बातचीत एक प्लेटफार्म है अपने आस पास होने वाली घटनाओं को सहित्यिक ढंग से बताने का . यानि की एक ऐसा अखबार , जो अखबार जैसा न हो. सांकेतिक कथाएं ,वर्णन ,लेख - सब कुछ हिस्सा होंगे इस ब्लॉग का . सबसे बड़े हिस्सेदार होंगे आप, पाठक गण. बुरे को बुरा कहने में संकोच न करें. लेकिन अच्छा लगे तो दो शब्द उत्साह वर्धन के भी.
नील स्वर्ग
Wednesday, November 2, 2016
Wednesday, October 12, 2016
खेल ख़त्म पैसा हजम !
- लो जी हमने कल फूंक दिए देश के सारे रावण ! कोई भी नहीं बचा। खेल ख़त्म पैसा हजम ! किसे भुलावा देते हैं हर साल ? जिसे जलाते हैं , वो तो सिर्फ एक पुतला था , जिसे बनाकर किसी गरीब के घर का चूल्हा जला होगा। सड़कों पर बाजार लगते हैं रावण के पुतलों के। छोटा रावण , बड़ा रावण , मूंछ वाला रावण , दस सर वाला रावण ! रावण जितना बड़ा - पैसे उतने ज्यादा। छोटे बच्चे , बूढी औरतें , सभी मिलकर बनाते हैं वो बेंत और कागज वाले रावण। भरण पोषण होता है उनके परिवारों का । ऐसे रावणों को मैं क्यों बुरा कहूँ , जो स्वयं जल कर भी गरीब को रोटी देते हैं।
- उन रावणों को कौन जलाएगा , जो निर्भया जैसी मासूम बच्चियों का बलात्कार करते हैं ! उन पुलिस के वेश में बैठे जल्लादों को कौन जलाएगा जो गरीब आदमी को फंसा कर थाने में मार डालते हैं। शहाबुद्दीन जैसे खूंखार हत्यारों को जो बेल पर छुड़ा लेते हैं - उनको कौन जलाएगा ? नगर नगर में रावणों की भरमार है ; लेकिन उनके वध के लिए कोई विजयादशमी नहीं आती।
Wednesday, October 5, 2016
देश की प्रतिक्रिया
देश की
प्रतिक्रिया
उरी हमले के बाद
पाकिस्तान सोशल मिडिया में छाया हुआ है। ब्रह्मपुत्र के जल की धारा में रुकावट
डालने से चीन ने अपना खुला समर्थन पाकिस्तान को दे दिया। तब से लगातार ऐसे सन्देश
और संवाद व्हाट्सप्प , ट्विटर और फेसबुक
पर घूम रहें हैं , की भारत के लोगों
को इन दोनों देशों से व्यापारिक या अन्य किसी प्रकार का रिश्ता नहीं रखना चाहिए।
यहाँ तक की दिवाली की खरीददारी में चीनी माल का बहिष्कार करना चाहिए।
इस तरह के संवाद
देने वाले तो बहुत है , लेकिन इन पर अमल
करने वाले ज्यादातर लोग शांत हैं। मेरे एक मित्र सुशील पोद्दार ने उत्तर दिया कि
पिछले कई महीनों की खोजबीन और मोलभाव के बाद उन्होंने एक चीनी कंपनी से अपनी
फैक्ट्री के लिए कुछ मशीने खरीदने का निर्णय लिया हुआ था ; लेकिन उरी के बाद के घटनाक्रम ने उन्हें सोचने
पर मजबूर कर दिया। उन्होंने चीन से मशीन खरीदने
का अपना निर्णय बदल दिया। अब उन्हें नए सिरे से किसी और देश के साथ मोलभाव करना है
, और ऊंचे दाम देकर वो मशीन
लेनी है। मेरे एक अन्य मित्र श्रवण सुरेका ने भी लिखा की उनकी एक व्यापारिक डील
करोड़ों रुपये की एक चीनी कंपनी से तय हो चुकी थी ; लेकिन उन्होंने अपनी डील कैंसिल कर दी।
सुशील पोद्दार और
श्रवण सुरेका के निर्णय की किसी ने चाहे वाहवाही नहीं की हो , लेकिन ये लोग हमारे देश के असली देशभक्त हीरो
हैं ; मैं इन्हें सैलूट करता हूँ।
मुम्बई हमले के
पहले क्या उन पाकिस्तानियों ने लोगों से पूछा था की तुम में से कोई कलाकार तो नहीं
है न ? और न हीं देश के जांबाज कमांडो ने पुछा था , की वो लड़ाई किसके लिए लड़ रहे थे। मैं निंदा
करता हूँ - ऐसे स्वार्थी लोगों की जो कला की आड़ में देश से ऊपर अपने
व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्व देते हैं।
बोले तो कुछ और
भी लेकिन फिर जल्दी जल्दी फैला हुआ रायता समेत लिया। देश की जनता ऐसे राजनीति की
आड़ में देशद्रोह करने वालों को कभी माफ़ नहीं करेगी।
आदरणीय मोदीजी !
