरकार ने इस बात को अपना मजबूत बहाना बना कर सारे पंडाल और आयोजन को तहस नहस कर दिया . हालांकि इससे लचर कोई कारन सरकार के पास था भी नहीं .
२. बाबा ने सरकार से बातचीत करने के लिए कोई तगड़ी टीम नहीं बनाई. सरकार को शुरू से ही पता था , की हर बात बाबा स्वयं ही करते हैं और उन्हें किसी भी तरह बरगलाना या फुसलाना मुश्किल नहीं होगा . यही कारन है की बाबा के देशव्यापी आह्वान को भी सरकार ने गंभीरता  से नहीं लिया . २ जून को जब सरकार के चार मंत्री बाबा से मिलने एअरपोर्ट पर पहुंचे , तो वो इस आत्म विश्वास में थे की इतने बड़े बड़े मंत्रियों से बात कर के बाबा सारी बात मान जायेंगे.
३. बाबा ने सरकार से जो बात  हुई, उसे कभी भी अपने समर्थकों या मीडिया के सामने नहीं रखा .सरकार के पास बातचीत न करने का कारण होता है लेकिन बाबा को इससे कोई फायदा नहीं होना था .
४. बाबा अपने आह्वान में कांग्रेस पर निशाना ज्यादा साधते रहे ; जबकि उनका मुद्दा भ्रष्टाचार ही रहना चाहिए था . 
५. बाबा के आन्दोलन में हर समय माइक पर बाबा ही बने रहे ; उन्होंने कोई अपना प्रवक्ता नियुक्त नहीं किया ; इससे सबसे बड़ा नुक्सान ये हुआ की बाबा की सारी शक्ति उनके लगातार बोलने में क्षीण होती रही . दूसरा नुक्सान ये हुआ कि लगातार बोलने से उनकी बातों में भटकाव भी आता रहा .
६. ४   तारीख की शाम बाबा ने फिर एक बार गलती की की बिना किसी मजबूत टीम के सरकार से मिलने के लिए होटल क्लेरिजेस में चले गए ; जहाँ सरकार ने उन पर हर तरह का दबाव बनाया . उस दबाव में आकर उन्होंने एक पत्र भी अपने महामंत्री से लिखवा कर दे दिया , जिसे बाद में सरकार ने हथियार की तरह इस्तेमाल किया .
७. बाबा ने अपनी सरकारी मीटिंग की बातों का किसी से भी खुलासा नहीं किया . बाबा अगर अपने समर्थकों से ये बता देते की सरकार ने वादा किया है की वो उनकी सारी बातें मान लेगी और उसके प्रत्युत्तर में उन्होंने सरकार को एक पत्र दिया है की अगर सरकार दो दिनों में वैधानिक तरीके से उनकी मांगों को मान लेगी तो वो भी अपना अनशन तोड़ देंगे , ऐसी घोषणा करने से न तो उनका सत्यग्रह कमजोर पड़ता और न ही सरकार के साथ कोई अवज्ञा होती , बल्कि सरकार दबाव में आ जाती उनकी मांगों पर अपने पहलू को स्पष्ट करने के .
८. बाबा की अगली गलती ये थी की जो बात वो चौबीस घंटे तक बता नहीं रहे थे वो बात उन्होंने श्री कपिल सिब्बल से हुई एक टेलीफोन  की बात के आधार  पर एक खुशखबरी  की तरह मीडिया और अपने समर्थकों के बीच सुना दी . घोषणा होनी चाहिए थी दोनों पक्षों की एक साथ , जो की सामान्य  रूप से सरकार का तरीका है . इसका फायदा फिर एक बार उठा लिया सरकार ने ; बाबा के महामंत्री बालकृष्ण के लिखे पत्र को मीडिया में प्रस्तुत किया गया मिर्च मसाले लगा कर .
९. बाबा ने एक बहुत बड़ी भूल की वो थी - मीडिया से बातचीत में हर व्यक्ति के हर प्रश्न का उत्तर देने की . साफ़ साफ़ लग  रहा था की इलेक्ट्रोनिक मीडिया में कुछ वरिष्ठ पत्रकार ऐसे उत्तेजक प्रश्न पूछ रहे थे जो ऐसा लगता था की सरकार के पक्ष में ही थे . बाबा ने ऐसे पत्रकारों को महत्व दे दिया और उनके प्रश्न जाल में फंसते चले गए . ये प्रेस कांफेरेंस बाबा के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक थी .
१०. इस प्रेस कांफेरेंस के बाद बाबा ने अपने समर्थकों को तथ्य बताने की जगह एक इंटर एक्टिव सिलसिला शुरू किया , जिसमे वो अपने समर्थकों से अपनी बातों पर सिर्फ हाँ भरवा रहे थे . कहीं बाबा ने अपने समर्थकों के बौद्धिक स्तर को कम आंक लिया था . उन्होंने बात चीत में एक बार कह भी  दिया था के ये लाखों लोग तो बेचारे भोले भाले लोग हैं जिन्हें मुद्रा स्फीति जैसे शब्द का भी अर्थ पता नहीं होगा . बाबा एक बात भूल गए कि इस सत्यग्रह के माध्यम से वो पूरे देश को संबोधित कर रहे थे न कि सिर्फ अपने समर्थकों को .
११.  बाबा ने एक बहुत बड़ी गलती की उस समय जब की मध्य रात्री में पुलिस ने आकर उन्हें अपना आन्दोलन समाप्त कर रामलीला मैदान को खली करने का आदेश दिया . बाबा नींद से उठे थे , और उस समय पूरी तरह किंकर्तव्य विमूढ़ नजर आये . कोई सलाहकार वर्ग उनके साथ नहीं था . बाबा का महिलाओं के घेरे में शरण लेना और फिर महिला से कपडे लेकर छिपना उनके नेतृत्व पर एक बहुत बड़ा धब्बा बन गया . क्या फरक पड़ता अगर बाबा अपने समर्थकों से कह देते की उन्हें रामलीला मैदान खली करना पड़ेगा इस लिए सभी लोग वहां से उठ कर जंतर मंतर जायेंगे . ज्यादा से ज्यादा पुलिस उन्हें वहां जाने के लिए भी रोकती . या बाबा को गिरफ्तार कर लेती . दोनों स्थिति में अफरा तफरी नहीं मचती . बाबा को सरकार द्वारा की गयी जिद को प्रकाश में लाने का मौका मिलता .
१२. हरिद्वार पहुँच कर बाबा आगे की रणनीति तय नहीं कर पाए . पहले उन्होंने घोषणा की - की दिल्ली या  दिल्ली के बाहर उनका सत्याग्रह  जारी रहेगा .और वो उठ कर नॉएडा चले भी गए , बिना किसी पूर्व स्वीकृति के . स्वीकृति का महत्व उन्हें पिछली रात को पता चल चुका था.
१३. बाबा ने अपने पूरे आन्दोलन की सबसे अक्षम्य गलती की जब उन्होंने घोषणा कर दी कि वो ११००० युवकों और युवतियों को शस्त्र शिक्षा देंगे . इस बात ने उनके आदोलन के समर्थन को आधा  कर दिया. जहाँ केंद्र सरकार का कोई भी नेता मुह खोलने की स्थिति में नहीं था , वही उन्हें बहुत बड़ा हथियार मिल गया बाबा पर RSS  का एजेंट होने का . गृह मंत्री खुल कर बोले की अगर बाबा रामदेव ऐसी कोई मंशा रखतें हैं तो उनसे सख्ती से निपटा जाएगा . सामान्य लोगों को बाबा की बातें खोखली लगने लगी . बाबा अपने मुख्य विषय भ्रष्टाचार से भटक गए थे .
 
