नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Sunday, September 5, 2010

इमोशनल अत्याचार या ग्लैडीयेटर शो


इमोशनल अत्याचार - आजकल यूटीवी पर बड़े जोर शोर से ये रियलिटी शो प्रसारित हो रहा है . इस रियलिटी शो की ख़ास बात ये है की इसमें कुछ ज्यादा ही रियलिटी है . आज के इस फ़िल्मी युग में ये स्कूल कोलेज जाने वाले लड़के लड़कियों को स्टिंग ऑपरेशन कर के टेस्ट करते हैं कि ये अपने साथी के लिए वफादार हैं या नहीं . तरीका भी कमाल का है . जो इनका सस्पेक्ट यानि कि खोज का विषय होता है उस पर डोरे डालने के लिए इनकी अत्याकर्षक आधुनिक लड़कियां ( या लड़के ) मेनका कि तरह अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर देती हैं हमारे आधुनिक युग के विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए ; और मिस्टर विश्वामित्र फंस जाते हैं .ये सारा वाकया कैमरों के माध्यम से रिकॉर्ड किया जाता है . सारी रेकॉर्डिंग दिखाई जाती है उस लड़की (या लड़के) को जो इस तरह का परीक्षण अपने प्रेमी पर करवाना चाहती है . और इस सारे घटना क्रम का ग्रांड फिनाले होता है जब शिकार अपने शिकारी के साथ किसी पूर्व निर्धारित स्थान पर मौजूद होता है और वहां इस शो के एंकर उस पीड़ित प्रेमिका ( या प्रेमी) के साथ आधा दर्जन कैमरा और साउंड रेकॉर्डिंग वालों को लेकर छापा मरते हैं .वहां प्रस्तुत होता है एक दृश्य जिसमे एक तरफ निराश प्रेमिका (या प्रेमी) का क्रोध , निराशा, हताशा और मानसिक तूफ़ान का मिश्रित रूप और दूसरी तरफ होता है उस हारे हुए व्यक्ति का चेहरा जिस पर भय , आक्रोश , ग्लानि और हार का मिश्रण . थोड़े बहुत थप्पड़ , ढेर सारी गालियाँ, बीच बचाव और एंकर महोदय की संवेदना. शो को और मसालेदार बनाने के लिए आजकल इसमें शामिल किये जा रहे हैं बड़े बड़े सितारे जैसे की अजय देवगन , इमरान हाशमी , सलमान खान आदि .

ये तो था चित्र जो हमें दिखाई देता है . लेकिन वास्तव में हुआ क्या , कभी इस पर सोचते हैं हम ? आइये कुछ प्रश्नों का उत्तर खोजे हम -

१. युवावस्था के कच्चे प्रेम का अर्थ विश्वामित्र जैसी कठिन साधना है ? इन बच्चों को छोडिये, क्या वर्षों के शादी शुदा लोग भी पास होंगे इस एसिड टेस्ट में ?

२. क्या लोयाल्टी टेस्ट करने का यह सही तरीका है ? व्यक्ति की लोयाल्टी का अर्थ है की उसकी सामान्य दिनचर्या में वो किस तरह रहता है , जो बहुत लोग करवाते भी हैं- इस तरह का काम करने वाली खुफिया कम्पनिओं से . असामान्य पारिस्थिति पैदा कर के टेस्ट करना - उस व्यक्ति की कमजोरी को विकटतम स्थिति में ले जाकर टेस्ट करना है . जिसका परिणाम एक ही होता है . और जो मजबूत लोग इन पारिस्थितियों में भी कमजोर नहीं पड़ते उनकी तो एपीसोड बनती ही नहीं , क्योंकि उसकी व्यावसायिक कीमत कुछ भी नहीं .

३. इस सारे घटनाक्रम का उस लड़के और लड़की के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है ? एक एपिसोड पूरे महीने भर ( बल्कि हमेशा ) छोटे बड़े रूप में लगातार दिखाई जाती है . व्यापारिक लाभ के लिए उन हिस्सों का प्रोमो बनता है जिसमे या तो विषय (शिकार) के अन्तरंग दृश्य होते हैं , या फिर निराश लड़की का रोता हुआ चेहरा और या फिर उसके आक्रोश, भद्दी गलियों और थप्पड़ों के बीच शिकार का सहमा हुआ चेहरा .