पूरा देश हर कदम पर आपके साथ है। पाकिस्तान के साथ जैसा सलूक किया जाना उचित है ,
वैसा करें। चंद लोगों बकवास इस देश के सवा सौ करोड़ देश वाशियों
के सामने नक्कार खाने की तूती मात्र है।
उन्हें अनसुना कीजिये और विजय पथ पर बढिए - चाहे शांति के मार्ग से और चाहे
युद्ध के मार्ग से !
शत शत वंदन !Wednesday, September 14, 2016
Priya Kaun ?
प्रिय कौन ?
कल एक रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी। जब उनके घर पहुंचा , तो देखा की मृत शरीर एक अर्थी पर लेटाया हुआ था। परिवार के पुरुष उस अर्थी के ऊपर कपडा और रस्सी आदि बाँध रहे थे। महिलाएं शोक विह्वल होकर एक तरफ खड़ी थी। मृत व्यक्ति के पुत्र शोकाकुल होकर रो रहे थे। समाज के लोग तथा रिश्तेदार अंतिम विदा देने के लिए पहुंचे हुए थे।
मृत व्यक्ति के भाई ,चाचा , साले तथा अन्य रिश्तेदार अर्थी तैयार करते हुए निर्देश दे रहे थे -
' बॉडी के ऊपर पहले सफ़ेद कपडा डालो फिर रस्सी बांधो '
' बॉडी के शरीर पर कोई आभूषण तो नहीं है न ?'
'बॉडी को जरा आगे सरकाओ। '
यानि की जीवन का एक प्रिय व्यक्ति अब सिर्फ एक शरीर था - एक बॉडी ! जो प्रिय था जिसे हम नाम लेकर बुलाते थे वो तो चला ही गया था।
यही है शायद आत्मा का रहस्य। आत्मा ही प्रियजन है , आत्मा ही पिता , पति या भाई है। शरीर तो एक अस्थायी पहचान है उस आत्मा की।
मन की बहुत सी गुत्थियां सुलझ गयी !
कल एक रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी। जब उनके घर पहुंचा , तो देखा की मृत शरीर एक अर्थी पर लेटाया हुआ था। परिवार के पुरुष उस अर्थी के ऊपर कपडा और रस्सी आदि बाँध रहे थे। महिलाएं शोक विह्वल होकर एक तरफ खड़ी थी। मृत व्यक्ति के पुत्र शोकाकुल होकर रो रहे थे। समाज के लोग तथा रिश्तेदार अंतिम विदा देने के लिए पहुंचे हुए थे।
मृत व्यक्ति के भाई ,चाचा , साले तथा अन्य रिश्तेदार अर्थी तैयार करते हुए निर्देश दे रहे थे -
' बॉडी के ऊपर पहले सफ़ेद कपडा डालो फिर रस्सी बांधो '
' बॉडी के शरीर पर कोई आभूषण तो नहीं है न ?'
