नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, June 16, 2011

अब आया अन्ना का नंबर !

लो साहब बाबा रामदेव को तो क्लीन बोल्ड कर दिया . अब लेते हैं अन्ना को आड़े हाथों ! करीब करीब यही अंदाज था कपिल सिब्बल का - जब ६ जून को होने वाली लोकपाल कमिटी का बहिष्कार कर दिया था टीम अन्ना नें .उधर अन्ना राजघाट पर अपना एक दिवसीय अनशन करके सरकार द्वारा 
रामलीला मैदान में की गयी ज्यादतियों पर अपनी नाराजगी जाता रहे थे , उधर टीम - सिब्बल ने घोषणा कर दी की अन्ना नहीं आते तो न सही , हम इसे उनका वाक-ओवर मान कर के लोकपाल बिल के जितने मुद्दे बाकी हैं उन पर अपना निर्णय ले लेंगे . अर्थात टीम अन्ना को साथ में लेना एक खाना पूर्ती के अलावा कुछ नहीं है . यानि की पंचों की राय सर माथे लेकिन पतनाला तो यहीं बहेगा .
 
कमिटी की अगली मीटिंग कल १५ जून को तय थी , कोई अनोखी बात नहीं हुई - क्योंकि वही हुआ जो अपेक्षित था . टीम अन्ना नाराज होकर आ गयी और मीडिया को बता दिया की सरकार के लोग अपना ड्राफ्ट बना कर बैठें हैं , और उसके अलावा वो कोई बात नहीं मानेंगे . अन्ना ने सही कहा कि अगर उन्हें अपने ढीले ढाले लचर लोकपाल बिल को ही प्रस्तुत करना और पास करवाना था  तो फिर ये इतना लम्बा नाटक करने की जरूरत थी .  बतौर अन्ना - अन्ना फिर से अपने उपवासी  - आन्दोलन पर बैठेंगे . अन्ना कैसे बैठेंगे ये तो सब जानते हैं लेकिन इस बार सरकारी ऊँट किस करवट बैठेगा ये देखना है . प्रजातंत्र से तानाशाही की तरफ बढ़ता हुआ प्रशासन कहीं फिर से अपने पुलिसिया तेवर दिखने की तैयारी  में जुटेगा ?
 
बहरहाल भ्रष्टाचार का मुद्दा इस देश का सबसे भद्दा मजाक बन के रह गया है . क्या फरक पड़ता है की संसद में टीम अन्ना का बिल पेश हो या टीम सिब्बल का ? फैसला अगर संसद को ही करना है तो फिर सरकार क्या और विपक्ष क्या . कौन किसको आइना दिखाए , इस हमाम में तो सभी नंगे भरे हैं . इन सब बातों से हट कर जो एक बात है वो ये की इस देश के १२१ करोड़ लोग रोजाना देख रहें हैं कि कैसे सरकार भ्रष्टाचार   के मुद्दे पर कलाबाजियां खाती है . मुझे तो इस राष्ट्रीय मौन में एक बहुत बड़ी क्रांति नजर आती है , जैसे राख के ढेर के नीचे सुलगते हुए अंगारे !   

Monday, June 13, 2011

विजय या विनाश


 
आखिर बाबा रामदेव ने अपना अनशन तोड़ दिया .उनका गिरता हुआ स्वास्थ्य, आन्दोलन का नेत्रत्वहीन हो जाना  और उनके हजारों लाखों भक्तों का निवेदन ही कारण था उनके मान जाने का . श्री श्री रविशंकर जी पिछले तीन दिन तक उनसे रोज मिलते रहे . संत मोरारी बापू और कृपालु  महाराज उनसे निवेदन करने पहुँच गए . राजनैतिक नेताओं में ओमप्रकाश चौटाला , शुभ्रमनियम  स्वामी , प्रकाश सिंह बादल आदि बाबा से अनुरोध कर रहे थे . पूरा साधु समाज बाबा से अनशन तोड़ने की गुहार कर रहा था . अनशन तोड़ने पर बाबा के अन्तरंग सहयोगी बालकृष्ण ने बाबा की तरफ से एक वक्तव्य जारी किया कि बाबा का अनशन समाप्त हो रहा है , लेकिन आन्दोलन नहीं . बाबा ने कहा है कि अपनी अंतिम सांस तक वो भ्रस्टाचार और काले धन के मुद्दे पर लड़ेंगे .
 
