एक दिलचस्प किस्सा सुनाता हूँ। एक दिन मेरे साले के बेटे सिद्धू ने अपने दादाजी से जिद की कि उसे एक ख़ास किस्म की गाडी चाहिए। सिद्धू छोटा बालक ही था। दादाजी ने टालने के लिए कहा - बेटा , बहुत महंगी आती हैं , अपने पास इतने पैसे नहीं हैं ; इसलिए पहले पैसे और कमा लेते हैं। जब इतने पैसे हो जाएंगे तब ये गाडी खरीद लेंगे। शाम को दादाजी दफ्तर से लौटे तो सिद्धू प्रतीक्षा कर रहा था। आते ही गोद में चढ़ गया। पूछा - दादाजी पैसे कमा लिए क्या ? सुबह शाम वो पूछने लगा - दादाजी पैसे कमा लिए क्या ?
ये तो बात हुई - एक छोटे बच्चे की ! लेकिन उससे भी ज्यादा नादान वो लोग हैं जो दिन रात नरेंद्र मोदी से प्रश्न करते हैं - कहाँ गए आपके अच्छे दिन ? दस साल की गन्दगी कोई एक महीने में साफ़ नहीं होती। और इस सफाई से निकलने वाली दुर्गन्ध को भी सहना पड़ेगा। समय हर काम में लगता है। सुगंध फैलाने के पहले दुर्गन्ध को निकालना जरूरी होता है।
अगर एक डॉक्टर एक गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज से कहता है की मेरे इलाज से तुम कष्ट से मुक्त हो जाओगे , तो उस मरीज को इंजेक्शन , सर्जरी और कड़वी दवा को लेने की तैयारी करनी पड़ती है। मरीज ये शिकायत नहीं कर सकता कि डॉक्टर आपने तो कहा था की आप मुझे कष्ट से मुक्त देंगे , लेकिन आप तो मुझे और भी कष्ट दे रहें हैं।
कांग्रेस पार्टी अगर मोदी से सवाल करती है , ये उनकी बेशर्मी के सिवा कुछ नहीं ! देश उनके ही कुकर्मों को भुगत रहा है।
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