'बॉडी को जरा आगे सरकाओ। '
यानि की जीवन का एक प्रिय व्यक्ति अब सिर्फ एक शरीर था - एक बॉडी ! जो प्रिय था जिसे हम नाम लेकर बुलाते थे वो तो चला ही गया था।
यही है शायद आत्मा का रहस्य। आत्मा ही प्रियजन है , आत्मा ही पिता , पति या भाई है। शरीर तो एक अस्थायी पहचान है उस आत्मा की।
मन की बहुत सी गुत्थियां सुलझ गयी !
Tuesday, July 26, 2016
कुंठा : फ़िल्मी गानों के माध्यम से
कुंठा जीवन की एक सच्चाई है। असफलता जन्म देती है , निराशा को और निराशा ह्रदय की कुढ़न बन कर बन जाती है - कुंठा। असफलता के कई कारण हो सकते है - खेल कूद , पढ़ाई , व्यापार या प्यार। फिल्मों से मिलने
वाले उदाहरण प्रायः प्रेम की असफलता के कारण ही होते हैं।
इस गीतों भरी बातचीत में हम देखेंगे कुंठा के बदलते हुए स्वरुप। जब कोई व्यक्ति अपने प्रिय या प्रिया को अपने आप से दूर करने का प्रयास करते हुए देखता है , तो जिस कुंठा का जन्म होता है , उसे कहते हैं ईर्ष्या ! कुंठित मन चीत्कार कर उठता है - और नहीं बस और नहीं , ग़म के प्याले और नहीं !
और जब वह दुराव जीवन के सबसे बड़े नुक्सान में बदल जाता है ; जब उसकी प्रियतमा किसी और की हो जाती है ; तब कुंठा अपने पूरे प्रचंड स्वरुप में आ जाती है। वो समाज चिंता छोड़ कर सीधे सीधे दोष देता है अपनी प्रियतमा को उसका नाम लेकर - ओ मेरी महुआ तेरे वादे क्या हुए ?
और फिर वो विदा होती है अपने गाँव से , उस समय उस प्रेमी का ह्रदय टुकड़े टुकड़े हो जाता है। उसे अपने टूटे हुए सपने टूटे हुए फूल से और अपनी मीत आँखों में शूल सी चुभती है !
उसकी कुंठा उसे दीवाना बना देती है। वो गली गली भटकता है - ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं !
थक हार कर रातों को सोने की कोशिश में अपनी तन्हाई में आवाज देता है - कोई लौट दे मेरे बीते हुए हुए दिन !
और कुंठा का अंतिम स्वरुप उभरता है , पूरे समाज और पूरी दुनिया के प्रति आक्रोश के रूप में। वो चीत्कार कर उठता है - जला दो इसे फूंक डालों ये दुनिया , मेरे सामने से हटालो ये दुनिया ; तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया !
Sunday, July 10, 2016
सिंगापुर : पर्यावरण
पर्यावरण की सुरक्षा जीवन के हर काम में निहित होनी चाहिए। एक मजेदार बात ; ख़ास कर हम भारत में रहने वालों के लिए। एक दिन मैंने देखा की हमारी गली में एक मकान के सामने के एक कंक्रीट मिक्सर की गाडी आकर खड़ी थी। उसका मिक्सर वाला टैंक घूम रहा था। हमारे देश में इस तरह की गाडी खड़ी होती है किसी निर्माणाधीन ईमारत के पास। मुझे समझ में नहीं आया की ये यहाँ क्या कर रही है !
बाद में जब मैं नीचे गया और उस ईमारत के सामने से गुजरा तो देखा की उसके अहाते में एक मिस्त्री अपने औजार लेकर जमीन की सतह एक हिस्से को ठीक कर रहा था। तब मुझे समझ में आया की इस देश में चाहे कोई छोटी सी मरम्मत ही क्यों न करनी हो , सीमेंट ओर कंक्रीट का गारा खुले में नहीं बनाया जाता है। ये डिपो से कंक्रीट मिक्सर में डाल कर भेजा जाता है।
अब बताइए , ऐसे देश में कहाँ से किसी प्रकार का प्रदुषण फैलेगा !