सरकार और कांग्रेस ने चैन कि सांस ली . लेकिन जैसा कुछ नेताओं का स्वाभाव है वो हर स्थिति को अपने ढंग  से ही देखते हैं. कांग्रेस के दिग्विजय सिंह तुरंत टी वी पर नजर आ गए और बोले - चलो बाबा का ड्रामा समाप्त हुआ . इतना ही नहीं , उन्होंने बाबा के नए बयान का भी मजाक उड़ाया कि बाबा को आन्दोलन जारी रखना ही था तो अनशन  तोडा क्यों ; और अगर अनशन तोडना था तो किया ही क्यों ? कांग्रेस के सबसे गंभीर और वरिष्ठ नेता श्री प्रणव मुखर्जी ने भी अपना बहादुरी वाला चेहरा पहन लिया और मीडिया से बोले - कुछ लोगों ने संसद को कमजोर करने की साजिश की है. उन्होंने बाबा रामदेव और अन्ना हजारे को भी दोषी ठहराया . कुल मिला कर उन्होंने संसद को सर्वोच्च बताया .
 
संसद के सर्वोच्च होने में किसी को भी शंका नहीं ! संसद सर्वोच्च इस लिए है की उसका चयन भारत की जनता करती है . इसलिए सर्वोच्च है भारत का नागरिक . हम लोगों ने संसद को अधिकार दिया है की वो पूरी निष्ठा से भारत के नागरिकों की उन्नति और सुरक्षा के लिए सारे काम करे . इस लिए नहीं की कोमनवेल्थ खेलों के नाम पर लूट मचाये . इस लिए नहीं की संचार की सुविधाओं  को मनमाने ढंग से बाँट कर अपने गोदाम भर ले , इसलिए नहीं कि जल सेना को दी गयी जमीन पर आदर्श जैसी ईमारत कड़ी कर के पदासीन लोगों में बन्दर बाँट कर ले - ये तो शुरुवात है . मंत्रियों के कार्यकलापों को जहाँ भी खोल कर देखेंगे वही भ्रष्टाचार कि दुर्गन्ध निकलेगी .
 
जब ऐसी सरकार होगी तो अन्ना हजारे जैसे लोग लोकपाल बिल के लिए सड़कों पर उतरेंगे ही . जब मंत्रियों के ही काले पैसे विदेशी बैंकों में भरे पड़े हों , तो बाबा रामदेव जैसे संत अपने प्राणों कि बाजी लगा के भी आन्दोलन करेंगे . कौन सी संसद कि बात कर रहें हैं प्रणव मुखर्जी साहब ? वो संसद जिस पर सशस्त्र आतंकवादियों ने हमला बोला २००१ में और आज दस साल बाद भी उस हमले का सरगना अफजल गुरु सरकार का खास मेहमान बना बैठा है . या वो संसद जो ये नहीं जानती कि २६/११ के भयानक आतंकवादी हमले कि क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए ? अमेरिका की सरकार ने तो अपना २६/११ का हिसाब किताब चूका लिया लेकिन हमारी संसद अभी भी किसी चमत्कार का इन्तजार कर रही है . और वो संसद जिसका एक सत्र इस जिद में चला गया की २ जी घोटाले पर एक संयुक्त संसदीय कमिटी बनायीं जाए या नहीं ! या फिर वो संसद जहाँ नोटों के बदले वोट खरीदने के जीवंत नाटक पेश होते हैं . 
 
क्यों नहीं पारित किया लोकपाल बिल इस संसद ने पिछले ४०-५० सालों में ? क्यों बहानाबाजी चली हर संसद में जब भी इस बिल की चर्चा उठी . विदेशों में जमा काले धन को लेकर जब खुद प्रधानमंत्री ने अपने चुनाव परिपत्र में आश्वाशन  दिया था, तो क्यों भूल गए उस बात को . भूल गए सो भूल गए , लेकिन जब एक संत उस बात को याद दिलाने की कोशिश करता है तो उस के साथ क्यों धोखा धडी और अत्याचार किया सरकार ने .
 
बाबा रामदेव के अनशन समाप्त होने को सरकार लगता है की अपनी विजय मान बैठी है ! सरकार देश के मनोभाव को नहीं आंक रही . बाबा ने तो अपना काम कर दिया . एक घास फूस के बने कमजोर ढांचे को समाप्त करने के लिए बस एक चिंगारी की जरूरत होती है , जो बाबा ने प्रज्वलित कर दी . अन्ना हजारे इस यज्ञ की ज्वाला को तीव्र बनायेंगे . इस विनाश से बचने का सिर्फ एक रास्ता  है - सरकार बाबा रामदेव के अजेंडे को अपना अजेंडा बना कर कुछ काम करे . लेकिन ये संभव नहीं क्योंकि जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते .   

