नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Saturday, June 28, 2014

भगवान कौन ?


आजकल देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। ज्योतिष व द्वारिका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने  शिरडी के साईं बाबा को अवतार मानने से इन्कार कर दिया है।उन्होंने कहा, "साईं भक्ति अंधविश्वास के सिवाय कुछ नहीं। साईं के मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना सनातन धर्म के विरुद्ध है। इससे हिंदू समाज के बंटने का खतरा पैदा हो गया है। साईं हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक नहीं हैं। जिन लोगों को धर्म का ठीक प्रकार से ज्ञान नहीं है, वे साईं भक्ति की बात कह रहे हैं। अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ लोग इस तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं।
शंकराचार्य ने कहा कि वेद-पुराणों में कहीं भी साईं के अवतार का उल्लेख नहीं किया गया है। कुछ लोग मंदिरों व घरों में साईं की मूर्ति लगा रहे हैं, यह भगवान की आराधना नहीं है। सनातनी परंपरा में सभी देवताओं के मंत्र और यंत्र हैं।
लो साहब ! शंकराचार्य ने जैसे कोई विवाद का बंद पड़ा पिटारा ही खोल दिया है। महंतो , पंडों , तथाकथित हिन्दू धर्म के विद्वानों के दो भाग गए।  कुछ साईं अर्चना के पक्ष में और बाकी विपक्ष में। टेलीविजन चैनेल को तो TRP  चाहिये। बस भिड़ा दिया दोनों पक्षों को।  टेलीविजन पर आने  का मौका कोई छोड़ने को तैयार नहीं। हंसी आती है हिन्दू समाज के इन ठेकेदारों के इस वाद विवाद पर। भगवान को पारिभाषित करने की हौड़  है। एक ही सांस में ये ज्ञानी पुरुष वेद और पुराण को एक ही तराजू पर तौलते हैं।  
सच्चाई ये है कि  इंसान भगवान को खोजता है - इंसानों में , चमत्कारों में , अनहोनी में। और दूसरी सच्चाई ये है की ईश्वर इनमे से किसी में भी नहीं है। राम , कृष्ण, ईशा मसीह , पैगम्बर मुहम्मद हो या फिर साईं बाबा - ये सभी इंसान के रूप में ही परिभाषित होते हैं ; सम्भवतः विशिष्ट इंसानों के रूप में; लेकिन भगवान किसी भी तरह से नहीं  सकते। इनकी मूर्तियां तो कत्तई नहीं !
 चमत्कार या अनहोनी भी भगवान  नहीं होते।  वास्तव में चमत्कार अनहोनी कुछ होते ही नहीं ;  वो घटनाएँ हैं जिन्हे अपनी अल्पज्ञता के कारन इंसान कभी समझ ही नहीं पाता।  एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो सभ्यता से दूर कहीं जंगल में पैदा हुआ हो और बड़ा हुआ हो -  उसके लिए गाडी , रेल, टेलीविजन , बन्दूक सब कुछ चमत्कार  है। इंसान जो कुछ समझ नहीं पाता  उसे वो बातें चमत्कार या अनहोनी लगती है। 
फिर भगवान है क्या ? भारत में एक सन्यासी हुआ था - स्वामी दयानंद सरस्वती। जब उसका विश्वास शिवलिंग पर  स्वतंत्रता से दौड़ते , गन्दगी फैलाते चूहों को देख कर शिवलिंग के ईश्वर होने की आस्था से डोल गया , तो उसने सच्चे ईश्वर की खोज शुरू की। घर त्याग दिया।  देश भर में घूमता रहा। सारे उपलब्ध ग्रन्थ पढ़ डाले। विभिन्न मतों के गुरुओं से शास्त्रार्थ किया। और अंत में अपने सारे ज्ञान  का निचोड़ निकाला। और उस निचोड़  में से निकली ईश्वर की परिभाषा।  और वो परिभाषा कुछ ऐसी थी - 
" ईश्वर सच्चिदानंद स्वरुप , निराकार , सर्वशक्तिमान , न्यायकारी , दयालु, अजन्मा ,अनंत , निर्विकार , अनादि , अनुपम , सर्वाधार , सर्वेश्वर , सर्वव्यापक ,सर्वान्तर्यामी , अजर , अमर , अभय ,नित्य , पवित्र , और सृष्टिकर्ता है , उसी की उपासना करनी योग्य है। " 
मेरी दुनिया भर के हर धर्म के पंडित , विद्वान , मौलवी , आर्च-बिशप , गुरु और धर्माचार्यों से अनुरोध है कि  वो इस परिभाषा में दिए गए २० विशेषणों में से किसी भी एक को गलत सिद्ध कर दें ; या फिर कोई एक नया विशेषण जोड़ दें , जो इन बीस विशेषणों में निहित  न हो। और अगर ये दोनों बातें संभव न हो तो फिर स्वामी दयानंद कृत  ईश्वर की इस परिभाषा को परम सत्य मान लें। और एक बार ऐसा मान लिया तो  सारे प्रश्न अपने आप हल हो जाएंगे। 
इस परिभाषा की कसौटी पर तौलें हर उस  व्यक्ति को जिसे वो भगवान  मानने का आग्रह करते हैं - समाज के ये धर्माधिकारी। उत्तर स्वयंसिद्ध होगा !  


