नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Monday, October 10, 2011

ख़त जगजीत सिंह के नाम

मेरे प्यारे दोस्त जगजीत ,

आज पहली बार मैं तुम्हे ये ख़त लिख रहन हूँ , वो भी तब जब की तुम अपनी सबसे लम्बी यात्रा पर निकल गए हो . तुम्हे दोस्त तो कह रहा हूँ , लेकिन दरअसल मेरी दोस्ती हमेशा रही तुम्हारी उस आवाज से जो हमेशा मेरे कानों से होकर मेरी आत्मा तक पहुँचती थी . आज इस ख़त में सिर्फ तुम्हारे खतों की बात - 

याद है तुम्हे तुम्हारा वो गीत , जिसमे तुमने लिखा था प्यार का पहला ख़त . ऐसे ख़त को लिखने में वक़्त तो लगता है , लेकिन ऐसे ख़त एक बार लिखे  जाते हैं तो उसे सारी दुनिया पढ़ती रहती है हमेशा . 

Pyar ka pahla khat likhne mein 

कई बार कोई ख़त लिखा भी जाता है और फिर उसे फाड़ के पुर्जा पुर्जा कर के उड़ा दिया जाता है . इसी लिए तुमने गाया था न - वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था , हवाओं का रुख दिखा रहा था -

Wo khat ke purje uda raha था

कितना दर्द था तुम्हारी आवाज में , जब तुम किसी के खुशबू में बसे खतों को फाड़ नहीं पा रहे थे . इस गीत की एक एक पंक्ति बयान करती है उस कसक को -

Tere khusbu me base khat main jalata kaise

और आज जब मैंने सोचा की तुम्हे ये ख़त लिखूं तो तुम न जाने किस जहाँ में खो गए . ऐसी जगह चले गए जहाँ से न कोई चिट्ठी आती है और न ही कोई सन्देश -

Chitthi na koi सन्देश

मेरे सुरीले दोस्त ! तुमने ही कहा था न की हाथ अगर छूट भी जाए तो रिश्ते नहीं छूटा करते . सचमुच कभी नहीं छूटेंगे ये रिश्ते जो तुम्हारी आवाज ने बनाये हैं करोड़ों लोगों से . श्रद्धांजलि देता हूँ तुम्हे तुम्हारी इस ग़जल से -
Haath Choote bhi to rishte nahin choota karte

भारत के संगीत के इतिहास में तुम हमेशा अद्वितीय रहोगे . ग़जल को आम   आदमी  के दिल  तक पह्नुचाने   वाली  तुम्हारी आवाज हमेशा जीवित  रहेगी  , मेरे मित्र  ! विदा  !

No comments:

Post a Comment