Sunday, June 12, 2011

बाबा कहाँ चूके ?

 आज १२ जून है . बाबा रामदेव ने अपना अनशन शुरू किया था ४ जून को . इन नौ दिनों में जैसे बाबा रामदेव ने  अपने पूरे  जीवन के तमाम संघर्षों से भी बड़ा संघर्ष   कर लिया . संघर्ष अभी भी जारी है .
 
आखिर बाबा ने सरकार से ऐसा क्या मांग लिया कि सरकार इस योगी सन्याशी से बात भी नहीं करना चाहती . इन नौ दिनों में बाबा सरकार के अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक नेता की श्रेणी से निकल कर किसी असामाजिक तत्त्व होने की स्थिति में आ गए .
 
आइये पहले तो ये समीक्षा करें कि इतने बड़े आन्दोलन में बाबा ने कहाँ कहाँ गलतियाँ की -
१. बाबा ने जब पूरे देश को ये बता रखा था की ४ जून से उनका सामूहिक अनशन शुरू होगा तो उन्हें योग शिविर के उद्देश्य से रामलीला मैदान की बुकिंग नहीं करनी चाहिए थी. जैसे की सबने देखा सरकार ने इस बात को अपना मजबूत बहाना बना कर सारे पंडाल और आयोजन को तहस नहस कर दिया . हालांकि इससे लचर कोई कारन सरकार के पास था भी नहीं .
२. बाबा ने सरकार से बातचीत करने के लिए कोई तगड़ी टीम नहीं बनाई. सरकार को शुरू से ही पता था , की हर बात बाबा स्वयं ही करते हैं और उन्हें किसी भी तरह बरगलाना या फुसलाना मुश्किल नहीं होगा . यही कारन है की बाबा के देशव्यापी आह्वान को भी सरकार ने गंभीरता  से नहीं लिया . २ जून को जब सरकार के चार मंत्री बाबा से मिलने एअरपोर्ट पर पहुंचे , तो वो इस आत्म विश्वास में थे की इतने बड़े बड़े मंत्रियों से बात कर के बाबा सारी बात मान जायेंगे.
३. बाबा ने सरकार से जो बात  हुई, उसे कभी भी अपने समर्थकों या मीडिया के सामने नहीं रखा .सरकार के पास बातचीत न करने का कारण होता है लेकिन बाबा को इससे कोई फायदा नहीं होना था .
४. बाबा अपने आह्वान में कांग्रेस पर निशाना ज्यादा साधते रहे ; जबकि उनका मुद्दा भ्रष्टाचार ही रहना चाहिए था . 
५. बाबा के आन्दोलन में हर समय माइक पर बाबा ही बने रहे ; उन्होंने कोई अपना प्रवक्ता नियुक्त नहीं किया ; इससे सबसे बड़ा नुक्सान ये हुआ की बाबा की सारी शक्ति उनके लगातार बोलने में क्षीण होती रही . दूसरा नुक्सान ये हुआ कि लगातार बोलने से उनकी बातों में भटकाव भी आता रहा .
६. ४   तारीख की शाम बाबा ने फिर एक बार गलती की की बिना किसी मजबूत टीम के सरकार से मिलने के लिए होटल क्लेरिजेस में चले गए ; जहाँ सरकार ने उन पर हर तरह का दबाव बनाया . उस दबाव में आकर उन्होंने एक पत्र भी अपने महामंत्री से लिखवा कर दे दिया , जिसे बाद में सरकार ने हथियार की तरह इस्तेमाल किया .
७. बाबा ने अपनी सरकारी मीटिंग की बातों का किसी से भी खुलासा नहीं किया . बाबा अगर अपने समर्थकों से ये बता देते की सरकार ने वादा किया है की वो उनकी सारी बातें मान लेगी और उसके प्रत्युत्तर में उन्होंने सरकार को एक पत्र दिया है की अगर सरकार दो दिनों में वैधानिक तरीके से उनकी मांगों को मान लेगी तो वो भी अपना अनशन तोड़ देंगे , ऐसी घोषणा करने से न तो उनका सत्यग्रह कमजोर पड़ता और न ही सरकार के साथ कोई अवज्ञा होती , बल्कि सरकार दबाव में आ जाती उनकी मांगों पर अपने पहलू को स्पष्ट करने के .