इसके बाद से बाबा का अनशन ऐसा लगता है जैसे किसी एक अकेले व्यक्ति की जिद बन के रह गया हो . लोग पुलिस की ज्यादती को भूल गए . लेकिन बाबा की सारी गलतियों के उपरांत भी बाबा के संघर्ष का उद्देश्य छोटा नहीं बन जाता . आखिर क्या माँगा है बाबा ने ? विदेशों में पड़े देश के धन को सरकार देश में लाये .
 
सरकार ने बाबा से बातचीत के रास्ते बंद कर दिए , और बाबा पर अत्याचार के सारे रास्ते खोल दिए हैं . बाबा के पतंजलि योगपीठ और अन्य प्रकल्पों में सरकार को अब भ्रष्टाचार दिखाई देने लगा है . बाबा का सहयोगी ब्रह्मचारी बालकृष्ण उन्हें नेपाल के नागरिक और अपराधी नजर आने लगे हैं . बाबा का आन्दोलन उन्हें सरकार को ब्लैकमेल करना लगता है . सरकार तो तगड़ा बहाना मिल गया है काले धन की चर्चा न करने का . लेकिन देश की जनता सोयी नहीं है . बाबा का अनशन जारी है . अन्दर ही अन्दर सरकार काँप रही है . अगर बाबा को कुछ हो जाता है तो उससे उठने वाले जलजले की कल्पना ही सरकार के लिए दुस्वप्न  है. बाबा भी अपने प्राणों को दांव पर लगा कर चल रहे हैं . देखना है सरकार में कोई मानवीयता बची है या नहीं !              

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