भूख के समय पेट रोटी की गुहार करता है . और फिर ऐसी जगह जहाँ आप किसी अपने को हस्पताल में रख कर उसका इलाज करवा रहें हो , तो घर की रोटियां वहां कहाँ ? ऐसे में जो भी हस्पताल के बहार खाने को मिल जाता है उसे इंसान खाने को मजबूर होता है .
मैं को हवाई बातें नहीं कर रहा . मेरी पिछली रांची यात्रा में मैं स्वयं देख कर आया इस समाज सेवा के प्रकल्प को . हस्पताल ने एक छोटा सा शेड दे दिया - जहाँ 4-5 महिलाएं बैठ कर रोटियां सकती रहती हैं . सब्जी बहुत बड़ी मात्र में दोनों समय बना कर रख दी जाती है . रोटी के काउंटर पर एक व्यक्ति हर समय तत्परता से रोटियां परोसने को खड़ा रहता है .
लेकिन रांची के राजेंद्र मेडिकल कॉलेज और हस्पताल में आने वाले लोगों के लिए बहुत बढ़िया साधन है - सस्ती रोटी का स्टाल ! सिर्फ दस रुपैये में 7 गरमागरम चपातियाँ , साथ में पेट भर आलू की मजेदार सब्जी और फिर स्वच्छ बोतलबंद मिनरल वाटर की बोतल मात्र 6 रुपैये में . मरीज की खिचड़ी फोयल पेपर में पैक - सिर्फ 6 रुपैये में .
मैं को हवाई बातें नहीं कर रहा . मेरी पिछली रांची यात्रा में मैं स्वयं देख कर आया इस समाज सेवा के प्रकल्प को . हस्पताल ने एक छोटा सा शेड दे दिया - जहाँ 4-5 महिलाएं बैठ कर रोटियां सकती रहती हैं . सब्जी बहुत बड़ी मात्र में दोनों समय बना कर रख दी जाती है . रोटी के काउंटर पर एक व्यक्ति हर समय तत्परता से रोटियां परोसने को खड़ा रहता है .
ये सेवा उपलब्ध करवाने का श्रेय है श्री शत्रुघ्न लाल और श्रीमती सुशीला देवी गुप्ता को . उन्होंने न केवल ये प्रकल्प अपने प्रयासों से शुरू किया , बल्कि घाटा होता है , उसे वो अपना सौभाग्य समझ कर अनुदान के रूप में देते हैं . सिर्फ पैसा देने से कोई योजना नहीं चलती . समय देने वाले भी चाहिए . दोनों पति पत्नी नियम पूर्वक वहां का एक चक्कर लगाते हैं , खुद सारी व्यवस्था को देखते हैं . रोज दोनों समय सैंकड़ों भूखे व्यक्ति वहां तृप्त होकर जाते हैं .
ये देश सर्कार के भरोसे नहीं चल रहा . ये चल रहा है - ऐसे सेवा भावी गुप्ता दम्पति जैसे लोगों के भरोसे।.
सचमुच वन्दनीय हैं ऐसे लोग और उनका संकल्प! इस जानकारी के लिये आपका धन्यवाद!
ReplyDeleteयह शेयर करने के लिए आपका आभार |
ReplyDeleteनमन ऐसे महापुरुष को.
ReplyDeleteप्रशंसनीय कदम नमन ऐसे निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वालों को |
ReplyDeleteसेवा भाव स्तुत्य है।
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