८. बाबा की अगली गलती ये थी की जो बात वो चौबीस घंटे तक बता नहीं रहे थे वो बात उन्होंने श्री कपिल सिब्बल से हुई एक टेलीफोन  की बात के आधार  पर एक खुशखबरी  की तरह मीडिया और अपने समर्थकों के बीच सुना दी . घोषणा होनी चाहिए थी दोनों पक्षों की एक साथ , जो की सामान्य  रूप से सरकार का तरीका है . इसका फायदा फिर एक बार उठा लिया सरकार ने ; बाबा के महामंत्री बालकृष्ण के लिखे पत्र को मीडिया में प्रस्तुत किया गया मिर्च मसाले लगा कर .
९. बाबा ने एक बहुत बड़ी भूल की वो थी - मीडिया से बातचीत में हर व्यक्ति के हर प्रश्न का उत्तर देने की . साफ़ साफ़ लग  रहा था की इलेक्ट्रोनिक मीडिया में कुछ वरिष्ठ पत्रकार ऐसे उत्तेजक प्रश्न पूछ रहे थे जो ऐसा लगता था की सरकार के पक्ष में ही थे . बाबा ने ऐसे पत्रकारों को महत्व दे दिया और उनके प्रश्न जाल में फंसते चले गए . ये प्रेस कांफेरेंस बाबा के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक थी .
१०. इस प्रेस कांफेरेंस के बाद बाबा ने अपने समर्थकों को तथ्य बताने की जगह एक इंटर एक्टिव सिलसिला शुरू किया , जिसमे वो अपने समर्थकों से अपनी बातों पर सिर्फ हाँ भरवा रहे थे . कहीं बाबा ने अपने समर्थकों के बौद्धिक स्तर को कम आंक लिया था . उन्होंने बात चीत में एक बार कह भी  दिया था के ये लाखों लोग तो बेचारे भोले भाले लोग हैं जिन्हें मुद्रा स्फीति जैसे शब्द का भी अर्थ पता नहीं होगा . बाबा एक बात भूल गए कि इस सत्यग्रह के माध्यम से वो पूरे देश को संबोधित कर रहे थे न कि सिर्फ अपने समर्थकों को .
११.  बाबा ने एक बहुत बड़ी गलती की उस समय जब की मध्य रात्री में पुलिस ने आकर उन्हें अपना आन्दोलन समाप्त कर रामलीला मैदान को खली करने का आदेश दिया . बाबा नींद से उठे थे , और उस समय पूरी तरह किंकर्तव्य विमूढ़ नजर आये . कोई सलाहकार वर्ग उनके साथ नहीं था . बाबा का महिलाओं के घेरे में शरण लेना और फिर महिला से कपडे लेकर छिपना उनके नेतृत्व पर एक बहुत बड़ा धब्बा बन गया . क्या फरक पड़ता अगर बाबा अपने समर्थकों से कह देते की उन्हें रामलीला मैदान खली करना पड़ेगा इस लिए सभी लोग वहां से उठ कर जंतर मंतर जायेंगे . ज्यादा से ज्यादा पुलिस उन्हें वहां जाने के लिए भी रोकती . या बाबा को गिरफ्तार कर लेती . दोनों स्थिति में अफरा तफरी नहीं मचती . बाबा को सरकार द्वारा की गयी जिद को प्रकाश में लाने का मौका मिलता .
१२. हरिद्वार पहुँच कर बाबा आगे की रणनीति तय नहीं कर पाए . पहले उन्होंने घोषणा की - की दिल्ली या  दिल्ली के बाहर उनका सत्याग्रह  जारी रहेगा .और वो उठ कर नॉएडा चले भी गए , बिना किसी पूर्व स्वीकृति के . स्वीकृति का महत्व उन्हें पिछली रात को पता चल चुका था.
१३. बाबा ने अपने पूरे आन्दोलन की सबसे अक्षम्य गलती की जब उन्होंने घोषणा कर दी कि वो ११००० युवकों और युवतियों को शस्त्र शिक्षा देंगे . इस बात ने उनके आदोलन के समर्थन को आधा  कर दिया. जहाँ केंद्र सरकार का कोई भी नेता मुह खोलने की स्थिति में नहीं था , वही उन्हें बहुत बड़ा हथियार मिल गया बाबा पर RSS  का एजेंट होने का . गृह मंत्री खुल कर बोले की अगर बाबा रामदेव ऐसी कोई मंशा रखतें हैं तो उनसे सख्ती से निपटा जाएगा . सामान्य लोगों को बाबा की बातें खोखली लगने लगी . बाबा अपने मुख्य विषय भ्रष्टाचार से भटक गए थे .
 