Monday, July 4, 2016
सिंगापुर : कुछ और अनुभव
किसी भी देश को महान बनते हैं वहां के नागरिक और वहां का प्रशासन ! सिंगापुर में ये दोनों ही इतने चुस्त हैं की जन जीवन में किसी प्रकार की बुराई नजर ही नहीं आती।
फेरीवाले प्रायः हर देश में पाये जाते हैं। अंग्र्जी में इन्हे हॉकर्स कहते हैं। सस्ते दर पर तैयार भोजन खिलते हैं ये हॉकर्स। प्रायः इनका बनाया हुआ भोजन स्वादिष्ट भी होता है। लेकिन समस्या ये होती है की ये सड़कों पर जहाँ तहाँ अपना डेरा जमा लेते हैं। वहां गंदगी फैलाते हैं। इसके अलावा इनके भोजन की स्वच्छ्ता पर हमेशा प्रश्न खड़ा रहता है। भारत में तो ये दोनों बातें बिल्किल साफ़ नजर आती हैं।
सिंगापुर की सड़कों पर मुझे कोई हॉकर खाने पीने की सामग्री बेचता हुआ नहीं दिखा। मैंने अपनी बेटी पल्लवी से पुछा इसके बारे में। उसने बताया की पहले सिंगापुर में भी हॉकर्स हुआ करते थे ; लेकिन सफाई और स्वच्छ्ता के कारण वहां की सरकार ने कई जगहों पर हॉकर सेंटर बना दिए हैं। ये सेंटर पूरी तरह से व्यवस्थित हैं। यहाँ बैठने के लिए कुर्सियां और टेबल आदि की व्यवस्था है। सरकार के निरीक्षक निश्चित अवधि पर इन हॉकर्स के स्टाल्स का निरिक्षण करते हैं। उनकी सफाई की अवस्था के अनुरूप उनकी रेटिंग की जाती है और वो रेटिंग वहां सामने एक सर्टिफिकेट की तरह दिखना अनिवार्य होती है।
कितना आसान समाधान ! कौन हॉकर चाहेगा की उसकी रेटिंग ख़राब हो , क्योंकि उसकी दुकान पर आने वाला व्यक्ति रेटिंग देख कर ही खायेगा।
क्या ये छोटी छोटी बातें - जो मुझे आकर्षित करती है , हमारी सरकार के लोगों को नजर नहीं आती ?
Tuesday, June 28, 2016
सिंगापुर : कुछ नए अनुभव
ये मेरी तीसरी यात्रा है सिंगापुर की। हर यात्रा में यहाँ के जीवन की विशेषताएं सीख कर जाता हूँ। छोटी छोटी बातें जो यहाँ के जीवन को कितना सुरक्षित , सुखद और आरामदायक बन देती है।
मेरी बेटी यहाँ अकेली रहती है ; उसे डेढ़ साल पहले एक अच्छी मल्टी नेशनल कंपनी में यहाँ काम मिल गया। इसके पहले भी उसे लन्दन तथा शंघाई शहरों से जॉब के ऑफर मिले थे। मैंने मना कर दिया था। एक अकेली बिटिया को किसी अनजाने देश में अकेले रहने की अनुमति कैसे दे देते। लेकिन बात जब सिंगापुर की आई , तो मुझे हाँ कहना ही पड़ा। सिंगापूर में किसी अकेली लड़की के लिए रहना, भारत में कहीं भी रहने से ज्यादा सुरक्षित है। यहाँ के अखबार में कभी कोई अपराध की खबर नहीं आती , क्योंकि ये देश जीरो क्राइम देश है।
