एक दिन मेरे ड्राईवर ने कहा - साहब , मेरे गाँव का एक आदमी है , उसको हार्ट की बीमारी हो गयी है.जो भी पैसा था सब खर्च कर के अन्जियोग्राफी करवाया . अब डॉक्टर का कहना है की उसकी बाय पास सर्जरी करनी पड़ेगी.उसके पास बिलकुल पैसा नहीं है , न ही कोई कमाई का साधन है; कुछ हो सकता है तो करवा दीजिये . मैंने अपने पहचान के एक बड़े हॉस्पिटल से बात की और कोई रास्ता पूछा. उन्होंने बताया की बहुत गरीब आदमी के लिए एक रास्ता है कि अगर वो तहसीलदार का पत्र लेकर आ जाये कि पत्रवाहक गरीबी रेखा से नीचे है तो हमारे पास थोडा ऐसा कोटा है जिसमे उसका इलाज मुफ्त में हो जाए. लेकिन ये पत्र जरूरी है सरकारी नियमों के अनुसार.मैंने पूछा कि ये गरीबी रेखा कि क्या परिभाषा है ; उन्होंने बताया कि जिसकी परिवार की सालाना आय पच्च्चीस हजार से कम हो तो उसे गरीबी रेखा के नीचे समझा जाएगा .
मैंने सारी बात मेरे ड्राईवर को समझा दी .उसने अपने गाँव में फोन कर के उस व्यक्ति को जरूरत समझा दी .दो तीन दिन बाद मेरा ड्राईवर वापस आया - साब , तहसीलदार बोलता है कि पच्चीस हजार आय का पत्र तो वो नहीं देगा , लेकिन चालीस हजार आय का दे सकता है .उस पत्र को देने के लिए पांच हजार रुपैया मांगता है .मैं समझ नहीं पाया की उसे क्या सलाह दूं.
ये कैसे देश में जी रहें हैं हम ? गरीब आदमी को बीमार पड़ने का हक़ नहीं ? महंगा इलाज संभव नहीं . और कहीं कोई आशा की किरण नजर आ भी जाए तो कदम कदम पर गिद्ध बैठे हैं , जिन्दा आदमी का मांस नोचने के लिए . और ये सरकारी परिभाषाएं ! पच्चीस हजार की सालाना आय एक परिवार की ! कोई क्या खायेगा और क्या इलाज करवाएगा -पढाई लिखाई तो दूर की बात ठहरी.
जीवन जीना उतना आसान नहीं जितना हमें लगता है .
यही तो दुख है।
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