Friday, June 27, 2014

मोदी सरकार का एक महीना


एक दिलचस्प किस्सा सुनाता हूँ।  एक दिन मेरे साले के बेटे सिद्धू  ने अपने दादाजी  से जिद की कि उसे एक ख़ास किस्म की गाडी चाहिए।  सिद्धू छोटा बालक ही था। दादाजी  ने टालने के लिए कहा - बेटा ,  बहुत महंगी आती हैं ,  अपने पास इतने पैसे नहीं हैं ; इसलिए पहले पैसे और कमा लेते  हैं।  जब इतने पैसे हो जाएंगे तब ये गाडी खरीद लेंगे। शाम को दादाजी दफ्तर से लौटे तो सिद्धू प्रतीक्षा कर रहा था। आते ही गोद में   चढ़ गया।  पूछा - दादाजी पैसे कमा लिए क्या ?  सुबह शाम वो पूछने लगा - दादाजी पैसे कमा  लिए क्या ?

ये तो  बात हुई - एक छोटे बच्चे की ! लेकिन उससे भी ज्यादा नादान वो लोग हैं जो दिन रात नरेंद्र मोदी से प्रश्न करते हैं -  कहाँ गए आपके अच्छे दिन ? दस साल की गन्दगी कोई एक महीने में साफ़ नहीं होती।  और इस सफाई से निकलने वाली दुर्गन्ध को भी सहना पड़ेगा।  समय हर काम में लगता है।  सुगंध फैलाने के पहले दुर्गन्ध को निकालना जरूरी होता है।

अगर एक डॉक्टर एक गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज से कहता है की मेरे इलाज से तुम कष्ट से मुक्त हो जाओगे , तो उस मरीज को इंजेक्शन , सर्जरी और कड़वी दवा को लेने की तैयारी करनी पड़ती है। मरीज ये शिकायत नहीं कर सकता कि डॉक्टर आपने तो कहा था की आप मुझे कष्ट से मुक्त  देंगे , लेकिन आप तो मुझे और भी कष्ट दे रहें हैं।

कांग्रेस पार्टी अगर मोदी से सवाल करती है ,  ये उनकी बेशर्मी के सिवा  कुछ नहीं ! देश उनके ही कुकर्मों को भुगत रहा है।



Monday, June 9, 2014

ऐसे होते हैं अच्छे दिन !

मोदी जी ने कहा था - अच्छे दिन आने वाले हैं ! पूरा देश कह रहा है - अच्छे दिन आने वाले हैं ! लेकिन अच्छे दिन कैसे होंगे , आम आदमी के जीवन में उसका क्या प्रभाव होगा - आइये इसकी चर्चा करें !