उसके यहाँ रहने के बाद पहली बार उसके पास आया। वो एक बहु मंजिली ईमारत में पांचवे माले पर रहती है। जब हम उसके साथ उसकी लिफ्ट में चढ़े , उसने अपना कार्ड एक रीडर के सामने घुमाया तो उसमे पांचवे माले का नंबर रोशन हो गया। लिफ्ट सीढ़ी पांचवे माले पर रुकी। उसकी लिफ्ट के सामने मात्र उसका फ्लैट है। यानि की कोई भी व्यक्ति उस ईमारत के पांचवे माले पर तब तक नहीं आ सकता जब तक उसके पास उस माले ले लिए बन हुआ कार्ड न हो। किसी दूसरी मंजिल वाला व्यक्ति सिर्फ अपने नियत माले तक ही जा सकता है , किसी अन्य माले पर नहीं।
टैक्सी ३-४ मिनट के अंदर आपके मकान पर हाजिर हो जाती है। यहाँ भी उबेर और उसके जैसी अन्य सेवाएं उपलब्ध हैं। टैक्सी वाले को आप बिल्डिंग का नाम या नंबर बता देते हैं तो वो आपको सीधा पहुंचा देता है। एक मजेदार बात ये है , की जैसे हमारे देश में हर मोहल्ले का एक पिन कोड होता है , वैसे यहाँ हर बिल्डिंग का ज़िप कोड होता है। कितना आसान हो जाता है पता। मात्र ६ संख्याओं का एक कोड !
एक और दिलचस्प बात ! जब हम किसी सड़क पर जाते हैं तो उस पर इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड लगे होते हैं जिस पर हर बड़ी बिल्डिंग खास कर मॉल आदि वाली बिल्डिंगों के अंदर की पार्किंग के लिए उपलब्ध जगह की संख्या होती है। यानि की अगर कैथे मॉल के सामने ७ लिखा है तो उसका अर्थ है की उसके अंदर ७ गाड़ियां पार्क करने की जगह बची है। इस सुचना के आधार पर लोग ये फैसला कर पाते हैं की उन्हें गाडी कहाँ पार्क करनी है।
सिंगापुर में आम तौर पर कोई पुलिस वाला नजर नहीं आता। इसका कारन है की , यहाँ के सामान्य नागरिकों में बहुत से लोगों को पुलिस के सारे अधिकार होतें हैं। आपकी टैक्सी का ड्राइवर , होटल का वेटर , या एक छोटा सा दुकानदार भी पूरे पावर के साथ पुलिस वाला हो सकता है। अगर कोई कहीं भी किसी प्रकार का अपराध करता है , उसे पकड़ने वाला कोई न कोई पुलिस अफसर भी कहीं आस पास जरूर होगा।
सचमुच एक अद्भुत शहर है सिंगापुर !
Monday, April 4, 2016
मीडिया क्या कर रहा है ?
देश बड़े नए किस्म के ज्वलंत प्रश्नों से जूझ रहा है -
१. नेताजी सुभाष की मौत कैसे हुयी ? कब हुयी ?
२. शनि मंदिर में महिलाएं क्यों न जाएँ ?
३. भारत माता की जय क्यों बोलें ?
४. भाजपा को देशभक्ति करने का क्या अधिकार है ?
५. जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना बलात्कार क्यों करती है ?
६. मौलाओं के पास हर प्रश्न के उत्तर में फतवा क्यों होता है ?
७. मुस्लिम महिलाओं का तीन तलाक का विरोध क्यों जायज नहीं है ?
८. आर एस एस - हर मुद्दे पर अपनी राय क्यूँ देती है ?
९. राहुल गांधी हर दुर्घटना पर क्यों अवतरित हो जाते हैं ?
१०. हर सेलिब्रिटी की मृत्यु , हत्या और ख़ुदकुशी - हफ्ते भर की सुर्खियां क्यों खा जाती है ?
११. भारत ने वर्ल्ड कप क्यों नहीं जीता।
१२. भुजबल का क्या होगा ?
१३. कोलकाता में फ्लाई ओवर पल गिरने से राजनैतिक लाभ या हानि किस पार्टी की होगी ?
