प्रिय कौन ?
कल एक रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी। जब उनके घर पहुंचा , तो देखा की मृत शरीर एक अर्थी पर लेटाया हुआ था। परिवार के पुरुष उस अर्थी के ऊपर कपडा और रस्सी आदि बाँध रहे थे। महिलाएं शोक विह्वल होकर एक तरफ खड़ी थी। मृत व्यक्ति के पुत्र शोकाकुल होकर रो रहे थे। समाज के लोग तथा रिश्तेदार अंतिम विदा देने के लिए पहुंचे हुए थे।
मृत व्यक्ति के भाई ,चाचा , साले तथा अन्य रिश्तेदार अर्थी तैयार करते हुए निर्देश दे रहे थे -
' बॉडी के ऊपर पहले सफ़ेद कपडा डालो फिर रस्सी बांधो '
' बॉडी के शरीर पर कोई आभूषण तो नहीं है न ?'
'बॉडी को जरा आगे सरकाओ। '
यानि की जीवन का एक प्रिय व्यक्ति अब सिर्फ एक शरीर था - एक बॉडी ! जो प्रिय था जिसे हम नाम लेकर बुलाते थे वो तो चला ही गया था।
यही है शायद आत्मा का रहस्य। आत्मा ही प्रियजन है , आत्मा ही पिता , पति या भाई है। शरीर तो एक अस्थायी पहचान है उस आत्मा की।
मन की बहुत सी गुत्थियां सुलझ गयी !
कल एक रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी। जब उनके घर पहुंचा , तो देखा की मृत शरीर एक अर्थी पर लेटाया हुआ था। परिवार के पुरुष उस अर्थी के ऊपर कपडा और रस्सी आदि बाँध रहे थे। महिलाएं शोक विह्वल होकर एक तरफ खड़ी थी। मृत व्यक्ति के पुत्र शोकाकुल होकर रो रहे थे। समाज के लोग तथा रिश्तेदार अंतिम विदा देने के लिए पहुंचे हुए थे।
मृत व्यक्ति के भाई ,चाचा , साले तथा अन्य रिश्तेदार अर्थी तैयार करते हुए निर्देश दे रहे थे -
' बॉडी के ऊपर पहले सफ़ेद कपडा डालो फिर रस्सी बांधो '
' बॉडी के शरीर पर कोई आभूषण तो नहीं है न ?'
'बॉडी को जरा आगे सरकाओ। '
यानि की जीवन का एक प्रिय व्यक्ति अब सिर्फ एक शरीर था - एक बॉडी ! जो प्रिय था जिसे हम नाम लेकर बुलाते थे वो तो चला ही गया था।
यही है शायद आत्मा का रहस्य। आत्मा ही प्रियजन है , आत्मा ही पिता , पति या भाई है। शरीर तो एक अस्थायी पहचान है उस आत्मा की।
मन की बहुत सी गुत्थियां सुलझ गयी !
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