अन्ना ने मौन धारण कर लिया . जब मन में बेचैनी ज्यादा बढ़ जाए तो मौन ही सबसे अच्छा उपाय है . टीम अन्ना अपने अभियान की सफलता को व्यक्तिगत सफलता मान बैठी . स्वामी अग्निवेश तो इस टीम से तभी बाहर हो गए थे , जब उन्होंने अन्ना की पीठ पीछे कपिल सिब्बल से बात कर के टीम अन्ना के खिलाफ उन्हें भड़काने की कोशिश की थी .
किरण बेदी रामलीला मैदान में अपनी बेबाक और नाटकीय टिप्पणियों से विवादों में आ गयी थी . उसके बाद से उन्होंने अपने आप को संयत करने की कोशिश की है .
हिसार के चुनाव में खुल कर कांग्रेस का विरोध करना भी शायद कोई साझा निर्णय नहीं था . जस्टिस संतोष हेगड़े शुरू से ही एक एक कदम फूंक फूंक कर रख रहें हैं . वो हर परिस्थिति को पहले तौलते हैं , उसके बाद अपना वक्तव्य देते हैं . टीम अन्ना के इस कदम को उन्होंने गलत बताया .
प्रशांत भूषण ने एक बेमतलब का विवाद खड़ा कर दिया . उन्होंने कश्मीर के मुद्दे को जनमत (पेबिसाईट) द्वारा सुलझाने की वकालत कर के कश्मीर के अलगाववादियों को एक नया समर्थन दे दिया . ये कोई टीम अन्ना का निर्णय नहीं था . अन्ना जी को तो खुल कर इसका विरोध करना पड़ा . अन्ना ने कहा की कश्मीर देश का एक अखंड हिस्सा है , और इसकी रक्षा के लिए वो फिर एक बार भारतीय सेना में शामिल होकर लड़ना चाहेंगे .
आज फिर खबर है की टीम अन्ना के दो अन्य साथी गांधीवादी नेता पी वी राजगोपाल और मैगसेसे अवार्ड के विजेता राजिंदर सिंह भी हिसार के चुनाव के मुद्दे को लेकर टीम अन्ना की कोर टीम से छटक गएँ हैं .
टीम अन्ना के सबसे बड़े स्तम्भ अरविन्द केजरीवाल पर लखनऊ की एक सभा ने किसी कांग्रेसी ने एक जूता फेंका . उसके गुस्से का कारण भी टीम अन्ना द्वारा कांग्रेस पार्टी का खुला विरोध है .
ऐसे में अन्ना का मौन पर बैठना ही शायद सही कदम है . लेकिन फिर उनके अभियान का क्या होगा ? सरकार पर दबाव डालने की जगह टीम अन्ना खुद ही दबाव में आती जा रही है . सरकार एक चतुर बिल्ली की तरह टीम अन्ना के इस विघटन को देख रही है . हिसार की सीट पर जमानत जब्त होने के दुःख से ज्यादा कोंग्रेस को ख़ुशी है कि हिसार के चुनाव ने टीम अन्ना के बढ़ते प्रभाव को कमजोर कर दिया .
किसी भी आन्दोलन को लम्बे समय तक जीवित रखने के लिए एक संस्था का स्वरुप होना बहुत जरूरी है . हर संस्था में होते हैं - अध्यक्ष , उपाध्यक्ष , कोषाध्यक्ष , सचिव , प्रवक्ता , पी आर ओ , कार्यकारी सदस्य , साधारण सदस्य आदि . ऐसे स्वरुप में हर व्यक्ति का चुनाव उसकी योग्यता के आधार पर होता है . हर नीति हर फैसला सबकी बैठक में लिया जाता है . हर बड़ा फैसला साधारण सदयों तक को विश्वास में लेकर किया जाता है . समूह कि सदस्य संख्या उस समूह कि शक्ति को बताती है .
अन्ना का बहुत बड़ा प्रशंसक होने के नाते उनसे मैं ये प्रार्थना करूंगा , कि वो अपने मौन काल में , सारी परिस्थिति की समीक्षा करें और अपने समूह को एकजुट करें .
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