बातचीत एक प्लेटफार्म है अपने आस पास होने वाली घटनाओं को सहित्यिक ढंग से बताने का . यानि की एक ऐसा अखबार , जो अखबार जैसा न हो. सांकेतिक कथाएं ,वर्णन ,लेख - सब कुछ हिस्सा होंगे इस ब्लॉग का . सबसे बड़े हिस्सेदार होंगे आप, पाठक गण. बुरे को बुरा कहने में संकोच न करें. लेकिन अच्छा लगे तो दो शब्द उत्साह वर्धन के भी.
नील स्वर्ग
Wednesday, July 28, 2010
कहानी- बुद्धि-जीवीओं का प्रजातंत्र
चुनावी माहौल था . विधान सभा के आगामी चुनाव कुल दस दिन ही दूर बचे थे .जगह जगह पर चुनाव सभाएं हो रही थी. आम सभाएं सड़कों पर शामिआना तान कर हो रही थी. बड़े बड़े बुध्हिजीवी समूह चर्चा मंच का आयोजन कर रहे थे . समझदार लोगों का ऐसा ही एक समूह मिल रहा था एक चर्चा गोष्ठी पर - जिमखाना क्लब में .चर्चा का विषय था - राजनीति का अपराधीकरण. सभा सात बजे से थी .लोग पौने सात से ही आने शुरू हो गए थे . शहर के लब्ध प्रतिष्ठित लोग ही निमंत्रित किये गए थे . चूँकि कोई निमंत्रण पत्र नहीं भेजा गया था , इस लिए प्रवेश कपड़ों के आधार पर ही था . अच्छे सूट बूट वालों को अनुरोध कर के आगे की सीटों पर बैठाया जाता था . जो सपत्निक थे उन्हें सोफा पर .साधारण वेश भूषा वालों से पूछा जाता था -' डिड यु गेट एन इनविटेसन?' उत्तर हाँ होने पर उन्हें पीछे की सीटें दिखा दी जाती थी . जरा सा ना का इशारा होने पर खेद सहित लौटा दिया जाता था .आखिर शहर के चुनिन्दा लोगों के लिए ही थी ये सभा .
मुख्या आयोजक श्री भंडारी जी कभी अन्दर कभी बाहर चक्कर काट रहे थे . बड़े बड़े लोगों को व्यक्तिगत रूप से रिसीव करने के लिए. बीच बीच में किसी कार्य कर्ता को फुसफुसा कर टोक देते - ' जरा ध्यान दो , कैसे कैसे लोग घुसें चले आ रहे हैं . वी वांट क्वालिटी जेन्ट्री ओनली .'
खैर , चर्चा शुरू हुयी सवा सात बजे . मुख्य वक्ता थे - प्रमुख उद्योगपति खन्ना साहब, बैंक के चेयरमन जोशी साहब , मशहूर फिल्म निर्देशक कपूर साहब और प्रसिद्ध मॉडल श्वेता जी. मोड़रेटर थे खुद भंडारी जी . चर्चा जोरदार रही . लोग चेहरों को देखने आये थे सो देखते रहे .
अंत में भंडारी जी ने सभी वक्ताओं के भाषण का सार कुछ यूँ दिया -
" मित्रों, खन्ना साहब ने हमें एक नयी दिशा दी , की जब तक अच्छे लोग राजनीति में नहीं आयेंगे , सब कुछ ऐसा ही चलेगा ....
. जोशी साहब तो बैंकर हैं ना, बड़े ही चुटीले अंदाज में उन्होंने सन्देश दिया की जो आप अपने खाते में डालेंगे वही ना सूद समेत पाएंगे .......
कपूर साहब सिर्फ परदे के ही शोमैन नहीं हैं , कितना दुरुस्त कहा उन्होंने कि नेता क्या जरूरी है कि कोई बुड्ढा सा , बदसूरत सा इन्सान ही बने .अच्छे चेहरों को सामने लाइए , जनता खुद बखुद उनके लिए वोट करेगी.........
और हमारी दिलों कि धड़कन श्वेताजी ! उनकी क्या तारीफ़ करूं. कितनी मासूमियत से उन्होंने कहा कि राजनीति की उन्हें विशेष जानकारी नहीं . कौन कहता है कि नहीं ! श्वेताजी ने अमरीकी पोलीटिसयंस के जो कुछ उदहारण हमें दिए उस से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है ......