ये सारे प्रश्न पिछले २ हफ़्तों में प्रतिदिन टेलीविजन का ९५ % समय खा चुके हैं। बच्चे हुए ५ % समय में ये मुद्दे उठते हैं -
१. ये किसान पूरे देश में क्यों आत्महत्या करते हैं ?
२. चीन ने आतंकवाद में मामले में पाकिस्तान का साथ क्यों दिया ?
३. विदेश मंत्रालय के प्रयासों से ४ भारतीय नागरिक सीरिया की जेल से छूट कर भारत कैसे आये।
४. पठानकोट आतंकी हमले की जांच कर रहे , एनआईए के एक अफसर की हत्या क्यों हुयी ?
५. आसाम और पश्चिम बंगाल में विधान सभा के चुनाव शुरू।
फैसला कीजिये , मीडिया क्या कर रहा है ?
१. नेताजी सुभाष की मौत कैसे हुयी ? कब हुयी ?
२. शनि मंदिर में महिलाएं क्यों न जाएँ ?
३. भारत माता की जय क्यों बोलें ?
४. भाजपा को देशभक्ति करने का क्या अधिकार है ?
५. जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना बलात्कार क्यों करती है ?
६. मौलाओं के पास हर प्रश्न के उत्तर में फतवा क्यों होता है ?
७. मुस्लिम महिलाओं का तीन तलाक का विरोध क्यों जायज नहीं है ?
८. आर एस एस - हर मुद्दे पर अपनी राय क्यूँ देती है ?
९. राहुल गांधी हर दुर्घटना पर क्यों अवतरित हो जाते हैं ?
१०. हर सेलिब्रिटी की मृत्यु , हत्या और ख़ुदकुशी - हफ्ते भर की सुर्खियां क्यों खा जाती है ?
११. भारत ने वर्ल्ड कप क्यों नहीं जीता।
१२. भुजबल का क्या होगा ?
१३. कोलकाता में फ्लाई ओवर पल गिरने से राजनैतिक लाभ या हानि किस पार्टी की होगी ?
ये सारे प्रश्न पिछले २ हफ़्तों में प्रतिदिन टेलीविजन का ९५ % समय खा चुके हैं। बच्चे हुए ५ % समय में ये मुद्दे उठते हैं -
१. ये किसान पूरे देश में क्यों आत्महत्या करते हैं ?
२. चीन ने आतंकवाद में मामले में पाकिस्तान का साथ क्यों दिया ?
३. विदेश मंत्रालय के प्रयासों से ४ भारतीय नागरिक सीरिया की जेल से छूट कर भारत कैसे आये।
४. पठानकोट आतंकी हमले की जांच कर रहे , एनआईए के एक अफसर की हत्या क्यों हुयी ?
५. आसाम और पश्चिम बंगाल में विधान सभा के चुनाव शुरू।
फैसला कीजिये , मीडिया क्या कर रहा है ?