इसके बाद से बाबा का अनशन ऐसा लगता है जैसे किसी एक अकेले व्यक्ति की जिद बन के रह गया हो . लोग पुलिस की ज्यादती को भूल गए . लेकिन बाबा की सारी गलतियों के उपरांत भी बाबा के संघर्ष का उद्देश्य छोटा नहीं बन जाता . आखिर क्या माँगा है बाबा ने ? विदेशों में पड़े देश के धन को सरकार देश में लाये .
 
सरकार ने बाबा से बातचीत के रास्ते बंद कर दिए , और बाबा पर अत्याचार के सारे रास्ते खोल दिए हैं . बाबा के पतंजलि योगपीठ और अन्य प्रकल्पों में सरकार को अब भ्रष्टाचार दिखाई देने लगा है . बाबा का सहयोगी ब्रह्मचारी बालकृष्ण उन्हें नेपाल के नागरिक और अपराधी नजर आने लगे हैं . बाबा का आन्दोलन उन्हें सरकार को ब्लैकमेल करना लगता है . सरकार तो तगड़ा बहाना मिल गया है काले धन की चर्चा न करने का . लेकिन देश की जनता सोयी नहीं है . बाबा का अनशन जारी है . अन्दर ही अन्दर सरकार काँप रही है . अगर बाबा को कुछ हो जाता है तो उससे उठने वाले जलजले की कल्पना ही सरकार के लिए दुस्वप्न  है. बाबा भी अपने प्राणों को दांव पर लगा कर चल रहे हैं . देखना है सरकार में कोई मानवीयता बची है या नहीं !              

Monday, June 6, 2011

ये कैसी सरकार !

रामदेव बाबा का आमरण अनशन शुरू भी हुआ और समाप्त भी . ३ जून से ५ जून की सुबह तक में एक ऐसी दास्ताँ लिखी गयी , जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया .
एक साधु बस साधु ही होता है, राजनैतिक हथकंडों को कभी समझ नहीं पायेगा . जिस दिन अन्ना हजारे और उनकी लोकपाल समीति के सामान्य समाज के सदस्यों ने जिद पकड़ी की प्रधानमंत्री और न्याय पालिका भी लोकपाल के कार्यक्षेत्र में आने चाहिए ; उस दिन बाबा रामदेव ने सिर्फ इतना कह दिया की इस विषय पर सामाजिक स्तर पर खुल कर चर्चा होनी चाहिए . बस इस वाक्य को ब्रह्मास्त्र बना कर UPA  सरकार ने दोनों भ्रष्टाचार विरोधी खेमों में फूट डालना शुरू कर दिया . बाबा को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया जाने लगा ताकि अन्ना वाली समीति का वर्चस्व कम किया जा सके .
बाबा रामदेव ने अपने उपवास की घोषणा एक महीने से कर रखी थी. इस बात को पूरा देश जानता था . और जब २ तारीख को बाबा अपने पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत दिल्ली पधारे तो हवाई अड्डे पर उनसे मिलने के लिए सरकार के  उच्चतम नेतृत्व के मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी , श्री कपिल सिब्बल , श्री सुबोधकांत सहाय और श्री पवन बंसल . उनका मकसद था की बाबा को मन कर उनका अनशन स्थगित करवा लिया जाए . अनशन तो स्थगित नहीं हुआ , लेकिन कांग्रेस की इस बेचैनी को मीडिया ने पूरे जोर से उछाला . सरकार दबाव में आ गयी .
३ जून को बाबा और उनके हजारों समर्थकों ने डेरा डाला रामलीला मैदान में . एक भव्य पंडाल बनाया गया था , इस पंडाल में आराम  से बैठने  के लिए पंखे आदि की व्यवस्था  की गयी थी , बाबा के समर्थकों द्वारा . दिग्विजय सिंह जैसे जले भुने लोग इसे फाइव स्टार अनशन का नाम दे रहे थे , जैसे की भूख के अलावा गर्मी झेलना भी कोई आवश्यक  अंग हो किसी सत्याग्रह  के !

