नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, July 30, 2010

मुकाबला - देव , राज और दिलीप का ; जज आप

आइये चर्चा करें हिंदी फिल्मों के स्वर्ण काल की .अगर आप मुझसे चुनने के लिए कहें तो मैं चुनुँगा १९५५ से १९७० के काल को सर्वश्रेष्ठ काल के रूप में . यूँ तो हिंदी फिल्म का आकाश हमेशा सितारों से जगमगाता रहा है , फिर भी इस युग के तीन नायब नगीने थे - देव आनंद , राज कपूर और दिलीप कुमार . तीनों के तीनों एक से बढ़ कर एक. तीनों ने अनेक फिल्मों में काम किया , उस युग की बेहतरीन हीरोइनों के साथ. कुछ नाम -मधुबाला, वहीदा रहमान ,नर्गिस, नूतन ,मुमताज वैगरह. 

अगर यह तय  करना पड़े की तीनों में सर्वाधिक उत्कृष्ट हीरो कौन था - तो शायद सबसे कठिन काम होगा .आप इनमे से जिसकी भी फिल्म देख रहें हो , वही आपको उस वक़्त सबसे अच्छा लगेगा. आइये एक कोशिश करें . हम तीनों को कस के देखते हैं , कुछ सामान कसौटियों  पर. आप चाहें तो एक कागज और कलम लेकर बैठ जाइये और हर कसौटी  पर अपने हीरो को नंबर दीजिये, जैसे आज कल रियलिटी शो में जज लोग देते हैं. आखिर में जोड़ लगा लीजियेगा .

हमारी पहली कसौटी है - स्टाइल . देखें तीनों में सबसे स्टाइलिश कौन है. ये रहे तीन अलग अलग गाने और उनपर लहराते हमारे तीनों सितारे -   
पहले सितारे देव साहब अपनी एक जबरदस्त फिल्म जेवेल थीफ में -

 



क्यों कैसी रही पहली आईटम . अब वही आइटम राज कपूर साहब के साथ , उनकी लोकप्रिय फिल्म अराउंड द वर्ल्ड में -

 



और अब देखिये स्टाइल युसूफ साहब की; अरे भई दिलीप कुमार साहब - फिल्म सगीना से




तो मिला लिए ना आपने तीनों के नम्बर . मुझे चाहे ना बताये , अपने पास रखें .

अगली प्रतियोगिता रोमांस में. तय करें की तीनो में सबसे अधिक रोमांटिक हीरो कौन रहें है .उस ज़माने की देवियों से पूछ कर देखिये ; आज के सारे हीरो फेल हो जायेंगे .सबसे पहले देखें देव साहब को उनकी एक यादगार फिल्म तेरे मेरे सपने में . साथ में है मुमताज. आनंद लीजिये गीत का .




अब वाह वाह कहना बंद कीजिये और देखिये राज कपूर साहब का वो माचो अंदाज - आवारा के उस खूबसूरत कश्ती वाले गीत में ; साथ में है नर्गिस जी. एक एक पल का मजा लीजिये .






रोमांस का वो जमाना ही अलग था . हीरो पियानो पर गाना गाते हुए , हिरोइन आस पास मंडराते हुए ; और पार्टी के सीन में एक अदद डांसर डांस करते हुए . स्वागत है आपका फिल्म अंदाज की इस पार्टी में दिलीप कुमार के पियानो के साथ.





जीवन का एक अभिन्न अंग है उदासी . हमारे हीरो अपनी उदासी को भी संगीत के अलग अलग रगों में पिरो कर अपने चेहरे के निराश भावों को हमारे सामने रखते थे .

देव आनंद अपने प्रेम की नाकामी पर फिल्म गाइड में कुछ इस तरह अपनी उदासी का इजहार करते हैं -




मेरा नाम जोकर का वो उदासी भरा गीत और राज कपूर साहब का वो मूड किसकी आँखों में पानी ना ला दे . शायद इस मूड का सर्वश्रेष्ठ गीत और राज साहब का ये अभूतपूर्व सीन - 




दिलीप साहब जाने जाते थे ट्रेजेडी किंग के नाम से .उनको चेहरा बिन बोले ही  बोलता था , उनकी आँखें बिन रोये ही रोती थी , उनकी बोडी लन्गुएज गीत की उदासी का एक एक लफ्ज बयां करती थी .देखिये एक मायूस शौहर  का ये विक्षिप्त रूप जिसकी बीवी ने उसे धोखा दिया ; फिल्म थी दास्तान .





लो साहब अभी तक तो हम सिर्फ हमारे सितारों के हाव भाव देख रहे थे , दूसरों के गाये गीतों पर.लेकिन उनकी आवाज ,उनकी डायलोग अदायगी , और उसके साथ उनका सशक्त अभिनय  , इस संगम को नहीं देखे और सुनेंगे तो कहाँ से फैसला कर पायेंगे.

तो लीजिये हमने तीनों की सबसी बड़ी फिल्म से एक दृश्य लिया है . कोशिश ये की कि  ऐसा दृश्य लें जो उनके जीवन के ५ सबसे अच्छे दृश्यों में शुमार हो . आगे फैसला आपके हाथ में है .

पहला दृश्य अपने युग कि माइल स्टोन फिल्म गाईड से देव आनंद का अन्तरद्वंद्व. कमाल का सीन था . था ना मित्रों?  



श्री चार सौ बीस राज कपूर की बेहतरीन फिल्मों में से एक है . यह दृश्य फिल्म का टर्निंग पॉइंट है . एक छोटे शहर से आया हुआ एक भोला भोला व्यक्ति कैसे चार सौ  बीसी का शिकार बनता है और फिर बदल जाता है - खुद एक चार सौ बीस के रूप में. खो जाइये इस लम्बे से दृश्य में .

और ये रहा ब्रह्मास्त्र दिलीप कुमार का . मुगले आजम के सलीम के रूप में पृथ्वीराज के  चट्टानी व्यक्तित्व का शायद कोई भी सामना नहीं कर पाता , के आसिफ साहब की यादगार फिल्म मुग़ले आजम  में.


अब बारी आपकी है . आप बताइए  आपने कितने नंबर दिए किस हीरो को? जितने भी दियें होंगे सब का जोड़ आस पास ही बैठा होगा . बहुत मुश्किल है तीन कोहिनूर हीरों में से एक का चुनाव करना .

खैर उन्हें आपने जो भी नंबर दिए हों , मुझे अपने  कितने नंबर दिए इस दिलचस्प बातचीत के. आपके चंद शब्द ही काफी होंगे उत्साह  वर्धन को. आज्ञा  दीजिये अगली बात के साथ बातचीत के लिए .

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