Sunday, April 3, 2016
Tuesday, March 8, 2016
कन्हैया और अनुपम
कन्हैया और अनुपम ! व्यंजन और स्वर - दोनों प्रकार के अक्षरों का प्रथम अक्षर - क और अ ! किसी शब्द के पहले क या क की कोई मात्रा दीजिये , तो बन जाता है एक अपशब्द - जैसे कुरूप , कुशासन , कुदृष्टि और क की जगह अ लगा दें तो बन जाता है अति सुन्दर जैसे की - अद्वितीय , अप्रतिम, अनुपम ! खैर ये तो थी एक अलंकारात्मक तुलना ; लेकिन दोनों की तुलना भी कुछ इसी प्रकार की बैठती है।
कन्हैया बिहार के गाँव से आकर जेएनयु में पढ़ने के लिए दाखिला लेता है , लेकिन कैंपस की राजनीति में हिस्सा लेकर बन जाता है छात्र नेता। देश की खैरात के ऊपर चलने वाले जे ऍन यु में देश को ही गालियां देने वाले लोगों सरगना बन जाता है।
अनुपम उन कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधि है , जिन्हे कश्मीर से रातों रात विस्थापित कर दिया गया था। अनुपम ने अपने जीवन में संघर्ष किया और अपने लिए एक स्थान बनाया भारत के चलचित्र जगत में।
कन्हैया अंग बन जाता है उस सोच का जो देश को बर्बाद कर देना चाहती है। वो गुट जो अफजल गुरु और मकबूल बट्ट जैसे देश द्रोहियों को अपना आदर्श मानता है। अफजल गुरु की शहादत को मनाने के लिए वाईस चांसलर पर दबाव डालता है। देशद्रोहियों के साथ मिल कर नारे लगाता है -' भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी ', 'अफजल हम शर्मिंदा है , तेरे कातिल जिन्दा है '. इतना ही नहीं इस देश से आजादी के नारे लगाता है। ये अलग बात है , की जब पुलिस द्वारा पकड़ लिया जाता है तो बहाने बाजी करता है। अपने कहे हुए नारों को नकारता है। नए फर्जी नारे बनाये जाते हैं। आजादी - गरीबी से , आजादी - बेरोजगारी से। कन्हैया जरा ये बताये की गरीबी से आजादी पाने के लिए अफजल गुरु की शहादत का क्या सम्बन्ध है ?
अनुपम कश्मीर से पंडितों के विस्थापन दिवस को मनाने के लिए एक अपना वक्तव्य जारी करता है। पूरे देश द्वारा वो सुना जाता है ; कश्मीरी पंडितों की समस्या पर पूरी चर्चा होती है। अनुपम का एक नया रूप देश के सामने आता है।
कन्हैया को जेल से निकलने के लिए जमानत बनती है दस हजार रुपैयों और बहुत सारी शर्तों पर जो किसी सामान्य अपराधी पर लागू होती है ; लेकिन कन्हैया को हीरो बनाने वाले, इसे कन्हैया की विजय मान लेते हैं। कन्हैया जेल से निकल कर फिर एक बार जे एन यू में भाषण देता है। एक निरर्थक भाषण - जिसमे मोदी को कोसने के अलावा कुछ नहीं था। गरीबी के लिए जिम्मेवार पार्टियां - कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी कन्हैया को अपना हीरो बना लेते हैं। बिकी हुयी मिडिया कन्हैया को बुला कर उसका लम्बा लम्बा इंटरव्यू लेती है ; जिसे कन्हैया अपनी नयी नयी बनी पहचान का इनाम समझ कर चटखारे लेता है। मतलब साफ़ है - कन्हैया ने राजनीति में घुसने का रास्ता बना लिया है।
कुछ दिनों पहले टेलीग्राफ अखबार ने देश में बढ़ती हुयी तथाकथित असहिषुण्ता पर एक चर्चा का कार्यक्रम रखा। जस्टिस गांगुली और कांग्रेस के सुरजेवाला ने जी भर कर असहिष्णुता के गीत गाये , मोदी सरकार को कोसा। लेकिन जब अनुपम ने उनकी बातों का स्पष्ट और सीधा उत्तर देना शुरू किया तो सबके तोते उड़ गए। ७-८ मिनट के अपने बेबाक और निर्भीक भाषण से अनुपम देश की सोच पर छा गया।
आज कन्हैया और अनुपम दोनों ही शायद एक राजनैतिक जीवन के दो विपरीत छोरों से अपनी शुरुवात कर रहे हैं, लेकिन दोनों के स्तर में वही अंतर है जो राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी में है।