शाम होते होते भीड़ बढ़ कर एक लाख के करीब हो गयी . मीडिया के माध्यम से लोगों की बातचीत प्रसारित हो रही थी , जिससे मालूम पड़ रहा था की इस महान अभियान में शामिल होने के लिए पूरे देश से लोग जमा हुए थे . हर व्यक्ति जागरूक था बाबा के आन्दोलन के मुद्दों के बारे में . शाम से पहले ही फिर सरकार ने बाबा से मिलने की इच्छा जाहिर की . इस बार मिलने का स्थान चुना गया होटल क्लारिजेस . सरकारी हथकंडों को न समझते हुए बाबा पहुँच गए मिलने को , साथ में ले गए अपनेआन्दोलन के महामंत्री बालकृष्ण को . वहां मिले उन्हें वही दिग्गज कपिल सिब्बल और सुबोध कान्त सहाय . बाबा रामदेव सरकार से बातचीत के दो जरूरी नियम नहीं जानते थे . पहला ये की सरकार जो कहती है उसे सतही तौर पर ही लें और दूसरी ये सरकार से हर वादे को लिखित में और मीडिया के सामने करवाएं. इस मामलें में उन्हें अन्ना हजारे का अनुसरण करना चाहिए था . कपिल सिब्बल ने उन्हें मौखिक आश्वाशन दे दिया की उनकी सारे बातें मान ली जायेंगी लेकिन उन्हें भी ये आश्वाशन देना पड़ेगा , की उसके बाद बाबा अपना उपवास तोड़ देंगे . फरक ये था का कपिल सिब्बल का आश्वाशन मौखिक था , लेकिन बाबा का आश्वाशन लिखित रूप में लिया गया , उनके महामंत्री बालकृष्ण के हस्ताक्षर के साथ . बहाना ये बताया गया की प्रधानमंत्री जी को लिखित आश्वाशन दिखाने के बाद ही सरकारी सहमति औपचारिक रूप  से लिखित पत्र के रूप में   मिलेगी . बाबा आ गए झांसे में . उसके बाद उन्होंने बाबा पर ये दबाव डाला की वो मीडिया के सामने घोषणा करें की उनकी सारी बातें सरकार ने मान ली है . इस पर बाबा ने शर्त रखी की पहले सरकारी पत्र लाकर दीजिये उसके बाद ही वो कोई घोषणा करेंगे. 
अगर सरकार की मंशा ठीक होती तो उसी रात सरकारी सहमति का पत्र बन भी जाता और बाबा रामदेव तक पहुँच भी जाता और अगले दिन की सुबह शुरू होने वाला उपवास अभियान टल जाता; यही सरकार की कुटिलता नजर आती है . अगले दिन कपिल सिब्बल ने एक तरफ तो फोन पर बाबा से ये बात की की आपकी सारी बातें मान ली गयी है , और उसके ठीक बाद प्रेस कांफेरेंस में दिखा दिया वो हस्तलिखित पत्र जो पिछले दिन बालकृष्ण जी से लिखवाया गया था . योजना थी बाबा को बदनाम करने की की बाबा ने तो ३ जून को ही उनसे समझौता कर लिया था लेकिन ४ जून का सत्याग्रह एक दिखावा मात्र था . उधर बाबा फिर एक बार कपिल सिब्बल की फोन पर की हुई बातों के झांसे में आ गए , और घोषणा कर दी की सरकार ने उनकी सब बातें मान ली है ; तब तक उन्हें ये नहीं पता था की वहां दूसरी तरफ कपिल सिब्बल प्रेस कांफेरेंस में उन पर क्या आरोप लगा रहे थे .
कोई सरकार से ये  प्रश्न क्यों नहीं पूछता ;
१.अगर किसी व्यक्ति की मांग पर सरकार कोई समझौता करती है तो पत्र सरकार की तरफ से होता है न की उस व्यक्ति की तरफ से जो अपनी मांगों को लेकर आन्दोलन कर रहा है .  
२. अगर कोई समझौता भी होता है तो उस पत्र पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर होतें हैं , न की मात्र उसके जिसने मांग रखी है .
३. पत्र को ही आधार मान लिया जाए तो ऐसा उसमे क्या लिखा था जिससे बाबा पर किसी अपारदर्शिता का आरोप लगे . पत्र में यही तो लिखा था की उनकी जो मांगे हैं , वो सरकार मानने को तैयार है , और अगर वो मानने की प्रक्रिया को पूरी कर देती है तो उनका आन्दोलन २ दिनों में ख़त्म हो जाएगा . क्या ये बात वो पूरे एक महीने से नहीं कह रहे थे .
सरकार ने एक योगी साधु को धोखा दिया . जो आन्दोलन सरकार की सहमति से दोनों पक्षों के लिए सन्मान पूर्ण  तरीके से समाप्त हो सकता था , सरकार ने उसको स्वतंत्र भारत के सबसे घ्रणित अध्याय के रूप में परिवर्तित कर दिया . शायद जालियांवाला बाग़  से भी ज्यादा शर्मनाक !  जेनरल डायर और उसकी पूरी फ़ौज अंग्रेजी शाशन के आदेश का पालन करते हुए निहत्थे  लोगों पर गोली बरसा रही थी; लेकिन दिल्ली पुलिस के कमिश्नर साहब और उनकी पांच हजार लोगों फ़ौज तो स्वतंत्र भारत के सेवक हैं , जिनकी पगार देती है भारत की १२१ करोड़ जनता . उन्हें किसने आदेश दिया था रात के डेढ़ बजे से आधी बजे तक वो भूखे प्यासे , थके हुए नींद में बेहाल एक लाख लोगों पर अपना कहर बरसायें . बाबा रामदेव जैसे लोकप्रिय सन्यासी को जबरदस्ती उठाकर दिल्ली से बेदखल कर दें .
पूरे रविवार के दिन , ५ जून को देश के सारे टीवी चेनल निरंतर दिखाते रहे बाबा और उनके समर्थकों पर हुए अत्याचार को , देश के नेताओं और आम आदमियों की दुहाई को - लेकिन प्रधानमंत्री में हिम्मत नहीं थी , दो शब्द दिलासा और क्षमा याचना के टीवी पर कह देते . प्रधानमंत्री छोड़ो , केंद्रीय सरकार का कोई मंत्री तैयार नहीं था देश का सामना करने को . दिग्विजय सिंह जैसे घटिया व्यक्ति को खुला छोड़ दिया सरकार ने लोगों के घाव पर नमक छिड़कने के लिए .
बाबा ! तुम्हारा आन्दोलन सफल हुआ . तुमने तो बीड़ा उठाया था काले धन को विदेशों से वापस देश में लाने का ; लेकिन सरकार ने तो खुद रास्ता  बना दिया इन काले अंग्रेजों की सरकार के पतन का . बाबा , तुम आज के युग के चाणक्य हो ! जुटे रहो ! देश तुम्हारे साथ है !         