 अपनी ही बात करता हूँ।  मेरा ट्रांसपोर्ट सेवा का व्यापार है।  व्यापार में अपने ग्राहकों को उधार देना पड़ता है। मेरा एक ग्राहक एक बहुत बड़ी कंपनी है ,  सरकारी और निजी क्षेत्र के लिए बड़े बड़े कारखाने और अन्य प्रकल्प लगाती है।  हमारी सेवा उसमे लगती है , उनकी बड़ी बड़ी मशीनों और अन्य वस्तुओं का परिवहन करने में।  २०११ से उन्होंने मेरा भुगतान बंद कर दिया , २०१२ से मैंने उन्हें सेवाएं देना बंद कर दिया। जब काफी कोशिशों के उपरांत भी पैसा नहीं मिला , तो मैंने अदालत का दरवाजा पकड़ा। मैंने अपने मूल धन के अलावा ब्याज का भी दावा कोर्ट में कर दिया।

अदालतों में फैसले बहुत समय लेते हैं।  मेरा मुक़दमा भी मंथर गति से चल रहा है।  दो दिन पहले मेरे पास मेरे ग्राहक के दफ्तर से फोन आया और उन्होंने मुझे बात चीत के लिए बुलाया। उनके सर्वोच्च अधिकारी ने मुझसे मुलाकात की।  सबसे पहले उसने मुझसे क्षमा मांगी  और कहा की उनकी कंपनी शर्मिंदा है की इतने लम्बे समय से वो पैसा नहीं दे पा रही थी।  उसने मुझे अपने कारण  बताये . कारण  ये था की उनके कई बड़े बड़े प्रकल्पों में उनका पैसा फंस गया था ,  उन्हें  ग्राहकों से पैसे नहीं मिले थे।  उनके ग्राहकों के पैसे न देने का कारण  था , कांग्रेस सरकार का पर्यावरण मंत्रालय , जिसने बहुत आगे बढ़ चुके प्रकल्पों पर पर्यावरण के नाम पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन अब स्थिति बदल रही थी ;  प्रकल्प आगे बढ़ने लग गए थे।  ग्राहकों से पैसे मिलने शुरू हो गए थे , इसलिए वो चाहते थे की हमारे पैसे भी कुछ किस्तें बना कर चुका  दिए जाएँ। उन्होंने मुझसे ब्याज और मूल में  भी कुछ छूट मांगी।  मैंने पैसों  की आशा में उनकी बात मान ली।  एक दस्तावेज बन गया , जो अदालत में पेश करके केस को समाप्त करने का निर्णय हो गया।

 इतना ही नहीं उन्होंने मुझसे सेवाएं पुनः शुरू करने का अनुरोध किया , जिस पर मैं विचार कर रहा हूँ।

और कैसे होते हैं अच्छे दिन ?

Wednesday, June 4, 2014

दिल की बात

मित्रों ने इन दिनों कई बार शिकायत की - क्या महेन्द्र भाई , देश में इतना सब कुछ चल रहा है और आप का ब्लॉग बिलकुल खामोश बैठा है। शिकायत दुरुस्त भी है ; मार्च २० से लेकर आज मई २५ के बीच मैंने कुछ नहीं लिखा। मेरा स्पष्टीकरण दूँ !

ऐसा नहीं है के इस बीच में मेरे पास लिखने को कुछ था नहीं ; बल्कि सच्चाई ये है कि  गत दो महीने का काल इतना गतिशील और घटनाओं से पूर्ण था कि  एक दिन में मैं चार चार बार भी लिखता तो घटनाक्रम को पकड़ नहीं पाता।  हर दिन का अखबार जैसे इतिहास का एक एक पन्ना बनता जा रहा था।

चुनाव का माहौल तो देश में पिछले ६ महीने से ही रहा है ; लेकिन चुनाव किस तरफ जा रहा था ये कहना बड़ा मुश्किल था।  ख़ास कर , पिछले दो लोक सभा के चुनावों के परिणाम देखते हुए , इस देश के मत दाताओं का मन पढ़ना बड़ा मुश्किल था। सभी दल  अपने अपने प्रचार में लगे हुए थे।  कभी सत्ताधारी कांग्रेस का पलड़ा भारी लगता , तो कभी सत्ता के अन्यायों से लड़ती भारतीय जनता पार्टी का ; कभी लगता की नवजात आम आदमी पार्टी देश के चुनाव का गणित बदल कर रख देगी , तो कभी ऐसा लगता कि मजबूत क्षेत्रीय दल शायद कोई तीसरा मोर्चा बना कर बना कर सत्ता हथिया लेंगे।  ऐसे में दिल  अपने अंदर की बात कहने या लिखने में भी डर लगता था।  ये कहना कितना हास्यास्पद होता कि देश में भारतीय जनता पार्टी श्री नरेंद्र मोदी  नेतृत्व में पूर्ण बहुमत प्राप्त करेगी।