आज कि चर्चा का अंतिम निचोड़ है कि राजनीति में अपराधी आये या ना आये , ये फैसला सिर्फ हमारे हाथ है . आइये प्रण ले कि कम से कम आगामी चुनाव में हमारे शहर से किसी अपराधी को ना जीतने दें ."
जोरदार तालियों के बीच सभा समाप्त हुई . बुध्हिजीवी सजे धजे श्रोता गंभीरता से चर्चा करते हुए निकल गए. सभा के बाद सभी स्पीकरस के लिए कोकटेलस की व्यवस्था थी . कोकटेलस पर हुई बात चीत का कुछ अंश प्रस्तुत है -
भंडारी जी - कमाल का बोलते हैं कपूर साब . मजा आ गया .............
कपूर साहब - साहब बोलने की ही खाते हैं हम फिल्म वाले... हा... हा... हा... हा....
जोशी साहब - भाई खाते हैं कि नहीं पर पीते जरूर हैं ....हा.... हा..... हा
भंडारी जी - श्वेता जी , आप का अंदाजे बयां तो बहुत ही ख़ास है ........
श्वेताजी - अंदाजे बयां अभी देखा ही कहाँ है आपने ? क्यों कपूर साहब ?
कपूर साहब - यकीनन श्वेताजी ...
खन्ना साहब - तो फिर कभी दिखाइए ना आपका वो अंदाजे बयां.............
श्वेताजी - इतनी बोरिंग इलेक्शन मीटिंग में तो पोसिबल नहीं. किसी ढंग की जगह कोई अच्छी पार्टी वार्टी रखिये ......
खन्ना साहब- लो , नेकी और पूछ पूछ . अगले ही लॉन्ग वीक एंड पर चलते हैं सभी . खंडाला में मेरा फार्म हाउस है . दिन भर ड्रिंक्स , पोकर,स्नूकर ............शाम को कुछ गाना बजाना .
कपूर साहब- भाई हम तो तैयार हैं , जब चलना है चलो .
भंडारी जी - अगला लॉन्ग वीक एंड तो इलेक्शन वाला है
जोशी साहब - फिर तो हमारा बैंक भी बंद रहेगा . चलेंगे भाई.
भंडारी जी- लेकिन चुनाव ?
श्वेताजी- भई, हमारे भरोसे तो कोई हारने या जीतने वाला है नहीं, हमने तो आज तक वोट डाला ही नहीं.
कपूर साहब- हमारे इलाके से तो परमानेंट वही जीतता है , वो भोंसले समथिंग...........अपना ख़ास है . एक वोट से उसका कुछ होने वाला नहीं .और वो भी मिल जायेगा उसको , अगर टाइम से बता दिया कि मैं नहीं हूँ. सब साला मनेज होता है यार .
भंडारी जी- आप सब जा रहें है तो क्या हमने ही ठेका लिया है देश का .......भाड़ में जाए .........चलेंगे सभी..... चीअर्स ..........
कपूर साहब- चीअर्स फॉर खंडाला .............
श्वेता जी - चीअर्स फॉर इलेक्शन होलीडे .............
जोशी साहब - चीअर्स फॉर अ ग्रेट वीकएंड...............
खन्ना साहब - चीअर्स फॉर माय लकी होलीडे होम ..........
और साहब , इस तरह समाप्त होती है , वो महत्वपूर्ण चुनावी चर्चा की शाम. शहर के सारे बड़े लोग अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ कर कहीं लॉन्ग वीक एंड मानाने चले जायेंगे . वोट बूथों पर लाइन लगेगी , उन मैले कपडे वालों की जिन्हें इस सभा में निमंत्रण नहीं था .प्रजातंत्र बुद्धि-जीविओं का मनोरंजन है - शक्ति नहीं .
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very interesting article. i request the comments of the readers on the following.
ReplyDeletei think that the party system has reduced the democracy to the monopaly for some. Actually all the candidates should get elected independently ,forming part of legeslative only . the government should be elected seprately by directly electing president and others. then only the true sense of people aspiration may be felt in the parliament where the legislators are not in conflict of interest with the government and are actually raising the voices of their constituencies.
Today it will be better if there are only vote % as per party strength and just one person as spokeperson for each party. Today no MP can say or vote or raise any matter agaisnt the party line which is decided by selected few. No body is accountable to any body. what is the use of so many MPs.