Saturday, June 4, 2011

बाबा रामदेव का आमरण अनशन


  मई को जब बाबा रामदेव ने घोषणा की कि ठीक एक महीने बाद यानि कि जून से वो भ्रष्टाचार  के खिलाफ अपनी मांगों को लेकर आमरण अनशन करेंगे ; तो मीडिया ने उस बात को महत्व नहीं दिया . कुछ चैनेलों ने तो बहुत ही घटिया टिपण्णी की; कुछ ने कहा की अन्ना हजारे ने सारा श्रेय ले लियाइस लिए बाबा अपने आप को उपेक्षित अनुभव कर रहें हैं . लेकिन इस एक महीने के समय में बाबा ने पूरे देश में घूम घूम कर अपने आन्दोलन पर और अपने घोषित अनशन पर अपने श्रोताओं में जागृति पैदा की. भ्रष्टाचार और खास कर विदेशों में जमा भारतीय काले धन को लेकर बाबा का आन्दोलन कोई एक महीने का नहीं  है, ये आन्दोलन पिछले एक डेढ़ वर्षों से लगातार चल रहा है . बाबा अपने योग शिविरों में हजारों और टीवी के माध्यम से लाखों लोगों को संबोधित करते हैं . उनके कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लोग जानते हैं कि योग और प्राणायाम के अलावा बाबा अपने व्याखानों में चर्चा करते हैं - सामाजिक तथा राजनैतिक सुधारों  की .

इस एक महीने में मीडिया ने सारी अटकलबाजी लगा ली. मीडिया ने यहाँ तक कह दिया की अब सामाजिक प्रतिनिधियों  में दो खेमे बन गए हैं - एक लोकपाल बिल वाला अन्ना हजारे का और दूसरा समग्र भ्रष्टाचार विरोधी रामदेव वालाकांग्रेस की सरकार ने मौके का फायदा उठा कर अपनी पुरानी राजनीति - बांटो और राज करो वाली - खेलने के लिए कपिल सिब्बल , पवन बंसल और सुधीर सहाय जैसे दिग्गजों को भेजा .उन्हें पटाने के लिए सारे प्रलोभन दिए गए ; बाबा टस से मस नहीं हुए. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंघजी ने एक प्रेमपत्र लिखा की बाबा अनशन वन्शन छोड़ो , और कोई काम की बात करो .  बाबा अपने कार्यक्रम से पीछे नहीं हटे . मीडिया से उन्होंने कह दिया - अन्ना हजारे और उनके आन्दोलन में कोई फर्क नहीं है . अन्ना ने आन्दोलन का एक पक्ष हाथ में लिया - लोकपाल बिल वाला , जिसमे वो अब तक सफल हैं . जब की उनकी मांगे कई हैं , जिस पर वो सरकार का सिर्फ आश्वाशन नहीं बल्कि कार्यक्रम चाहते हैं . आखिर बाबा क्या चाहते हैं ?   बाबा की मांगे इस प्रकार हैं -

. भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं को मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान  
. बड़े मूल्य वाले करेंसी नोटों ( १००० और ५०० रुपैये ) के नोटों का निषेध
. विदेशी बैंकों में जमा अरबों रुपैये का कला धन तत्काल रह्स्त्रिया सम्पति घोषित किया जाए और उसे वापस देश के काम में लाने के लिए सारे प्रयास किया जाए
. लोकपाल बिल को पूरी तरह मजबूत बना कर अगस्त २०११ तक लागू किया जाए
. सरकार को तुरंत यूनाइटेड नेशन कन्वेंसन अगेंस्ट करप्सन के अंतर्राष्ट्रीय मसौदे पर हस्ताक्षर कर के उसके प्रावधानों को देश में लागू करना चाहिए
. अंग्रेजी राज की चल रही सारी प्रथाओं और अंग्रेजी भाषा के प्रभुत्व को समाप्त किया जाना चाहिए
. प्रधान मंत्री का चुनाव सीधे देश के मतदान से होना चाहिए
. सभी राजनेताओं को प्रत्येक वर्ष अपनी आमदनी और सम्पति का ब्यौरा देना चाहिए; की    केवल चुनाव के वक़्त
. आयकर सम्बन्धी जानकारी मांगने का अधिकार राईट टू इनफोर्मेसन के अंतर्गत लाया जाना चाहिए

अब सरकार के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये है की इनमे से कौन सी मांग को अनुचित ठहराए . उधर अन्ना हजारे ने अपना समर्थन बाबा रामदेव के अनशन में शामिल होने की बात कह कर और देकर  सरकार का रहा सहा हथियार भी छीन लिया. दुनिया के एक बहुत प्रसिद्द गुरु श्री रविशंकर जी ने भी रामदेवजी की मांगों को उचित बताया है , हालांकि आमरण अनशन पर उनके विचार थोड़े भिन्न है .

जहाँ समझदार आदमी या तो समझदारी से बात करता है , या फिर चुप रहता है , वहीँ मूर्ख व्यक्ति अपनी राय देने के उतावलेपन में कुछ भी कह डालता है . ऐसे ही एक प्रवक्ता हैं कांग्रेस के - श्री दिग्विजयसिंह . जहाँ एक तरफ कांग्रेस बाबा रामदेव की मुनव्वल के सारे रास्ते ढूंढ रही है , वहीँ ये महा पुरुष टीवी पर धमकी दे रहें हैंकी  अगर कांग्रेस इन हथकंडों से घबराती तो बाबा रामदेव अब तक जेल में होते . उन्हें ये नहीं मालूम की बाबा जैसे जनप्रिय आदमी को जेल में भेजने का क्या असर होगा ! खैर , सरकार ने समझदारी से काम लेते हुए अपने सभी नेताओं का मुंह बंद कर दिया है इस विषय  पर. एक और हमारे बहुत ही लोकप्रिय अभिनेता श्री शाहरुख़ खान जी भी बोल पड़े - की हर व्यक्ति को अपने काम पर ही ध्यान देना चाहिए और नेता बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. अपने काम पर या कमाई पर पूरा ध्यान देने वाले शाहरुख़ बुरा वक़्त पड़ने पर अपने मित्रों को भी पहचानने से इनकार कर देते हैं , जैसा उन्होंने बेचारे करीम मोरानी के साथ किया; ऐसे व्यक्ति को अपना मुंह बंद रखना चाहिए था . जहाँ तक नेता बनने या बनने का सवाल है , तो उन्हें पता होना चाहिए की किसी भी राजनेता से बड़े नेता हैं बाबा रामदेव . सारे नेता सिर्फ अपने चुनाव क्षेत्र से ही जीतने की क्षमता रखते हैं , जब की बाबा रामदेव ने पूरे देश को अपनी सोच का भक्त बना दिया है . है कोई एक भी राजनेता इस देश का जिसमे ये कहने की शक्ति हो की जब वो अपने आमरण अनशन पर बैठेंगे तो पूरे देश में एक करोड़ हिन्दुतानी उनके साथ उपवास पर बैठेंगे !

समय  गया है बाबा और अन्ना  जैसे लोगों के साथ मैदान में उतरने का . यही लोग हैं जो इस देश को कलमाड़ी , राजा और मारण जैसे भ्रष्ट नेताओं के हाथ लुटने से बचा सकते हैं .