कन्हैया बिहार के गाँव से आकर जेएनयु में पढ़ने के लिए दाखिला लेता है , लेकिन कैंपस की राजनीति में हिस्सा लेकर बन जाता है छात्र नेता। देश की खैरात के ऊपर चलने वाले जे ऍन यु में देश को ही गालियां देने वाले लोगों सरगना बन जाता है।
अनुपम उन कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधि है , जिन्हे कश्मीर से रातों रात विस्थापित कर दिया गया था। अनुपम ने अपने जीवन में संघर्ष किया और अपने लिए एक स्थान बनाया भारत के चलचित्र जगत में।
कन्हैया अंग बन जाता है उस सोच का जो देश को बर्बाद कर देना चाहती है। वो गुट जो अफजल गुरु और मकबूल बट्ट जैसे देश द्रोहियों को अपना आदर्श मानता है। अफजल गुरु की शहादत को मनाने के लिए वाईस चांसलर पर दबाव डालता है। देशद्रोहियों के साथ मिल कर नारे लगाता है -' भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी ', 'अफजल हम शर्मिंदा है , तेरे कातिल जिन्दा है '. इतना ही नहीं इस देश से आजादी के नारे लगाता है। ये अलग बात है , की जब पुलिस द्वारा पकड़ लिया जाता है तो बहाने बाजी करता है। अपने कहे हुए नारों को नकारता है। नए फर्जी नारे बनाये जाते हैं। आजादी - गरीबी से , आजादी - बेरोजगारी से। कन्हैया जरा ये बताये की गरीबी से आजादी पाने के लिए अफजल गुरु की शहादत का क्या सम्बन्ध है ?
अनुपम कश्मीर से पंडितों के विस्थापन दिवस को मनाने के लिए एक अपना वक्तव्य जारी करता है। पूरे देश द्वारा वो सुना जाता है ; कश्मीरी पंडितों की समस्या पर पूरी चर्चा होती है। अनुपम का एक नया रूप देश के सामने आता है।
कन्हैया को जेल से निकलने के लिए जमानत बनती है दस हजार रुपैयों और बहुत सारी शर्तों पर जो किसी सामान्य अपराधी पर लागू होती है ; लेकिन कन्हैया को हीरो बनाने वाले, इसे कन्हैया की विजय मान लेते हैं। कन्हैया जेल से निकल कर फिर एक बार जे एन यू में भाषण देता है। एक निरर्थक भाषण - जिसमे मोदी को कोसने के अलावा कुछ नहीं था। गरीबी के लिए जिम्मेवार पार्टियां - कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी कन्हैया को अपना हीरो बना लेते हैं। बिकी हुयी मिडिया कन्हैया को बुला कर उसका लम्बा लम्बा इंटरव्यू लेती है ; जिसे कन्हैया अपनी नयी नयी बनी पहचान का इनाम समझ कर चटखारे लेता है। मतलब साफ़ है - कन्हैया ने राजनीति में घुसने का रास्ता बना लिया है।
कुछ दिनों पहले टेलीग्राफ अखबार ने देश में बढ़ती हुयी तथाकथित असहिषुण्ता पर एक चर्चा का कार्यक्रम रखा। जस्टिस गांगुली और कांग्रेस के सुरजेवाला ने जी भर कर असहिष्णुता के गीत गाये , मोदी सरकार को कोसा। लेकिन जब अनुपम ने उनकी बातों का स्पष्ट और सीधा उत्तर देना शुरू किया तो सबके तोते उड़ गए। ७-८ मिनट के अपने बेबाक और निर्भीक भाषण से अनुपम देश की सोच पर छा गया।
आज कन्हैया और अनुपम दोनों ही शायद एक राजनैतिक जीवन के दो विपरीत छोरों से अपनी शुरुवात कर रहे हैं, लेकिन दोनों के स्तर में वही अंतर है जो राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी में है।
Friday, January 1, 2016
Shortest Story
एक अति लघु कथा
मैंने एक अनजान व्यक्ति से कहा - नया साल मुबारक हो !
उसने उत्तर दिया - क्यों ?
मैं निरुत्तर हो गया।
मैंने एक अनजान व्यक्ति से कहा - नया साल मुबारक हो !
उसने उत्तर दिया - क्यों ?
मैं निरुत्तर हो गया।
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