चुनाव की बिसात पर हर राजनैतिक दल मोहरों की तरह होता है ; जनता सांस थामे हर मोहरे की चाल को पहचानने की कोशिश करती है।  राहुल गांधी इस बिसात पर उस दिन पिट गए जिस दिन उन्होंने अर्णव गोस्वामी को टाइम्स नाऊ चैनेल को इंटरव्यू दिया।  प्रबुद्ध जनता , तमाम मिडिया और सभी प्रतिद्वंद्वी दलों ने राहुल के नेतृत्व को शुन्य समझ लिया ; दुर्भाग्य कांग्रेस का था कि दिग्विजय सिंह जैसे लोगों ने सोनिया  गांधी की आँखों से अंधी ममता की पट्टी हटाने की जगह सच्चाई से दूर रखने वाला काला चश्मा और लगा दिया।

आम आदमी एक बहुत बड़े परिवर्तन के रूप में देश में आई थी। अन्ना हजारे के आंदोलन की रेल पर सवार होकर अरविन्द केजरीवाल दिल्ली के चीफ मिनिस्टर की सीट तक पहुँच गए ; एक ऐसी पार्टी की मदद से जिसके भ्रष्टाचार की दुहाई वो पिछले २-३ सालों से दे रहे थे। ४९ दिनों तक सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश के बाद अरविन्द ने बिलावजह दिल्ली की विधान सभा से हाथ झाड़ लिया। अरविन्द को लोकसभा की सीटों का आकर्षण खींच कर ले गया। सीधे छलांग लगा दी प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए। नरेंद्र मोदी से लड़ने का निर्णय ले लिए।  कोई अपनी बहादुरी जताने के लिए सीधा पहाड़ से टकरा जाए , तो उसे बहादुरी नहीं मूर्खता ही कहेंगे। इस चुनाव के साथ आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल दोनों का महत्व इस देश की राजनीति में शुन्य हो गया है।

जैसा चुनाव प्रचार नरेंद्र मोदी ने किया , ऐसा लगा की देश के प्रत्येक व्यक्ति से उन्होंने उसके दिल की बात की। चुनाव के नतीजे इस देश का सारा इतिहास भुला कर ऐसी दिशा में मुड़  गए हैं - जिसके आगे बस अच्छे दिन ही आ सकते हैं।

जय नरेंद्र मोदी ! जय जनता ! जय भारत !


एयर इंडिया

अच्छा समय आने वाला है ; मोदीजी की आशावादिता पूरे भारत पर भले ही लागू हो सकती है , लेकिन एयर इंडिया पर नहीं।  '  हम नहीं सुधरेंगे '- के सिद्धांत पर अडिग है एयर इंडिया ! आप सोचेंगे की बिना मौसम बरसात की तरह मैं क्यों आज एयर इंडिया के पीछे पड़ा हूँ।  लीजिये मेरा ये अनुभव पढ़िए और फिर आप तय कीजिये कि कौन किसके पीछे पड़ा है .

कुछ दिनों  पहले एक कॉन्फरेंस के लिए चेन्नई गया था। अगले दिन शाम को वहां से हैदराबाद जाना था।  मेरे बच्चों की मुझे सख्त हिदायत दे रखी है कि कोई  टिकट न मिले तो यात्रा रद्द कर देना लेकिन एयर इंडिया से मत जाना। लेकिन मैंने अपनी मूर्खता का सहारा लेते हुए इस लिए एयर इंडिया की टिकट खरीद ली थी , क्योंकि वो दूसरी एयर लाइन से काफी  सस्ती थी। मैंने सोचा की यात्रा पूरी होने के बाद बच्चों को बताऊंगा कि तुम्हारी बात न मान कर मैंने कितने पैसे बचाये।