उन दोनों का सम्बन्ध तो जीवन भर के लिए भरपूर कड़वाहट के साथ ख़तम होता ही है , लेकिन इसके साथ ख़तम हो जाती है उन दोनों के लिए भविष्य की तमाम राहें. ये भारत है जहाँ विवाह से पहले लड़के और लड़की का चाल चलन , उनकी सामजिक प्रतिष्ठा आदि पूरी तरह जाँची परखी जाती है . ऐसे राष्ट्रीय स्तर के हलके प्रदर्शन के बाद क्या उन दोनों को ही मिल पायेगा कोई जीवन साथी . कम से कम उनका मनपसंद तो नहीं और आसानी से भी नहीं .

४. क्या ऐसी सम्भावना नहीं है के इतनी छीछालेदर के बाद दोनों में से कोई भी आत्म- हत्या का मन बना ले ?

५. दोनों बच्चों के परिवारों के जीवन पर इस सब का क्या असर पड़ेगा ? उनके मा बाप कहीं डिप्रेसन में तो नहीं चले जायेंगे ; उनके बहन भाई की शादी विवाह में क्या अडचने नहीं आएगी ? क्या रिश्तेदार और पडोसी अपने बच्चों से ये नहीं कहेंगे कि इनसे दूर ही रहना ?

६. टेलीविजन का यह घिनौना खेल खेला जा रहा है सिर्फ जोरदार टी आर पी और ढेर सारे पैसे कमाने के लिए . हर ब्रेक के बाद में पिछले एपिसोड या अगली एपिसोड के दृश्य या विवरण शामिल किये जाते हैं .

क्या ऐसे रियलिटी शो भारत जैसे देश के परिवेश में सही हैं ? दूसरे रियलिटी शो दिखाते हैं बच्चों की प्रतिभाएं नाचने की, गाने की, खतरों से खेलने की या फिर कोई अन्य विलक्षण प्रतिभा ; और ये सारे शो उस बच्चे को देते हैं एक प्लेटफोर्म जहाँ से वो अपनी प्रतिभा के आधार पर अपने भविष्य का निर्माण कर सके . वहीँ इमोशनल अत्याचार एक ऐसा रियलिटी शो है जहाँ बच्चों की सारी प्रतिभाओं को ताक पर रख कर उनकी भावनाओं का बलात्कार किया जाता है या यूँ कहिये की इमोशनल अत्याचार किया जाता है ; और उन्हें धकेल दिया जाता है एक ऐसे अँधेरी खाई में जहाँ से फिर वापस उजाले में आना आसान नहीं होता .

मेरी इस सीरियल के निर्मातों से दरखास्त है की अगर इसी तरह से पैसा कमाना हो तो ये सारे परीक्षण करें उन लोगों पर जो समाज के सामने आते हैं रोल मोडल के रूप में - हमारे नेता , फिल्म स्टार, टीवी पर प्रवचन देने वाले साधु संत , ऐसे लोग जो समाज के सामने दम भरते हैं अपनी सच्चाई और पवित्रता का . बक्श दो नौजवान पीढ़ी को - जिनके लिए प्यार मोहब्बत एक हलकी फुलकी दोस्ती का अगला कदम भर है - जिसका प्रशिक्षण उन्हें मिलता है बॉलीवुड की फिल्मों से . सम्भावना है कि उनमे से कोई गलत चुनाव कर बैठे लेकिन आपके इस टेस्ट में तो तय है कि दो व्यक्तिओं का जीवन दांव पर लगेगा ही .

और हम टीवी पर चटखारे लेकर देखने वाले दर्शकों की अवस्था  उस तरह की है जैसे किसी ज़माने में रोम में प्राणों को दांव पर लगा कर मनोरंजन करने वाले ग्लैडीयेटरों के दर्शकों की होती थी ! अगला ग्लैडीयेटर हमारा या आपका बच्चा भी हो सकता है !

2 comments:

  1. चिंतन करना चाहिए समाज को , आपने अच्छे विचार रखे ,धन्यवाद ।

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  2. ekdum sahi likha hai aapne, samaj ko vichar karna chahiye.

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