एयरपोर्ट पहुँच कर चेक इन किया तो पता चला की फ्लाइट अपने निर्धारित समय ५ बज कर २० मिनट पर उड़ने वाली है। ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।  मन ने कहा - आखिर अच्छे दिन आ गए हैं। समय पर बोर्डिंग की घोषणा हो गयी। बस में बैठ कर जब विमान के पास पहुंचा तो पूरा विश्वास  हो गया की अब सब कुछ सही चल रहा है। हमसे पहले एक और हमारे बाद एक और यात्रियों से भरी बस आकर खड़ी  हो गयी. बस यहीं से शुरू हो गयी वही पुरानी वही कहानी - एयर इंडिया स्टाइल।

१५-२० मिनट तक खड़े रहने के बाद भी किसी ने आकर बस का दरवाजा खोलने का निर्देश नहीं दिया।  एयरपोर्ट के अंदर की बसों में बैठने   सिर्फ ८-१० सीटें ही होती है , बाकी २०-३० यात्री किसी तरह से फंस कर  खड़े रहते हैं। लगातार एक ही स्थान पर इतनी देर  तक खड़े खड़े लोगों का गुस्सा बढ़ना शुरू हुआ।  स्थिति को भांप कर एक वयोवृद्ध महिला ( एयर इंडिया में सभी वयोवृद्ध ही होते हैं ) बस में आई , उसने कहा - प्लेन में कोई टेक्नीकल स्नैग होने की वजह से ये विलम्ब हो रहा है।  मैंने कहा - मैडम , क्या बोर्डिंग की घोषणा करने के पहले आपके यहाँ टेक्नीकल चेक पूरी करने का प्रावधान नहीं है। दुसरे अगर ऐसी  समस्या है तो यात्रियों को इस प्रकार अमानवीय तरीके से बसों में भर कर रखने का क्या औचित्य है। देवीजी ने आश्वासन दिया कि दस मिनट के अंदर समस्या दूर हो जायेगी और सब से शांति बनाये रखने का अनुरोध किया। दस मिनट में समस्या तो नहीं सुलझी लेकिन देवीजी ने घोषणा कर दी की ये विमान अब नहीं जाएगा , इस लिए सभी को वापस टर्मिनल बिल्डिंग में जाना है।

वहां पहुँच कर कहा गया की आप अपने बोर्डिंग पास नए ले लेवें।  विकल्प की व्यवस्था होने पर ले जाया जाएगा। यह भी कहा गया कि जो यात्री न जाना चाहें , अपनी टिकट कैंसल करवा सकते हैं। मैं असमंजस में था तभी घोषणा हुई की यह यात्रा अब रात  ९ बजे होगी। यह सुनकर मैंने मन बना लिया की अब नहीं जाना इस विमान में। ९ कह रहें हैं बाद में फिर कितना और विलम्ब कर दें। मैंने पता किया दूसरी एयरलाइंस में। हैदराबाद जाने वाली सभी फ्लाइट जा चुकी थी। मैंने सोचा की अब चेन्नई में होटल का पैसा चुकाने से अच्छा है , की अपने घर मुंबई चलें।  एक बहुत महंगी टिकट मिली स्पाइस जेट में। वो लेकर मैं गया एयर इंडिया के काउंटर पर। मैंने कहा मेरी टिकट कैंसल कर दीजिये , और मेरा सामान वापस मंगवा दीजिये।

देवीजी ने कहा - आप क्यों कैंसल करना चाहते हैं , अब हमारा विमान ठीक हो गया है और थोड़ी देर में उड़ सकेगा। मैंने अपना सर पीट लिया. मेरी स्पाइस जेट की टिकट कैंसल होने की सीमा के बाहर  थी। मैंने गुस्से में कहा - देवीजी , आप लोग खुद नहीं जानते की आप क्या कर रहें हैं। मेहरबानी करके मुझे मुक्त कर दीजिये।  बड़ी मुश्किल से मेरा सामान वापस लाया गया।

कैसे किसी यात्रा को एक अभूतपूर्व कटु अनुभव के रूप में बदला जाए - इस पर महारत हासिल है - एयर इंडिया को।  मैंने हमेशा के लिए मेरे बच्चों की बात मान ली है - भर पाये एयर इंडिया से !